________________ ( 18 ) . . भगवान् बुद्ध के विभज्यवाव की तुलना में और भी कई उदाहरण दिये जा सकते हैं किन्तु इतने पर्याप्त है। इस विभज्यवाद का मूलाधार विभाग करके उत्तर देना है जो ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट है / असल बात यह है कि दो विरोधी बातों का स्वीकार एक सामान्य में करके उसी एक को विभक्त करके दोनों विभागों में दो विरोधी धर्मों को संगत बताना इतना अर्थ इस विभज्यवाद का फलित होता है। किन्तु यहाँ एक बात की ओर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। भ० बुद्ध जब किसीका विभाग करके विरोधी धर्मों को घटाते हैं और भगवान् महावीरने जो उक्त उदाहरणों में विरोधी धर्मों को खटाया है उससे स्पष्ट है कि वस्तुतः दो विरोधी धर्म एक कालमें किसी एक व्यक्ति के नहीं बल्कि भिन्न भिन्न व्यक्तिओं के हैं या भिन्नकालमें एक व्यक्तिके हैं। विभज्यवाद का मूल अर्थ यह हो सकता है जो दोनों महापुरुषों के वचनों में एक रूपसे आया है। - किन्तु भगवान् महावीर ने इस विभज्यवादका क्षेत्र व्यापक बनाया है। उन्हेंाने विरोधी धर्मों को अर्थात् अनेक अन्तों को एक ही काल में और एक ही व्यक्ति में अपेक्षाभेद से घटाया है। इसी कारण से विभज्यवाद का अर्थ अनेकान्तवाव या स्याद्वार हुआ और इसी लिये भगवान् महावीर का दर्शन आगे चलकर अनेकान्तवाद के नामसे प्रतिष्ठित हुआ। तिर्यक सामान्य की अपेक्षा से जो विशेष व्यक्तियाँ हैं। उन्हीं व्यक्तिओं में विरोधी धर्मों का स्वीकार करना यही विभज्यवाद का मूलाधार है जब कि तिर्षग और ऊर्वता दोनों प्रकारके सामान्यों के पर्यायों में विरोधी धर्मों का स्वीकार करना यह अनेकान्तवाद का मूलाधार है / अनेकान्तवाद विभज्यवादका विकसित रूप है अतएव. वह विभज्यवाद तो है ही पर विभज्यवाद ही अनेकान्तवाद है ऐसा नहीं कहा जा सकता। अतएव जैन दार्शनिकों ने अपने बाद को जो अनेकान्तवादके नाम से ही विशेषरूप से प्रख्यापित किया है वह सर्वथा उचित ही हुआ है। [4] अनेकान्तवाद अगवान् महावीर ने जो अनेकान्तवाद की प्ररूपणा की है उसके मूल में तत्कालीन दार्शनिकों में से भगवान् बुद्ध के निषेधात्मक दृष्टिकोण का महत्त्वपूर्ण