Book Title: Agam Yug ka Anekantwad
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Cultural Research Society

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ आगमयुग का अनेकान्तवाद लेखक-श्री दलसुखभाई मालवगिया जैनदर्शनाध्यापक-बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी : प्रास्ताविकजैन दर्शनशास्त्रके विकासक्रमको चार युगोंमें विभक्त किया जा सकता है 1.. आगम युग। 2. अनेकान्तस्थापन युग। .3. प्रमाणशास्त्रव्यवस्था युग। 4. नवीनन्याय युग। युगोंके लक्षण युगोंके नामसे ही स्पष्ट हैं। कालमर्यादा इस प्रकार रखी जा सकती है-आगमयुग भगवान् महावीरके निर्वाणसे लेकर करीब एक हजार वर्ष का है (वि० पू० ४७०-वि० 500), दूसरा वि० पांचवीसे आठवीं शताब्दी तक तीसरा आठवींसे सत्रहवीं तक और चौथा अठारहवीं से आधुनिक समयपर्यन्त / इन सभी युगोंकी विशेषताओंका मैने अन्यत्र संक्षिप्तमें विवेचन किया है। दूसरे, तीसरे और चौथे युगकी दार्शनिक सम्पत्तिके विषय में पू० पण्डित सुखलालजी, पण्डित फैलासचन्द्रजी, पं० महेन्द्रकुमारजी आदि विद्वानोंने पर्याप्त मात्रामें प्रकाश डाला है किन्तु आगमयुगके साहित्यमें जैन-दर्शनके अनेकान्तवादके विषयमें क्या क्या मन्तव्य हैं उनका सङ्कलन पर्याप्त मात्रामें नहीं हुआ है। अतएव यहां जैन आगमोंके आधारसे अनेकान्तवादका विवेचन करनेका प्रयत्न किया जाता है। ऐसा होने से ही अनेकान्तयुगके विविध प्रवाहोंका उद्गम क्या है, आगममें वह है कि नहीं, है तो कैसा है यह स्पष्ट होगा इतना ही नहीं बल्कि जैन आचार्योने मूल तत्वोंका कैसा पल्लवन और विकसन किया 1. 'प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ में मेरा लेख पृ० 303 तथा मण्डलकी पत्रिका नं. 1 2. वही।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 36