Book Title: Alankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Archana Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 3
________________ भूमिका अलकार शास्त्र का प्रारम्भ कब से हुआ यह निश्चित रूप से नही कहा जा सकता, तथापि जूनगढ (150 ईस्वी) मे उपलब्ध रुद्रदामन नामक शिलालेख से यह स्पष्ट है कि द्वितीय शताब्दी अथवा इसके पूर्व गद्य और पद्य रूप मे सस्कृत वाड् मय का उदय हो चुका था और उस समय मे काव्य रचनाएँ अलकृत और गुणों से युक्त होती थी क्योंकि रुद्रदामन के शिलालेख मे स्फुट, मधुर कान्त, उदार गुणों का उल्लेख है जो काव्यादर्श के प्रसाद, माधुर्य कान्ति एव उदारता गुणो से तुलनीय है । इसके अतिरिक्त राजशेखर की काव्य मीमासा के एक उद्धरण से यह अवगत होता है कि सर्वप्रथम बृह्मा ने शिव को अलकार शास्त्र का ज्ञान कराया था, तत्पश्चात् शिव ने दूसरों को इसकी शिक्षा दी । पुन किस प्रकार से 18 (अठारह) अधिकरणों में इसे विभाजित किया गया तथा प्रत्येक अधिकरण की शिक्षा किन-किन आचार्यों ने दी इसका उल्लेख काव्य मीमासा मे अविकल रूप से किया गया है ।2 इन आचार्यों मे कतिपय आचार्य वात्स्यायन के कामशास्त्र मे भी वर्णित है । सुवर्णनाम और कुचुमार कामशास्त्र मे उपजीव्य आचार्यों के रूप मे उल्लिखित किए गये है। - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - सर्वक्षत्राविस्कृतवीरशब्द जातोत्सेकाविधेयाना यौधेयाना प्रसह्योत्सा दकेन शब्दार्थगान्धर्वन्यायाद्याना विद्याना महतीना महाक्षत्रपेण रूद्रदाम्ना (। पृ0 44) । काव्यशास्त्र का इतिहास. पी0वी0 काणे, पृ0 416 का0मी0 , प्रथम अध्याय, पृ० । का0 सू०, I/I/13-16

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