Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Surpannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
वाणारसी-वास
१०४१
४।१६८ से १७० १७१५२,८२,८३, २०१३ वाणारसी ( गणसी) प ११९३।१ उ ३।२७ से
२६४६,४८,५०,५१,६५,६६,६६,१००,१११ वाणिज्ज (वाणिज्य) ज २२३ वातिय (पातिक) उ ३।३५ बाध (व्यावाध) ज २१३६,४१ वाम (काम) ज २११३, ३१६.१२.२४।४,३७१२,
४५२,८८,११७,१३११४५२१.५८
उ१११५,११६ ; ३१६२ तामण (बामन) १ १५:३५; २३।४६ वामणी (वा पनी) ज ३१११११ वामभुयंत (समभुजान्त) सू २०१२ वामेय (मामे) प २१३१ वाय (कान) २४८ ज २१६.१०,१३१,१३३,
३१११,२४।३,३७।१,४५॥१,११७,१३१।३,
२११४।१६६,५१३८,५८ ‘वाय (वाचथ्) बाएंति ज ५।५७ वायंत (वाद न्) ज ३।१७८ वायकरग (व:तक रक) ज ३१११; ५।५५ वायमंडलिया (वातमण्डलिका) प ११२६ वायस (वायस) प ११७६ वायुदेवया (वायुदेवता) सू १०.८३ वारि (शरि) ज ३२२०६:५२५६ वारिसेणा (नारिषणा) ज ४१२१०५६१ वारुण (आरुण) ज ७.१२२२ सु १०१८४।२ वारुणी (वारुणी) ज ५१११११ वारुणोदय (वारुणोदक) १ ११२३ वाल (व्याल) ज ३१२२२ उ ३.१२८ वाल (बल) ज ७१७८ वालग (व्यान) ज ११३७, २१४१,१०१, ३१२०;
४।२७।५।२८ बालग्ग (वालाग्र) जश६,७१७८ वालग्गपोइया (दे०) ज २१२० वालगपोतियासंठित ('वालाग्रपोतिका'संस्थित)
वालपुच्छ (व्यालपुच्छ) ज ७।१७८ वालिघाण (वालधान) ज ७।१७८ वालिहर (वालिधर) ज ७१७८ वाली (पाली) ज ३३० वालुंक (वालुक) प ११४८४८ कपिप्थ की छाल वालुयप्पभा (वालुकाप्रभा) प ११५३, २११,२०,
२३,३११३,२१,२२,१८३४।१० से १२; ६।१२,७५,७६,१०११;२०१६,३६,२११६७;
३३१५ वालुया (बालुका) प ११२०११, २१४८ ज ३११११,
११३, ४११३,२५,४६ सू २०१७ उ ३१५१,५६ वावण (व्यापन्न) व १२१०१।१३ वावण्णम (व्यापन्नक) प २०१६१ वावहारिय (व्यावहारिक.) ज २१६ वादिय (व्यापित) ज ३७६.११६ वावी (वापी) ५२।४,१३,१६ से १६.२८,१११७७
ज ११३३,२।१२,१५, ४१६०,११३,७११३३११ वास (वर्ष) प ११४६; २२१,४११,३,४,६,२५,२७,
२८,३०,३१,३३,३४,३६,३७,३६,४०,४२, ४३,४५,४६,४८,४६,५१५२,५४,५६,५८, ६२,६४,६५,६७,६६,७१,७६,८१,८५,८७, ८८,६०,६४,१२५,१२७,१३४,१३६,१४३, १४५,१५२,१५४,१६५,१६७,१६८,१७०, १७१,१७३,१७४,१७६,१७७,१७६,१८०, १८२,१८३,१८५,१८६,१८८६.३७ से ४१; १६।३०।१८२,६,६,१२,२०,२१,२८,३२, ३४,३५,४७,५०,५२,२०१६३;२३।६० से ६४, ६६.६८,६६,७३ से ७८,८१,८३,८५ से १०, ६२,६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३,१४७, १५८,१६६,१७६,१७७,१८२,१८३,१८७, २८/२५,७४ से ८७,९७ ज १११८ से २३, ३४,३५,४७ से ५१२।१,४,६ से १५,२१ से ४५,५०,५२,५६ से ५८,६५,७१,८८,६०, १२२,१२३,१२६ से १२८,१३० से १३४,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505