________________ आगम निबंधमाला जो जो पुद्गल फरसना, निश्चय फरसे सोय / ममता समता भाव से, कर्म बंध क्षय होय // 6 // राई मात्र घट-वध नहीं, देख्या केवल ज्ञान / यह निश्चय कर जानिए, तजिए आर्तध्यान // 7 // सुख दुःख दोनों बसत है, ज्ञानी के घट माँय / गिरि सर दीसे मुकुर में, भार भीजवो नाँय // 8 // निज आतम को दमन कर, पर आतम मत चीन / . परमातम को भजन कर, सो ही मत परवीन // 9 // पर स्वभाव को मोडा चाहता, अपना ठसा जमाता है / यह न हुई न होने की, तूं नाहक जान जलाता है // 10 // गई वस्तु सोचे नहीं, आगम वाँछा नाँय / वर्तमान वर्ते सदा, सो ज्ञानी जग माँय // 11 // अवगुण उर धरिए नहीं, जो हो वक्ष बबूल / गुण लीजे कालू कहे, नहीं छाया में सूल.॥१२॥ ईष्ट मिले आशा मिले, मिले खान अरु पान / एक प्रकृति ना मिले, इसकी खेंचातान // 13 // गाली सह्या गुण घणा, देने से लगता दोष / देने से मिलती दुर्गति, सहने से मिलता. मोक्ष // 14 // परालब्ध पहले बना, पीछे बिना शरीर / यह अचंभा हो रहा, मन नहीं धरता धीर // 15 // निबंध-३ नमिराजर्षि और शक्रेन्द्र के 10 प्रश्नोत्तर सती मदनरेखा (मयणरेहा)के पुत्र नमिकुमार संयम स्वीकार करने के लिये तैयार हुए थे। तब उनके वैराग्य की परीक्षा ब्राह्मण का रूप धारण कर स्वयं शक्रेन्द्र ने की थी। नमि राजर्षि ने इन्द्र को यथार्थ उत्तर देकर संतुष्ट किया। दोनों का संवाद उत्तराध्ययन सूत्र के नौंवे अध्ययन में 10 प्रश्नोत्तरों के रूप में है। दीक्षा स्थल पर दीक्षा पच्चक्खाण के पूर्व ये प्रश्न किये गये थे, यथा / 16 /