Book Title: Ahimsa ki Prasangikta
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 70
________________ और शाकाहार के अर्थशास्त्र को सम्यक् प्रकार से समझा जाए। यह कौन-सा आर्थिक सिद्धान्त होगा कि हम एक मांसाहारी के लिए नौ आदमियों को भुखमरी के लिए विवश करें। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि समुद्र और तालाबों से मछली पकड़ना एक प्रकार से लाभ का अर्थशास्त्र सिद्ध होता है । यहाँ भी यह समझना आवश्यक है कि मत्स्योत्पादन के लिए जिस भूमि और जल का उपयोग किया जा रहा है, उस भूमि और जल से शाकाहारी उत्पादनों को भी बढ़ाया जा सकता है। तालाबों में मछलियों के उत्पादन की अपेक्षा कमलगट्टों और सिंघाड़ों का उत्पादन अधिक लाभप्रद सिद्ध होता है। मछलियों को पकड़ने में जितना मानवीय श्रम खर्च होता है, यदि वही श्रम कृषि के क्षेत्र में किया जाए तो वह अधिक लाभकारी ही सिद्ध होगा। यदि मत्स्यउत्पादन और मछली पकड़ना लाभकारी व्यवसाय रहा होता, तो मत्स्योत्पादक और मछली पकड़नेवाले को कृषकों की अपेक्षा पूँजीपति होना चाहिए था, लेकिन आज भी उनकी जो आर्थिक स्थिति है, वह इस बात का स्पष्ट संकेत करती है कि कृषि की अपेक्षा मत्स्योत्पादन और मछली पकड़ना अधिक लाभप्रद नहीं है। अब तो विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि समुद्री जल में भी शाकाहारी उत्पादनों के लिए प्रयत्न किया जा सकता है। मांसाहार के समर्थन में आज सामान्यतया यह तर्क दिया जाता है कि आगामी २५ वर्षों में खाद्यान्न की समस्या भयंकर रूप धारण कर लेगी, क्योंकि जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, उसके लिए तथा मांसाहार के स्थान पर शाकाहार की प्रतिष्ठा करने के लिए आगामी २५ वर्षों में हमें खाद्यान्न की वर्तमान उपज को उससे ५०% अधिक बढ़ाना होगा । भूमि सीमित है और इसलिए खाद्यान्न की समस्या बनी, अत: मांसाहार ही उसका एक पूरक विकल्प हो सकता है किन्तु वैज्ञानिकों का कहना है कि मांसाहार के स्थान पर यदि वानस्पतिक उत्पादों का प्रयोग किया जाए तो अधिक व्यक्तियों को पोषण दिया जा सकता है, क्योंकि जैसा हम पूर्व में बता चुके हैं, इसका विकल्प शाकाहार ही है, क्योंकि मांस की प्राप्ति के लिए जो वानस्पतिक उत्पाद उन जानवरों को खिलाए जाते हैं, उनसे दशमांश ही हमें मांस प्राप्त होता है और इस प्रकार ९०% वानस्पतिक पोषण सामग्री व्यर्थ चली जाती है । वैज्ञानिकों का तो यहाँ तक कहना है कि वानस्पतिक उत्पादों की अपेक्षा मांस उत्पादन में जल का भी अधिक खर्च होता है और यह भी स्पष्ट है कि आगामी २५ वर्षों में न केवल अन्न का अपितु जल का भी संकट बढ़ने वाला है और यह स्पष्ट है कि शाकाहार को पचाने के लिए जितने जल की आवश्यकता होती है, उससे अधिक जल की आवश्यकता मांसाहार के पाचन के लिए आवश्यक होती है । शाकाहार और अहिंसक चेनता यह स्पष्ट सत्य है कि मांसाहार का आधार प्राणी-जगत् या जीव जन्तु है, जबकि शाकाहार का आधार वनस्पतियाँ और अनाज हैं । यह निश्चित है कि मांसाहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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