Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Anuttaraovavai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ.उवासगंढसा ओ.अंतगडदसाझा अणूतरोववाइयदसाओ.पण्हावापरणाई.विवागसूर्य AVANAVAVI VAVAVALAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAS वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में निगंथं पावयणं अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ • उवासगदसाओ . अंतगडदसाओ • अणुत्तरोववाइयदसाओ . पण्हावागरणाई विवागसुयं वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक: श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस) पृष्ठांक ! ६२५ मूल्य : ८० मुद्रक :एस. नारायण एण्ड संस (प्रिंटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI III NAYADHAMMAKAHÃO. UWASAGADASÃO ANTAGADADASÃO. ANUTTAROWAWAIYADASAO. PANHAWAGARANAIN. VIVAGASUYAM. (Original text Critically edited) Vāćanā PRAMUKHA ĀCĀRYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreechand Rampuria. Director : Āgama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kārtic Kțishna 13 2500th Nirvana Day Pages 925 Rs. 80/ Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj, Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणयुटवं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्माण - रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स पणिहाणपुध्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सध्यान लोन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभुओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुथ्वं ॥ जिसने श्रत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत - सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं । संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है संपादक: सहयोगी : पाठ-संशोधन : मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है । 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे । सुझाव पर विचार हुआ । श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से थी गोपीचन्दजी चोपड़ा और मैं तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आछा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया । सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े। __ आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से कहा “जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कैसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । (सरदारशहर) प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिस्तर पर काँच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे । मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए । आचार्यश्री ऊटी (उटकमण्ड) पधारे । वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की वात ठहरी। इस तरह नंदी मिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मात-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनं (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म-स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हाथ में लिया । कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० २०१३ में लाडनूं में आचार्य श्री के दर्शन प्राप्त हए। कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में दशवकालिक सूत्र के अपने अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए। मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-"ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम-सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही १. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण। २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला : मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला : आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में--(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयारो तह आयारचूला, (३) निसीहन्झयणं, (४) उववाइयं और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो (प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण-कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर वे प्रकाशित नहीं हो पाए। दूसरी ग्रन्थमाला में-(१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए । समवायांग का मुद्रण-कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया। तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २)। उक्त प्रकाशन कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा । अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त आ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गंज रहे हैं.. "धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा । कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया। आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसुत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है : प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय--ये प्रथम चार अंग हैं। दूसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है। तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है। ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा। केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है। दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन भूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है। 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मुद्रण कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिंटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन ( भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है । इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्त्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है । 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोड़िया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा । इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है । सन् १९७३ में मैं जैन विश्व भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चुना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मुद्रण 'की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा | स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है । उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्त्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है। मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सुन्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत् वंद्य श्रमण भगवान् महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है । ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन जैन विश्व भारती Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय ग्रन्थ-बोध- आगम सूत्रों के मौलिक विभाग दो हैं- अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य । अंग-प्रविष्ट सूत्र महावीर के मुख्य शिष्य गणधर द्वारा रचित होने के कारण सर्वाधिक मौलिक और प्रामाणिक माने जाते हैं । उनकी संख्या बारह है - १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६ ज्ञाताधर्मकथा ७ उपासकदशा ८. अंतकृतदशा 8. अनुत्तरोपपातिकदसा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. दृष्टिवाद । बारहवां अंग अभी प्राप्त नहीं है । शेष ग्यारह अंग तीन भागों में प्रकाशित हो रहे हैं। प्रथम भाग में चार अंग हैं - १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग और ४. समवायांग, दूसरे भाग में केवल व्याख्याप्रज्ञप्ति और तीसरे भाग में शेष छह अंग । प्रस्तुत भाग अंग साहित्य का तीसरा भाग है। इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंत गडदसाओ, अणुत्तरोक्वाइयदसाओ, पण्हावागरणाई और विवागसुयं - इन ६ अंगों का पाठान्तर सहित मूल पाठ है । प्रारम्भ में संक्षिप्त भूमिका है। विस्तृत भूमिका और शब्द सूची इसके साथ सम्बद्ध नहीं है । उनके लिए दो स्वतन्त्र भागों की परिकल्पना है। उसके अनुसार चौथे भाग में ग्यारह अंगों की भूमिका और पांचवें भाग में उनकी शब्द-सूची होगी । प्रस्तुत पाठ और सम्पादन-पद्धति हम पाठ संशोधन की स्वीकृत पद्धति के अनुसार किसी एक ही प्रति को मुख्य मानकर नहीं चलते, किन्तु अर्थ-मीमांसा, पूर्वापरप्रसंग, पूर्ववर्ती पाठ और अन्य आगम-सूत्रों के पाठ तथा वृत्तिगत व्याख्या को ध्यान में रखकर मूलपाठ का निर्धारण करते हैं । लेखनकार्य में कुछ त्रुटियां हुई हैं । कुछ त्रुटियां मौलिक सिद्धान्त से सम्बद्ध हैं । वे कब हुई यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता । पाठ के संक्षेप या विस्तार करने में हुई हैं, यह संभावना की जा सकती है । 'नायाधम्मक हाओ' १५५६ में बारह व्रत और पांच महाव्रतों का उल्लेख है । स्थानांग ४/१३६, उत्तराध्ययन २३।२३-२८ के अनुसार यह पाठ शुद्ध नहीं है । बाईस तीर्थकरों के युग में चातुर्याम धर्म होता है, पांच महाव्रत और द्वादशव्रत रूप धर्म नहीं होता। ऐसा प्रतीत होता है कि अगार-विनय और अनगारविनय का पाठ ओवाइय सूत्र के अगारधर्म और अनगारधर्म के आधार पर पूरा किया गया है । इसलिए जो वर्णन वहां था वह यहां आ गया। हमने इस पाठ की पूर्ति राय सेणइय सूत्र 'के आधार Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पर की है, देखें-नायाधम्मकहाओ पृष्ठ १२२ का सातवां पाद-टिप्पण । इस प्रकार के आलोच्य पाठ नायाधम्मकहाओ १।१२:३६, १।१६।२१, १।१६।४६ में भी मिलता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र १०।४ में 'कायवर' पाठ मिलता है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'काचवर'-प्रधान काच दिया है, किन्तु यह पाठ शुद्ध नहीं है। लिपि-दोष के कारण मूलपाठ विकृत हो गया। निशीथाध्ययनके ग्यारहवें उद्देशक (सुत्र १) में 'कायपायाणिवा और वइरपायाणिवा' दो स्वतन्त्र पाठ हैं। वहां भी पात्र का प्रकरण है और यहां भी पात्र का प्रकरण है। काँचपात्र और वज्रपात्र-दोनों मुनि के लिए निषिद्ध हैं। इस आधार पर यहां भी 'वर' के स्थान पर 'वइर' पाठ का स्वीकार औचित्यपूर्ण है। लिपिकाल में इस प्रकार का वर्ण-विपर्यय अन्यत्र भी हआ है। 'जात' के स्थान पर 'जाव' तथा पचंकमण' के स्थान पर एवंकमण' पाठ मिलता है। पाठ-संशोधन में इस प्रकार के अनेक विचित्र पाठ मिलते हैं। उनका निर्धारण विभिन्न स्रोतों से किया जाता है। प्रतिपरिचय १. नायाधम्मकहाओक. ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मूलपाठ यह प्रति जेसलमेर भंडार से प्राप्त है। यह अनुमानतः बारहवीं शताब्दी की है। ख. नायाधम्मकहाओ (पंचपाठी) मूल पाठ वृत्ति सहित यह प्रति गर्वया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। पत्र के चारों ओर हासियों (Margin) में वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १८६ तथा पृष्ठ ३७२ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। पत्र में मूलपाठ की १ से १३ तक पक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३८ तक अक्षर हैं। प्रति स्पष्ट और कलात्मक है । बीच में तथा इथर-उधर वापिकाएं हैं। यह अनुमानतः १४-१५ शताब्दी की होनी चाहिए। प्रति के अंत में टीकाकार द्वारा उद्धत प्रशस्ति के ११ श्लोक हैं। उनमें अन्तिम श्लोक एकादशसु गतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानां । अणहिलपाटकनगरे भाद्रवद्वितीयां पज्जुसणसिद्धयं ॥१॥ समाप्तेयं ज्ञाताधर्मप्रदेशटीकेति ॥छ।। ४२५५ ग्रंथानं ।। वत्ति । एवं सूत्र वृत्ति १७५५ ग्रंथाग्रं ॥१॥छ।। ग. नायाधम्मकहाओ (मूलपाठ) यह प्रति गर्धया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । इसके पत्र ११० तथा पृष्ठ २२० हैं ।प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ५३ तक अक्षर हैं। प्रति जीर्ण-सी है। बीच में वावड़ी है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिपि संवत् १५५४ है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है-संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण वदि २ रवी । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायकश्रीसमतिसाधरि । तत्पट्टे श्रीहेम विमलसूरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन । साह श्री सूरा लिखापितं ॥ जोसी पोपा लिखितं ॥ भ्राति उज्जल संजुक्त घीआ लिखापितं छाछ॥१॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं। घ. टब्बा यह प्रति १२वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है। २. उवासगदसाओक. उवासगदसाओ----मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है। पत्र क्रमांक संख्या १८२ से २०२ तक है । फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है । इसकी लम्बाई १४ इंच, चौड़ाई इंच है। प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीव अक्षर हैं। प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ५१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ है। अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है। ख. उवासगदसाओ--टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित)-- __यह प्रति गधया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है। प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४९ इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः । ३. अंतगडदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २०३ से २२२ तक। विपाक सूत्र के अंत में (पत्र संख्या २८५ में) लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी ११८६ से पहले की होनी चाहिए। ख. हस्तलिखित-गधया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति (उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय-देखें अणुत्तरोववाइय 'ख' प्रति-लेखन. संवत् १४६५ है। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ग. हस्तलिखित-गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । में १३ यह प्रति पंचपाठी है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं । प्रत्येक पृष्ठ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं । प्रति की लम्बाई १०१ इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं । प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है । केवल इतना लिखा है-- ॥ छ ॥ ग्रंथा ८० ॥२॥ ॥ ० ॥ पुण्यत्नसूरीणा ॥ घ. यह प्रति गवैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं । प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति के बीच में टव्बा लिखा हुआ है । प्रति सुन्दर लिखी हुई है । पत्र की लम्बाई १० इंच व चो० ४३ इंच है। प्रति के अंत लिखे हुए हैं। में तीन दोहे रिणी हमारो ग्राम ! गणेश हमारो नाम ॥१॥ मैं सुत मुन्नीलाल । उजियागर पोसाल ||२|| थली हमारी देश गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारा है पिता, बड़ो गच्छ है खरत्तरी, बीकानेर व्रत्मान जंगलवर श्रीरस्तु ॥ छ ॥ कल्याणमस्तु ॥छ || राजपुताना बादस्या, गंगासिंहजी ४. अणुत्तरोववाइयदसाओ क. ताडपत्रीय ( फोटो प्रिंट) । पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् १९८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार यह प्रति १९५६ से पहले की है । ख. गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की ( उपासकदशा, अन्तकृत और अनुत्तरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० हैं । प्रत्येक पत्र १३३ इंच लम्बा तथा ५३ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं । प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४६५ की लिखी हुई है :-- नाम | नाम ||३|| ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्त शोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥१॥ मुक्ताफलतुलां विभ्रत् सद्वृत्तः सुगुणास्पदं 1 सम्यगुरुचिरजायत ||२| तस्यां श्रीशालभद्राख्यः Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ तदन्वयस्याभरणं बभूव वांगाभिधानः सुविशुद्धबुद्धिः । विवेकसत्संगतिलोचनाभ्यां दृष्ट्वा सुमार्ग य उरीचकार ।।३।। तदंगजन्माजनि वाहडाख्यः सद्धर्मकर्मार्जनबद्धकक्षः । वक्षो यदीयं गुरुदेवभक्तिरलंचकाराब्जमिवालिराजी ॥४॥ क्रमेण तवंशविशालकेतु: कर्माविधः श्रावकपुंगवोभूत् । चित्र कलावानपि यः प्रकामं वधप्रमोदार्पणहेतुरुच्चैः ।।५।। तदंगभूरभूत्साधु महणो द्रुहिणोपमः । राजहंसगतिः शश्वच्चतुराननतां दधत् ॥६॥ तस्यार्हदह्रियुगलाब्जमधुव्रतस्य यात्रादिभूरिसुकृतोच्चयकारकस्य ! आसीदसामयशसः किल माव्हणाद्या देविप्रिया प्रणयिनी गिरिजेव शंभोः ॥७॥ तत्कुक्षिप्रभवाबभुवुरभितोप्युद्योतयंत: कुलं, चत्वारस्तनया नयाजितधना नाभ्यर्थना भीरवः । आद्यस्तत्र कुमारपाल इति विख्यातः परो वर्द्धनस्तार्तीयस्त्रिभवाभिधस्तदपरो गेलाह्वयोमा भुवि ।।८।। चत्वारोपि व्यधूरघरितां मर्त्यधात्रीरुहस्ते, स्वौदार्येणातन्धनभृतो बांधवा धर्मकर्म । अन्योन्यं स्पर्द्धयेव प्रतिदिनमनयास्तेषु गेलाख्य भार्या, गंगा देवीति गंगावदमलहदयास्तीह जैनांहिलीना 1811 तत्कुक्षिभूः श्रावक ऊदराज, आधो द्वितीयः किल बूट नामा। द्वादप्यभूतां गुरुदेवभक्तौ मंदोदरी नाम सुता तथास्ति ॥१०॥ ऊदाख्यस्य सभीरीति माऊ बूटस्य च प्रिया । आसधरो मंडनश्व तयो पुत्री यथाक्रमम् ॥११॥ अमुना परिवारेण, सारेण सहिता शुभा। गंगादेवी गुरोर्वक्त्रादुपदेशामृतं पपौ ॥१२॥ आबाल्याद्धर्मकर्माणि तत्वान्यसौ निरतरं। एकादशांगसूत्राणि लेखयामास हर्षत: ॥१३॥ विजयिनि खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिसाम्राज्ये । गुण निधि वाद्धौंदु मिते विक्रमभूपाद् व्रजति वर्षे ।।१४।। गंगादेवी सुतोपेता, लेखयित्वांगपुस्तकं । दत्तस्म श्रीतपोरलोपाध्यायेभ्यः प्रमोदतः ।।१। छ। श्रीः ॥ ग, हस्तलिखित प्रति मधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र तथा पृष्ठ १५ हैं। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ४० तक अक्षर हैं। प्रति Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की लम्बाई १०२ इंच तथा चौड़ाई ४१ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं-- ॥छ। अणु त्तरोववाइयदशांगं नवमं अंग समत्त छ।। श्री: श्रीः श्री: श्री: श्रीः श्री: छ छ: प्रति का अनुमानित समय १६०० है । ५. पण्हावागरणाई-- क. