Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Jaykirtisuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 328
________________ परिशिष्टम्-१ दीपिकाटीकागतउद्धरण-पद्यानामकाराद्यनुक्रमः ॥ जोगविही वहित्ता जोगा पयडिपएसं जोगु १७ वओग १८ कसाए १९ आव.नि./गा.४२४] ज्ञानिनो धर्मतीर्थस्य ठाणनिसीयतुयट्टण डहरो अकुलीणो त्ति य डहरो वि नाणवुद्धो णवमासे कुच्छीए धालिया [उत्त.नि./गा.१३७] णाणे दंसणचरणे [उ.नि.गा.२३७ वृ.भा.] णीयागोयकम्मसरीरपुच्छा [प्रज्ञापनायाम्] णो वामाओ हणूयाओ दाहिणं तज्ज्ञानमेव न भवति [ ] तणसंथारनिसण्णो वि [सं.प./गा.४८] तत्त वि कालियसुए [भाष्यगा०] तत्तो य रायपिंडं ५ [आ.नि.सं.गा.] तत्तो वि से चइत्ताणं [ द.वै.अ.५उ.२गा.४८] तत्थ खलु इमे पढमे अंतकिरियावत्थू- [स्थानाङ्गसूत्रे] तत्थ विणाणेण तहियं पि [भाष्यगा०] तम्हा खलु प्पमायं [उत्त.नि./गा.५२६] तम्हा खलुंकभावं [उत्त.नि./गा.४९५] तम्हा जिणपण्णत्ते [उनि./गा.५५९] तवतेणे वयतेणे [द.वै.अ.५उ.२गा.४६] तवसा उ निकाइयाणं च तस्मात् स्वजनस्यार्थे तस्मात् स्वजनस्योपरि [ ] तस्स अणुओगदारा [भाष्यगा०] तस्स य वेसमणस्स [उत्त.नि./गा.२९४] तस्सोदइया भावा [ ] तह उवदंस निमंतण [गु.भा./गा.३६] तं अन्नमन्नघासं [आव.नि./गा.४६८] तं चिय होइ तह च्चिय ६१३ ३६-पर्यन्ते २९-७१ २०-प्रारम्भे २-१/सू. ३०-१३ ३१-२० ३१-२० २-४५ ६-प्रारम्भे ३३-१४ ३५-१७ १२-१३ ३-१२ ३६-प्रारम्भे ३१-१५ ३२-९६ २९-१४ ३६-प्रारम्भे ३२-प्रारम्भे २७-प्रारम्भे ३६-पर्यन्ते ३२-९६ २९-२२ ४-४ ४-४ ३६-प्रारम्भे १०-प्रारम्भे २९-७२ ३१-२० २५-प्रारम्भे ३०-१३ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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