Book Title: Agam 23 Upang 12 Vrashnidasha Sutra Vanhidasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 261
________________ ६६८ पडिवज्जित्ता ( प्रतिपद्य ) ३।४५, १०४, १४३,५।२० पडिवतिसम्मकि ( प्रतिपतितम्नदृष्टि ) ३।१८२ पडिवण्ण ( प्रतिपन्न ) प ३६।१२ ज ३११४,२६, ३०,३६,४३,४७,५१,५६,६०,६४,६८,७२, ११३,१३०,१३६, १३८, १४०, १४५, १४६, १७२ सू८ ।१ उ ३१६६,७९ पडिवति ( प्रतिपत्ति) चं १ सू १७१३, ११८ १,२, ३,११२० से २३, २५, २६, २१ से ३,३१,४२, ३,५३१,६११,७३१; ८ १६३१ से ३,१०११, १३१,१७।१,१८१११६११, २०११,२ उ १।११६ परिवया ( प्रतिपत्) ज २११३८ परिवर ( प्रतिपत्) ज ७११२५ २०/२५ / पडिसेह ( प्रति + सेध्) पडिसेहेइ ज ३।११० पडिसेति ज ३|१०८ डिसेहित्तए ( प्रतिषेद्धम् ) ज ३।११५,१२४, १२५ परिसेहिता ( प्रतिषिध) उ ११११६ पडिसेहिय ( प्रतिषिद्ध) ज ३२६५, १०६, १११,१५६ उ ११२७ परिवाद (प्रतिपातिन् ) प ३३३१११,३३१३५ पडियाति ( प्रतिपातिन् ) प ११११४ पडिस्इ ( प्रतिश्रुति) ज २१५६,६० परिवादिवस ( प्रतिपत्दिवस ) ज ७।११६ से १०१८५ पडिसेहेयव्व (प्रतिषेधव्य ) प ६६८; १०१६ से पडिवारा ( प्रतिपात्रि ) ज ७।११६ परिवारात (प्रतिपत्ात्रि ) सू १०/८७ पंडिवाले माण ( प्रतिपालयत् ) उ १।१३३ √ पडिक्सिज्ज ( प्रति + वि + सजय्) पंडिविसज्जइ उ ३ । १०४ पडिविसज्जेइ ज ३१६, २, ७,४०, ४८,५७,६५,७३,१२७, १३४, १३६,१४६,१५२, १७१,१५६,२१६ उ १।१०६, ३११३७ पडिविसज्जिय ( प्रतिविसर्जित) ज ३।१७१ पहिण ( प्रति + हुन् ) पडिहमति सू ५।१ पsिहत (प्रतिहत ) प २६४२, ३ ज ४१२५ पडिहता ( प्रतिहता) सू ९१४ पहिय ( प्रतिहत ) चं २ मू १०६ : ५ । १ पडोण (प्रतीचीन ) प २१०, ५० से ६२ ज १११८, २०,२४,३११:४११,३,८६,८८,६८,१०३,१०८, १४१,१६२,१६७,१६६, १७८, १८५, १८७, १६१,२००,२०३, २४५,२५१७ १०१ सु १ १६ २।१ उ १३३,११० डिसिज्जेत्ता ( प्रतिविसर्ज्य ) ज ३।६ परिमाण (प्रतिसंक्षिपमाण ) ज ५२४४ Vusसंवेद (प्रति + सं + वेद् ) पडिसंवेदेति प १५३८ पडिसत्तु ( प्रतिशत्रु) ज ३ १३५।१ पडसाहर ( प्रति + संह) पडिसाहरइ ज ५२६७ परिसाहरति ज ३।१२५ पडिसाहरति प ३६।८५ साहरिता ( प्रतिसंहृत्य ) प ३६८५ ज ३११२५ पडिसाहरेमाण ( प्रतिसंहरत् ) ज ५२४४. पडिपज्जिता बु √ पडिसुण ( प्रति + श्रु) पडिसुगंति ज ५२७३ पडणे ज ३३१६,५३,६२,७०,७७,८४, १००,१४२,१६५, १८१,५३२३,६६ उ ११५५; ३।१४० डिसुर्णेति ज ३१८, १३, १०७,११३ १८६,१६२ १६४५ पडिसुणेमि उ ११८३ परिणेत्ता (प्रतिश्रुत्य ) ज ३१८ उ १४५ परिसेविय ( प्रतिसेवित ) ज २|७१ ( परिसेह ( प्रतिषेध ) प ६१७४ से ७८,८०, ११०; Jain Education International पडोणउदीण (प्रतीचीनोदीचीन ) सू८ । १ पडोणवाय ( प्रतीचीनवात ) प ११२६ पडीणा ( प्रतीची ) ज १११८,२०,२३,२५, २८,३२,४८,३१,४११, ३, ५५,६२,८१,८६,८८, १८,१०३,१०८, १७२,२०५.२१४,२४६, २५२.२६२,३६८ पड़ (पट ) प २१३०,३१,४१,४१ ज १२४५; ३८२, १८५, १८७, २०६.२१८; ५।१,१६; ७ ५: ५८, १८४ सू १८ २३:१६; १९/२३,२६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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