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) मूलपाठ---- पत्र संख्या २२८ से २५६ ख. पंचपाठी । हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तरार्ध । यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १०४४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा बीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति को जगह-- ग्रंथान १२५० शुभं भवत् कल्याणमस्तु ।। लिखा है । लेखन कर्ता तथा लिपि-संवत का उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए। ग. त्रिपाठी (हस्तलिखित)-- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र १११ हैं। प्रत्येक पत्र १०x४१ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ से ८ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वत्ति तथा बीच में कलात्मक बावडी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच बीच के कई पन्ने लप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथार १२५० ।छ। श्री ।। छ।।।। लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए। घ. मूलपाठ (सचित्र)-- पूनमचंद दुधोडिया, छापर द्वारा प्राप्त । इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं। बीच में वावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र हैं। लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानत: १५७० के लगभग की होनी चाहिए ! अशुद्धि बहुल है ! च. मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति-- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । पत्र संख्या ८३ ।' क्व. यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ है । बालावबोध पंचपाठी । पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं । अक्षर २८ से ३५ तक हैं । लेखन संवत् १६६७ । लेखक सुदर्शन । प्रति काफी शुद्ध है। ६. विवागसुयंक. मदनचन्दजी मोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । (मुलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं। प्रति प्रायः शुद्ध है । लेखन संवत् ११८६ आश्विन मुदि ३ सोमवार। पुष्पिका काफी लम्बी है पर अस्पष्ट है। प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १३ इंच है और तीन कोष्ठकों में लिखी हुई है ! मूलपाठ यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर को है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं। पत्रों की लम्बाई १०१ तथा चौड़ाई ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हआ है। प्रति प्राय: शुद्ध है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:-- शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं ।छ।।। मूलपाठ-- ___ यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी गानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पष्ठ ७० हैं। प्रत्येक पत्र १११ इंच लम्बा तथा ४६ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में-- एक्कारसयं अंगं समत्तं ॥ ग्रंथान १२१६ ।। टीका ६०० एतस्या ॥ लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीब ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए। ७. एम. सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १६३५, 'विवागसय। सहयोगानुभूति जैन-परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयल भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, तटस्थदृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ। _हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन-कर्म के अनेक अंग हैं--पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है ! मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनू। प्रस्तुत पाठ के सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि बालचन्द्रजी, इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रति-शोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल (आमेट) ने तैयार किया है। कार्य-निष्पत्ति में इनके योगका मूल्यांकन करते हए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्म में किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। ___ आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारम्भ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प' और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। जैन विश्व-भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्द जी सेठिया, 'जैन विश्व-भारती' तथा 'आदर्श साहित्य संघ' के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। ___ एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूति मात्र है। वास्तव में यह हम सब का पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अणुव्रत विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस। मुनि नथमल Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका नायाधम्मक हाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का छठा अंग है । इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम 'नाया' और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम 'धम्मकहाओ' है । दोनों श्रुतस्कन्धों का एकीकरण करने पर प्रस्तुत आगम का नाम 'नायाधम्मकहाओं' बनता है। 'नाया' (ज्ञात) का अर्थ उदाहरण और 'धम्मकहाओ' का अर्थ धर्म-आख्यायिका है । प्रस्तुत आगम में चरित और कल्पित - दोनों प्रकार के दृष्टान्त और कथाएं हैं ।' जयधवला में प्रस्तुत आगम का नाम 'नाहधम्मकहा' (नाथधर्मकथा) मिलता है | नाथ का अर्थ है स्वामी । नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा । कुछ संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' उपलब्ध होता है । आचार्य अकलंक ने प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' बतलाया है।' आचार्य मलयगिरि और अभयदेवसूरि ने उदाहरण प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है । उनके अनुसार प्रथम अध्ययन में 'ज्ञात' और दूसरे अध्ययन में 'धर्म - कथाएं' । दोनों ने ही ज्ञात पद के दीर्घीकरण का उल्लेख किया है। ' श्वेताम्बर साहित्य में भगवान् महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात' और दिगम्बर साहित्य में 'नाथ' बतलाया गया है। इस आधार पर कुछ विद्वानों ने प्रस्तुत आगम के नाम के साथ भगवान् महावीर का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार 'ज्ञातृधर्मकथा' या 'नाथधर्मकथा' १. समवाओ, पणगसमवाश्रो, सूत्र ६४ २. तवार्थवार्तिक १२०, पृ० ७२ : ज्ञातृधर्मकथा | ३. (क) नंदीवृत्ति, पत्र २३०,३१ : झातानि - उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथम श्रुतस्कन्धे, धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कन्धे यासु ग्रन्थपद्धतिषु (ता) ज्ञाताधर्मकथाः पृषोदरादित्वात्पूर्वपदस्य दीर्घान्तता । (स्व) समवायांगवृत्ति, पत्न १०८ : ज्ञातानि -- उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा, दीर्घत्वं संज्ञात्वाद् अथवा प्रथमश्रुतस्कंधो ज्ञाताभिधायकत्वात् ज्ञातानि द्वितीयस्तु तथैव धम्मंकथाः । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ का अर्थ है--भगवान् महावीर की धर्म कथा'। वेवर के अनुसार जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशी महावीर के लिए कथाएं हों उसका नाम 'नायाधम्मकहा' है। किन्तु समवायांग और नंदी में जो अंगों का विवरण प्राप्त है उसके आधार पर 'नायाधम्मकहा' का 'ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा --यह अर्थ संगत नहीं लगता। वहां बतलाया गया है कि ज्ञाताधर्म कथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है। प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम भी 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्त ज्ञान) है। इसके आधार पर 'नाथ' शब्द का अर्थ 'उदाहरण' ही संगत प्रतीत होता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रिय-विजय आदि आध्यात्मिक तत्त्वों का अत्यन्त सरस शैली में निरूपण किया गया है। कथावस्तु के साथ वर्णन की विशेषता भी है। प्रथम अध्ययन को पढ़ते समय कादम्बरी जैसे गद्य काव्यों की स्मृति हो आती है। नवे अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नौका का वर्णन बहुत सजीव और रोमांचक है। बारहवें अध्ययन में कलुषित जल को निर्मल बनाने की पद्धति वर्तमान जल-शोधन की पद्धति की याद दिलाती है। इस पद्धति के द्वारा पुद्गल द्रव्य की परिवर्तनशीलता का प्रतिपादन किया गया है। मुख्य उदाहरणों और कथाओं के साथ कुछ अवान्तर कथाएं भी उपलब्ध होती हैं। आठवें अध्ययन में कूप-मंदूक की कया बहुत ही सरस शैली में उल्लिखित है। परिवाजिका चोखा जितशत्र के पास जाती है। जितशत्रु उसे पूछता है--'तुम बहुत घूमती हो, क्या तुमने मेरे जैसा अन्त:पुर कहीं देखा है ?' चोखा ने मुस्कान भरते हुए कहा---'तुम कूप-मंडूप जैसे हो ।' 'वह कूप-मंडूप कौन है ?' जितशत्रु ने पूछा। चोखा ने कहा--'कुएं में एक मेंढक था । वह वहीं जन्मा, वहीं बढ़ा। उसने कोई दूसरा कृप, तालाब और जलाशय नहीं देखा। वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था। एक दिन एक समदी मेंढक उस कूप में आ गया । कूप-मंडुक ने कहा--तुम कौन हो ? कहां से आए हो? उसने कहा--- मैं समद्र का मेंढक हैं, वहीं से आया हूँ। कूप-मंडुक ने पूछा--वह समुद्र कितना बड़ा है ? समद्री मेंढक ने कहा----वह बहुत बड़ा है । कूप-मंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचकर कहा--क्या समद्र इतना बडा है ? सुमद्री मेंढक ने कहा---इससे बहुत बड़ा है। कूप-मंडूक ने कूप के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फूदक कर कहा---क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा--इससे भी बहत बड़ा है। कूप-मडूक इस पर विश्वास नहीं कर सका । इसने कूप के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था। इस प्रकार नाना कथाओं, अवान्तर-कथाओं, वर्णनों, प्रसंगों और शब्द-प्रयोगों को दष्टि से प्रस्तुत आगम वहत महत्वपूर्ण है। इसका विश्व के विभिन्न कथा-ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ नए तथ्य उपलब्ध हो सकते हैं। १.जन साहित्य का इतिहास, पूर्व-पीठिका, पत्र ६६० । २. Stories From the Dharma of NAYA ई० ए० जि० १६, पृष्ठ ६६ । ३.(क) समवरो, पइग्ण गसमवायो, सून ६४ (ख) नंदी, सूत्र ८५ ४. तायाधम्मकहाओ मा१५४, पृ० १५६,१८७ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम-बोध- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है । श्रमण परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे । उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं । विषय-वस्तु २३ उवासगदसाओ भगवान् महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मुनि के लिए पांच महाव्रतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमणोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है | व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है । इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मुनि का आचारधर्म अनेक आगमों में मिलता है, किन्तु गृहस्थ का आचार धर्म मुख्यतः इसी आगम में मिलता है । इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है । इसकी रचना का मुख्य प्रयोजन हो गृह के आवार का वर्णन करता है। प्रसंग इसमें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सुन्दर चर्चा हुई है। उपानकों की धार्मिक कसोटी की घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखते थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। १. कसा पाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है । उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं- दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति, रात्रिभोजन विरति, ब्रह्मचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति' । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा- ये दो पद्धतिया हैं । समवायाग और नन्दी 'में व्रत और प्रतिमा दोनों का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमाओं सूत्र का उल्लेख है। -- Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अंतगडदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का आठवां अंग है। इसमें जन्म-मरण की परम्परा का अंत करने वाले व्यक्तियों का वर्णन है, तथा इसके दस अध्ययन हैं इसलिए इसका नाम 'अंतगडदसाओं है। समवायांग में इसके दस अध्ययन और सात वर्ग बतलाए गए हैं। नंदी सूत्र में इसके अध्ययनों का कोई उल्लेख नहीं है, केवल आठ वर्गों का उल्लेख है। अभयदेवसूरि ने दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं इस अपेक्षा से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन और अन्य वर्गों की अपेक्षा से सात वर्ग बतलाए गए हैं। नन्दी सूत्र में अध्ययनों का उल्लेख किए बिना केवल आठ वर्ग बतलाए गए हैं। किन्तु इस सामञ्जस्य का अंत तक निर्वाह हो नहीं सकता, क्योंकि समवायांग में प्रस्तुत आगम के शिक्षा-काल (उद्देशनकाल) दस बतलाए गए हैं। नंदीसूत्र में उनकी संख्या आठ है। अभयदेवसूरि ने लिखा है कि उद्देशनकालो के अन्तर का आशय हो ज्ञात नहा । नासूत्र के चूणिकार श्री जिनदास महत्तर और वृत्तिकार श्री हरिभद्रसूरि ने भी यह लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन होने के कारण प्रस्तुत आगम का नाम 'अंतगडदसाओ' है । चूर्णिकार ने दसा का अर्थ अवस्था भी किया है। प्रस्तुत आगम का वर्णन करने वाली तीन परम्पराएं हैं---एक समवायांग की, दूसरी तत्त्वार्थवातिक आदि की और तीसरी नंदी की। प्रथम परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन हैं। इसकी पुष्टि स्थानांग सूत्र से होती है। स्थानांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन और उनके नाम निर्दिष्ट हैं, जैसे नाम, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किकष, चिल्वक और फाल अंबडपूत्र'। तत्त्वार्थवार्तिक में कुछ पाठ-भेद के साथ ये दस नाम मिलते हैं, जैसे-नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सदर्शन, यमलीक, बलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र। समवायांग में दस अध्ययनों का उल्लेख है, किन्तु उनके नाम निर्दिष्ट नहीं हैं। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रत्येक १. समवायो, पइण्णगसमवाओ, सून ६६ :.... 'दस अज्झयणा सत्त दगा। २. नंदी, सूत्र ८६."अट्ठ वगा। ३. समवायांगवत्ति, पत्र ११२ : दस अज्झयण ति प्रथमवर्गापेक्षयेव पटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात, यच्चेह पठ्यते सत्त बग्ग' ति तत् प्रथमवर्गादन्यवर्गापेक्षया, यतोऽप्यष्ट वर्गाः, नन्द्यामपि तथा पठितत्वात् । ४. समवायांगवृत्ति, पत्र ११२ : ततो भणित-अठ्ठ उद्दसणकाला इत्यादि, इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः ।। ५. (क) नन्दीसूत्र, चूणिसहित पु० ६५: पढमवग्गे दस अज्झयण त्ति तस्सक्खतो अंतकडदस ति। (ख) नन्दीसूत्र, वृतिसहित पृ०६३ : प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्सङ्ख्यया अन्तकद्दशा इति । ६. नन्दीसूत्र, चूणिसहित पृ०६८: दस त्ति-अवस्था। ७. ठाणं, १०११३ । ८. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०, पृ०७३ । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५. तीर्थकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है। जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता है। नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं। इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्विमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्णु । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है। कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है । - 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं--अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है । विषय-वस्तु वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासुदेवकृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है । छठे वर्ग में अर्जुनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य वनताबिगड़ता है— इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनुष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं । अतिमुक्तक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है। ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं भगवान् महावीर ने उपवास और ध्यान — दोनों को स्थान दिया था । तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप हैं । भगवान् महावीर ने अपने साधना काल में उपवास और व्यान -- दोनों का प्रयोग किया था यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बस क्यों दिया गया ? विस्मृति और नव-निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है । १. सत्यार्थयातिक १२० ० ७३ इत्येते दन वर्धमानती करतीर्थ एवमुवमादीनां द्वयोविस्तीर्थं ध्वन्येऽन्ये च दश दशाननारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य फूलनकर्मपादाः दम अस्यां वयंग्ये इवि अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहुड भाग १ पृ० १३० : अंतयडदसा नाम अंगं चउव्विहोवसों दारुणे सहिऊण पाठिहर लढण जिम्वाणं गदे सुदंसणादि-दस-दस - साहू तित्यं पठि वण्णेदि । २.४३तो वाचनान्तरापेक्षाणीयानीति सम्भावयामः । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोदवाइयदसाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का नवा अंग है। इसमें अनुत्तर नामक स्वर्ग-समूह में उत्पन्न होने वाले मुनियों से सम्बन्धित दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'अणुत्तरोववाइयदसाओं' है। नंदी सत्र में केवल तीन वर्गों का उल्लेख है। स्थानांग में केवल दस अध्ययनों का उल्लेख है। राजवातिक के अनुसार इसमें प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अनुत्तरोपपातिक मनियों का वर्णन है। समवायांग में दस अध्ययन और तीन वर्ग-दोनों का उल्लेख है। उसमें दस अध्ययनों के नाम उल्लिखित नहीं हैं। स्थानांग और तत्वार्थवार्तिक के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं। (१) स्थानांग के अनुसार ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, स्वस्थान, शालिभद्र, आनंद, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त। (२) राजवार्तिक के अनुसार-- ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र । उक्त दस मुनि भगवान् महावीर के शासन में हुए थे--यह तत्त्वार्थवार्तिककार का मत है। धवला में कार्तिक के स्थान पर कार्तिकेय और नंद के स्थान पर आनंद मिलता है। प्रस्तुत आगम का जो स्वरूप उपलब्ध है वह स्थानांग और समवायांग की वाचना से भिन्न है। अभयदेवसूरि ने इसे वाचनान्तर बतलाया है। उपलब्ध वाचना के तृतीय वर्ग में धन्य. १. नंदी, सून ८९ :....."तिण्णि वरगा। २. ठाणं १०१५१४ ३. (क) तत्त्वार्थवातिक ११२०, प०७३ । ...इत्येते दश वर्धमानतीर्थकरतीर्थे । एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य विजयाद्यनुतरेषुत्पन्ना इत्येवमनुत्तरोपपादिक: दशास्या वय॑न्त इत्यनुत्तरोप पादिकदशा । (ख) कसायपाहुड भाग १, पृ० १३० । अणुत्तरोववादियदसा णाम अंमं च उब्दिहोवसम्मे दारुणे सहिपूण चउवीसहं तित्थयराणं तित्थेसु अणुत्तर विमाण गदे दस दस मुणिवसहे वण्णेदि । ४. समवाओ, पइण्णगस मवाओ ९७ । ...."