________________ आगम निबंधमाला अर्थात् संयम की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये / उसी में रहकर व्रताराधन करना चाहिये ? उत्तर- घोर या कठिन जीवन, निर्वाण या मोक्ष का एकांत हेतु नहीं है किंतु ज्ञान और विवेक के साथ संयम आचरण ही मुक्ति का सही हेतु है। प्रश्न-९ सोने चांदी से भंडार भराकर फिर दीक्षित होना ? उत्तर- सोने चांदी के पहाड़ खड़े कर देने पर भी संतोष एवं त्याग के बिना इच्छाएँ पूर्ण होने वाली नहीं है। अतः इच्छाएँ छोड़कर संयमाचरण करना श्रेष्ठ है। प्रश्न-१० वर्तमान प्राप्त सुखों को छोड़कर भावी सुखों की कामना करना योग्य नहीं है। नहीं मिलने पर पश्चात्ताप होगा? उत्तर- आगामी भोगों की चाहना से संयम साधना नहीं की जाती है। क्यों कि भोगों की चाहना मात्र भी दुर्गति दायक होती है। अतः मोक्ष हेतु संयम साधना करने में पश्चात्ताप या संकल्प विकल्प म दुःखी होने की बात ही नहीं है। निबंध-४ बहुश्रुत का महात्म्य एवं 16 उपमाएँ उत्तराध्ययन सूत्र के ग्यारहवें अध्ययन में बताया गया है कि बहुश्रुत ज्ञानी मुनि संघ में अपने श्रुतज्ञान से अत्यधिक शोभायमान होते है / वहाँ उनके लिये कही गई विभिन्न उपमाएँ इस प्रकार है(१) बहुश्रुत भिक्षु शंख में रखे गये दूध के समान शोभायमान होते हैं। (2) उत्तम जाति के अश्व के समान मुनियों में वे श्रेष्ठ होते हैं। (3) पराक्रमी योद्धा के समान वे अजेय होते हैं। (4) हथनियों से घिरे हुए बलवान हाथी के समान अपराजित होते हैं / (5) तीक्ष्ण सींग एवं पुष्ट स्कंध वाले बैल के अपने यूथ में सुशोभित होने के समान वे साधु समुदाय में अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और ज्ञान से पुष्ट होकर सुशोभित होते हैं। (6) उसी प्रकार पशुओं में सिंह के समान वे निर्भय होते हैं / / 18