Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Surpannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
वणस्स इकाइय-वग्णिय
वणस्सइकाइय (वनस्पति कापि) प १।१५,३०; १३५,१६६,२६६,२७२,५॥३२,५८,७१७८
२११३ से १५,३१६,५० से ५२,५८,६० से ६३' वण्णओ (वर्णतस) ८ ११५ से ६१११५४,२८७, ६६,७१ से ७४,८०८१,८४ से ८७,६३,६५. २०,२६,५३ १६८ से १७०,१८३,४८८,६० से ६४;५६३, वण्णम (दे०वर्णक) उ ३।११४ १७,१८,६६,६।५३,८६,१०२,११५,६।२१ वण्णग (वर्णक) ज ११३२,३६,२०,३३,५४,६३, १५.८५,१२१.१३७,१८१२७,३५,४०,४३,
७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२,१६३,१६७, ४४,५२,२०1८,२११५,४१,२२।३१,३६६३३
२२२,४।१,११७,५११३७।५५ ज २।१३१.१४४
वण्णचरिम (वर्णचरम) प १०।४६,४७ बणस्सइकाइयत्त (वनस्पतिकायिकत्व) ज ७२१२
वण्णणाम (वर्णनामन्) प २३२३८,४७,१०१ से वणस्सति (वनस्पति) प६।१०२,६।४
१०६,१०६ वणस्सतिकाइय (वनस्पतिकारिक) प ३३५०,५१,
वण्णतो (वर्णतस) प ११८,६,२८१३२,६६ ६०,६३,६५,१८३,४।८६,५३१८,६१६३,८३;
वपणनाम (वर्णना मन्) प २३११०१ १५७६, २४१६,३०।१६
वण्णपज्जव (वर्णपर्यव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, वणिज (वणिज) ज ७/१२३ से १२५ करण नाम
१३०.१४०,१४६,१५४,१६०,१६३,७२०६ बणिय (वणिज्) ज २।२३
वण्णपरिणाम (वर्णरिणाम) प १३१२१,२६ वणीमगबहुल (वनीपकबहुल) ज १११८
वण्णमंत (वर्णवत्) प १११५२,५३,२८१५,६,५१, विण्ण (वर्णय) वण्णइस्सामि प १।१।३ वण्ण (वर्ण) प ११४ से २० से २७.३०,३१,
वण्णय (वर्णक) प २३२,४२,४३ ज ११२,३,१२, ४०,४०1९२१४१,४८,४६,६४,३।१८२,५२५,
१६,२३,२५,२८,३१,३५,३८, ११,८३; ७,१०,१२,१४,१६.१८,२०,२४.२५,२८,३०,
४।३,२५,३१,३६,४०,४७.५७,६७,७६,११०, ३२,३४,३७ से ३६,४१,४५,४६,५३,५६,५६,
११२,११५ से १२०,१२६,१२८,१३५,१३६, ६१,६३,६८,७१,७४.७६,७८,८३,८६,८६,६१,
१४१ से १४४,१४७ से १४६,१५३ से १५६, ६३,६७,१०१,१०४,१०७,१०६,१११,११५,
१७८,१८३,२००,२०१,२१३,२१५,२१६, ११६,१२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०,
२२१,२३४,२४०,२४५,२४६,२४८,५३, १४३,१४५,१४७,१५.०,१५२,१५४,१६३,
२६ से ३३,३५ से ३७ च ६,७,८ सू १।२,३ १६६,१६६,१७२,१७४,१७७,१८१,१५४,
उ १५१, ३।६१,४।१०।५।१४ १८७,१६०,१६३,१९७,२००,२०३,२०७,
वण्णय (दे०वर्ण इ.) उ ३।११४ २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३०,
वण (वासा) (वर्णवर्षा) ज ५१५७ २३२,२३४,२३७,२३६,२४२,२४४;
वण्णादेस (वर्णादेश) पश२०,२३,२६,२६,४८ १०१५३.१,१११५३:१७।१११,१७१७,१७,१८% ११४११,१२३ से १२६,१३२ से १३४;
वण्णाभ (वर्णाभ) १ २०२० से २५,५०,५६,६० २३।१०८,१६०,२८६,७,२०,२६,३२,५२,
ज ४।२२,३४,६०,६४,८४,११३,२६६,२७२ ५३,६६, ३०१२५,२६:३६८०,८१ ज १११३, वण्णावास (वर्णमास) ज ११११,४६,३।१६५, २६; २७,१८,१३३,१४२, ३।३,११,१२,८८, १६७:४१४,७,१५,२६,८४,१४६ ; ५।१३ २११४१२२,३४,३६,६०,८२.८४,८६,६४, वणिय (वर्णित) प ११११३१६१२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505