Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Surpannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 373
________________ पडुच्च-पणिवय पडुच्च (प्रती ) प १९७४ : २७६ ६३ ८१४, ६, ८.१०.१११४६,५३,२५,५७.५६ १४५ १६११,२११९५ २३१६३,१७९२८१६,९६,२० २६.३१.५२.५५.६ से १०१ ज ४४.४ म २ पतच्च (पती) पण (१ १२ १२,३२,३० ७।३१,५६ ११२७ ११३३,११।३३।१ पडप्पण्णभाव (प्रत्युन्नभाव ) प २०१८ से १०१ पडपण्णवयण (नवलन ) प १११८६ पडे (प्रतिश्रुत्५२५ पडोयार (प्रवतार ) प ३०।२५, २६ ज १७,२१, २२,२६,१७,२२,३२,४६,५०,२१७.१४, १५, २०,५२,५६,१०,१२२, १२३, १२७,१२८,१३१, १३२,१३३,१३३, १४७, १४८, १५०, १५१, १५६,१५७.१५६,१६४४१५६,०२,६६ से १०१, १०६.१७०,१७१ पडोल (पटोल) प १०३७१२, ११४०११, ११४८४८ पढम ( प्रथम ) प १1१०३, १०६, १०७,१०९, ११०, ११३. ११४,११६,११६,१२०.१२२१२३; २३१६८०१:१०।१४।१ से ३:१२।१२. १६,३१,१२:२२०३३, ४१३६८५,८७,१२ ज २१५५,५६,६३,६४,१३८, १५५ से १५८ ३६३०,१३५,२१७, ४११४२३१५३.१५४, १८०७१,२०,२३, २६,२८,९७,१०१.१०६. १५६,१६०,१६४ ३३ १७,१३,१४, १६.२१,२४,२७ २१३,६११८६१; १०१६१, ६७,७७, १२७,१३८, १३६, १४३, १४४, १४८, १५०,१५२,११४२.२ १२१२,१६,२०,२४६ १३१,७,६,१०६१८०३७ उ १०६ से ८,६३, १४२, १४३, १४, २११,३, १४, १५, २२:३१३, १६,२०५००१४४०१,२७१२१३,४४ परीसर (वर) ३।१२६३ (१९४६५१ पदमा (२) १२११४१०५०४८ म १०१५ Jain Education International पण (पञ्चन्) सु १०५७ पण जीव ( पनकजीव ) प ३६१९२ पण गमतिया (पनमृत्तिका) ११६ ( पणञ्च ( प्र + नृत् ) पणच्चति ५ ५७ पण (प्रनष्ट) प १२४८०३६ पणतालीस (पञ्चचत्वारिंशत् ) प १८४ ese भ्रू १६।२० पणतीस (पत्) सू १।२० पणतीतिभाग (भाग २३०६,८८, २५ से १८:११, १५१ पणपण (दे०चपञ्चाशत् ) प ४१२८४।१७२ यू १२।७ पण (दे० ) प १४६, १२४६११.११६५ २०१३३ पाय ( प्रणत) ज ३१८१.१०९ पण बहुल ( पनक" बहुल ) ज २।१३२ पणयाल ( पञ्चचत्वारिंशत् ) ज ७ १३४ सु १।२१ पाली पञ्चचत्वारिंशत्) १०६ ४३ उ५।२८ पणव (प्रणव) ज ३११२,७८, १८०,२०६ ; ५१५ पण (पञ्चपञ्चाशत् ४१५५ वणवण (पणपनिक) २०४१ पणवन्निय (पणपनिक) प २२४७११ पणवीस (पञ्चविशति ) प २२२ ज १३२३ भू १।२१ वणवीसतिविध ( पञ्चविंशतिविध ) सू ९६४ पणाम (प्रणाम ) ज ३१५,६,१२,८८ पणाव (प्र- नामय् ) पण वेइ उ १।११६ पणावेहि उ १।११५ पणावेत्ता (प्रणाम्य) उ १ ।११५ पणासित ( प्रणाशित ) सू २०१७ पणिधाय (प्रणिधान) प १७।१११ सू ६।१ पणिय (पनि) ज २२३ पणिवय ( प्रणिपतित ) ज ३ । १२५ पणिय ( प्रणि+पत्र) पणिवयामि ज ३१२४११ १३१।१ १. पनकः प्रतलः कर्दम: - टीका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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