Book Title: Agam Yug ka Anekantwad Author(s): Dalsukh Malvania Publisher: Jain Cultural Research Society View full book textPage 8
________________ छान्दोग्य का निम्न वाक्य देखिए "अथातः आत्मावेशः भात्मवापस्तात्, आत्मोपरिष्टात्, आत्मा पश्चात, मात्मा पुरस्तात्, आत्मा दक्षिणतः आत्मोत्तरतः आत्मैवेदं सर्वमिति / स वा एष एवं पश्यन् एवं मन्वान एवं विजाननात्मरतिरात्मक्रीड आत्ममिथुन आत्मा-. मन्दः स स्वराड् भवति तस्य सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति / " छान्दो० 7. 25 // बृहदारण्यकमें उपदेश दिया गया है कि___“न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्व प्रियं भवति आत्मनस्तु कामाय सर्व प्रियं भवति / आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निविध्यासितव्यो मैत्रेय्यास्मनो वा अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेनेदं सर्व विदितम् / " 2. 4. 5. / उपनिषदोंका ब्रह्म और आत्मा भिन्न नहीं किन्तु आत्मा ही ब्रह्म है"अयमात्मा ब्रह्म-बृहदा० 2. 5. 19. / इस प्रकार उपनिषदोंका तात्पर्य आत्मवाद या ब्रह्मवादमें है ऐसा जो कहा जाता है वह उस कालके दार्शनिकोंका उस वादके प्रति जो विशेष पक्षपात था उसीको लक्ष्यमें रखकर है। परमतत्त्व आत्मा या ब्रह्मको उपनिषदोंके ऋषियोंने शाश्वत, सनातन, नित्य, अजन्य ध्रुव माना है / इसी आत्मतत्त्व या ब्रह्मतत्त्वको जड़ और चेतन जगत्का उपादान कारण, निमित्त कारण या अधिष्ठान मानकर दार्शनिकोंने केवलाद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैताबैत या शुद्धाद्वैतका समर्थन किया है। इन सभी वादोंके अनुकूल वाक्योंकी उपलब्धि उपनिषदोंमें होती है अतः इन सभी वादोंके बीज उपनिषदोंमें है ऐसा मानना युक्तिसंगत ही है। . उपनिषद् कालमें कुछ लोग महाभूतसे आत्माका समुत्थान और महाभूतों में ही आत्माका लय मानने वाले थे किन्तु उपनिषद्कालीन आत्मवादके प्रचण्ड प्रवाहमें उस वादका कोई खास मूल्य नहीं रह गया। इस बातकी प्रतीति बृहदारण्यकनिर्दिष्ट याज्ञवल्क्य और मैत्रेयीके संवादसे हो जाती है। मैत्रेयी के सामने जब याज्ञवल्क्यने भूतबादकी चर्चा छेड़कर कहा कि "विज्ञानधन इन भूतोंसे ही समुत्थित होकर इन्हींमें लीन हो जाता है. परलोक या 1. कठो 1. 2. 18 / 2. 6. 1. / 1. 3. 15 / 2. 4. . / श्वेता० 2. 15 / मुण्डको० 1. 6 / इत्यादि / 2. Constructive Survey of Upanishads. P. 205-232Page Navigation
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