दस अज्झयणा तिणि बागा......! ५. ठाणं १०१११४ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०१०७३ । ७. षट्खण्डागम ११२ ८. स्थानांगवृत्ति पन ४८३ : तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभाग उक्त्तो न पूनरुपलभ्यमानवाचनापेक्षयेति । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ सुनक्षत्र और ऋषिदास-ये तीन अध्ययन प्राप्त हैं। प्रथम वर्ग में वारिषेण और अभय-ये दो अध्ययन प्राप्त है, अन्य अध्ययन प्राप्त नहीं हैं। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में अनेक राजकुमारों तथा अन्य व्यक्तियों के वैभवपूर्ण और तपोमय जीवन का सुन्दर वर्णन है । धन्य अनगार के तपोमय जीवन और तप से कृश बने हुए शरीर का जो वर्णन है वह साहित्य और तप दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पण्हावागरणाई नाम-बोघ प्रस्तुत आगम द्वादशाक्षी का दसवां अंग है। समवायांग सूत्र और नंदी में इसका नाम 'पण्हावागरणाई' मिलता है। स्थानांग में इसका नाम 'पण्हावागरणदसाओ' है। समवायांग में 'पण्हावागरणदसासु'-यह पाठ भी उपलब्ध है। इससे जाना जाता है कि समवायांग के अनुसार स्थानांग-निर्दिष्ट नाम भी सम्मत है। जयधवला में 'पण्हवायरण' और तत्त्वार्थवार्तिक में 'प्रश्नव्याकरणम्' नाम मिलता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं। स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए है-उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित, महावीर-भाषित, क्षोमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न । इनमें वर्णित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है। समवायांग और नंदी के अनुसार प्रस्तुत आगम में नाना प्रकार के प्रश्नों, विद्याओं और दिव्य-संवादों का वर्णन है। नंदी में इसके पैतालिस अध्ययनों का उल्लेख है । स्थानांग से उसकी १. (क) समवाओ, पइण्णमसमवाओ सूत्र ६८। (ख) नंदी, सूत्र ६० । २. ठाणं १०।११०॥ ३. (क) कसायपाहुट, भाग १ पृष्ठ १३१ : पण्हवायरणं णाम अंगं"। (ख) तत्त्वार्थवार्तिक ११२० : ''प्रश्नव्याकरणम् । ४. ठाणं १०१११६: पण्हावागरणदसाणं दस अपझयणा एण्णता, तं जहा-उवमा. संखा, इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमणपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दामपसिणाई, अंगुटुपसिणाई बाहुपसिणाई । ५. (क) समकाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १८: पण्हावागरणेसु अठ्ठत्तरं पसिणसय अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अट्ठतरं पसिणापसिणयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहि सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति । (ख) नंदी, सूत्र है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ कोई संगति नहीं हैं। समवायांग में इसके अध्ययनों का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके 'पण्हावागरणदसासु' इस आलापक (पैराग्राफ) के वर्णन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है। उक्त आलापक में बतलाया गया है कि प्रश्नव्याकरणदसा में प्रत्येक बुद्ध भाषित, आचार्य भाषित, वीरमहर्षि भाषित, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाह प्रश्न, असि प्रश्न, मणि प्रश्न, क्षोम प्रश्न, आदित्य प्रश्न आदि-आदि प्रश्न वणित हैं। इन नामों की स्थानांग में निर्दिष्ट दस अध्ययन के नामों के साथ तुलना की जा सकती है। यद्यपि उद्देशनकाल पैतालिस बतलाए गए हैं फिर भी अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययन की शिक्षा अनेक दिनों तक दी जा सकती है। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतु और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेदनी- इन चारों कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख जीवन और मरण वा वर्णन करता है। उक्त ग्रंथों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं हैं। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह) तथा पांच संवरों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का वर्णन है। नदी में उसका कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग में आचार्य भाषित आदि अध्ययनों का उल्लेख है तथा जयधवला में आक्षेपणी आदि चारों कथाओं का उल्लेख है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम का उपलब्ध विषय भी प्रश्नों के साथ रहा हो, बाद में प्रश्न आदि विद्याओं की विस्मृति हो जाने पर वह भाग प्रस्तुत आगम के रूप में बचा हो। यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य के द्वारा नए रूप से रचना की गई हो। नदी में प्रस्तत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किन्तु नंदी चूर्णि में उनका उल्लेख मिलता है । यह संभव है कि चूणिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है। १. तत्त्वार्यवार्तिक १२०, पृ०७३, ७४ : आक्षेपविक्षेपहेतुन्याश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम् । तस्मिल्लौकिकवैदिकानामर्थानां निर्णयः । कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३१, १३२ः पण्डवायरणं णाम अंगं अक्खेवणी-विक्खेवणी-संवेयणी-णिव्वेयणीणामाग्रो चउम्विहं कहाओ पण्हादो णट्र-मटिठ चिंता-लाहालाह-सुखदुक्ख-जीवियमरणाणि च वणेदि । १. नंदी सूत्र, चूणि सहित पृ० ६६ । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૯ विवागसुयं नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का ग्यारहवां अंग है। इसमें सुकत और दुष्कत कर्मों के विपाक का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'विवागसुयं है। स्थानांग में इसका नाम 'कम्म विवागदसा' है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दो विभाग हैं-दुःख विपाक और सुख विपाक । प्रथम विभाग में दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंगों का वर्णन है। उक्त प्रसंगों को पढ़ने पर लगता है कि कुछ व्यक्ति हर युग में होते हैं। वे अपनी र मनोवृत्ति के कारण भयंकर अपराध भी करते हैं। दुष्कर्म व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को किस प्रकार प्रभावित करता है, यह भी जानने को मिलता है। दसरे विभाग में सुकत करने वाले व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं। जैसे कर कर्म करने वाले व्यक्ति हर युग में मिलते हैं वैसे ही उपशान्त मनोवृत्ति वाले लोग भी हर युग में मिलते हैं । अच्छाई और बुराई का योग आकस्मिक नहीं है। स्थानांग सूत्र में कर्म विपाक के दस अध्ययन बतलाए गए हैं-मृगापुत्र, गोत्रास, अंड, शकट, माहन, नन्दीषेण, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह-आमरक और कुमार लिच्छवी' ! ये नाम किसी दूसरी वाचना के हैं। उपसंहार अंग सूत्रों के विवरण और उपलब्ध स्वरूप में पूर्ण संवादिता नहीं है। इस आधार पर यह अनमान किया जा सकता है कि अंग सूत्रों का उपलब्ध स्वरूप केवल प्राचीन नहीं है, प्राचीन और अर्वाचीन दोनों संस्करणों का सम्मिश्रण है। इस विषय का अनुसन्धान बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है कि अंग सूत्रों के उपलब्ध स्वरूप में कितना प्राचीन भाग है और कितना अर्वाचीन तथा किस आचार्य ने कब उसकी रचना की। भाषा, प्रतिपाद्य, विषय और प्रतिपादन शैली के आधार पर यह अनुसन्धान किया जा सकता है। यद्यपि यह कार्य बहुत ही श्रम, साध्य है, पर असंभव नहीं है। १. (क) समबाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १६ । (ब) नंदी, सूत्र ६१ (ग) तत्त्वार्थवार्तिक १२०॥ (घ) कसायपाहुड, भाग १ पृ. १३२ 1 २. ठाणं १०११०1 ३. ठाणं १०११११॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्य जा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता ! इनको वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधू-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Preface NĀYĀ DHAMMAKAHÃO The title The present Āgama is the sixth Anga of Dwādaśāngi. It has two Śrutaskandhas. The first is called as 'NĀYA' and the second as 'DHAMMAKAHĀO'. On combining both the Śrutaskandhas, the present Āgama has the title as 'NÄYĀDHAMMAKAHĀO'. 'NĀYĀ' (Jnāta) means examples and 'DHAMMAKAHÃO' means religious fables. The present Agama has both of historical illustrations and imaginary fables.? In the Jayadhawalā the title of this Āgama is found as 'Nähadhammakahā' (Nāthadharma-kathā). “Natha' means the Lord. 'Nāthadhamma kahā' i.e, the dharmakathā expounded by the Tirthankara. In some Sanskrit works the title of this Agama is given as 'Inātsidharmakatha'. Acharya Akalanka too has given the title of this Agama as 'Inātadharmakatha'. Acharya Malayagiri and Abhayadeva Süri give the title of 'Jnātadharmakathā. It is a treatise mainly containing illustrative religious stories. According to them, the first Śrutasakandha has illustrations and the second Śrutaskandha has religious stories. Both of them mention the lengthening of the word Jnāta'.: The family name of lord Mahavīra has been given as 'Jnāta' and 'Natha' in the Swetamber and Digamber literature respectively. On this basis, some scholars have tried to relate this Agama with lord Mahavira. They hold that *Jnātadharmakathā' or 'Nātha-dharmakathā' means the 'Dharmakathā by lord Mahāvira'. Waber says that the work having fables pertaining to the religion of Jnātriwansi Mahāvira, is titled as NĀYADHAMMAKAHĀ. But, on the account found in the Samwāyanga and the Nandi, the meaning 1. Samawao, painnaga samawao, Sutra 94. 2. Tatwartha Vartika, 120. 3. (a) Nandivritti, pages 230-31. (b) Samawayanga Vritti, page 108. 4. Jain sahitya ka Pitihas, Purwa-Pithika, page 660. $. Stories from the Dharma of NAYA, I.A., Vol. 19, page 66. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 'Dharmakathā of Jaatsiwansĩ Mabävira' does not seem to be appropriate. It has been toid there that in the 'Jnātadharmakathā', the cities and gardens etc. of the Inātas' (the persons cited) have been described,1 The title of the first Adhyayana of this Agama is 'Ukkhittanâye' (Utkshiptajñāta). On this basis also, the word 'Natha' seems to go with the meaning as an 'illustration' only. The content The spiritual elements such as non-voilence, palate contral, faith, restraint of senses etc. have been expounded in an excellent style through the illustrations and fables in the present Āgama. Besides that of a plot, it has the elegance of description also. While going through the first Adhyayana, we have the reminiscense of the poetical prose-work such as the Kadambari. In the ninth Adhyayana, the description of the boat sinking in the sea, is very lively and horripilating. In the twelfth Adhyayana, the process of purifying water reminds us of the modern method. The changability of the Pudgala substance has been expounded by this illustration. Along with the main illustrations and fables, some subsidiary fables are also found. In the eighth Adhyayana the fable of a well-frog has been recorded in an excellent style. Parivrājikā Chokha goes to Jitaśatru. Jitaśatru enquires of her---You wander a lot. Have you ever seen a harem like that of mine? With a smile Chokha said - You are like a Kūpa-Mandūka. Who is that Kupa Manduka ? Chokha said–There was a frog in a well. He was born and brought up there. He considered his well everything. One day an ocean-frog came down in that well. The well-frog said to him-Who are you? He answered -I am a frog from the ocean. I have came from there. The well-frog asked him-How big is the ocean ? The ocean-frog said-It is very big. The well-frog, drawing a boundry with his foot, asked him--Is the ocean as big as this? The ocean-frog answered --Far more greater than this. The well-frog had a jump, from the eastern to the western end of the well, and said--Is the ocean so big? The ocean-frog answered--It is far more bigger than this too. The well-frog could not believe it as it had never seen any thing except the well. 1. (a) Samwao. painnagasamawao, Sutra 94. (6) Nandi, Sutra 85. 2. Nayadhammakahao, 8/154, pages 186-87. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 In this way, from the view point of various fables, insertions, illustrations, descriptions, anecdotes and word-usages, this Agama has a great value. A comparative study of it with that of the different fable-works found the world over may well give some new facts. UWASAGADASÃO The title The present Agama is the seventh Anga of the Dwadasängi. It has the biographies of ten Upasakas (lay devotees), therefore, it is called as "Upāsagadasão". In the Sramano order the laymen serving the Sramapas are called Śramanopisakas or Upasakas. Lord Mahāvira had large number of Upasakas. It comprises of ten 'Adhyayanas' depicting the life of ten principal Upasakas. The Content Lord Mahavira has given twofold code of conduct, such as laws of conduct for Munis and laws of conduct for Upäsakas. Five Mahāvratas (great vows) were postulated for a Muni and twelve Vratas (vows) for a Upasaka. Sramaṇopāsaka Anand was consecreted and initiated to his cult by him. The list of the Vratas is an excellent code of conduct pertaining to religious or ethical life. Even today, it has the same utility as it had 2500 years ago. As long as the weakness of human nature is there, its utility will always exist. The code of conduct for Munis is found in many Agamas but the code of conduct for laymen is found in this Agama only. It has, therefore, its own place in the codes of conduct. The object of its composition is only to put forth the code of conduct for a layman. Incidently, Niyatiwada has also been discussed nicely with its arguments for and against. Incidents, proving the religious touch-stone for the Upisakas, are also found. It also throws light on the fact as to how lord Mahavira took care of the accomplishment of the Upasakas, and encouraged them to higher spiritual life from time to time. According to the Jayadhawala the present Agama narrates eleven-fold practices of the 'Upasakas'. They are-Darsan, Vrat, Sämayika, Pauṣadhopawa, Saćitta-Virati, Ratri-Bhojan-Virati, Brahmacarya, Arambha-Virati, Parigrahavirati, Anumati-Virati, and Uddista Virati. The Śrawakas, beginning from 1. Kasyapahuda, part i, pages 129-30. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ananda, had practised above said eleven Pratimas. The Vratas are practised. indenpedently, and at the time of fulfilment of Pratimas also. These Vratãs and Pratimas are the two religious codes for an Upäsaka. In the Samawayanga and the Nandi Sutra, Vrata and Pratima both are mentioned. The Jayadhawala gives an account of Pratimas only. 34 ANTAGADADASÃO The title The present Agama is the eighth of the Dwadasangi. The illustrious ones who put an end to the cycle of death and birth, have been narrated in it, and it has ten Adhyayanas. Hence the title 'Antagadadasão'. The Samwayanga tells us that it contained ten Adhyayanas and seven Vargas'. The Nandi Sūtra says nothing about its Adhyayanas and only eight Vargas have been accounted for and in it. Sri Abhayadeva Sari has tried to find consistency in these both. He tells us that the first Varga has ten Adhyayanas, therefore the Samawayanga Sutra mentions ten Adhyayanas and seven Vargas only. The Nandi Sūtra gives cight Vargas only with no mention of Adhyayanas". But this consistency cannot be maintained to the end, because the Samawayanga gives us ten Siksha-kālas (Uddeśan kalas) of this Agama and the Nandi Sütra gives only eight. Sri Abhayadeva Suri admits that he does not understand the purpose behind the difference in the number of the Uddeśankälas. The Churgikar of the Nandisutra, Sri Jinadas Mahattar and the Vrittikar, Sri Haribhadra Süri also write that the present Agama is given the title 'Antagadadasão' as it has ten Adhyayanas in the first Varga". The Chürnikar takes the meaning of 'Dasa' as 'Awastha' (condition) also. Three traditions are found to narrate the present Agama: firstly, that of the samawāyānga; secondly, that of the Tatwärtha Vartika, and thirdly, that of the Nandi Sūtra. 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 96, 2. Nandi Sutra, 88. 3. Samwayanga Vritti, page 112. 4. Samawayanga Vritti, page 112. 5. (a) Nandi with Churni, page 68. (b) Nandi with Vritti, page 83. 6. Nandi with the Churnipage 68. Dasatti Awastha. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ According to the first tradition, the present Agama has ten Adhyayanas, The Sthānanga Sutra supports it. The Sthänänga mentions the ten Adhyayanas and their headings, such as Nami, Mätanga, Somila, Ramagupta, Sudarsana, Jamali, Bhagali, Kimkaşa, Čilawaka, Pala, and the Ambashthaputtra. These headings are fou d in the Tatwärthavartika also with some variance, such as, Nami, Matang, Somila, Ramagupta, Sudarśana, Yamalika, Kambala, Pala and Ambasthaputtra. Samawayanga mentions ten adhayans without giving their names. The present Agama gives an account of the Antakṛita Kewalis, in groups of ten contemporaries of each Tirthankara. The Jayadhawala, too, supports this statement of the Tatwarthavrātika. In the Nandisutra mention is found neither of the ten Adhyayanas nor of their headings. On this basis, it can be inferred that the Samawayanga and the Tatwärthavarțika maintain the old tradition and the Nandi-Sutra gives the Agama in the form found at present. There are ten Adhyayanas of the first Varga out of the eight Vargas found at present, but their headings altogether differ from the above said. headings, i... Gautama, Samudra, Sagara, Gambhira, Stanita, Aćala Kampilya, Aksetra, Prasenjit and Vişnu. In the 'Sthänängavritti' Sri Abhayadeva Suri acknowledges it as a variant 'Vacna". This shows that the 'Vadna of the 'Nandi' is different from the 'Vaćna found in the 'Samawayanga". 