Book Title: Agam 23 Upang 12 Vrashnidasha Sutra Vanhidasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 262
________________ पडुच्च-पणिवय पडुच्च (प्रतीग) प १७४।२।७६।६३,८।४,६, पण (पञ्चन्) सू १०१५७ ८,१०,१११४६,५३,५.१,१७,५६१४१५ पणगजीव (पनकजीव) ५ ३६१६२ १८.१,२१६५२३१६३,१७६२८१६,६,२० पणगमत्तिया (पन कमृत्तिका) ५ ११६ २६,३१,५२.५५.९ से १०१ ज ४१५४ पिणच्च (प्र- नृत्) पणच्चति जे ५१५७ पणट्ठ (प्रनष्ट) प११४८१३६ पडताच्च (पती मा प११॥३३,११।३३३१ पणतालीस (पञ्चचत्वारिंशत) पश८४ पडप्रपण ( पन) प १२२१२,३२,३८ सू १६०२० ज'३६,५२ १२७ पणतीस (पञ्चत्रिंशत्) सू १।२० पडप्प भाव (मला पन्नभाव) प२८/१८ से १०१ पणतीसतिभाग (पत्रिशतभाग) प २३१८६,८८, पडुप्पण्मानयण ( पनवचन) ५ १११८६ ६५ से १८:११८,१५१ पपया (प्रतिथन) ज ५१२५ पणपण्ण (दे० पञ्चपञ्चाशत् ) प ४१२८ ज ४११७२ पडोयार (प्रावतार) ५ ३०।२५,२६ ज १७,२१, सु १२१७ २२,२६,२७,२६,३३,४६,५०,२।७,१४,१५, पणय (दे०) प ११४६,१४८११,११६५ ज २११३३ २०,५२,५६,५८,१२२,१२३,१२७,१२८,१३१, पणय (प्रणत) ज ३८१,१०६ १३२,१३३,१३,१४७,१४८,१५०,१५१, पणयबहुल ('पन"बहुल) ज २।१३२ १५.६,११७.१५६,१६४:४१५६,८२,६६ से पणयाल (पञ्चचत्वारिंशत् ) ज ७१३४ सु ११२१ १०१,१०६.१७०,१७१ पणयालीस (पञ्चचत्वारिंशत्) ज ११६ मू ४१३ पडोल (पटोल) प १।३१२,११४०।१,११४८।४८ उ २८ पढम (प्रथम) १५१०३,१०६,१०७.१०६,११०, पणव (प्रणव) ज ३।१२,७८,१८०,२०६५१५ ११३,११४,११६,११६,१२०.१२२,१२३; पणवण्ण (पञ्चपञ्चाशत् ) ज ४१५५ २।३१,६८०११;१०।१४।१ से ३,१२११२, पणण्णिय (पणपनिक) प २१४१ १६,३१,३२:२३३,४१,३६८५,८७,६२ पणवन्निय (पणपन्निक) प|४७१ ज २१५५,५६,६३,६४,१३८,१५५ से १५५%; पणवीस (पञ्चविंशति) प २२२ ज १२३ ३१३०,१३५,२१७, ४११४२६३,१५३,१५४, सू११२१ १८०; १८,२०,२३,२६,२८,६७,१०१,१०६, पणवीसतिविध (पञ्चविंशतिविध) सू ६४ १५६,१६०,१६४ च ३३ सू १७,१३,१४, पणाम (प्रणाम) ज ३१५,६,१२,८८ १६,२१,२४,२७, २१३,६१८६११०।६३, पिणाव (प्र- नामय्) पणावेइ उ ११११६ ६७,७७,१७,१३८,१३६,१४३,१४४,१४८, पणावेहि उ ११११५ १५०,१५:११२.३,१२,१६,२०,२४, पणावेत्ता (प्रणाम्य) उ १२११५ १३३१,७६,०; १४॥३,७ उ १६ से ८,६३, । पणासित (प्रणाशित) सू २०१७ १४२,१४३,१८८११,३,१४,१५,२२,३१३, पणिधाय (प्रणिधान) प १७१११ सू ६३१ १६.२०५०,१ ३,२७५॥३,४४ पणिय (पगिन) ज २१२३ पढनणरीसर (प्रथम नरेश्वर) ज ३।१२६।३ पणिवस्य (प्रणिपतित) ज ३।१२५ पहमला (प्रथम) T21४८५१ पणिवय (प्रणि पत) पणिवयामि ज ३।२४।१, पदमया (प्रथम) १२११:४१८०,५१५८ १३११ १. पनक: प्रतलः कदमः-टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394