Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Jaykirtisuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 331
________________ ६१६ नाणाई उवजीवइ नाणेण सणेण य नामं ठवणा दविए नामे छव्विहनामे नाऽसतो विद्यते भावो निक्खेवावसरो पुण निक्खेवे उ अजीवे निक्खेवो जीवंमि निक्खेवो विभत्तीए निगोयस्स णं भंते ! निप्फाइया य सीसा नियडुवहिपणिहीए निर्जितमदमदनानां नीयं सिज्जं गयं ठाणं नो सरसि कहं छेत्ता नोकम्मदव्वलेसा पगइठिइमणुभागे पच्चक्खाणे विउस्सग्गे पच्छाकम्मं पुरेकम्म पञ्चतिरिक्खजोणिए पञ्चधा कुरु जन्मान्तं पञ्चविंशतितत्त्वज्ञो पञ्चैतानि पवित्राणि पडिग्गहं संलिहित्ताणं पढमंमि य संघयणे पढमंमि सव्व जीवा पढमे निदं पयलं पणवीसं भावणाओ तं पण्णवण १ वेय २ रागे ३ पत्तं ३ पत्ताबन्धो ४ पयला होइ ठियस्स उ पयलापयला उ चंकमउ परद्रव्यं यदा दृष्ट्वा श्रीउत्तराध्ययनदीपिकाटीका-२ [उनि.गा.२३७ वृ.भा.] ६-प्रारम्भे [ ] १९-८६ [भाष्यगा०] ३६-प्रारम्भे [भाष्यगा०] ३६-प्रारम्भे [शा.स.१/७६] ३१-२० [भाष्यगा०] ३६-प्रारम्भे [उनि.गा.५५१] ३६-प्रारम्भे [उ.नि.गा.५४९] ३६-प्रारम्भे [उ.नि.गा.५५३] ३६-प्रारम्भे [भगवत्याम्] ३६-१०३ [आचा.गा.२६७] [आ.नि.सं.गा.] ३१-१९ [प्र.र.श्लो.२३८] [द.९/१-१७] ११-१० [गु.भा./गा.३७] ३१-२० [उनि./गा.५४२] ३४-प्रारम्भे [उ.नि./गा.५३३] ३३-२५ [आ.नि./गा.१२७७] ३१-२० [द.६/५३] ९-प्रारम्भे १२-१३ [शा.वा./३-३७] [ ] [द.५-२/१] [म.प./गा.५३३] [आ.नि./गा.७९१] १५-२ ५-प्रारम्भे २४-३ २९-७१ ३१-१७ २०-प्रारम्भे [आव.नि./गा.४२३] [निशी.भा./गा.१३९३] ३३-५ ३३-५ २५-२५ [ ] Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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