Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Jaykirtisuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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१६-प्रारम्भे
६१८
श्रीउत्तराध्ययनदीपिकाटीका-२ बंभंमि [ उ] चउक्वं [उत्त.नि./गा.३८१]
१६-प्रारम्भे बारसवासे अहिए [उत्त.नि./गा.५२४]
३२-प्रारम्भे बालस्त्रीमूढमर्खाणां
३१-२० बिइओ वि नमीराया [उत्त.नि./गा.२६९]
९-प्रारम्भे ब्रह्मचर्येण सत्येन
१२-४६ ब्रह्मचारी गृहस्थश्च
१४-९ ब्राह्मणो ब्रह्मचर्येण
१२-१३ भद्दएण व होयव्वं [उत्त.नि./गा.३२६]
१२-प्रारम्भे भवकोटीषु दुःप्राप्यं
९-प्रारम्भे भवणवणजोइवेमाणिया य| [आ.नि.सं.गा.]
३१-१६ भवसिद्धिया उ जीवा [उत्त.नि./गा.३१३]
११-प्रारम्भे भवा २८ ऽऽगरिसे २९ कालं ३० तरे ३१[ आव.नि./गा.४२५]
२०-प्रारम्भे भावंमि विभत्ती खलु [उ.नि.गा.५५६]
३६-प्रारम्भे भावियजिणवयणाणं [पञ्च.व./गा.५३९]
५-प्रारम्भे भावे [उ] वत्थिनिग्गहो
[उत्त.नि./गा.३८२] भिक्खायरियाए बावीसं
२-१/सू. भूनयणवयणदसण
३६-२६७ मइपुव्वे जेण सुयं
२३-३ मगहापुरनगराओ [उत्त.नि./गा.२८४]
१०-प्रारम्भे मङ्गलै: कौतुकैर्योगै[ ]
४-१ मणपरमोहिपुलाए
[प्रव.सा./गा.६९३] मत्तः १ प्रमत्त २ उन्मत्तः ३
३६-११ महारंभयाए महापरिग्गहयाए [ ]
७-१७ महोक्षं वा महाजं वा [
७-१ मा वहउ कोइ गव्वं [सं.रं./गा.६७८६]
२-४१ माणुस्स १ खित्त २ जाइ ३ [उत्त.नि./गा.१५८]
३-१ माता भ्राता भगिनी
[ ]
४-४ मासब्भंतरओ या [आ.नि.सं.गा.]
३१-१५ मासाई सत्तंता [आ.नि.सं.गा.]
३१-११ मिच्छत्तं १ वेयतिगं ४ [प्रव.सा./गा.७२१]
६-प्रारम्भे मिच्छदिट्ठी जीवा [ उत्त.नि./गा.३१४]
११-प्रारम्भे मुण्डस्य भवति धर्म
[ ]
१५-१५ मृद्वी शय्या प्रातः
१७-१७
३-१
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