Book Title: Agam 23 Upang 12 Vrashnidasha Sutra Vanhidasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
६७८
पलिभाग-पविज्जुयाइत्ता
१४३,१५१ से १५३,१५५ से १५७,१६०, ४०,५५ पवत्तति प १६१४३ १६१,१६४,१६६ से १६६,१७१ से १७३ पवत्त (प्रवृत्त) ज ३।११५,१२३ ज ११२४,३१,४५ से ४७, २१५,६,४४,५२, पत्ति (प्रवनिन्) प १६६५१ ५६,५६,१५६,१६१, ३.१६७,२२६;४।२२, पवत्ति (प्रवृत्ति) ज ४१२३,३८,६५,७३,६०,६१ ३४,५४,६०,६१,६४,८०.८५,८६,६७,१०२, पवयण (प्रवचन) प १।१०१५५,११ सू २०१६।४ १४२,१६१,१६६,१६७१३,१७७,१८६,१६६, पवर (प्रवर) | २३०,३१,४१,४६ ज ३७,६, २०८,२६१,२६६,२७०,२७२,७१८७ से १६६
१२,१५,१७,२१,२२,२४,२६,३१.३२,३४ मू ६।१८११८१२५ से ३६ उ ३.१६,८५,
से ३६,३६,४७,५६,६४,७२,७७,७८,८१, १२४,४।२५
८५.८८,६१,१०८ से १११.११३,१३३,१३८, पलिभाग (प्रतिभाग) प १२।२७,३६,३७,१५३५०
१४५,१६७।५,१७३,१७५, १७७,१७८,१६६, ज २६५
२२२, ५३५,७,४६,५८ सू २०७२ ११७, पलिभागभाव (प्रतिभागभाव) प १७१५०,१५२
१६,२२,२४,१२३,१४०।४।१२,१३,१५; पलिमंथ (परिमन्थ') प ११४५११
५११८ पलिय (पलित) ज २११५,१३३
पवह (प्रवह) ज ४।३६,४३,७२,७८,६०,६५, पलियंक (पर्यङ्क) ज ११८,४८,४।५५,६२,६८,
१७४,१८३,२६२, ६।१८ १६७,१६६,७१३३१२
पवा (प्रपा) ज २१६५,५१५७3 ३१३६ पलुम (पलुआ) प १४४८१६ सन की जाति का एक
पवाइत (प्रवादित) प २१३१,४६ पौधा पल्ल (पल्य) ज २६
पवाइय (प्रवादित) प २१३०,३१,४१ ज ११४५, पल्लग (पल्यक) प ३३।२० ज ४१५७
३.१२,७८,५२,१८०,१८५,१८७,२०६,२१८; पल्लल (पल्वल) २१४,१३,१६ से १६,२८
५।१,५१६७१५५,५८,१८४ सू १८६१३, पल्हत्थ (पर्यस्त) ज ३३१०५
१६।२३.२६ पल्हत्थमुह (पर्यस्तमुख) उ १११५, ३१६८
पवात (प्रपात) उ ५५ पल्हव (पल्हव) प ११८६
पवादित (प्रवादित) ज ३.२०६ पल्हविया (पल्हविका) ज ३।११।१
पवाय (प्रभात) ज २।३८,३१८८४२३,३८,४२. पल्हायणिज्ज (प्रह्न दनीय) १७११३४ ज २।१८, ६५.६७,६८,७१,७३,६० से १४ १८५
पवायबहुल (प्रपातबहुल) ज १११८ पवंच (प्रपञ्च) प २१६४
पवाल (प्रवालय ११२०१२,११३५,३६:११४८।१५, पवग (प्लवक) ज २१३२
२५,६३; २१३१ ज २१२४,६४,६६,१३१,१४४, पिवड (प्र-+पन्) पवडइ ज ४।२३ से २५,३८
१४५,१४६,३।३५,११७,१६७।८ से ४०,६५ से ६७,७३ से ७५९९० से १२
पवालंकुर (प्रवालाकुर) प १७.१२६ पवडेज्ज उ ३१५५
पवालि (प्रवालिन) ज ७।११३ सू १०११२६।३ पवडणया (प्रपतन) प १६:५३
पविचरिय (प्रविचरित) ज ४१३ पवण (पवन) प २।३०।१ ज ३।३५ १०६; २५ पिविज्जुय (प्र- विद्युत्) पविजुयाइस्सइ पिवत्त (
प्रयतंय्) पवत्तड १६८,१६५३६ ज ११४१ से १४५ पविजुयायंलि ज ३।११५ १. वनस्पतिकोश में हरिमन्थ शब्द मिलना है। पविजुयाइत्ता (प्रविद्युत्य) ज २११४१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394