Book Title: Agam 23 Upang 12 Vrashnidasha Sutra Vanhidasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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रोहियकूड-लयाबहुल
रोहियकूड (रोहितकूट ) ज ४७६ रोहियदीव (रोहितद्वीप) ज ४१६८,६६ रोहियव्यवायकुंड (रोहितप्रपातकुंड) ज ४ ६७,६८,
७१
रोहियमच्छ ( रोहित मत्स्य ) ११।५.६ रोहिया (रोहिता) ज ४१६५ से ६७,७१,७२,२६८;
६।२०
रोहीडय ( रोहितक) उ ५।२४ से २६
ल
लउड ( लकुट ) ज ३१११ लउय ( लकुच ) प १३६।३ उल ( लकुट ) ज ३११७८
लउस ( लकुश ) १८६
उसिया (कुशिकी) ज ३११११२ लंख (लख ) ज २०६४;३।१८५
लंघण ( लङ्घन ) ज ३३१०६, १७८ ५५ ७ १७८ लंग (लान्तक) व २०४६,५५,६३६६।३२,५६, ६५:७।१३,१५३८८ २१ ७० ३३।१६ ३४/१६. १८५२४६
संतगवडेंस (लान्तकः वतंसक) २१५५ i ( लाक) १।१३५; २१५५,५६; ३।३४, १८३४।२४६ से २४५ २०१६१; २८/८० उ २१२२
लंबिय ( लम्बित ) ज ७२१७८ लंबूसग (लम्बुसक) ज ५४३६,६७ V लंभ (लभ्) भनि ज ३।३५ लंभणमच्छ ( लम्भनम स्य ) प ११५६ लक्ख (लक्ष) १८१११ ज ३।१०३ लक्खण (लक्षण) व ११४८१५५, २४६४।१२
ज २११४, १५, १६, ३१३,३५,७७,१०६,१३८, १६७।१२,७११३८ चं २२४ सू १९०६ ४ ६ १६/२, ४,६ उ ११३४
लक्खणधर (लक्षणधर ) ज २।१५ लक्खणधारि (लक्षणधारिन् ) ज २११५
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लक्खणसंवच्छर (लक्षणसंवत्सर ) ज ७११०३,११२
सू १०/१२५, १२६ लक्खणसहस्सधारक (लक्षणसहस्रधारक )
१०२६
ज ३।१२६।१
लक्खारस (माक्षारस ) प १७।१२६ लख ( लक्ष ) ज ३।३१
foछकूड (लक्ष्मीकूट) ज ४।२७५ लछिमई (लक्ष्मीमती) ज ५४६ १ लच्छी (लक्ष्मी) ज ३११८,६३,१८०३४१२११
लज्जिय ( लज्जित) ज २१६० उ११५६,८३ लट्ठ (लष्ट) ज १1३७ २ १५; ३६, ३५, ११७,
२२२:४११२८ ५१४३७ १७८
लट्ठदंत (अष्टदंत ) १८६
लट्ठि (यष्टि) ज २।१५ लाह (यष्टिग्रह) ज ३।१७८ लडह (दे०) ज २।१५
लव्ह (लक्ष्ण ) प २३०, ३१, ४१, ४६, ५६.६३,६४ ज ११८,२३,३१,४११
लता (लता) प १३३११
लद्ध (लब्ध ) ज ३१२६,३६,४७,१०३, ११७,१२२, १२६,१३३,१८५, २०६१।१७.५७,८२,६६, १०७, १२७३ । १३,२६,३८, ८५, १२२, १४७. १६० ४।११, २५५११५,२३,३१,३८, ४२ लट्ठ ( लब्धार्थ ) सू २०१७
लद्धि (लब्धि ) प ११४६, १५२५६११, १५६२ / लम्भ ( लभ्) लब्भइ ज ७ १४३ (लभ (लम् ) लभइ ज ७।१५१ समति गु १०/५ लज्जा २० १७, १८, २२२५, २८, २९, ३४, ३८,३९,४१ से ४३, ४४, ४० से ५२, ५४, ५५,
५६
लय (लता) ७ १७८
लया (लता) प १३६ ज २।११,६७,१३१, १४४ से १४६३।१०६ उ ११२३ ५।५
लयाबहुल ( लताबहुल ) ज १|१८
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