Book Title: Anekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 14
________________ अनेकान्त 59/1-2 3. कोई जाति गर्हित नही है, गुण ही कल्याण में कारण हैं। व्रतस्थ चाण्डाल भी ब्राह्मण हो सकता है। 4. नारी धर्म की धुरी है। मानव में प्रेम एवं सन्तति में संस्कार का संचार नारी ही करती है। 5. परस्परोपग्रह की भावना से पर्यावरण संरक्षण होता है तथा पर्यावरण संरक्षण से मानव-कल्याण। 6. हठवादिता धर्म नही है। 'ही' के स्थान पर 'भी' की प्रतिष्ठा से अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। 7. पदलोलुपता सामाजिक कल्याण में वाधक है। 9. रूढिवादिता धर्म नही है। तर्क-वितर्क भी वे ही अच्छे हैं, जिनका उद्देश्य मानव कल्याण हो। 10. पञ्चाणुव्रत या पंचशील आदर्श गृहस्थ की आचार संहिता है। अन्त में मानव कल्याण की भावना भाता हुआ विराम लेता हूँ"क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः, काले-काले च सम्यग्वर्षतु मघवा व्याधयो यान्तु नाशम् । दुर्भिक्षं चौरमारी च क्षणमपि जगतां मा स्म भूज्जीवलोके, जैनेन्द्रं धर्मचक्र प्रभवतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि।।"

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