________________ ( 23 ) असासए लोए जमाली ! जओ ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ उस्सप्पिणी भवित्ता ओस्सप्पिणी भवइ। -भग० 9. 38. 7. जमाली अपने आप को अर्हत् समजता था किन्तु जब लोक की शाश्वतता अशाश्वतता के विषय में गौतम गणधर ने उससे प्रश्न पूछा तब वह उत्तर न.दे सका तिस पर भगवान महावीर ने उपर्युक्त समाधान यह कह कर किया कि यह तो एक सामान्य प्रश्न है / इसका उत्तर तो मेरे छमस्थ शिष्य भी दे सकते हैं। जमाली ! लोक शाश्वत है और अशाश्वत भी। त्रिकाल में ऐसा एक भी समय नहीं जब लोक किसी न किसी रूप में न हो अतएव वह शाश्वत है / किन्तु वह अशाश्वत भी है क्योंकि लोक हमेशा एक रूप तो रहता नहीं / उस में अवसर्पिणी और उत्सपिणी के कारण अवनति और उन्नति भी देखी जाती है। एक रूप में-सर्वथा शाश्वत में-परिवर्तन नहीं होता अतएव उसेअशाश्वत भी मानना चाहिए / लोक क्या है ? . प्रस्तुतमे लोकसे भ० महावीरका क्या अभिप्राय है यह भी जानना जरूरी है उसके लिये नीचेके प्रश्नोत्तर पर्याप्त हैं "किमियं भंते ! लोए ति पवुच्चइ ?" गोयमा ! पंचत्थिकाया, एस णं एवतिए लोए त्ति यवुच्चइ, तं जहा-धम्मत्यिकाए अधम्मत्यिकाए जाव (आगासस्थिकाए जीवत्थिकाए) पोग्गल स्थिकाए। -भग० 13. 4. 481 अर्थात्-पांच अस्तिकाय ही लोक है। पांच अस्तिकाय ये हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय / जीव-शरीर का भेदाभेद जीव और शरीरका भेव है या अभेद ? इस प्रश्नको भी भ० बुद्धने अव्याकृत. कोटिमें रखा है / इस विषयमें भगवान् महावीरके मन्तव्यको निम्न संवादसे जाना जा सकता है: "आया भन्ते ! काये अन्ने काय ?"