35 The word 'Antagada' has two Sanskrit forms-Antakrita and Antakrit. Both have the same sense but 'gada' goes more with the Sanskrit version "Krita' so far as morphology is concerned. The Content This Agama gives an excellent account of Vasudeva Kriṣṇa and his family. The Dikša (initiation) and accomplishment of Gajasukamāla, the younger brother of Vasudeva Krisna has been horripiliatingly narrated. In the sixth Varga, is found an account of the incident occured with Arjuna, the gardener. An accident turned him to be a murderer and the other association made him a saint. It may not be admitted that a man changes with the circumstances and atmosphere, but, even then, it may be accepted that they are the cause of the rise and fall of a man. 1. Tatwarthavartika 1/20 2. Tatwarthavartika 1/20. 3. Sihany Vritti. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 By the Adhyayana of Atimuktaka Muni, the value of spiritual accomplishment can be well understood. Fasting alone is seen in this Agama through out. The narrations of meditations are scanty. Lord Mahavira had laid stress upon both--the fast and the meditation. In the classification of penance, fast is the outer penance and meditation is the inner one. Lord Mahavira in his penance-period, had observed both, fast and meditation. It is worth investigating why this Agama lays so much stress on fasting only. This Agama, a remanent in the succession of oblivion and reproduction, is valuable and worthy of research work from many points of view. ANUTTAROWAWAIYA-DASÃO The title This Agama is the ninth Anga of the Dwādaśangi. As it contaisten Adhyayanas regarding the Munis born in the Aruttara Swarga class, its title is given as Anuttarowawāiya-Dasāo'. The Nandi Sūtra mentions only three Vargas? The Sthānānga quotes only ten Adhyayanas. According to the Rajavärttika groups of ten Anuttaropapātika Munis, contemporaries of each Tirthanker, have been narrated in it.* The Samawāyanga mentions the ten Adhyayanās and the three Vargas too. But the headings of the ten Adhyavanas have not been given in it. According to the Sthānänga and the Tattwärtha vårttika they read as, Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Karttika. Swastban, Salibhadra, Ananda, Tetali, Daśārnabhadra and Atimuktas, and as Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Kärttika, Nandanandana, Sätibhadra, Abhaya, Warişeņa, and Cilattaputra respectively. The above said Munis were the contemporarics of Lord Mahavira, such is the opinion of the author of the Tatta wārtha värttika." In the Dhawala we find Kartikeya instead of Kärttika and Anand instead of Nanda?. The present form of the Agama is different from the 'Vaćna' of the Sthânāga and the Samawāyānga. Abhayadeva Süri holds that it is a different Vacna'. In the form of the Agama, that is available, three Adhyayanas, such 1. Nandi, Sutra, 89. 2. Thanam, 10/114. 3. Tatiawarth varttikas 1/20, Kasayapahuda I, page 130. 4. Samawao, painnaga samawao, Sutra 97. 5. Thanam 10/114. 6. Tatiwarthvarttjka 1/20. 7. Satkhundagama 1/1/2. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 as Dhanya, Sunakshtra and Rişidasa, are found. In the first Varga, only twoAdhyayanas, named as Wärispepa and Abhaya, are seen. The contents This Agama beautifully narrates the luxury and ascetic lives of many princes. The narration of the ascetic life of Dhanya Anagara and his body. emaciated due to the penance is noteworthy both from the literary and spiritual viewpoints. PANHAWAGARANAIN The title The present Agama is the tenth Anga of the Dwadasängī. Its title has been mentioned as 'Panhäwägaraṇain' in the Samawayanga Sutra and the Nandi. Its name is found as 'Paphāwāgaradasão" in the Sthänänga and the same reads as 'Paṇhāwāgaraṇadasasu' in the Samawayanga. It is, therefore inferred that the title mentioned in the Sthananga is also in concurrence with the Samawayanga. The Jayadhawala and the Tattwärthavarttika note it as Panhawayaraṇa or Praśna-Vyakaraṇā." The Contents Opinions differ regarding the contents of the present Agama. The Sthānanga cites its ten Adhyayanas, such as, Upamā, Samkhyā. Rişibhāṣita, Acaryabhăşită, Mahavira-bhāṣitä, Kṣaumaka-Praśna, Komala-Praśna, AdarśaPraśna, Angustha-Praśna and Bahu-Prašna. The headings of the Adhyayanas indicate well the contents they have. According to the Samawayanga and the Nandi, the present Agama has various types of queries, sciences (vidyas) and the dialogues of the Devas dealt with. The Nandi notes fortyfive Adhyayanas of it, which do not accord with the Sthananga. The Samawäyänga makes no mention of its Adhyayanas. 1. (a) Samawao painnagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra 90. 2. Thanam, 10/110. 3. (a) Kasayapahuda pt. I, page 131. (b) Tatwarthavarttika 1/20. 4. Thanam 10/116. 5. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra, 90. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 But, from its 'Panhāwāgaranadasāsu paragraph, it may be inferred that the Samawāyanga accepts the traditional ten Adhyayanas of the present Agama, The said paragraph tells us that Pratyeka Buddhabhāsita, Atāryabhāṣita, Viramaharşi-Bhäşita, Ādarśa-Praśna, Anguștha-Praşna, Bāhu-Prašna, Asi-Praśna, Mani-Praśna, Kșauma-Praśna, Aditya-Praśna etc. have been dealt with in the Praśna-Vyakarana-Dasā'. These headings can well be compared with those of ten Adhyayanas mentioned in the Sthānānga. Though the Uddeśana-Kālas have been mentioned as fortyfive, the exact number of the Adhyayanas cannot be decided definitely. The tcaching of the Adhyayana on a deep topic could he spread over for many days. According to the Tattwärtha vārttika many queries have been expoucded in this Agama , depending on cause and inference by 'Āksepa' and Viksepa'. Also the Laukika (sccular) and Vedic Arthas have been ascertained in it. The Jayadhawalá notes that this Agama narrates the Naşta, Musti, Cintā, Labha, Aläbha, Sukha, Dukkha, Jiwan and Marana with the help of the four kinds of fables, ic, Aksepani, Prakṣepani, Samvejanī, and Nirvedani, as well as purporting a query. The contents of the Āgama, as mentioned in the said works, is not found today. What is found covers the five Aśrawas (Hinsă, Asatya, Caurya, Ābrahmaćarya and Parigraha) and the five Samwaras (Ahimsa, Satya, Aćaurya, Brhmatarya, and Aparigraha) only. The Nandi does not make mention of it at all. The Samawäyānga mentions the Adhyayanas beginning from Acārya-Bhāşita, while the Jayadhawala gives an account of the four kinds of fables beginning from Akşepani. It may be inferred that the known contents of the Āgama formerly were in the form of the queries and subsequently, the Icarning of query etc. being lost, the remanent part formed the present Āgama. It is also likely that the old form of the present Āgarna being lost, some Āćarya composed it a fresh. The Vacna' of this Agama given in the Nandi, does not narrate the Aśrawas and the Samwaras, but the Curni of the Nandi does it. Likely it is that the Cürnikära did it on the basis of the present form of the Agama. 1. Tattwarthavarttika 1/20. 2. Kasayapa huda part I, page 131. 3. Nandi Sutra with the Curni on page 12 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 VIVĀGASUYAM The title The present Āgama is the 11th Anga of the Dwādaśāngi. The Vipāka (fruit) of the Suksita and Duşkļita deeds has been dealt with in it. therefore the title "Vivāgasuyam." The Sthānānnga gives its title as "Kāmma Vivāgadasa." The Contents This Agama has two divisions, i.e. the Dukha Vipäka and the Sukha Vipāka. The first division contains the topics on the lives of the individuals doing bad deeds. On going through the said contents, it appears that, in every age, there are some individuals who commit horrible crimes on account of their cruel mentality. It is also gathered how the criminal deeds affcct their physical and mental states. The second division has the life-contents of those individuals who perform good deeds. As the commitant of cruel deeds are found in every age, so are the persons having the tranquil mentality. Conjunction of goodness and badness is not without cause. Conclusion The Sthānānga Sūtra enamurates ten Adhyayanas of the Karma-Vipaka such as, Mrigāputra, Gotrāsa, Anda, Sakata, Māhan, Nandişeņa, Saurika Udumbara, Sahasoddāha-Amaraka, and Kumar Licchavī. These headings have been taken from some other Vaćna'. The account of the Anga-Sūtras and the peculiar form they are presently found in are not fully harmonic. On this basis, it may be inferred that the obtained form of the Agama Sutras in not ancient only, but is a mixture of the editions of old and new, both. This will form an important subject of investigation as to how much of the present form of the Anga. Sūtra is ancient and how much modern, as well as who of the Āćaryas composed it and when. The language, the subject-matter and the style of ascertainment will surely form the basis of investigation. This is of course, highly toilsome, but not impossible. 1. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 99 (b) Nandi Sutra 91. (c) Tattawarthavarttika 1/20 (d) Kasayapahuda, Pt I, page 132. 2. Thanam 10/110. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. For the editing of this Āgama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Āgamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Acharya Tulasi Delhi Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसाओ पढमो वग्गो पृ० ६१३-६१६ रक्वेव-पदं१. जालि-पदं६, निक्खेव-पदं १४, मयालिपभिति-पदं १५, निक्खेव-पदं । बोच्चो वग्गो सू०१-६ उक्खेव-पदं १, दीहसेणादि-पदं ४, निक्खेव-पदं ६। पृ० ६१७-६१८ तच्चो वग्गो पृ०६१६-६३३ उक्खेव-पदं १, धण्णस्स गिहवास-पदं ४, धण्णस्स पव्वज्जा-पदं १०, धण्णस्स तवचरियापट २२. धणस्स तवजणियसरीरलावण्ण-पद ३१, सेणियस्स महादक्करकार भगो उत्तर-पदं ५७, सेणिएण धण्णस्स थवणा-पदं ५८, घण्णस्स सव्वटसिद्ध. समापट ५४. निक्खेव-पदं ६३, सुणक्खत्त-पदं ६४, इसिदासादि-पदं ७४, निक्खेव-पटं ७५, परिसंसो। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठपूर्ति के द्योतक है । पाठपूर्ति के प्रारम्भ में भरा बिन्दु [[ और उसके समापन में रिक्त विन्दु [0] रखा गया है । देखें-पृष्ठ २ सू ६ । [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] अदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें-पृष्ठ ३. सूत्र ७ ॥ .' ये दो या इससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें पृष्ठ २ सू० ४। 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूत्ति स्थल का निर्देश है । देखें-पष्ठ १ टिप्पण ३ और पृष्ठ ३ सूत्र ८। काश [x] पाठ न होने का द्योतक है। देखें--पृष्ठ ३ टिप्पण ४ । पाठ के पूर्व या अन्त में खाली विन्दु [• ] अपूर्ण पाठ का द्योतक है । देखें-१० ३ सूत्र ७ टिप्पण ५। 'जहा' 'तहेब' आदि पर टिप्पण में दिए गए सूत्रांक उसकी पूर्ति के सूचक हैं । देखें-पृष्ठ ३०१ सूत्र ७ तथा पृष्ठ ३७८ सूत्र ५० ॥ क, ख, ग, घ, च, छ, ब, देखें-सम्पादकीय में 'प्रति-परिचय' शीर्षक । 'व्या० वि' व्याकरण विमर्श । देखें--पृष्ठ ३६६ टिप्पण १। 'क्व' क्वचित् प्रयुक्तादर्श । सं० पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है। देखें-पष्ठ ५ टिप्पण १ । वृपा वृत्ति-सम्मत पाठान्तर । देखें--पष्ठ १० टिप्पण ३ । वृ वृत्ति का सूचक है । देखें—पृष्ठ ६ टिप्पण १७ 1 पू० पूर्णपाठार्थ द्रष्टव्यम् । देखें-पष्ट ५२६ टिप्पण १ । अं० अंतगडदसाओ। अ० अणुत्तरोववाइयदसाओ। सूय सूयगडो। उवा० उवासगदसाओ। जंबू० जंबूदीवपण्णत्ति । ओ० ओवाइयं । ना० नायाधम्मकहाओ। भ०, भग०, भगवई। राय० रायपसेणइयं । पाहा० पण्हावागरणाई। वि० विवागसूयं । Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसानो Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो पढमं अज्झयणं जाली उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । अज्जसुहम्मस्स समोसरणं । परिसा निग्गया जाव' जंबू पज्जुवासमाणे' एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमदे। पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अद्वे पण्णत्ते ? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा पण्णत्ता ।। जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तो वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अझयणा पण्णत्ता? ४. एवं खलू जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अणत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा १. ना० १।१६,७ । २. पज्जवासइ (क, ख, ग, घ); ना० ११७ सूत्रानुसारेण अयं पाठः स्वीकृतः। ३,४. अ० ३१७५ ! ५. सुधम्मे (क, ख, ग)। ६,७. अ०३१७५ 1 ८. तिगिण (ख)। ६. अ०३३७५। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसाओ संगहणी-गाहा १. जालि २. मयालि ३. उवयालो', ४. पुरिससेणे य ५. वारिसेणे य। ६. दोहदंते य ७. लट्ठदंते य, ८. 'वेहल्ले है. हायसे" १०. अभए इ य कुमारे ॥१॥ जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेण के अट्टे पण्णते ? जालि-पदं ६. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे --रिथिमियसमिद्धे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया । धारिणी देवी। सीहो सुमिणे । जाली कुमारो । जहा मेहो । अट्टट्ठो दायो' ।।। •तए णं से जालाकुमारे उप्पि पासायवरगए फट्टमाणेहि मुइंगमत्थाएहिं जाव' माणुस्सए कामभाग पच्चणुभवमाणे ' विहइ ।। सामी समोसाहे। सेणियो निग्गयो । जहा मेहो तहा जाली वि निगयो । तहेव निक्खंतो जहा मेहो । एक्कारस अंगाई अहिज्जइ । गुणरयणं तवोकम्म 'जहा खंदयस्स'" । एवं जा चेव खंदगस्स" वत्तव्वया, सा चेव चितणा, आपुच्छणा । थेरेहि द्धि विउलं पव्वयं तहेव दुरुहइ, नवरं-सोलस वासाई सामग्णपरियागं पाउणित्ता", कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाण" सोहम्मीसाण-"सणंकुमार-माहिद-बभ-लंतग-महासुक्क-सहस्साराणयपाणय ° -प्रारणच्चुए कप्पे नवयगेवेज्जविमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीईवइत्ता विजयविमाणे देवत्ताए उववण्णे ।। है. तए ण ते थेरा भगवतो जालि अणगारं कालगयं जाणित्ता परिणिन्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करेत्ता पत्त-चीवराइं गेहति । तहेव उत्तरंति" जाव" इमे से पायारभडए । १. उबमालि (क, ख); ओवयाली (ग)। महावीरे जाव (घ)। २. विहल्ले विहायसे (ग, घ,)। १०. ना० १४११६६-१५१ ! ३. अ० ३।७५ ११. X (क)। भ० २०६१-६३ । ४. अणत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स (ख, ग, घ)। १२. खंदय (क, ख, घ,)। भ० २०६४-६६। ५. रिद्धि ° (ख, ग, घ,)। १३. पाउणिय (ख)। ६. पू०-० १५११६१-६२। १४. पू०- ना० १.१४२११ । ७. सं० पा०-जाव उषि पासा विहरइ। १५. सं० पा०- सोहम्भीसाण जाव आरणवुए। ८. ना० १११।६३ । १६. ओतरति (ख)। १. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं १७. भ० २७०। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वमो--२-१० अभयणाणि १०. भंतेति ! भगवं गोयमे' समणं भगवं महावोरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता' एवं वयासो-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जाली नामं अणगारे पगइभद्दए। से ण जाली अणगारे कालगए कहिं गए? कहिं उववण्णे ? ११. एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी तहेव जहा खंदयस्स जाव' कालगए उड़ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जाव" विजए विमाणे देवत्ताए उववण्णे ।। जालिस्सणभंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १३. से णं भंते ! ताओ' देवलोयाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहिं गच्छिहिइ ? कहि उवज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं १४.. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाण पढ़मस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्ठपण्णत्त ।। २-१० अज्झयणाणि मयालिपभिति-पदं १५. एवं सेसाण वि नवण्हं भाणियव्वं, नवरं-सत्त धारिणिसुग्रा, वेहल्लवेहायसा चेल्लणाए, अभए नंदाए । 'सव्वेसि सेमिनो पिया | आइल्लाणं पंचण्हं सोलस वासाइं सामण्णपरियायो। तिण्हं वारस वासाई। दोण्हं पंच वासाई" ! पाइल्लाणं पंचण्हं प्राणुपुटवीए उववाग्रो विजए वेजयंते जयंते अपराजिए १. स० पा०-गोयमे जाव एवं । २. पू०-ना० १११।२०६। ३. भ० २०७१। ४. अ० १०८। ५. ततो (ख)। ६. अ० ३१७५। ७. अट्टण्हं (क, ख,)। ८. छ (ख,ग)। ६. °वेहासा (क, ख); विहल्लवेहासे (ग)। १०. x (क, ख)। ११. अतोऽने 'मासियाए सलेहणाए' इति पाठः द्वितीयवर्गस्य ६ सूत्रानुसारेण अध्याहर्तव्यः । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसाओ सव्वदृसिद्ध ! 'दोहदंते सव्वट्ठसिद्धे" उक्कमेणं सेसा । अभनो विजए । सेसं जहा पढमे ॥ निक्खेव-पदं १६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते ।। अस्मिन् नानात्वस्य संकेतोऽस्ति, किन्तु २. पढमे । अभयस्स नाशत्त, रायगिहे नयरे यन्नानात्व प्रदर्शितं तत् सर्व पूर्वमायातमेव । सेणिए राया, नंदा देवी, सेसं तहेवक, ख, ३. अ०३७५ । ग] । असौ पाठो वाचनान्तरस्य प्रतीयते । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चो वग्गो १-१३ अज्झयणाणि उक्खव-पदं १. जइ ण भंते ! समणेणं भगवया महावीरेण जाव' संपत्तेणं अणत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते, दोच्चस्स ण भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोव वाइयदसाणं समजणं भगवया महावीरेण जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावोरेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं दोच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झ्यणा पण्णत्ता, तं जहा . संगहणी-गाहा १. दोहसेणे २. महासेणे, ३. 'लट्ठदंते य ४. गूढदंते य" ५. सुद्धदंते य । ६. हल्ले ७. दुमे ८. दुमसेणे, ६. महादुमसेणे य आहिए ॥१॥ १०. सीहे य ११. सीहसेणे य, १२. महासीहसेणे य ाहिए। १३. पुण्णसेणे य बोधव्वे, तेरसमे होइ अझयणे ॥२॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं दोच्चस्स वगस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स ण भते ! वग्गस्स पढमज्भयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? दोहसेणादि-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। धारिणी देवी । सीहो सुमिणे । जहा जाली तहा जम्मं बालत्तणं ४. अ० २७५ । १,२. अ० ३।७५। ३. गूढदंते य लढदते य (क); ° गूहदते य (ख)। ६१७ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ अणुत्तरोदवाइयदसायो कलाओ, नवरं --दीहसेणो कुमारो सव्वेव वत्तव्वया जहा जालिस्स जाव' अंतं काहिइ॥ ५. एवं तेरस वि रायगिहे नयरे । सेणियो पिया। धारिणी माया । तेरसह वि सोलस वासा परियाओ। प्राणपुव्वीए विजए दोण्णि, वेजयंते दोण्णि, जयंते दोग्णि, अपराजिए दोषिण, सेसा महादुमसेणमादी पंच सव्वट्ठसिद्धे ।। निक्खेव-पदं ६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं दोच्चस्स वगस्स अयम? पण्णत्ते । मासियाए संलेहणाए दोसु वि वग्गेसु ।। १. अ० श६-१३ 1 २. अ०३७५ 1 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्गो पढमं अज्झयणं धणे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महाबोरेणं जाव' संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं दोच्चस्स णं वग्गस्स अयम? पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाण समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तणं के अट्ठ पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेण अणुत्तरोववाइय दसाणं तच्चस्स वग्गस्स दसं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. धणे य २. सुणक्खत्ते य, ३. इसिदासे य ाहिए। ४. पेल्लए ५. रामपुत्ते य, ६. चंदिमा ७. पिट्ठिमा इ य ॥१॥ ८. पेढालपुत्ते अणगारे, 'नवमे पोट्टिले वि य"। १०. वेहल्ले दसमे वुत्ते, इमे य दस आहिया ॥२॥ ३, जइ णं भंते ! समजेणं भगवया महावोरेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? धण्णस्स गिहवास-पदं ४. एवं खल जंव ! तेण कालेणं तेणं समएण काकंदी' नाम नयरी होत्था-- १,२,३. अ० ३७५ । ४. पुट्ठिमा (ग, घ,)। ५. अणगारे पुट्टिले इय (क)। ६. अ. ३।७५ । ७. कागंदी (क, ख)। ६१६ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसाभ रिद्धत्थिमियसमिद्धा' । सहसंबवणे उज्जाणे- सव्वोउय- पुप्फ-फल-समिद्धे' | जयसत्तू राया ॥ ५. तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नाम सत्यवाही परिवसइ - अड्डा जाव' अपरि ६२० भूया ॥ ६. तीसे गं भद्दाए सत्यवाहीए पुत्ते धण्णं नाम दारए होत्था - ग्रहीणपडिपुण्णपंचेदियसरीरे जाव' सुरूवे | पंचधाईपरिग्गहिए जहा महब्वलो जाव' बावर्त्तारं कला हीए जाव प्रलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्या || ७. तए णं सा भद्दा सत्यवाही धण्णं दारयं उम्मुक्कवालभावं जाव' प्रलंभोगस मत्थं वा वि जाणित्ता वत्ती पासायवडसए कारेइ - श्रब्भुग्गयमूसिए जाव' पडिरूवे । तेसि मज्झे एगं च णं महं भवणं कारेइ - प्रगखं भसयसष्णिविट्ठे जाव' परुिवं ॥ ८. तए णं सा भद्दा सत्यवाही तं घण्णं दारयं वत्तीसाए इन्भवरकण्णगाणं एगदिवसेण पाणि गेण्हावेइ । बत्तीसम्रो दाम्रो" | ६. तए णं से धण्णे दारए उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहि जाव विउले माणुस्सर कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ धण्णस्स पव्वज्जा-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । परिसा विग्गया । राया जहा कोणि 'तहा निग्गओ " ॥ * ११. तए णं तस्स घण्णस्स दारगस्स तं महया जणसद्दं वा जाव" जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे प्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणो १. पू० ओ० सू० १ २. ५० ना० ११५१४ | ३. ना० १।५।७ | ४. ओ० सू० १४३ । ५. भ० ११।१५४-१५६, राय० सू० ८०४ ८०७ । ६. राय० सू० ८०८,८०६ ओ० सु० १४७, १४८ । ७. राय० सू० ८१० । ८. ना० ११११६ ६. ना० १३१६६ १०. पू० - ना० १।१६०-६२ । ११. ना० १११६३ १२. X ( क ) । ओ० सू० ५४-६६ । १३. सं० पा० जहा जमाली तहा निग्गओ । नवरं पाचारणं । जाव जं नवरं अम्मयं भद्दे सत्यवाहि आपुच्छामि । तए णं अहं देवापियाणं प्रति पव्वयामि जाव जहा जमाली तहा आपुच्छर मुच्छिया । वृत्तडिवृत्तया जहा महबले जाव जाहे नो संचाइ जहा थावच्चात्तस्स जियसत्तुं आपुच्छइ । छत्तचामराओ । सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेति जहा यावच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पव्वइए । अणगारे जाएइरियासमिए जाव गुत्तबंभचारी ! १४. ओ० सू० ५२ । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्गो-पढमं अज्झयणं (धणे) ६२१ गए संकप्पे समुप्पज्जित्था-किण्णं अज्ज काकंदोए नयरीए इंदमहे इ वा जपणं एते वहने उग्गा भोगा जाव निग्गच्छंति –एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कंचुइपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! अज्ज काकंदीए नयरीए इंदमहे इ वा जाव निरगच्छंति ? १२. तए णं से कंचुइपुरिसे समणस्स भगवनो महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए धण्णं दारयं एवं वयासी-एवं खल देवाणप्पिया! अज्ज समणे भगवं महावीरे काकंदीए नयरीए बहिया सहसंबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ, तए णं एते बहवे उग्गा भोगा जाव' निग्गच्छति ।। १३. तए णं से धण्णे दारए कंचुइपुरिसस्स अंतियं एयमढे सोच्चा तिसम्म हट्टतुट्टे जाव पायचारेणं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावोरे तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहि गं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ ।। १४. तए णं समणे भगवं महावीरे धण्णस्स दारयस्स तोसे य महइमहालियाए इसि परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १५. तए णं से धणे दारए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हटुतुटे समणं भगवं महावोरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव' अम्मयं भई सत्यवाहि आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वयामि । अहासूहं देवाण प्पिया ।। १६. जहा जमाली तहा पापुच्छइ ।। १७. तए णं सा भद्दा सत्थवाही तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुय पुवं फरुसं गिर सोच्चा निसम्म धसत्ति सव्वंगेहिं संनिवडिया । वुत्तपडिवुत्तया जहा महब्बले । १८. तए णं तं धणं दारयं भद्दा सत्थवाहो जाहे नो संचाएइ जाव" जियसत्तुं १. पू०-भ० ११५८ । २. भ० ६.१५८ । ३. पू०-भ० ६१५९ । ४. भ० ६।१५६; ओ० सू० ५२ । ५. भ० ६।१६२ । ६. भ० ६।१६३। ७. भ. ६।१६४ । ८. पू० - भ० ६।१६५-१६७ ! ६. पू०--भ० ६।१६८ । १०. भ० ११।१६६; ना० १११११०६-११३ । ११. ना० ११५।१६,२० । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ अणुतरोववाइयदसाओ आपुच्छइ-इच्छामि णं देवाणुप्पिया! धण्णस्स दारयस्स निक्खममाणस्स छत्त मउड-चामराओ य विदिन्नाप्रो । १६. तए णं जियसत्तू राया भई सत्थवाहिं एवं वयासी-अच्छाहि णं तुमं देवाणु प्पिए! सुनिव्वुत-वीसत्था, अण्णं सयमेव धण्णस्स दारयस्स निक्खमणसक्कारं करिस्सामि । सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेइ, जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो ' ।। २०. तए णं से धण्णे दारए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ जाव' पव्वइए ।। २१. तए णं से धण्णे दारए अणगारे जाए-इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्रावणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए ° गुत्तबंभयारी॥ धण्णस्स तवचरिया-पदं २२. तए णं से धण्णे अणगारे जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइए, तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एव वयासो - इच्छामि' णं भंते ! तुब्भेहि अभणुण्णाए समाणे जावज्जीवाए छटुंछद्रेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएण तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे' विहरित्तए छदुस्स वि य णं पारणयंसि कप्पइ मे" आयंबिलं पडिगाहेत्तए', नो चेव णं अणायंबिलं । तं पि य संसट्ठ, नो चेव णं असंसटुं । तं पि य णं उज्झियधम्मियं, नो चेव णं अणुज्झिय-धम्मियं । तं पि य ज अण्णे बहवे समण-माहणअतिहि-किवण-वणीमगा नावखंति। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ २३. तए णं से धण्णे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अभणुण्णाए समाणे हतुट्टे जावज्जीवाए छटुंछद्रेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणं' तवो कम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ २४. तए णं से धणे अणगारे पढम-छट्टखमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव प्रापुच्छइ, जाव' जेणेव काकंदी नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता काकंदीए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई १. ना० ११५।२२-३३ । २. ना० ११५॥३४ ३. एवं खलु इच्छामि (ख, ग)। ४. भावेमाणस्स (ख, ग)। ५. X (क, ख)। ६. पडिगहित्तए (क)। ७. X (क, ख, ग)। ८. भ० २११०७-१०६। ६. सं० पा०-उच्च जाव अडमाणे । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्मो ---पढम अज्झयणं (धणे) घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए ° अडमाणे आयंबिल' •पडिगाहेति, नो चेव णं अणायंबिलं । तं पि य संसढें, नो चेव णं असंसर्दु । तं पि य उझियधम्मियं, नो चेव णं अणुज्झिय-धम्मियं तं पि य ज अण्णे बहवे समण-माहण अतिहि-किवण-वणीमगा' नावखंति । २५. तए णं से धण्णे अणगारे ताए अब्भुज्जयाए पययाए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमाणे जइ भत्तं लभइ तो' पाणं न लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ ।। २६. तए ण से धणे अणगारे प्रदीणे अविमणे अकलुसे अविसादी अपरितंत-जोगी जयण-घडण-जोगचरित्ते अहापज्जत्तं समुदाणं पडिगाहेइ, पडिगाहेत्ता काकं दीग्रो नयरीनो पडिणिक्ख मइ, पडिणिक्खमित्ता जहा गोयमे जाव पडिदंसेइ॥ २७. तए णं से धण्णे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्मणुष्णाए समाणे अमुच्छिए 'अगिद्धे अगढिए ° अणझोववण्णे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं प्राहारं पाहारेइ, अाहारेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ २८. तए णं समणे भगवं महावोरे अण्णया कयाइ कायंदीपो नयरीनो सहसंबवणाप्रो उज्जाणाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ॥ २६. तए णं से धणे अणगारे समणस्स भगवो महावी रस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।। ३०. तए णं से धणे अणगारे तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसतए जाए यावि होत्था । जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठाइ, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामीति गिलाइ । से जहानामए कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा पत्त-तिल-भंडगसगडिया इ वा एरंडकट्ठसगडिया इ वा, इंगालसगडिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठ इ, एवामेव धणे अणगारे ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंस-सोगिएणं, हुयासणे विव भास रासिपडिच्छण्णे तवेणं, तेएणं, तव-तेयसिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणेउवसोभेमाणे • चिट्ठइ ॥ १. सं.पा. ---प्रायविलं नो अणायंबिलं जाव नावकखंति । २. X (घ)। ३. अह (क)। ४. तहा (ख, ग) । भ० २१११०। ५. सं० पा०-अमुच्छिए जाव अणज्झोववण्णे। ६. सं० पा०-उरालेणं जहा खंदओ जाव सुह्य चिट्ठइ। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ धण्णस्स तवजणिय- सरीरलावण्ण-पदं ३१. धण्णस्स णं अणगारस्स पायाणं अपनेयास्त्रे तव रूव-लावणे होत्या -- से जहानामए सुक्कछल्ली इ वा कट्टपाउया इ वा जरग्गश्रोवाहणा इ वा एवामेव धण्णस्स अणगारस्स पाया सुक्का लुक्खा' निम्मंसा अट्ठि चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेवणं मंस - सोणियत्ताए || ३२. धण्णस्स णं अणगारस्स पायंगुलियाणं प्रयमेयारूवे तव रूत्र- लावण्णे होत्था - से जहानामए कलसंगलिया इ वा मुग्गसंगलिया इवा माससंगलिया इ वा तरुणिया छिण्णा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी चिट्ठति, एवामेव धण्णस्स गारस्स पायंगुलियाग्रो' सुक्काथो' 'लुक्खाग्री निम्मंसाग्रो ग्रद्वि-चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव गं मंस सोणियत्ताए || ३३. धण्णस्स णं अणगारस्स जंघाणं श्रयमेयारूये तव रूव-लावणे होत्था-से जहानामए काकजंघा इ वा ढेणियालियाजंघा इ वा एवामेव धण्णस्स अणगारस्स जंघाओ सुक्कायो लुक्खाग्रो निम्मंसा अट्टि चम्म छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस सोणियत्ताए || अणुत्तरोववाइयदसाओ ३४. धण्णस्स अणगारस्स जाणूर्ण अयमेयारूवे तव रूव लावण्णे होत्था से जहानामए कालिपोरे इ वा मऊरपोरे इ वा ढेणियालियापोरे इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स जाणू सुक्का लुक्खा निम्मंसा ग्रद्वि-चम्म- छिरत्ताए पण्णायंति नो चेत्र णं मंस सोणियत्ताए ॥ ३५. धण्णस्स णं अणगारस्स ऊरूणं श्रयमेयारूवे तव रूव लावण्णे होत्था से जहानामए 'सामकरिल्ले इ वा" बोरीकरिल्ले' इ वा सल्लइकरिल्ले" इ' वा 'सामकिरिल्ले इ वा " तरुणए" छिष्णे उन्हें दिष्णे सुक्के समाणे मिलायमाणे ' १२ o १. इदं पदं प्रयुक्तादशेषु नोपलभ्यते; ३७ वृत्तौ 'उदरवर्णने' एवामेव उदरं सुक्कं लुक्वं निम्मंसं इत्यादि पूर्ववत्' इत्युल्लेखेन तथा ५१ सूत्रे शीर्षस्थ वर्णने सर्वसु आदर्शषु वृत्तौ च तथा दर्शनेव अस्माभिः सर्वत्र स्वीकृतमिदम् । २. विलायमाणी ( क ) 1 ३. पायंगुलीओ ( ख, ग ) ४. सं० पा० – सुक्काओ जाव सोणियत्ताए । ५. स० पा० - इ वा जाव नो सोणियत्ताए । ६. कालपोरे (क, घ) 1 ७. सं० पा० एव जाव सोणियत्ताए । 5. X (3) 1 2. परिकरिले ( क ) । सेल्लति ० ( ख ) । १०. ११ वृत्तिकारेणात्र पाठान्तरनिर्देशः कृतः - पाठान्तरेण सामकरिल्ले इवा (वृ) | आदर्शेषु असो पाठ: ' से जहानामए' अस्यानन्तरमेव वर्तते । १२. तरुणाए ( क ); तरुणे ( ग ) ; तरुणिए ( क्व ) 1 १३. सं० पा० - उन्हे जाव चिट्ठइ । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२५ तच्चो वग्गो-पढम अज्झयणं (धणे ) चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स ऊरू' 'सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस °-सोणियत्ताए॥ ३६. धण्णस्स णं अणगारस्स कडिपत्तस्स अयमेयारूवे तव-रूब-लावण्णे होत्था से जहानामए उट्टपदे इ वा जरग्गपए' इ वा महिसपए इ वा', 'एवामेव धण्णस्स अणगारस्स कडिपत्ते सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस -सोणियत्ताए। ३७. धण्णस्स णं अणगारस्स उदर-भायणस्स अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था से जहानामए सुक्क-दिए इ वा भज्जणय-कभल्ले इ वा कट्ठ-कोलंबए इ वा, एवामेव धणस्स अणगारस्स उदरं [उदर-भायणं ? ] सुक्क 'लुक्खं निम्मसं चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस ° -सोणियत्ताए । ३८. धण्णस्स ण अणगारस्स 'पासुलिय-कडयाण" अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्ण होत्था से जहानामए थासयावलो इ वा 'पाणावली इ वा" मुंडावली इ वा, "एवामेव धण्णस्स अणगारस्स पासुलिय-कडया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्टि चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ३६. धण्णस्स णं अणगारस्स पिट्ठि"-करंडयाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावणे होत्था से जहानामए कण्णावलो इ वा गोलावली" इ वा वट्टावलो" इ वा, एवामेव •धण्णस्स अणगारस्स पिट्ठि-करंडया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अद्वि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव ण मंस-सोणियत्ताए । ४०. धण्णस्स णं अणगारस्स 'उर-कडयस्स" अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था १. सं० पा०--ऊरू जाव सोणियत्ताए। ८. सूत्रस्य प्रारम्भे 'उदरभायणस्स' इति २. कडिपट्टस्स (ख, ग, घ, वृ पा)। प्रयुक्तमस्ति । अत्रापि तथैव किं न स्यात् ? ३. इमेयारूवे (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा-सुक्कं । ४, पादे (म)। १०. पांसुलियकडलाई (ख) । ५. °पादे (ग); लाक्षणिकदृष्ट्यात्र ११. ४ (क); पीणावली ° (ख, ग, घ)। 'जरगवपए' इति पाठो युज्यते । वृत्तिकारस्य १२. सं पा०—मुंडावली इ वा । सम्मुखे 'जरग्गपए' इति पाठ आसीत्, यथा- १३. पिट्ठ (ग, वृ)। जरगपएत्ति जरद्गवपादः (दृ)। वृत्ति- १४. गोणवाली (क) ! कारेण यथा पाठो लब्धः तथा व्याख्यात १५. वट्टयावली (वृ)। इति सम्भाव्यते। १६. सं० पा०-एवामेव । ६. पादे (ग)। १७. उरकरडयस्स (क, ग); उरकरंडस्स (ख)। ७. सं० पा०-इ वा जाव सोणियत्ताए। असौ पाठो वृत्त्याधारेण स्वीकृतः । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ अगुत्तरोववाइयदसाओ से जहानामए चित्तकट्टरे इ वा वीयणपत्ते इ वा तालियंटपत्ते इ वा, एवामेव' 'धण्णस्स अणगारस्स उर-कडए सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो व णं मस-सोणियत्ताए । ४१. धण्णस्स णं अणगारस्स बाहाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था--से जहानामए समिसंगलिया इ वा वाहायासंगलिया इ वा 'अगत्थियसंगलिया इ वा," एकामेव 'धण्णस्स अणगारस्स वाहाम्रो सुक्कामो लुक्खायो निम्मंसानो अद्वि-चम्म-छिरत्ताए पग्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ४२. धण्णस्स णं अणगारस्स हत्थाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था - से जहानामए सुक्कछगणिया इ वा वडपत्ते इ वा पलासपत्ते इ वा, एवामेव •धण्णस्स अणगारस्स हत्था सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छि रत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए०॥ ४३. धण्णस्स णं गुणगारस्स हत्थंगुलियाणं अयमेयारूबे तव-रूव लावणे होत्था से जहानामाए कलसंगलिया इ वा मुम्गसंगलिया इ वा माससंगलिया इ वा तरुणिया छिण्णा प्रायने दिण्णा सुक्का समाणी 'मिलायमाणी चिटुंति'", एवामेव •धण्णस्स अणगारस्स हत्थंगुलियानो सुक्कानो लुक्खाओ निम्मंसायो अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ४४. धण्णस्स णं ग्रणगारम्स गीवा।। अयमेयारूवे तव-रूव-लावणे होत्था --से जहानामए करगगोवा इ वा कुंडियागीवाइ वा उच्चत्थवणए" इवा, एवामेव 'धण्णस्स अणगारस्स गीवा सुक्का लुक्खा निम्मसा अद्वि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ४५. धण्णस्स णं अणगारस्स हणुयाए अयमेयारूवे तव-रूव-लावणे होत्था-से जहानामए लाउफले इ वा हकुवफले" इ वा अंबगट्ठिया" इ वा प्रायवे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स हणुया --- -- -- १. चित्तपट्टरे (क); वित्तयकट्टरे (ख); ८. सं० पा०-वामेव ° | चित्तयकदूरे (ग)। ____६. x (क, ख, ग); मिलायंति (घ)। २. वीइण° (ग); वीयणय ° (घ) वियण° १०. सं० पा०---एवामेव ° । (वृ)। ११. उच्चट्ठवणए (क); काछवणए (ख)। ३. सं० पा०—एवामेव । १२. सं० पा०--एवामेव । ४. x (ख); पहाया ° (ग)। १३. हेकुव० हंकुव० हेकुच° हकुन० (क्व)। ५. x (क)। १४. अंबगंठिया (क, घ)! ६. सं० पा०-एवामेव । १५. सं. पा.----ग्रंबगट्ठिया इ वा ° एवामेव । ५. सुक्कछगलिया(क); सुक्खच्छगणिया (ख,ग) । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्गो-पढमं प्रज्झयण (धण्णे) ४६. सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंससोणियत्ताए ॥ धण्णस्स णं अणगारस्स उट्ठाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहानामए सुक्कजलोया इ वा सिलेस-गुलिया इ वा अलत्त'-गुलिया इ वा, एवामेव 'धण्णस्स अणगारस्स उट्ठा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ४७. धण्णस्स णं अणगारस्स जिब्भाए अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था से जहानामए वडपत्ते इ वा पलासपत्ते इ वा सागपत्ते इ वा, एवामेव 'धण्णस्स अणगारस्स जिब्भा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए ॥ ४८. धण्णस्स णं अणगारस्स नासाए अयमेयारूवे तब-रूव-लावण्णे होत्था-से जहा नामए अंबगपेसिया इ वा अंबाडगपेसिया इ वा माउलुंगपेसिया इ वा तरुणिया 'छिण्णा प्रायवे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी चिट्टइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स नासा सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ४६. धण्णस्स णं अणगारस्स अच्छीणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था से जहा नामए वीणाछिद्दे इ वा बद्धीसगछिद्दे इ वा पाभाइयतारिगा' इ वा, एवामेव 'धण्णस्स अणगारस्स अच्छीओ सुक्कानो लुक्खायो निम्मंसायो अटि-चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ५०. धण्णस्स णं अणगारस्स कण्णाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहानामए मूलाछल्लिया इ वा वालुकछल्लिया इ वा कारल्लयछल्लिया" इवा, एवामेवर 'धण्णस्स अणगारस्स कण्णा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ५१. धण्णस्स णं अणगारस्स सीसस्स अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहा नामए तरुणगलाउए इ वा तरुणगएलालुए इ वा सिण्हालए" इ वा तरुणए" - - -- -- - -. १. अलत्तग (ग)। ८. सं० पा०—एवामेव । २. सं० पा०-एवामेव । १. केसाणं (क)। ३. x (क); पलासपत्ते इ वा (ग); उंबरपत्ते १०. वालुका (क) (घ)। ११. क्वचिच्च नीतिपदं दृश्यते न चावगम्यते (व)। ४. सं० पा०-एवामेव । १२. सं० पा०.-एवामेव । ५. सं० पा०-तरुणिया ' एवामेव ° । १३. पिण्हालुए (क्व)। ६. पब्बीस (क, ख)। १४, स० पा०-तरुणए जाव चिट्ठइ । ७. पभयातारगा (ख); पाभाइयतारा (वृपा)। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसाओ o • छिपणे श्रायवे दिण्णे सुक्के समाणे मिलायमाणे चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स सीसं सुक्कं* लुक्खं निम्मंसं अट्ठि चम्म छिरत्ताए पण्णायइ, चेवणं मंस सोणियत्ताए' ॥ ५२. घण्णे णं अणगारे सुक्केणं भुक्खेणं पायजंधोरुणा, विगय-तडि-करालेणं कडिasti, पिमिस्सिएणं उदरभायणेणं, जोइज्जमाणेहिं पासुलि - कडएहि, 'क्वत्तमाला तिव" गणेज्जमाणेहि पिट्ठिकरंडगसंधीहि, गंगात रंगभूएणं उकडगसभाएणं, सुक्कसप्प समाणाहि बाहाहिं, सिढिलकडाली' 'विवलंबतेहि " हत्थेहि, कंपणवाइयो विव वेवमाणीए सीसघडीए पम्माणवयणकमले " उभडघडमुहे उच्छुद्धणयणकोसे" जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासिता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलाइ । से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्टसगडिया इ वा पत्तसगडिया इवा तिलंडासगडिया इ वा एरंडसगडिया इ वा उन्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससद्द गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, एवामेव धण्णे अणगारे ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, safar तवेणं, अवचिए मंससोणिएणं, हुयासणे इव भासरासिपलिच्छपणे वेणं तेणं तव यसरीए ग्रईव ईव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठइ ॥ ६२८ सेपियस्स महादुक्करकारय-पुच्छा-पदं ५३. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए । सेणिए राया ॥ ५४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । परिसा निग्गया । सेणिए निग्गए | धम्मकहा । परिसा पडिगया || ५५. तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी १. X ( ख, ग ) 1 २. 'मंस - सोणियत्ताए' अतोये सर्वासु प्रतिसु ' एवं सव्वत्थ । नवरं उपरभावणं कण्णा जोहा उट्ठा एएसि अट्टी न भणइ, चम्मछिरत्ताए पण्णायइत्ति भइ इति पाठोस्ति । परं अस्माभिस्तु सर्वत्र पूर्णः पाठः लिखितः अतोनावश्यकत्वेनासौ पाठान्तररूपेण स्वीकृतः । ३. अणगारे णं (क. ख, ग, घ ) । ४. पट्टी ० ( क ); पिट्ठमवस्सिएणं (वृ) 1 ५. पांसुलि ( ग, घ ) । ६. अक्खमाला तिवा ( क ) ; मालाविव ( ग ) ; ● माला तिवा (घ ) । ७. X ( क ) । ८. सढिल ० ( क, ख, ग ) 1 ९. विचलते हि ( क ); विवचलतेहि ( ख ) । १०. पव्वात ० ( क ग ); पम्माय ( ख ) । ११. उच्छुडु ० ( क्व) १२. सं० पा० - जहा खधश्रो तहा जाव हुयासणे, स्कन्दकप्रकरणे ( भ० २१६४) प्रारम्भे 'इंगालस गडिया' इति पाठो नास्ति । तेनास्य पूर्तिः नायाधम्मकहाओ सूत्रात कृता । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्गो—पढम अज्झयणं (धण्णे) ६२६ इमासि णं भंते ! इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं कतरे अणगारे महादुक्करकारए चव महाणिज्जरतराए चेव ? एवं खल सेणिया! इमासिं णं इंदभुइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धणे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव ।। ५६. से केण?णं भते! एवं वुच्चइ, इमासिं' •णं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समण ° साहस्सीणं धणे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव ? भगवनो उत्तर-पदं ५७. एवं खलु सेणिया! तेणं कालेणं तेणं समएणं कायंदी नाम नयरी होत्था । धणे दारए उप्पि पासायव.सए विहरइ। तए णं अहं अण्णया कयाई पुवाणुपुवीए चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव कायंदी नयरी जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागए। अहापडिरूवं प्रोग्गहं सोगिम्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरामि। परिसा निग्गया। तहेव जाव पव्वइए जाव' बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणणं आहारं आहारेइ। धण्णस्स णं अणगारस्स सरीरवण्णो सवो जाव तवतेयसिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्ठइ । से तेण?णं सेणिया! एवं बुच्च इ 'इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोहसण्हं समणसाहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव ।। सेणिएण धणस्स थवणा-पदं ५८. तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए एयमद्रं सोच्चा निसम्म हतुटे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो याहिण-पयाहिणं करेइ,करेत्ता वदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव धण्णे अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धण्णं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-धण्णे सि णं तुम देवाणुप्पिया ! सुपुणे 'सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सुकयत्थे" सि णं तुमं देवाणुप्पिया! कयलक्खणे सि णं तुम देवाणुप्पिया ! सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले त्ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे १. सं० पा०-इमासि जाव साहस्सोणं । २. ५०- ३.४-६। ३. सं० पा०-संजमेणं जाव विहरामि । ४. अ० ३१११-२१ । ५. अ० ३१२१-२७] ६. सं० पा०--बिलमिव जाव आहारेइ । ७. अणमारस्स पादाणं (क, ख, ग, घ)। ८. अ० ३।३१-५२। ६. सं० पा०-सुपुणे सुकयत्थे कयलक्खणे । १०. सकतत्थे (क); सकयत्थे (ख); कयत्थे (घ)। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० अणुत्तरोववाइयदसा श्रो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिणपाहणं करे, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए || toणस्स सव्व सिद्ध-गमण-पदं ५६. तए णं तस्स घण्णस्स अणगारस्स ग्रण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे प्रभत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था - एवं खलु ग्रहं इमेणं मोरालेणं' तवोकम्मेणं' धमणिसंतए जाए । जहा दो तहेव चिता । प्रपुच्छणं । थेरेहि सद्धि विजलं पब्वयं दुरुहइ | मासिया संलेहणा | नव मासा परियाओ जाव' कालमासे कालं किच्चा उड्ढ चंदिम- सूर-गगण - नक्खत्त-तारारूवाणं जाव'० नवयगेवेज्जविमाणपत्थडे उड्नुं दूरं वीईवइत्ता सव्वट्टसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । थेरा तहेव श्रयरंति जाव इमे से प्रायारभंडए || ६०. भंतेति ! भगवं गोयमे तहेव प्रपुच्छति, जहा खंदयस्स भगवं वागरेइ जाव सव्वसिद्धे विमाणे उववण्णे ।। ६१. धण्णस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! तेत्तीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ६२. से णं भंते ! ताम्र देवलगाओ कहिं गच्छहिइ ? कहि उववज्जिहि ? गोमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहि परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं ६३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पढमस्त प्रज्यणस्स अयभट्ठे पण्णत्ते | १,२. पू० अ० ३।३० । ३. भ० २२६६-६६ । ४. अ० ११८ । ५. सं० पा० चंदिम जाव नवय । ६. अ० ११८ । ७. भ० २७० । ८. भ० २७१ । ६. अ० ३।७५ । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं सुणक्खत्ते सुणक्खत्त-पदं ६४. जइ णं भंते ! समगेण भगवया महावीरेणं तच्चस्स बग्गस्स पढमस्स अज्झय__णस्स अयम? पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के 8 पण्णते ? ६५. एवं खलु जंवू ! तेण कालणं तेणं समएण काकदी नयरी । जियसत्तू राया ।। ६६. तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नाम सत्थवाही परिवसइ-अड्डा ।। ६७. तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुणक्खत्ते नाम दारए होत्था--- अहीण-पडिपुण्ण पंचदियसरीरे जाव' सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धण्णो तहेव । बत्तीसो दामो जाव' उप्पि पासायवडसए विहरइ ।। ६८. तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं । जहा धण्णे तहा सुणक्खत्ते वि निग्गए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव' अणगारे जाए-इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी !! तए णं से सुणक्खत्ते जं चेव दिवसं समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मंडे •भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं° पव्वइए तं चेव दिवसं अभिग्गह तहेव जाव' बिलामिव पण्णगभएणं अप्पाणेणं ग्राहारं आहारेइ, आहारेत्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।।। ७०. सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ । एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरई॥ १. ओ० सू० १४३। २. अ० ३।६६ । ३. ना० ११५।२८-३५ । ४. अ. ३२१ ५. स० पा०-मुडे जाव पब्वइए। ६. अ० ३१२२-२७ । ७. सं० पा०-संजमणं जाव विहरइ । ६३१ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ अणुत्तरोवदाइयदसाओ ७१. तए णं से सुणक्खत्ते अणगारे तेणं अोरालेणं' तवोकम्मेणं जहा खंदनो' अईव अईव उसोभेमाणे चिट्ठइ॥ ७२. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गणसिलए चेइए। सेणिए राया ! सामी समोसढे । परिसा निग्गया। राया निग्गयो। धम्मकहा। राया पडिगयो । परिसा पडिगया । तए णं तस्स सुणक्खत्तस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरतावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था, जहा खंदयस्स । बहू वासा परियायो। गोयमपुच्छा। तहेव कहेइ जाव सव्वसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववणे । तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। ३-१० अज्झयणाणि इसिदासादि-पदं ७४. एवं सुणक्खत्तगमेणं सेसा वि अट्ठ अज्झयणा भाणियब्वा, नवरं--प्राणुपुवीए दोण्णि रायगिहे, दोणि साकेते, दोगिण वाणियग्गामे, नवमो हत्थिणपुरे, दसमो रायगिहे । नवण्हं भद्दाप्रो जणणीयो। नवण्ह वि बत्तीसो दायो । नवण्हं निक्खमणं थावच्चापत्तस्स सरिसंवेहल्लस्स पिया करेह । छम्मासा वेहल्लए। नव धण्णे । सेसाणं बहू वासा । मासं सलेहणा । सव्वट्ठसिद्धे । सव्वे महाविदेहे सिभिस्संति ।। निक्खेव-पदं ७५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सहसंबुद्धेणं लोगणाहेणं लोगप्पदीवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं सरणदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं जिणेणं जाणएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयएणं तिपणेणं तारएणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते ॥ १,२. पू० ३।३०। ३. भ० २१६४॥ ४. भ० २१६६-७१। ५. ठिई से णं भते (क, ख, ग, घ)। ६. पू०-ना० ११५॥२२-३३ ; ७. 'निक्खमणं' इति शेषः । ८. X (ख)। ६. x (क)। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसेसो ६३३ परिसेसो अणुत्तरोववाइयदसाणं एगो सुयखंधो। तिण्णि वग्गा। तिसु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जति। तत्थ पढमे वग्गे दस उद्देसगा। बिइए वग्गे तेरस उद्देसगा। तइए वग्गे दस उद्देसगा । सेसं जहा नायाधम्मकहाणं तहा नेयव्वं ।। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संक्षिप्त - पाठ अंतिए जाव पव्वयामि अंतेउरे य जाव अभोववण्णे अगडे वा जाव सागरे अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे अग्घेणं जाव आसणेणं परिशिष्ट - १ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त स्थल और पूर्ति आधार-स्थल नायाधम्मकाओ अन्वणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे अज्जग जाव परिभाएत्तए अज्जाओ तहेव भणति तहेव साविया जाया तव चिता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति अज्झत्थिए अथिए किमपणे जाव वियंभइ अज्झथिए जाव समुपज्जित्था अज्झत्थिय जाव जाणित्ता अट्टदुहट्टवसट्टमाणस गए जाव रयण अट्टमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि अट्ठाई जाव नो वागरेइ अट्ठाई जाव वागरेइ ग्राहियं महानंदीसरं जामेव दिसं पाउ जाव पडिगए अड्ढा जाव अपरिभूया अड्डा जाव भत्तपाणा पूर्त-स्थल २११।२५ * १११६१४१ १८ १५४ १।१।१११ १।१६।१६७ १३२७६ १२६५ ११६६८-१०४ १८७६ १।१६।२७२ १।१६।११८, २८५,२/१३८ १११६।२८६ १३१।१५५ १।१।५३,५६,१५४, १५५, १६६,२०४,२०५; १।२।१२,७१,१।५।११८,१२४; १।७।२५; २८१,२ १५५६६ ११५६६ श८२२६ १५/७ १।३१८ पूर्ति आधार-स्थल १।१।१०१ १ १६ २८ १८१५४ १।१।१११ १।१६ १८६ ओ० सू० २ १।१।११० १।१४१४४-५० १।११४८ १११६।२७२ १११४८ ११११४८ १।१।१५४ २२१,२ ११५२६६ ११५१६६ १८२२४ ओ० सू० १४१ ओ० सू० १४१ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति १११८४ ओ० सू० १६४ प्रो० सू० ५२ ११७ शपा४२ १२११४६ १११४॥३६ १२१४१३६ अणते जाव समुप्पण्णे ११८१२२५ अणते गाणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा १।१६।३२४ अणगारवण्णओ भाणियब्वो ११।१६४ अणगारे जाव इहमागए ११५१६८ अणगारे जाव पज्जवासमाणे २।११४ अणिट्टतराए चेव जाव गंधेणं १।१२।३ अणिवा जाव अमणामा ११६९७ अणिट्ठा जाव दंसणं १११४१४३ अणिवा जाव परिभोगं १।१४।५० अणुत्तरे पुणरवि तं चेव जाव तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ जाव पब्वइस्ससि १।१।११३ अण्णं च तं विउलं १८।२०७ अण्णमण्णं जाव समणे श१३।३८ अत्यत्थिया जाव ताहि इट्टाहिं जाव अणवरयं ११४३ अस्थामा जाव अधारणिज्ज १।१६२५३ अपत्थिय जाव परिवज्जिए ११८५१२८ अपत्थियपत्थए जाव वज्जिए १॥५॥१२२ अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया शा७४ अपुष्णाए जाव निबोलियाए १११६२५ अब्भण्णाए जाव पव्वइतए श१२।३६ अब्भुज्जएणं जाव विहरित्तए १।५।११८,१।१६२८ अब्भुढेंसि जाव वंदसि ११५१६७ अभिसिंचइ जाव पडिगए १११६६२८० अभिसिंचइ जाव राया जाए विहरइ ११५/६३-६५ अमच्चे जाव तुसिणीए श१२।१५ अम्मयाओ जाव पब्वइत्तए १३१५१०६ अम्मयाओ जाव सुलद्धे १३१४१२ अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ११५१६५ अरहण्णग जाव वाणियगाणं ११८६७ अरहण्णग संज्जत्तगा ११८८४ अरिटुनेमि जाव गमित्तए १।१६३२० अरिटुनेमिस्स जाव पव्वइत्तए ११५।२० अवंगुणेइ जाव पडिगए श११११२ ११८।२०५ १३१५३ ओ० सू०६८ ११६।२१ ११५११२२ उवा०।२।२२ ११५४१२२ १४१६१८ शश१०४ १।५।१२४ ११५२६६ ११११६१ ११११११७-११६ १।१२१७ १११११०७ १।१।३३ १११४८ ११८६४ १८६६ १।१६।३३४ ११.१०६ १११६१६१ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.१६१२७६ ११०९६-१०१ १।१८।१२ १११६२२० ११मा१६६ १.१६।२४६ ११८१७२ १।२।१२ २१४१३६ शरा२० ११२२५२,५३ १०१२।४ १।१६।२६२ १५॥३४-३८ १११८८ १११६।२१६ १११६१२१ १।१६।२४५ ११८१५६ १।२।१२ १२१४१३८ १२।१४ ११२।३७,३८ १।२।१४ ११७२२ १।१६।१५२ ११७६ १४१६४१५१ अवरकंका जाव सणि वाडिया अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई अवहरइ जाव तालेइ अवहिया जाव अवक्खित्ता अवीरिए जाव अधारणिज्ज असक्का रिय जाव निच्छुढे असक्कारिया जाव निच्छूढा असणं जाव अणुवढेमि असणं जाव दवावेमाणी असणं जाव परि जे मागी असणं जाव परिवेसेइ असणं जाव विहरइ असणं मित्तनाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता असण जाव पसन्न असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा एत्तो अणिद्वतराए चेव असोगवणिया जाव कंडरीयं अहं जाव अणेगभूयभावभविए अहं जाव सुया अहं रज्जं च जाव ओसन्न जाव उउबद्ध पीढ० विहामि अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ अहम्मिए जाव विहरइ अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता अहापडिरूवं जाव विहरइ (ति) अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण अहासुत्तं जाव सम्म अहिमडे इ वा जाव अणि?तराए अमणामतराए अहीण जाव सुरूवे अहो णं तं चेव आइगरे जाव विहर आइपण वेदो १।१६:५२ १।१६३४ ११५१७६ १५७६ वृत्ति श१६१३३ १३५१७६ १३७६ १९५१२४ १।१८।१६ १६१८१६ १।१२०१ १११।१७११६११ ११।११६ १।१।२०१ १॥५॥११७,११८ वृत्ति १११८।१६ ११११११८ ११४ ११।११५ १११११६८ ११८४२ ११११६ १।१२।१६ २श२० ११७१४ वृत्ति ओ० सू० १५ १२१२११३ ११११९५ वत्ति Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८.१६८ १।१२१२ १।१६।१८६ १।८।१७० ११८।१७० १।१६।१८६ १३१४१६० शक्षा१७० १११११५४ २१५४ २११६१ १७६ शश१०१ १।१।१०१ १।१।२० ११।१८६ आएहि य जाव परिणामेमाणा ११म१०४ आउक्खएणं जाव चइत्ता १।१६।१२३ आईति जाव पज्जुवासंति १११६:१८८ आढाइ' जाव तुसिणीए १।