Book Title: Agam Yug ka Anekantwad
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Cultural Research Society

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Page 21
________________ स्थान है। स्याद्वाद के भंगों की रचना में संजय बेलट्ठीपुत्त के विक्षेपवाद' से भी मदद ली गई हो यह संभव है। किन्तु भगवान् बुद्ध ने तत्कालीन नाना वादों से अलिप्त रहने के लिये जो रूख अंगीकार किया था उसी में अनेकान्तवादका बीज है ऐसा प्रतीत होता है / जीव और जगत् तथा ईश्वर के नित्यत्व-अनित्यत्व के विषय में जो प्रश्न होते थे उनको उन्हों ने अव्याकृत बता दिया। इसी प्रकार जीव और शरीर के विषय में भेदाभेव के प्रश्न को भी उन्होंने अव्याकृत कहा है जब कि भ० महावीर ने उन्हीं प्रश्नों का व्याकरण अपनी वृष्टि से किया है। अर्थात् उन्हीं प्रश्नों को अनेकान्तवाद के आश्रय से सुलझाया है। उन प्रश्नों के स्पष्टीकरण में से जो दृष्टि सिद्ध हुई उसी का सार्वत्रिक विस्तार करके अनेकान्तवाद को सर्ववस्तुव्यापी उन्हों ने बना दिया है। यह स्पष्ट है कि भ० बुद्ध दो विरोधी वादों को देखकर उनसे बचने के लिये अपना तीसरा मार्ग उनके अस्वीकार में ही सीमित करते हैं तब भ० महावीर उन दोनों विरोधी वादों का समन्वय करके उनके स्वीकार में ही अपने नये मार्ग-अनेकान्तवाद की प्रतिष्ठा करते हैं / अतएव अनेकान्तवाद की चर्चा का प्रारंभ बुद्ध के अव्याकृत प्रश्नों से किया जाय तो उचित ही होगा। अव्याकृत प्रश्न भगवान् बुद्ध ने निम्नलिखित प्रश्नों को अव्याकृत कहा है। (1) लोक शाश्वत है ? (2) लोक अशाश्वत है ? (3) लोक अन्नवान् है ? (4) लोक अनन्त है ? . (5) जीव और शरीर एक हैं ? - (6) जीव और शरीर भिन्न हैं ? (7) मरने के बाद तथागत होते हैं ? (8) मरने के बाद तथागत नहीं होते ? (9) मरने के बाद तथागत होते भी हैं, नहीं भी होते ? (10) मरने के बाद तथागत न होते हैं, न नहीं होते हैं ? इन प्रश्नों का संक्षेप तीन ही प्रश्नों में है-लोक की नित्यता, अनित्यता और 1. दीघनिकाय-सामञफलसुत्त 2. मज्झिमनिकाय चूलमालुक्य सुत्त 6 /

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