Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Anuttaraovavai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 46
________________ पढमो वग्गो पढमं अज्झयणं जाली उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । अज्जसुहम्मस्स समोसरणं । परिसा निग्गया जाव' जंबू पज्जुवासमाणे' एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमदे। पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अद्वे पण्णत्ते ? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा पण्णत्ता ।। जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तो वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अझयणा पण्णत्ता? ४. एवं खलू जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अणत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा १. ना० १।१६,७ । २. पज्जवासइ (क, ख, ग, घ); ना० ११७ सूत्रानुसारेण अयं पाठः स्वीकृतः। ३,४. अ० ३१७५ ! ५. सुधम्मे (क, ख, ग)। ६,७. अ०३१७५ 1 ८. तिगिण (ख)। ६. अ०३३७५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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