१२।७१।१६१५ आढाइ जाव तुसिणीया २१११३६ आढाइ जाव नो पज्जुवासह १२१६१६० आढाइ जाव भोगं १।१४१६१ आढाइ जाव संचिइ १।१६।३० आढायति १।१२१५५ आढायंति जाव संलवेंति १२१११५४ आपुच्छइ जाव पडिगए १६१६१२०० आपुच्छणिज्जं जाव वड्डावियं १७४२ आपुच्छामि जाव पव्वयामि। १११२।३८ आपुच्छामि तएणं जाव पव्वयामि १।१६।१२ आरोग्गतुट्ठी जाव दिठे १।१।२६ आलंबे वा जाव भविस्सइ १।१६।३१२ आलिघरएसु य जाव कुसुमघरएसु १२३३१६ आलोएहि जाव पडिवज्जाहि १।१६।११५ आसयंति वा जाव तुयति १।१७१२२ आसाएइ जाव अणुपरियाट्टिस्सइ १११६४२ आसाएमाणीओ जाव परिभंजेमाणीओ ११२११७ आसाएमाणी जाव विहरइ १।२११४ आसाएमाणे जाव विहरइ १२१२१२२ आसायणिज्ज जाव सन्विदिय० १।१२।२० आसायणिज्जे जाव सव्विदिय० १।१२।१६ आसिय जाव गंधवट्टिभूयं शश६७ आसिय जाव परिगीयं ११७६ आसुरुत्ता जाब मिसिमिसेमाणा १।१६।२८ आसुरुते जाव तिवलियं ५८.१५६ आसुरुते जाव तिवलियं एवं १।१६२८६ आसुरुते जाव प उमनाभं १११६२८० आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे १६५१२२ आहारे वा जाव पव्वयामो ११८४१३ आहेवच्चं जाव अभिरमेत्था ११४१६७ आहेवच्चं जाव पालेमाणे १११७१२२ १९४४ १११ १११८१ १।१।८१ १११२।४ १।१२।४ ११.३३ वृत्ति ११११६१ शा१०६ १८।१०६ १८१०६ १११११६१ १५६० १११.१५७ १११११८ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ १११११८ शश६ ११११४६ १.१६/४७ २०४६ ११११४६ ११११४८ १६१६४६ १११११४५ उवा० २१४० १।११४८ शश१६४ १।११६७,११५३५२ १३५१६:१।३४ आहेवच्चं जाव विहरइ ११३८ आहेवच्चं जाव विहइ १११८/२० आहेवच्चं जाव विहरसि १११११५७ इट्ठा जाव मणामा १११६७० इट्ठा तं चेव १६१६:४८ इट्टाहिं जाव आसासेइ ११६।१३१ इटाहिं जाव एवं १८१२०३ इटाहिं जाव वग्गूहिं १८६७ इट्ठाहि जाव समासासे इ १११।५० इठे जाव से णं ११५/२० इड्ढी जाव परक्कमे ११८७६११६२६५ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्या ११७१६:२।१११२ इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ १।१४।४० इहमागए जाव विहरइ ११५१५३ ईसर जाव नीहरणं १११४१५६ ईसर जाव पभितीणं १७६ ईहामिय जाव भत्तिचित्तं १।११८६१८४६ उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं १४१८४० उक्किट्ठाए जाव देवगईए १।१६।२०४,२०६ उक्किट्ठाए जाए विज्जाहरगईए १४१६१६० उक्किट्ठाए प्फ कुम्मगईए १:४१२१ उक्खेवओ तइयवग्गस्स २१३१ उक्खेवओ पढमझयणस्स २॥५॥३ उज्जलंजाव दुरहियासं १।११६३ उज्जला जाव दाहवरकंतीए १११११८७ उज्जला जाव दुरहियासा ११५१०६:१।१६।२०,११६४५ उज्जाणे जाव विहरइ १११६३२१ उत्तरपरस्थिमे दिसीभाए तिदंडयं जाव धाउरत्ताओ श५८० उत्तरिज्जेहि जाव चिट्ठामो १८१७६ उत्तरिज्जेहिं जाव परम्मुहा । ११८१७८ उदगपरिफोसिया जाव भिसियाए ११८१५१ उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई १।२।१४ उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठसरीरा १६१६४१२८ उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण १८३८,११६।३७ १३११२५ ११८१६७ राय० सू० १० १।४।२१ वृत्ति २।२।१ २।२।३ शश१६२ १११११६२ १।१।१६२ १६१६१३१६ भ० २।५२,११५।५२ शक्षा१७७ ११५१७७ श८।१४१ राय० सू० ६७ १।१६।३७ वि०१४।३६ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उम्मुकबालभावे जाव जोव्वणग० उरालस्स के सिध मं जाव सुमिणस्स उरालाई जाव भुंजमाणा उरालाई जाव विहरइ उरालाई जाव विहरिज्जामि उरालाई जाव विहरिस्सइ उराले जाव तेयलेस्से उराले तहेव जाव भासं उववेए जाव फासेणं उव्वत्तिज्जभरणे जाव टिट्टियावेज्जमाणे उब्वत्तेइ जाव टिट्टियावेइ उब्वेतेति जाव दंतेहि निक्खुडेंति जाव करेत्तए उव्वत्तेंति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए एगदिसि जाव वाणियगा एगयओ जहा अरहन्तए जाव लवणसमुद्द एज्जमाणि जाव निवे सेह एवं अत्थेणं दारेणं दासेहि पेसेहिं परियणेणं एवं कुलत्था वि भाणियश्वा । नवरं इम नाणत्तं - इत्थिकुलत्था य धन्नकुलत्था य । इत्यिकुलत्था तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- कुलबहुयाइ य कुल माउयाइ व कुलधूयाइ या धन्नकुलत्था तहेव एवं जहा मल्लिणाए एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं एवं जहेव तेलिणाए सुव्वयाओ तहेव समोसढाओ तहेव संघाडओ जाव अणुपविट्टे तव जाव सूमालिया एवं जहेब राई तहेव रयणी वि एवं जाव घोसस्स एवं जाव सागरदत्तस्स एवं पत्तियामि गं रोएमि गं एवं पाएहि सीसे पोट्ट कार्यसि एवं पायंगुलियाओ पायंगुए वि horeaकुलीओ वि नासापुडाई ६ १।१४१२२ ११११६ १११२/४० १११४१२० १/१६/११३ १।१६ २०४ १।१६/१२ ११११२०४ १।१२४ १।३।२२ १।३।२६ १४११६ १।४।१२ १/८/६७ १/१७/५ १८१७१ १।१४।७७ ११५२७४ १।१६।२०० १११८१३१,३२ २।१।१५ ११६१६४-६७ २ १/५७-६० २।३।११ १।१६।८८- ६१ १।१।१०१ १।१।१५३ १०१४/२१ १११।२० ११/१६ १।१६।११३ १।१२/४० १।१६।११३ १।१६।११३ १।१/६ १।१ २०२ १/१२/३ १।३।२१ १।३।२१ १४१११ ११४।११ ११८/६२ ११८६६ १|१|४८; १।१६।१३१ ११४।७७ १।५।७३ १/८/१५४ १११८१२०, २२ राय० सू० ६६८ १११४१४०-४३ २१११४७-५० ठाणं २१३५६-३६२ १।१६/६३-६६ ११११०१ १।१।१५३ १।१४।२१ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२।११७ १११११७ ११५॥७५ १२५७३; भ० १८।२१५-२१६ एवं पासत्थे कुसीले पमते एवं भासा वि । नवरं इमं नाणत----मास। तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--कालमासा य अस्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस तं जहा---सावणे जाव आसाढे । तेणं अभक्खेया। अत्थमासा दुविहा हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य तेणं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव एवं वट्टए आडोलियाओ तिदूसए पोचुल्लए साडोल्लए एवं सेसाओ वि एवं सेसाओ वि ओरोह जाव विहरइ ओसन्ने जाव संथारए ओहय जाव झियायह ओयमण जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणि ओहयमणसंकप्पा० ओहयमणसंकप्पा जाब झियाइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायंति ओयमणसंकप्पा जाव झियायह ओहयमणसंकप्पा जाव झियायामि ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ ओयमणसंकप्पे जाव झियायमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायसि कंडरीए उट्टाए उट्टेइ उठेत्ता जाव से जहेयं कत्ता जाव भवेज्जामि कते जाव जीवियऊसासए कक्खडा जाव दुरहियासा कज्जेसु य जाव रहस्सेसु कटु जाव पडिसहेइ कट्ठस्स य जाब भरेति ११८८ १।१८८ २७६ २।७।२ २।८६ २१८२ १।१६२२५ १।१६:१६५ शश१२५ १६५।११७ १1८1१७१ ११११३४ १।३।२३ ११३४ १।१४।३८,१।१६।२०५ १११।३४ १११४१३८ ११११३४ श१३४ वृत्ति १३१४॥३७,१३१६६६२,८७,२०७ ११११३४ १शक्षा१५ ११११३४ १शमा१७३ १।११३४ १११६२६५ १५१०३४ १।१६.६४,६२,२०८ १।११३४ १।१७१० ११॥३४ ११११६८,१२१४१७७,१११७१८ ११।३४ १।१६।३२ १६१२३४ १।१७।६ १११।३४ १।१६।१२ १११०१ १११६३९७ १०१४।४३ १।१।१४५ १।१।१०६ १११११६२ वृत्ति १७.४२ ११५१० १११६।२५५ १११६१२५१,२५२ ११७२८ १।१७।२२ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कणंग जाव दलय कणग जाव पडिमाए कणग जाव सावएज्ज कणग जाव सिलप्पवाले कयकोउय जाव सव्वालंकारविभूसिया कयत्थे जाव जम्म० कयवलिकम्म जाव सव्वालंकारविभूसियं कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कयबलिकम्मा जाव विपुलाइं जाव विहरइ । कयवलिकम्मे जाव रायगिह कयवलिकम्मे जाव सरीरे कयबलिकम्मे जाव सब्वालंकार १११११ १८.४१ १११११ १११।११ शरा२६ १३१३१२५ १६१८१ १२११३३ १२०६६ १।१२८१ १३११२७ ११११८१ करयल० १५११६ करयल० करयल० करयल अंजलि करयल जाव एवं १६१६६१६८ १८.१०० १६१८१३८ १११८१३३ १।१०८१ १११३१२५ १२१६७३ १।१।२७ १।१।३२ १।२।५८ ११११६६ शश४७ १२५२६८,१२३;१।८1७३,८१,६८, १५८,१६०,११९३१११४।३१,५० १८।२०३,२०४।१।१६:१३७,१६१, २१६,२६४।१।१७।११ १११६१२४६ श१६५८,६० १।१।३०:१।१६।१७०,२६२; १।१६।१३,४६,२।११२० १९:१७१११४।२७,२८,१११६:४३ ११११११८,१११६।१३३:२।११११ १११६।१४२ १११६.१३८ १८।१६६ १।।१६५ १।१५।१८ १।१६।२३६ १।१७।२६ १२८१३१,१११६।२४४ १८.१०७ १।१६१३४ १११४११३ १२१२१ श१२६ १११।३६ १११११६ करयल जाव एवं करयल जाव कटु करयल जाव कटू तहेव जाव समोसरह करयल जाव कण्हं करयल जाव पच्चप्पिणंति करयल जाव पडिसुणेइ करयल जाव वद्धावेइ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्धावेत्ता करयल जाव वद्धावेहि करयल तं चेव जाव समासोरह करयल तहत्ति जेणेव करयलपरिग्गहियं जाव अंजलि १।१।२६ ११११२१ ११।२६ १।१६.१३२ १।१६।१३७ १९१६५ १।१२६ २११४८ श०४८ ११११३६ ११११४८ ११।४८ १६१६६१३२ ११५:१३ १११४ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११२६ ११११४८ ११११४८ ११११४८ १।१३६ वृत्ति करयलपरिग्गहियं जाव कटु करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करयल बद्धावेइ करयल बद्धावेत्ता करयल वद्धावेत्ता करेइ जाव अडमाणीओ करेंति जाव पच्चुत्तरंति करेत्ता जाव विगयसोया करेमो तं चेव जाव मेमो करेह करेत्ता जाव पच्चप्पिणह करेह जाव पच्चप्पिणंति कल्लं कल्लं जाव विहरइ कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए कसप्पहारेहि य जाव लयाप्पहारेहि कारणेसु य जाव तहा कालगए जाव प्पहीणे कालोभासे जाव वेयणं कासे जोणिसूले जाव कोढे किण्हाण य जाव सुक्किलाण किण्हाणि य जाव सुक्किलाणि किण्होभासा जाव निउरंवभूया कभए एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहासज्जे कुडवा जाव एगदेसंसि के जाव गमणाए कोट्टपुडाण य जाव अण्णेसि कोटामारंसि सकम्म सं कोडंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्ठवेंति कोडुबियपुरिसा जाव एवं कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि तहेव कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति खंड जाब एडेह ११११३६ ११८१२६ १५५१२० १।८।१०५ १।१६।१५७ १।१४१४१,४२ १शक्षा१५ १११८।२७ १।१६।२८८ ।१।१२ १८४० शक्षा५१ १९५१२४ १।२।३३ १६२।६७ १२।४५ ११५।१० १११६।३२२ १२।६७ श१६।३० १११७१२२ १।१३।२० १७११३ १।८।१७४ ११७११७,१८ १११११११ १११७१२२ श७२५ १२।१४ ११९४८ १।१६।२८२ राय० सू०६ ११८५१ ११।२४ ११५१२४ १॥२॥३३ १४२१३३ १२२।३३ १११११६ ११२८४ वृत्ति १।१३।२८ १।१७।२३ १।१७।२३ ओ० सू०४ १।८१७३ १६७।१५,१६ १११११०७ २७७ ११८।५२ १११५७ ११११११७ १३१६६२ १११६७८ उवा० ११४७,११८१५१ १११॥६ ११११११६ १।१२३ १.१६७४ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंतीए जाव बंभचेरवासेणं खिज्जणाहि य जाव एयमटुं खीरधाईए जाव गिरिकंदरमल्लीणा गंध जाव उस्सुक्कं गंध जाव पडिविसज्जेइ गंध जाव सक्कारेत्ता गंधब्वेहि य जाव विहरंति गज्जियं जाव थणियसद्दे गणनायग जाव आमंतेंति गणिमस्स जाव चउम्विहभंडगस्स गब्भस्स जाव विणेति गय० गवलगुलिय जाव खुरधारेणं गवल जाव एडेमि गहाय जाब पडिगए गामघा वा जाव पंथकोट्टि गामागर जाव अणुपबिस सि गामागर जाव आहिंडह गिण्हामि जाव मग्गणगवेसणं गुणे० किं चालेइ जाव नो परिच्चयइ धडएसु जाव संबसावेइ चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थ जाव विहरइ चउत्थ जाव विहरंति चउत्थस्स उक्खेवओ चंपगपायवे० चच्चर जाव महापहपहेसु चरगा वा जाव पच्चप्पिणंति चरमाणा जाव जेणेद चरमाणे जाव जेणेव चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरह चवलं नहेहि चारगसोहणं जाव ठिइपडियं ११०१५ १।१८।१४ ११६३६ १८८४ १।१६।१६९ ११७१६ १११६:१५२ १२९६ १1१1८१ श६६ २०१७ शमा६३ श६।१६ १९६३७ १११८१३६ १११८१२४ १४१६१२२६ १२१४१४३१११७११७ १।२।२६ १८७६ १।१२।१६ ११८१६ १२५२१०१,२।११३३ ११८।१७,२५ २४११ १।१८।४६ १६११६७ १११५७ १२।६६ १५१० १।१०३ १।१८।१० आयारचूला १५११४ २११३० ११८१६० १११२३० १११६३१५० १९७१ १।१२४ १९६६ १।२१७ ११६७ उवा० २०२२ १।९।१६ १४१८१३८ १।१८२२ १८१५८ ११८५८ १।२।२७,२६ ११८७४ १।१२।१६ ११।१६५ १।१।१६५ १११११६५ २।२।१ १२१२१०५ १११३३ १११५६६ १३१४ १।१४ २५११०८ १।४।१७ १११४१३३,३४ १११४ १।४।१४ १११७६-७४ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारुवेसा जाव पडिरूवा चालितए जाव विप्परिणामित्तए चिट्ठइ जाव उट्ठाए चिटुइ जाव संजमेणं चित्तेह जाव पच्चष्पिणह चेइए जाव अहापडिरूवं चेइए जाव विहरइ चेइए जाव संजमेणं चोक्खा जाव सुहासणवरगया चोरनायगं जाव कुडंगे चोरविज्जाओ य जाव सिक्खाविए ajaणं जाव विहरइ छछट्टे जाव विहरइ छछट्टेणं जाव विहरितए छट्ठम जाव विहरइ जणवयं जाव नित्थाणं जाव पज्जुवासई जाव सणियं जाव समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे जाव हावभाव ११ ११२८ १८७६ १।१।१५१ १।१।१६३ ११११७ ११२६६ ११११६४ २१/३ १।१६।१५२ १११८१३० १।१८।२८ १।१३/३६ १।१६।१०८ १/१६/१०७ जहा पोट्टिला जाव परिभाएमाणी जहा मंडुए से लगस्स जाव बलिय सरीरे जाए १११६/२४-२६ जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा ११७१११ १८३७ जहा महबले जाव परिवड्डिया जहा मागंदियदारगाणं जाव कालियवाए १ । १७/६ जहा बद्ध माणसामी नवरं नवहत्युस्सेहे ० २।१।१६ जहा सूरियाभो जाव भासमणपज्जत्तीए २११४० जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए १११६/२० जायं च जाव अणुवड्ढे मि १२/१४ ११४ ४६ जाया जाब पडिलाभेमाणी जाव एवं चैव पल्हायणिज्जे १।१२।२३ जाव जहा १४१२२ १।५।१७ १।४।१६ १।१६ १०५ १११८३२ ११६/२ १५६३,६४ १८३१२१ १।१।१७ ११८१७६ १।१।१५० १।१ । १५१ १।१।२३ १ १/४ ११११४ १ । १४ १।२।१४ १११८२१ १।१८२५ १।१३।३६ १।१६।१०६ १।१६।१०६ १११।१६५ १।१८२२ १/१४/३८ १।५।११४-११६ ११८७२ राय० सू० ८०४ १६६ ओ० सू० १६; वाचनान्तर पृ० १४० राय० सू० ७६७ १।५।१०६ ११२।१२ १२५/४७ १।१२।२२ ११२/७६ ११२६६ १।४।१३ राय० सू० ६६३; ११५।४७ १८११७ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२११४ ११८।१० १११११२ ११७५२२ १।२।२५ ११११२७ १।१६।२६४ १११११२४ १।१४.१८ ११२७ श८१७६ ११२७ १७।६ २।११४६ २१११६३ जिमिय जाव सूइभूया ११२।१४ जिमियभुत्तुत्तरागयं जाव सुहासण. ११६।२१६ जोव्वर्णण य जाव नो खलु शा१५४ झोडा जाव मिलायमाणा १११११४ ठवेंति जाव चिटुंति १।१७।२२ डिभएहि य जाव कुमारियाहि १।२।२७ पहाए जाव पायच्छित्ते १११४१६४ ग्रहाए जाव सरणं उवेइ २ करयल एवं व १२१६१२६५ बहाए जाव सुद्धप्पावेसाई । १२।७१ व्हायं जाव पुरिससहस्सवाहिणीयं १।१४।५३ व्हाया जाव पायच्छित्ता शरा६६,शा१७६ व्हाया जाव बहूहि ११८।१६८ व्हाया जाव सरीरा ११३।११ हायाणं जाव सुहासण. १।१६।८ तइयज्झयणस्स उक्खेवओ २१११५६ सइयवग्गस्स निक्खेवओ २।३।१२ तएणं से दूए एवं वयासी जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव १४१६११४३,१४४ तं इक्छामि गंजाव पव्वइत्तए १०१०१११ तं चेव जाव निरावयक्खे समणस्स जाव पश्वइस्ससि १११११०७ तं चेव सब्वं भणइ जाव अत्थस्स ११८५२ तं रणि च णं चोद्दस महासुमिणा वण्णओ १८२६ तक्करे जाव गिद्धे विव आमिसभक्खी १।२।३३ तच्च दुयं चंपं नयार। तत्थ णं तुम कण्णं अंगरायं सल्लं नंदिराय करयल तहेव जाव समोसरह। चउत्थं दूयं सोत्तिमई नयरिं । तत्थ णं तुम सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुडं करयल तहेब जाव समोसरह । पंचम दुयं हथिसीसं नयरिं। तत्थ णं दुर्म दमदंतंरायं करयल जाव समोसरह । छठें दूयं महुरं नरि । तत्थ णं तुम १।१६।१३४-१४१ १२१२१०४ १।१।१०६ ११८५१ कल्पसूत्र ४ १२।११ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ धरं रायं करयल जाव समोसरह । सत्तमं दूयं रायगिहं नयरं । तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह । अट्रमं दुयं कोडिपणं नयरं। तत्थ णं तुमं रुप्पि भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह । नवमं दूयं विराटं नार। तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल जाव समोसरह । दसमं दूयं अवसेसेसु गामागरनगरेसु अणेगाइं रायहस्साइं जाव.समोसरह । तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर तहेव जाव समोसरह । तच्चं पि जाव संचिट्ठ तच्चा जाव सब्भूया तणकूडे० तत्थे जाव संजाय भए तयावर ईहापूह जाव सण्णिजाइसरणे तलवर जाव पभितओ तलवर जाव सत्थवाह तहत्ति जाव पडिसुणेति तहारूवेहिं जाव विपुलं तहेव जाव पहारेत्थ तहेव सरीरवाउसिया तं चेव सर्व जाव अंतं तहेव सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ जाव अरहो अरिटुने मिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडाग पासइ २ त्ता विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता ताओ जाव विदेहे वासे जाव अंतं तिक्खुत्तो जाव एवं तिग जाव पहेसु तिग जाव बहुजणस्स तित्तेसु जाव विमुक्कबंधणे तुट्ठी वा जाव आणंदो तुभण्णं जाव पव्वयामि तुरियं जाव वेश्य १६१६.१४५ ११४३५ १।१२।३१ १२१४।७७ १११६८ १८१८१ १११४१६५ १।५।६ ११५४१३ १२१२२१५ शा१३६,१३७ ११६।१३२-१३४ श१६३५ १।१२।१६ २१४१७६ ११११६० १६११६० १।२६ ओ० सू० ५२ ११११२६ १।१२०६ १८१६६,१०० २२११५१-५४ २१११३२-४४ १२।२५,२६ १११६१३२६ श१९३४ ११५।२६ १११६२६ १६४ १२।६४ १।१२।४३ १८१६६ ११११२६,१४४,६६ १।१।२१२ १।१९२६ ११११३३ १॥५॥५३ ११२।६३ १६१११०४ १।४।१४ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरुक्क जाव गंधवट्टिभयं श१६।१५५ तेसि जाव बहूणि १1१७१६ थलय ११मा४६ थलय जाव दसद्धवणं १८१३१ थलय जाव मल्लेणं ११८१३२ थावच्चापुत्ते जाव मुंडे ११५१८० थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे समोसढा १८८ थेरा जाव आलिते १५१६३१५ दंडणाणि जाव अणु परियट्टइ १।४।१८ दंडणाणि य जाव अणुपरियट्टइ ११३१२४ दसमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ २।१०।१,२ दाणधम्मच जाव विहरइ १८.१४११५२ दारियं जाव झियायमाणि १।१६।६४ दासचेडियाहिं जाव गरहिज्ज माणी शमा१४७ दाहिणड्डभरहस्स जाव दिसं १२१६।२६६ दिट्टे जाव आरोग्य १।१२० दित्ते जाब विउल भत्तपाणे १।२।७ दीहमद्धं जाव वीईवइस्सइ १२२१७६ दुपयस्स वा जाव निव्वत्तेइ ११८१२६ दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ १।१७४१३ दुरुहंति जाव कालं १।१६।३२३ दुरूढा जाव पाउन्भवति १८।१४ दूइज्जमाणा जाव जेणेव १४१६३२१ दुइज्जमाणे जाव विहर १११६४३२० देवकन्ना शा१५४ देवकन्ना वा जाव जारिसिया शा८६,१११ देवयभूयाए जाव निव्वत्तिए १२८१२८ देवलोगाओ जाव महाविदेहे १।१६।२४ देवाणुप्पिया जाव कालगए १।१६३२३ देवाणु प्पिया जाव जीवियफले ११८७६ देवाणुप्पिया जाव नाइ १२१६२६५ देवाणु प्पिया जाव पव्वतिए १११६४३४ देवाणु प्पिया जाव साहराहि श१६।२४२ देवाणुपिया जाव सुलद्धे १९१६२६ देवी जाव पंडुस्स १।१६।३०१ १२२२ ११८७१ १८.३० १८.३० १३० ११५१३४ १८।१२ १११११४६ सूय० २६२१७८ ११३१२४ २।२।१,२ ११८१४० १।१६६२ १४८.१४६ १।१६।२६७ ११०२० वृत्ति १।२।६७ ११८.११६ ११११०२ १११६६३२३ १९५६१ ११११४ ११।४।१।१६।३१६ शा८६ वृत्ति ११८१२६ १११२१२ १।१६।३२२ उवा० २।४० ११५१२३ १११६२६ ११६२४० १११६२६ १।१६।२६२ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवी जाव पउमनाभ १२१६१२३६ १११६१२३३ देवी जाव साहिया श१६/२४० १११६०२०८ देवेण वा जाव निग्गंथाओ १९७५ उवा० २।४५ देवेण वा जाव मल्लीए ११८१३५ १९७५ दोच्चस्स वगस्स उक्खेवयो २।२।१ २११६ घण कणग जाव परिभाएउं २११४९२ १११०६१ धण जाव सावएज्जस्स १७१३४ १९१ धण जाव सावएज्जे १११६६ ११६१ धण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ १।१३।१५ १।११३३ धम्म सोच्चा जं नवरं ११५८७ १२१११०१ धम्म सोच्चा जहा णं देवाणु प्पियाणं, अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरणं जाव पव्वइया तहा गं अहं णो संचाएमि पवइए १।१४५ राय० सू० ६६५ धम्मकहा भाणियब्बा १९५७८ १६५१६३ धम्मोत्ति वा जाव विजयस्स श।७५ शरा६४ धोबसि जाव आसयसि २।१३५ २।११३४ धोवेइ जाव आसयइ २।११३८ २।११३४ धोवेइ जाव चेएइ १।१६१११९ १।१६११४ धोवेसि जाव चेएसि १११६।११५ १११६।११४ नंदीसरे अट्टाहियं करेंति जाव पडिगया १८१२२४ जंबू० वक्ष०५ नगरगिहाणि १६७ १८१५८ नगर जाव सण्णिवेसाणं आहेवच्चं जाव विहराहि श११११८ नच्चासन्ते जाव पज्जुवासइ १२१४/८५ ११६६ नट्टा य जाव दिन्न १५१३२२० नठमईए जाव अवहिए १।