Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Jaykirtisuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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६३०
श्रीउत्तराध्ययनदीपिकाटीका-२ यशोमती [शाल-महाशालस्वसृ] १५१ | वरधनु [ सेनापतिपुत्र] १९६, १९७ यशोमती [ सुमित्रभार्या ]
२६१ | वर्द्धमान [ शाश्वतजिनप्रतिमा] १३१ यशोवती [ यक्षहरिलसुता] १९७| वर्धमान [जिन] ६३, २७८, २७९, युगबाहु [ युवराट्] १२९, १३०, १३१
३५३, ५९९, ६०१
वसु [ सूरि] रक्षित [मुनि]
वसुदेव [ राजन्]
३३५ रत्थपथ [ पुर]
वसुमित्र [ ]
१९७ रत्नवती [ यक्षहरिलसुता]
१९७ वस्त्रपुष्पमित्र [ रक्षितशिष्य] रत्नशिख [चक्रिपुत्र] १३१ वाटधानक [ग्राम]
२७० रथनेमि [ समुद्रविजयाङ्गज] ३४१, ३४२,
वाणारस
१९९, ३७६, ३७७ __ ३४३, ३४५, ३४६ | वानमन्तर [ वैमानिकदेव]
२७४ रथवीरपुर [ नगर]
वानीर [ सुता]
१९८ राजगृह [ नगर] २७, ३४, ३९, ६१, ६२, | वारिषेण [शाश्वतजिनप्रतिमा ] १३१ १२०, १९९, २००, २६८ | वासव [खेट]
२७४ राजीमती [ राजकन्या] ३३५, ३४०, वासुदेव [ राजपुत्र ]
४२ ३४१, ३४५ | विजय [ बल]
२८२ राद्धा [ आचार्य]
३१ | विजयघोष [ ब्राह्मण-मुनि] ३७७, ३७८, ३८७ रुद्रा [ पुरोहितभार्या ] ३० विजया [जितशत्रुभार्या ]
२६१ रेवती [ श्रेष्ठिपत्नी]
विदेह [ क्षेत्र-देश] ३२, १३३, २६८, २६९ रैवत [ गिरि] ३३९ | विद्युन्मती [ चित्रसुता]
१९७ रोहगुप्त [ श्रीगुप्तशिष्य]
६२,६३ विद्युन्मालिन् [ देव] २७६, २७८ रोहिणी [ वसुदेवभार्या]
विद्युन्माला [चित्रसुता]
१९७
विन्ध्य [ अद्रि-अटवी- ६२, ६३,६४, लक्ष्मी [ महापद्मविमातृ]
रक्षितशिष्य]
१३३ लक्ष्मीगृह [ चैत्य]
विमल [ आचार्य]
२७४ लोकान्तिक [ देव]
३३९ विराट [विषय]
२६८ लोहजङ्घ [ दूत]
२७२ विशाखदत्त [ नृप]
२०० व
विष्णु [युवराज-मुनि] २६४, २६६, वटपुर [ नगर]
विष्णुकुमार
२६७ वत्सी [ चारुदत्तसुता]
१९७
विहल्ल[ श्रेणिकसुत] वनमाला [ राज्ञी]
वीतभय [पुर] २७६, २७८, २८०, वनराजी [ सुता] १९८
२८१, २८२ वप्रा [ देवी]
३६
३३५
ल
२६५
६२
१९९
२६८।
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