Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Jaykirtisuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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६१५ ३४-प्रारम्भे
३३-५
२-९ २५-२६
३४-४२ १३-प्रारम्भे
१५-७
५-२०
परिशिष्टम्-१ दीपिकाटीकागतउद्धरण-पद्यानामकाराद्यनुक्रमः ॥ दुविहा उ भावलेसा
[उ.नि./गा.५४०] दुहपडिबोहो य निद्दनिद्द
[ ] दृष्टाश्चित्तेऽपि चेतांसि देवमानुषतिर्यक्षु देवा य देवलोगम्मि
[उत्त. १३/७ पूर्वा.] देवाण नारयाण य
[जी.स./गा.७४] देवी नागदत्ता
[उत्त.नि./गा.३४०] देवेसु उत्तमो लाहो
[ ] देसिक्कदेसविरया
[ देहमि असंलिहिए
[प.व./गा.१५७७] देहंमि असंलिहिए
[पञ्च. व./गा.१५७०] दो कप्प कायसेवी
[बृ.सं./गा.१६६] दो वि य जमला भाओ
[आव.नि./गा.४६४] दोन्नि वि नमी विदेहा
[उत्त.नि./गा.२६७] द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये
[ ] धणओ धणत्थियाणं
[र.स./गा.९३] धणदेवे वसुमित्ते
[उत्त.नि./गा.३४०] धन्नाणं खु नराणं
[उ.४/७बृ.वृ.पू.] धम्मो चेवेत्थ सत्ताणं
[
] धर्माद्रनोन्मिश्रित
[
] धिती मती य संवेगे
[आ.नि./गा.१२७६] धीरेण विमरियव्वं
[म.प./गा.३२१] न ज्ञातकामः कामाना
[ ] न पिता भ्रातरः पुत्रा न वि अत्थि न वि य होही
[उत्त.नि./गा.३०९] न शूद्राय मतिं दद्या
[ ] न सहस्राद्भवेत्तुष्टिन सो परिग्गहो वुत्तो
[द.वै.६/२१] नत्थि किर सो पएसो
[म.प./गा.२३८] नाणस्स होइ भागी
[उ.प.६८२] नाणस्स होई भागी
[पञ्चा.११/गा.१६]
३५-२० ३०-१३
३२-९३ २५-प्रारम्भे ९-प्रारम्भे २५-३२
१८-४८ १३-प्रारम्भे
४-७ १८-४८
२-४४ ३१-२० ५-प्रारम्भे ३२-२८ १३-२२
१०-१ १२-११ ९-४८
३-२ २-१/सू.
३२-३
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