Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Anuttaraovavai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ १६ ग. हस्तलिखित-गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । में १३ यह प्रति पंचपाठी है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं । प्रत्येक पृष्ठ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं । प्रति की लम्बाई १०१ इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं । प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है । केवल इतना लिखा है-- ॥ छ ॥ ग्रंथा ८० ॥२॥ ॥ ० ॥ पुण्यत्नसूरीणा ॥ घ. यह प्रति गवैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं । प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति के बीच में टव्बा लिखा हुआ है । प्रति सुन्दर लिखी हुई है । पत्र की लम्बाई १० इंच व चो० ४३ इंच है। प्रति के अंत लिखे हुए हैं। में तीन दोहे रिणी हमारो ग्राम ! गणेश हमारो नाम ॥१॥ मैं सुत मुन्नीलाल । उजियागर पोसाल ||२|| थली हमारी देश गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारा है पिता, बड़ो गच्छ है खरत्तरी, बीकानेर व्रत्मान जंगलवर श्रीरस्तु ॥ छ ॥ कल्याणमस्तु ॥छ || Jain Education International राजपुताना बादस्या, गंगासिंहजी ४. अणुत्तरोववाइयदसाओ क. ताडपत्रीय ( फोटो प्रिंट) । पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् १९८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार यह प्रति १९५६ से पहले की है । ख. गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की ( उपासकदशा, अन्तकृत और अनुत्तरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० हैं । प्रत्येक पत्र १३३ इंच लम्बा तथा ५३ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं । प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४६५ की लिखी हुई है :-- नाम | नाम ||३|| ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्त शोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥१॥ मुक्ताफलतुलां विभ्रत् सद्वृत्तः सुगुणास्पदं 1 सम्यगुरुचिरजायत ||२| तस्यां श्रीशालभद्राख्यः For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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