Book Title: Ahimsa ki Prasangikta
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 25
________________ ४६. यज्ञ, ४७. आयतन, ४८ यतन, ४६. अप्रमाद, ५०. आश्वासन, ५१. विश्वास, ५२. अभय, ५३. सर्व अमाघात ( किसी को न मारना ), ५४. चोक्ष ( स्वच्छ), ५५. पवित्र, ५६. शुचि, ५७. पूता या पूजा, ५८. विमल, ५६. प्रभात और ६०. निर्मलतर । इस प्रकार जैन आचार - दर्शन में अहिंसा शब्द एक व्यापक दृष्टि को लेकर उपस्थित होता है। उसके अनुसार सभी सद्गुण अहिंसा में निहित हैं और अहिंसा ही एकमात्र सद्गुण है । वस्तुतः अहिंसा सद्गुण-समूह की सूचक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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