Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Surpannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पच्चत्थिमलवणस मुद्द-पच्छिमदारिया
२०१२ उ ३३५४
पिच्चुत्तर (प्रति --उत्+त) पच्चुत्तरइ ज २०२८ पच्चत्थिमलवणसमुद्द (पाश्चात्यलवणसमुद्र)
४१,४६ उ ३१५१ ज ४१२६८,२७७
पच्चुत्तरिता (प्रत्युत्तीर्य) ज ३१२८ उ ३१५१ पच्चस्थिमिल्ल (पाश्चात्य) प १६३४ ज ११२०, पच्चुप्पण्ण (प्रत्युत्पन्न) ज २१६०; ३।२६,३६,४७,
२३,४८,२।११६,३१४७,७६,६५,१४६.१५०, ५६,१३३,१३८,१४५ ,५३,२२ १५६,१६१,१६४ ; ४१३७,५५,६२,८१,८६६८, पिच्चुवसम (प्रति ।-उप गम्) पच्चुवसमंति १०८,१७२.२१२,२१३,२३०.२३१,२३८% . ज ५७
७१७८ २।१,१०११४२,१३।१४,१६ पच्चुवसमित्ता (प्रत्युपशम्य) ज ५७ पच्चत्युय (प्रत्यवस्तृत) ज ३३११७
पिच्चुवेक्ख (प्रति !- उप-!- ईक्ष) पच्चुवेक्खइ पिच्चप्पिण (प्रति अपय) पच्चप्पिण
ज ३११८७ ज ३।३२,१७१,५७१ पच्चप्पिणंति ज ३१८, पच्चुवेक्खित्ता (प्रत्युप्रेक्ष्य) ज ३।१८७ १३,१६,२६,४२,५०,५६,६७,७५,१४८,१६६, पच्चोयड (दे०) ज ४।३,२५ १७४,१७६,१६८,२००,२१३,५१७०,७३ पच्चोरुभित्ता (प्रत्यवरुह्य) ज ४११३ पच्चप्पिणति ज ३।१६,५३,६२,७०,१४२, पिच्चोल्ह (प्रति अव- रुह ) पच्चोरहइ १६५,१८१,५०५ पच्चपिणह ज २१०५; ज ३१६,२०,३३,५४,६३,७१,१४३,१५१,१६६, ३७,१२,१५,४१,४६,५८,६६,७४,१३०,१४७,
१८२,१८६,२०४,२१४,५।२१,४४ उ १.१६; १६८,१७३,१७५.१६१,१६६,२१२,५२६६
३१५१ पच्चोरुहति ज ३१२१५,५१५,४५ ७२ उ १।१७,४११६:५११८ पच्चप्पिणामि
पच्चोरुति ज ३१२८,४१ पच्चोरहेइ उ०१०६ पच्चप्पिणामोड १११२७
ज ३।१११:४।१८ पच्चप्पिणाहि ज ३.१८,३१,५२,६१.६६,७६, चोरुहिता (प्रत्यरुह्य) ज २१६५ उ १११६, ८३,९८,१२८,१४१,१५१,१५४,१६४,१७०, ३१५१,४११५ १८०,५१२८,६८ उ श११५ परमपिणिज्जइ पच्चोषक प्रति अब.क) पच्चोसक्कइ उ १११२८ पच्चप्पिणेमा ५ ३६११
ज: ३.१२,८८,१५५ पच्चीसक्कति मु २०१२ पच्चय (प्राय) ज ३११०६
पच्चोसक्कित्था ज ३८६,१०२,१५६,१६२ पच्चामित्त (प्रत्यात्रि) ज १२८
पच्चोसक्कित्ता (प्रत्यवकप्क्य) ज ३११२ पिच्चाया (प्रति जन) पच्चा तिब६४ पच्छभाग (पश्चाभाग) सू १०१४,५
पच्चायति ज २६४ पच्चाबाहिद उ ४३ पच्छा (पश्चात् ) प ३४११,२,३६८५,८८ सु १०१५ पच्चायात (प्रत्याजात) ज २११३३
उ ३७,५१,५३,५४,६१,१०७,११८,१३६; पच्चावड (प्रत्याक्त) ज ५१३२
४॥२१ पच्चावरण्ह (प्रत्यापराण्ह) उ ३१५६,६४,६८,७१, पच्छाकड (पश्चात्कृत) सू ८.१ ७४,७४
पच्छिम (पश्चिम) ज २१५५,५७ से ५६.६४,१२६, पच्चद्वित्तए (प्रत्युत्थातुम् उ ३१५५
१५५,१५६; ३३१३५॥१ पिच्चुपणम (प्रति + उत्... णम्) पच्चण्णमइ पच्छिम्कंठभाओवगता (पश्चिमकण्ठभागोपगता) ज ५१२१,५८
सू४ पच्चुण्णमित्ता (प्रत्युसम्य) २१
पच्छिमदारिया (पश्चिमद्वारिका) सू १०११३१
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