१७।१० १२१७१८ नरि अणुपविसह १६१६२१६ १११६१२१८ नवमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ राक्षा१,२ २।२।१,२ नवरं तस्स १७२८,२६ ११७८,२५,२६ ताइ० ११५।२६:११७४६,६,२२,२६,४२१११५।११:१।१६।५०,५४,१।१८,५१,५६ श१८१ नाइ० १३१४११८,१।१५।१६ १३२२० ओ० सू० ६८ ओ० सू० १ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ १७६ ११७६ १२।१२ १६१८१ १। ११ १।५।२० १।५।२० २१४३६ १।१४।३६ नाइ चउण्ह य कुल जाव विहराहि १७।२५ नाइ जाव आमंतेइ १।१४१५३ नाइ जाव नगरमहिलाओ १२११६ नाइ जाव परियणं १।१४।१६ नाइ जाव परियणेण शा४८ नाइ जाव परिबुडे १।१६।५० नाइ जाव संपरिवुडे १।१३।१५:१।१४।५३ नाम वा जाव परिभोग १।१६।६७ नाम जाव परिभोग १११४१३७ नासानीसासवायवोझ जाव हंसलक्खणं ११।१२८ निक्लेवओ २।४।६ निक्खेवओ अज्झयगस्स રારા निक्खेवओ चउत्थवग्गस्स २।४18 निक्खेवओ दसमवग्गस्स २११०७ निक्खेवओ पढमज्झयणस्स २०३८ निक्खेकओ बिइयवग्गस्स २।।१० निग्गंथा जाव पडिसुणेति १।१६।२३ निगंथाणं जाव विहरित्तए शश१२४ निगंथी वा १११८१६१ निग्गंयो वा जाव पव्वइए श७२७,१११०१३,१११११३,५ निग्गंथे वा जाव पव्वइए १२।७६ निग्गंथो वा १।१७।२५,३६ निग्गंथी वा जाव पंचसु २१५।१४ निग्गंथो वा २ जाव विहरिस्सइ १।५।१२६ निद्वियं जाव विज्झायं श११८४ निप्पाणे जाव जीवविप्पजढे १११८१५४ नियग० १९७६ निव्वत्तियनामधेजे जाव चाउदंते १११।१६७ निवाघायंसि जाव परिवा निसंते जाव अब्भणु ण्णाया १।१४।५० निसम्म जं नवरं महब्बलं कुमार रज्जे ठावेमि १२८८ निसीयइ जाव कुसलोदंतं १।१६।१६८ आयारचूला १५०२८ २।११४५ २।११४५ २।१२६३ २०१६६३ २।११४५ २॥१॥६३ शश२६ ११५११४ शश६८ श२।६८ १।२।६५ १।२।६८ २३६२४ ११२१७६ श११८३ ११२।३२ १श८१ ११११५६ राय० सू० ८०४ ११११०४ १८७ १११६१८७ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८।१७२ १११८१४६ १।१४।७३ १५१४१७७ १।१६।२८७ १८.१६७ १९।१६ १९१६ १११४।७३ १।१६।२८५ १३५११२७,१२८ ११५८३,८४ २१५.१,२ ११७३३ १।१६।२७६ २।२।१,२ १७२५६ १।१६।२७५ निस्संचारं जाव चिटुंति नीलुप्पल नीलुप्पल जाब असि नीलुप्पल जाय खंसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचअणगारसया बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव पंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति जहेव थावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा० पंचमवग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियब्वं पंचयण्णं जाव पूरियं पंचाण ब्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं पंडवा. पंथएणं जाव बिहरह पगइभद्दए जाव विणीए पच्चक्खाए जाव आलोइय० पच्चक्खाए जाव थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे पम्वइस्ससि पच्चप्पिणह जाव पच्च प्पिणंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पड़ागे जाव दिसोदिसिं पडिबुद्धा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तुं पडिबुद्धी० करयल. पडिलाभेमाणे जाव विहरइ पडिसुणेति जाव उवसंपज्जित्ता पढमज्झयणस्स उक्लेवओ पढमस्स उक्खेवओ पणामेत्ता जाव कुवं पण्णत्ते जाव सग्गं ११२४५-४७ ११६१३१३ ११५४१२६ ११११२०६:११६।२४ १।१६।४६ १.१३।४२ वृत्ति; ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १॥५॥१२४ ओ०सू०११६ ११।२०६ १०१२०६ १११११११ १११७७ १।२।३२ १।१६।२५२ १।१६।६५ १८१३६ १८।४७ ११५।५६ १।१६।२३ २।७।३२८1३;२०६३ २।१०।३ १।१६।२४४ १५।६० ११११२३ राय सू० ६६४ वृत्ति १११६१६२ १।८।२७ १।११३६ ११५।५२ १।५।११३ २।२।३ २।३ १।१६।२४३ ११५१५५ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।६२ १७.१५ पतिवया जाव अपासमाणी पत्तिए जाव सल्लइयपत इए पत्तिया जाव चिटुंति पत्तेयं जाव पहारेत्थ पमाएयव्वं जाव जामेव परलोए नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ परिग्गहिए जाव परिवसित्तए परिणमंति तं चेव परिणममाणा जाव ववरोति परिणामेण जाव जाईसरणे परिणामेणं जाव तयावरणिज्जाणं परितंता जाव पडिगया परिपेरतेणं जाव चिटुंति परियागए जाव पासित्ता परियाणह जाव मत्थयंसि पल्लंसि जाव विहरंति पवर जाव पडिसेहित्था पवर जाव भीए पवरविवडिय जाव पडिसेहिया पव्वए जाव सिद्धे पव्वावेद जाव उपसंपज्जित्ता पवावेइ जाव जायामायाउत्तियं पसन्थदोहला जाव विहरइ पाणाइवाएणं जाव मिच्छदसणसल्लेणं पाणाणुकायाए जाव अंतरा पाणाण कंपयाए जाव सत्ताणु कंपयाए अपामोक्खा जाव वाणियगा ० पामोक्खे जाव वाणियगे पायसंघद्राणाणि य जाव रयरेण गुंडणाणि पावयणं जाव पव्वइए पावयणं जाव से जहेयं पासाईए जाव पडिरूवे पासित्ता जाव नो वंदसि पियं जाव विविहा १।१६।१७१ ११५१३३ १११५।१४ १।८।१३१ १।१२।१७ १११५१५ १२१३१३५ १।१४:५३ १।१३।३१ १३१७।२२ ११३।१६ १६११४८ १७।२० १।१६।२५६ १।१८१४४ १।१६।२५३ १॥५॥१०४,१०५ २१११३०,३१ १११११६२ १८३३ १।६।४ १।१।१८६ १११११८२ १८८१ ११८८३ १११११८६ शरा७३ १११२१३५ ११८६ ११श६७ ११.२०६ १।१६।५६ ११७११४ १११११२ १।१६।१४६ १२१२१४८ १।२१७६ ११८।१०७ १११२१६ १।१५।११ ११।१० १३१३१६० १।४।१६ श१७१२२ ११३१५ ११११४८ ११७११६ १।८।१६५ १।१८।४२ शमा१६५ १३०८३,८४ १११११५०,१५१ १११।१५० ११११६८,६६ १११२०६ १।१२१८१ १।११८१ ११८६६ १८६६ १.१.१५३ १२१२१०१,भ०६।१५०,१५१ १११११०१ १.११८६ भ० २१५२ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११३० १।१।१६ १६५।११० १२१२२०६ श२०४० १०२११२ १११११२ वृत्ति पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ पीइमणा जाव हियया २०१०११ पीढ़ ११।११७ पुच्छणाए जाव एमहालियं १११।१५४,१५५ पुढवि जाव पाओवगमणं ११५१८३ पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्तस्स १।२१५६,६४ पुप्फ जाव मल्लालंकार श२।१४ पुफिया जाव उवसोभेमाहा श१३११६ पुरापोराणं जाव पच्चणुब्भवमाणी १२१६१६२ पुरापोराण जाव विहरइ १।१६१११३ पुश्वभवपुच्छा एवं २।११५० पोखरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ १११३११५ पोसहसाल जाव पुव्वसंगइयं १।१६।२०१-२०३ पोसहसालाए जाव विहरइ १११३।१४ फलिया जाव उवसोभेमाणा १।११।४ फासुएस णिज्जेणं जाव तेगिच्छं १२५२११४ फासुयं पीढ़ जाव विहरह ११।११३ बंधित्ता जाव रज्जू १११४१७७ बहिया जाव खणावेत्तए १११३११५ बहिया जाव विहरंति ११५।११८ वहिया जाव विहरित्तए १५।११७ बहुनायाओ एवं जहा पोट्टिला जाव उव्वलद्धे १।१६।६७ बहूई जाव पडिगयाई १११६।१८२ वहूणि गामाणि जाव गिहाई १।१६।१६६ बहहिं जाव चउत्थ विहरइ २५/३८ बहूसु जाव विहरेज्जाह शहा२० बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चप्पिणति पंडुस्स जहा १।१६।२२३,२२४ बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोगसमत्थे १।१६।३०८,३०६ बासष्ट्रिं जाव उत्तरइ १६१६१२८७ बासदि जाव उत्तिण्णा १।१६।२७ बिइयज्झयणस्स निक्लेवओ २॥१॥५५ बुज्झिहिइ जाव अतं २१३१४४ १२१६।१२ २।१।१५ रायसू० १७४ १।१६:२३७-२३६ १।११५३ १।११।२ १११११० १।५।११० १११४।७३ १११३३१५ १११११६६ १११३१६६ १।१४।४३ शमा१६१ ११८१५८ १२११६५ ११९२० श१६।२१३,२१४ ११११८४,८५ १४१६।२८५ १११६।२८५ २।१।४५ १।११२१२ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवओ जाव पवइत्तए भड० भवणवइ० तिरथयर० भविता जाव दोसवाई भविता जाय पव्वतए भविता जाय पयदस्सामो भवित्ता जाव पव्वयामो भाणिषाओ जाव महाषोसस्स भारहाओ जाब हथिणावरं भावजाय चित्ते भासासमिए जाव विहरइ भीए जाव इच्छामि भीए जाव संजाय भए भोया जाव संजायभवा भीया या भीया संजायभया भुंजावेति जा आपुच्छति ● भुतरागए जावसुभू भेसज्जेहिं जाव ते गच्छ भोगभोगाई जाव विहरद भोगभोगाई जाव विहरति भोगभोगाई जाव विहराहि विकपणा हि जाव उवर्णेति मकमज्मेणं जाव सयं मट्टियाए जब अविग्पेषं मट्टियावे जाव उपपतित्ता गणपणे तं चैव जाव पहायणिज्जे मत्ययडिए जाव पडिमाए मयूरपोगं जाव दुल्लग महार्थ० महत्वं जाव उपर्णेति महत्वं जान तित्ययराभिवेयं महत्वं जाय निक्मणाभिसेय महत्वं जाय परिच्छद २० १।१।११३ १८:२४ १२८३६ १।१४८२ १/८/२०४२।१।२७ १।१२/४० ११८१८६११६/३१० २|४|५ १।१६।२४० ११६११८ १।५।३५-३७ १।१२।३६ १११४/६९ ११६१२५, २७ १८७६ १/७२ ११८६६ १/१२/४ १।१६।२२ ११११६६ १।१६।१८३ १।१६।२०८ १।१६।२४७ १।१६/१६६ १२८१४३ ११६०४ १/१२/५ ११८१४१, ४२ १।३।२६ शाद१ १९६६४ १८२०५ ११५/६८ १।१७।१७ १।१।१०४ १२६५७ कल्पसूत्र महावीरजन्म प्रकरण ११५८० १०१।१०४ १।१।१०१ १११११०१ ठाणं० २०३५५-३६२ १।१६।२५४ १८११७ वृति ११५१२१ १११११६० १।१।१६० १८७३ १११११६० ११८/६६ १।२।१४ ११५।११० १|१|१७ ११११३२ १०१।३२ ओ० सू० ५७ १।१६।२१५ ११५/६० १६६२४ १।१२/४ १२८४१ १।३।२७ शदाब १ १८८१ १।१।११६ १।१।११६ शाद२ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ मित महत्थं जाव पाहुडं १११७११६ ११२२० महत्थं जाव पाहुडं रायारिह १११३१५ ११५२० महत्थं जाव रायाभिसेय ११श६२११६।३७ ११११११६ महब्बले जाव महया १८।१६ १॥५॥३४ मयाहय जाव विहरह २।११० राय० सू०८ महालियं जाव बंधित्ता अत्थाह जाव उदगंसि १११४१७७ १।१४।७५ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि ११११११० १।१।१०६ महिडीए जाव महासोक्खे सूय०२।२।७३ महुरालाउयं जाव नेहावागाद १११६ १।१६८ माणुस्सगाई जाव विहरइ ११५१६ १६११६७ माया इ वा जाव सुण्हा ११४१७१ सूय० २।२७ मासाणं जाव दारियं १।१६।१२४ ११२।२० माहण जाव वणीमगाण १११४१३८ आयारचूला १।१६ माहणी जाब निसिरइ ११६२४ १।१६।१४ १७।२२ ११२८१ मित्त जाव चउत्थ १७:१० १९७६ मित्त जाव बहवे १७।३० ११७२५,११ मित्त जाव संपरिवुडा ११।२० १॥२।१२ मित्त नाइ गणनायग जाव सद्धि १।२८१ शश८१ मित्तपक्खं जाव भरहो १११११८ मुडावियं जाव सयमेव १६११६१ १।१।१४६ मुंडे जाव पव्वयाहि १।१६।१४ १५१११०१ मुच्छिए जाद अज्झोववण्णे १।१६।२६ १११६२८ मेहे जाव सवणाए ।१५४ १।१।१०६ य णं जाव परमसुइभूए १।१२।२२ ११८१ रज्जइ जाव नो विप्पडिघाय. १११६६४६ १२१७४२५ रज्जं च जाव अंतेउरं १११६।२६ १।१।१६ रज्जे जाव अंतेउरे १।१४।६० १।१४।२१ रज्जे य जाव अतेउरे श८.१५१:१।१६।१८७१।१६।२६ १११११६ रज्जे य जाव वियंगेइ जाव अंगमगाइ १११४१२२ १।१४।२१ रज्जे य जाव वियत्तेइ १३१४१२२ १।१४।२१ रणो जाव तहत्ति श१६१३०३ १८५१०४ रणो वा जाव एरिसए १८.१५३ १।८।६७ रयण जाव आभागी १।१८५६ १११६१:१११८१५१ वृत्ति Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ रहमया १११६.१४७ राईसर जाव गहाई १।१४।४३ राईसर जाव विहरइ १८।१४६ रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा श१४१५६ रिउव्वेय जाव परिणिट्ठिया श८।१३६ रुट्टा जाव मिसिमिसेमाणी १२।५७ रूवेण य जाव उक्किटुसरीरा १।१६।२०० रूवेण य जाव लावण्णेण १।१६।१६० रूवेण य जाव सरीरा १६१४।११ रोयमाणा य जाव अम्मापिऊण १.१८।१३ रोयमाणि जाव नावयक्खसि १।४० रोयमाणे जाव विलवमाणे १२।३४ रोयमाणे जाव विलवमाणे १।६।४७ लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए १।१७।१३ लवण जाव ओगाहित्तए ११६६ लवण जाव ओगाहेह १५ लवणसमुद्दे जाव एडेमि शा२० लोइयाई जाव विगयसोए ११८।५७ वंदामो जाव पज्जुवासामो १११३।३८ वंदित्तए जाव पज्जवासित्तए २।१।१२ वण्णहेडं वा जाव आहारेइ १११८१४८ वण्णेणं जाव अहिए ११०१४ वण्णणं जाव फासेणं १।१२।३ वत्थ जाव पडिविसज्जेइ १२१४/१६ वत्थ जाव सम्माणेत्ता १।१६:५४ वत्थस्स जाव सुद्धेण ११५४६१ वत्थे जाव तिसं १७.३३ वयासी जाव के अन्ने आहारे जाव पव्वयामि १६१२१४५ वयासी जाव तुसिणीए १११६४१६,१७ बरतरुणी जाव सुरूवा १११३७ ववरोवेह जाव आभागी १११८१५३ वाइय जाव रवेणं १शमा२०२ वाणियगाणं जाव परियणा शक्षा६७ बाबाह वा जाव छविच्छेयं १।४।२० १८।५७ ११८०५८ १८।१४० १।१४।५६ ओ० सू०६७ ११।१६१ शमा ११८३८ ११८/१० १११८18 १४६४० १।२।२६ १।९।४० १।१७।१२ ११।४ १।६।४ ११६१६ ११९०४८ ओ० सू० ५२ रायः सू० ६ वृत्ति १।१८६१ १११००२ १११२११२ १८११६० ११७६ ११५॥६१ ११७६ ११५१० १३१६१४,१५ १११११३४ श१८५२ १.११११८ शक्षा६६ १।४।११ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणाए जाव धम्माणओगचिताए १३१२१८६ वाराओ तं चेव जाव नियघरं १६।४ वावीस य जाव विहरेज्जाह १९२० वासाई जाव दति १।२।१२ वासुदेवपामोक्खे जाव उवागए २१६६१७७ वासुदेवे धणुं परामुसइ वेढो १।१६।२५८ वासे जाव असीइंच सयसहस्सा दल इत्तए शक्षा१६४ विउला पगाढा जाव दुरहियासा १।१६।४० विगोवइत्ता जाव पब्वइए १।१६।२६ विजया जाव अवक्कमामो १।२।४७ विणिम्मुयमाणी २ एवं श५।३३ वेज्जा य जाव कुसलपुत्ता १।१३१३० सई वा जाव अलभमाणा १९२२,२४ सई वा जाव जेणेव १।६।२३ संकामेत्ता जाव महत्थं पाहुडं शा८४ संकिए जाव कलुससमावणे १३।२४ संगयगयहसिय० ११३१८ संचाएइ जाव वित्तिए संचाएंति० करेत्तए ताहे दोच्चं पि अवक्कमति २४।१४,१५ संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ १८८२ संता जाव भावा १२१२१३२ संताणं जाव सब्भूयाणं १।१२।२६ संते जाव निविणे १८७६ संते जाव भावे १।१२।२६ संपरिबुडे एवं जाव विहरइ १०८।१४७ संभग्गं जाव पासित्ता १।१६।२६३ संभग्गं जाव सण्णिवइया १३१६१२७८ संभागं तोरण जाव पासह १।१६।२७८ संसारभउविम्गा जाव पब्वइत्तए १.१४१५३ संसारभउब्विग्गे जाव पव्वयामि १३५१ सकोरेट जाव सेयवर० शपा५७ सकोरेंटमल्लदाम जाव सेयवरचामराहि महया १८११६१ सकोरेंट सेयचामर हयगयरहमहयाभडचडगरेण जाव परिक्खित्ता १।१६।१५३ १।१।१५३ १२३४ १९२० १।२।१२ १२१६१७६ वृत्ति ११८१६४ १११११६२ ओ० सू० ५२ ११२।४४ १।१।१४८ १।१३।२४ १।६।२१ १६२१ ११८८१ ११३।२१ १११११३४ ११५११७ ११४:११,१२ १८८१ १।१२।३१ १।१२।१६ १२४।१२ १।१२।१६ १२१६११७८ १२१६।२६२ १११६१२६२ १२१६।२६२ १११११४५ १११११४५ ११८५७ १८५७ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ १।१६।१५७ ११२५ शक्षा२०३ १०६४ १११५११६ १३१६२४८ ११६:१३४२१८३५ श१६२५१ १।१६।२३६ ११३७ १०८१५७ १॥श२४ ११८७६ १४११५६ २३१२४ ११।३२ शरा३२ १।२।३२ १४२०३२ शहा३६ ११८७३ श८७७ सकोरेंट हयगय सक्का जाव नन्नस्थ सखिखिणियाई जाव वत्थाई सगज्जिया जाव पाउससिरी सज्जइ जाव अणु परियट्टिस्सइ सण्णद्ध० सण्णद्ध जाव गहिया सण्णद्ध जाद पहरणा सण्णद्धबद्ध जाव गहियाउह० सत्तट्ठ जाव उप्पयइ सत्तटुतलाई जाव अरहन्नगं सत्तमस्स वग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि सत्तुस्सेहे जाव अज्जसुहम्मस्स सत्थवज्झा जाव कालमासे सद्द जाव गंधाणं सहफरिसरसरूवगंधे जाव भुजमाणे सदहति जाव रोएंति सद्दावेइ जाव जेणेव सद्दावेइ जाव तं सद्दावेइ जाव तहेव पहारेत्थ सद्दावेइ जाव पहारेत्थ सद्दावेह जाव सद्दावेंति सद्देणं जाव अम्हे समणस्स जाव पवइत्तए समणस्स जाव पव्वइस्ससि समणाउसो जाव पंच समणाउसो जाव पव्वइए समणाउसो जाव माणुस्सए समणाणं जाव पमत्ताणं समणाणं जाव वीईवइस्सइ समणाणं जाव सावियाण समणाण य जाव परिवेसिज्जइ समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० २१७११,२ २।२।१,२ ११११६ ओ० सू० ८२ १।१६।३१ १।१६३१ ४१११७२ १।१७।२२ ११५४९ ओ० सू० १५ १११११०१ १८१६६,१०० १।८।६२,६३ १७४१० ११७१६,७,६ ११८११२,११३ १८६६,१०० १८११५५,१५६ ११८।६६,१०० ११११३६ १११११३८ श३।१६ २३११८ ११।१०७ १११११०४ १।११०८,११२ १।११०६ ११७२७ १।१०।५१।१८४८,१११६।४२,४७ १।३।२४ शा५३ शहा४४ १११११८ ११५।११७ १।३३४ १।२१७६ १४१७१३६ ११२१७६ ११।२०० १८१६६,१६७ २१६।१४० ओ० सू० ६३ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ १२१५६ शरा१७ १.१६११६७,१६८ ११।४ '१११२२ ११११२२ १।१४।१६ १६१६१४६ ११८४१ १११११०८ १।१६।२३ १.१६१४५-१४७ ओ० सू० ६७ १११११५ समाणा जाव चिटुंति १२१५१० समाणी जाव विहरित्तए ११२११७ समोवइए जाव निसीइत्ता २११६१२२७,२२८ समोसरणं ११५८५ सम्मज्जिवलितं जाव सुगंधवरगंधियं २११३३ सम्मज्जिवलितं सुगंध जाव कलियं १॥३॥ सम्माणइ जाव पडिविसज्जेइ १२१६।३०० सयमेव० आयार जाव धम्ममाइक्खइ १२१११५० सरिसगं जाव गुणोववेयं शपा१२० सरिसियाओ जाव समणस्स पब्वइस्ससि १६१६१०६ सम्वओ जाव करेमाणा १।१६।२३ सव्वं तं चेव आभरणं १।५।३०-३२ सव्वज्जुईए जाव निग्धोसनाइयरवेणं सव्वट्ठाणेसु जाव रज्जधुराचिंतए १३१४१५६ सहइ जाव अहियासेइ १११११३ सहजायया जाव समेच्चा १११०,११ सहियाणं जाव पुवरत्ता ११५१११८ साइमं जाव परिभाएमाणी १.१६९३ सामदंड० १८.४५,१११४१४ सालइएणं जाव नेहावगाढेणं १।१६।२५,२६ सालइयं जाव आहारेसि सालइयं जाव गोवेइ . १।१६८ सालइयं जाव नेहावगाढं २१६:१६,१९,२० सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स १।१६।२२ सालइयस्स जाव एगंमि १।१६।१६ साहरह जाव ओलयंति ११८६२ सिंमारा जाव कुसला १११।१३६ सिंगारागारचारूवेसाओ जाव कुसलाओ १।१११३५ सिंघाडग० ११५:५३ सिंघाडग जाव पहेसु १४३३३१११३१२६११६१५३;१।१८।१६ सिंघाडग जाव बहुजणो ११७४११शा२००१११३१२६ सिंघाडग जाव महया सिक्खावइए जाव पडिवण्ण ११३१३६ सिज्झिहिइ जाव मंतं १.१५।२१ १।३१७ ११६।१२ १११६८ १११६८ १।१६।८ १।१६।१६ ११८४८ १११११३४ १११११३४ १।११३३ ११५१५३ ओ० सू० ५२ उवा० १४५ १११।२१२ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिहिर जान सय्यदुक्खाण० सिद्धे जाव पहीणे सीलव्वय जाव न परिव्वयसि सीलव्व तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए सीनाय जाव रवेयं सीनाय जाव समुद्दवभूयं सुई वा० सुई वा जाव अलभमाणे सुई वा जाय लभामि सुई वा जाव उवलद्धा सुकुमालपाणिपाए जाव सुवे सुभवताए सुमिणपाढपुच्छा जाव विहरद सुमिणा जाव जो २ अणुवृति सुरं च जाव पसन्नं सुरट्ठाजवए जान हिर सुरूवा जाव वामहत्येणं सूमालं निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं सूमालिया जान गए से घम्मे अभिरुण तए णं देवा इत्तए सेयवर हयगय महया भडचडगरपहकरेणं सेसं जहा सागरस्स जाव सर्याणिज्जाओ सोणियासवम्स जाव अवस्स० सोणियासवस्स जाव विद्वंसणधम्मस्स हुए जाव पडिसेहिए जाव हिया हट्ठ जाव पच्चपिणंति हट्ठतुटु जाव मत्थए हटुटुटु जाव हियए हत्याओ जाव परिनिज्जाज्जासि हस्थिबंध जाव परिवुडे हत्वि संपवरगए जाय सेयवरचामराहि हत्थिणाउरे जाव सरीरा हत्थी जाव छुहाए २६ १।१६४६ १५८४ १२८/७४ ११८४७७७८ शा६७ १११८३५ १२६।३७ १।१६।२१५ १।१६।२२१ १११६/२२६ १।५।८ १।१५।१३ १२८१२९ १।१।३१ १०१८३३ १।१६।३१६ १।१६.१६३ १।१६।३०५,३०६ १।१६।८७ १।१२।१३ १।१६।२३७ १।१६।८१-८६ १११५६१ १११६४६ १।१६।२५७ २१२०, २१, २४, २५ १।१।२३ १९४१३ १।१।२० : १।१६।१३५ ११७१६ १।१६ १४९ १८१६३ १।१६।२०३ १।१।१८५ १।११२१२ ठाणं १२४६ १/८/७४ ११८ ७४, ७५ ओ०सू० ५२ १८६७ ११२/२६ १।१६।२१२ १।१६।२१२ १।१६।२१२ ओ ०० १४३ १।१५।११ १।१।३२ PIPIRE १।१६०१४६ १।१६।३१८ वृत्ति १।१६३३,३४ १।१६।६२ १११।१०४ १८५७ १।१६। ५६-६१ १|१|१०६ १|१|१०८ ११८१६५ १|१|१६ १।१।१६,२२ १११।२६ ११११६ १२७१६ १।१६।१४६ १८५७ १११६/२०० १।१।१५७ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिबुडे हयगय० हयगय जाव पच्चप्पिणंति हयगय जाव परिवुडा हयगय जाव रवेणं हयगय जाव हथिणाउराओ हयगय संपरिवुडे हयगया जाव अप्पेगड्या ह्य जाव सेणं यमहिय जाव नो पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहिए हयमयि जाव पडिसे हित्ता हयमहिय जाव पडिसे हिया हयमयि जाव पडिसे हेइ हयमहिय जाव पडिसे हेति हरिसवस० हियए जाव पडिसुणेइ हियाए जाव आणुगामियताए हिरण्यं जाव वइर हिरण्णागरे य जाव बहवे हीलणिज्जे होलणिज्जे संसारो भाणियव्वो हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए हीलेंति जाव परिभवति होत्था जाव सेणियस्स रण्णो इट्टा जाव विहरइ १११११६८ १५१११५८ ११६।२४८ १११६११३६ १११६१५६ १।११६६ १।१६।३०३ १११६।१७४ ११६१३८ श८१६२ १।१६।२८५ श८१६६,१११६१२५६ १११६१२८६ ११८१४२ १४१८१२४ १।१८।४१ १११।१६१ १११।१२६ १।१३।३८ १११७११६ १११७११८ १४।१८ ११।१२५ १।१६।११८ १३१६।११७ १११११५७ १११११५७ १।८।५७ ओ०सू० ५६ ११८५७ १।११६७ ११८५७ १८५७ ११।१५ शा५७ १८।१६५ १८।१६५ १८.१६५ ११८।१६५ १।८।१६५ १८।१६५ वृत्ति ओ०सू० ५६ ओ०सू० ५२ १११७:१६ १।१७।१४ १३।२४ १।३।२४ १।६।११७ ११३।२४ १११११७ उवासगदसाओ अंतलिक्खपडिवणे एवं वयासी अंतियं जाव असि ७१७ ५।२,२१ ७।१० ३३२०,२१ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ७१२६ २१२२ ११६६ ६।२८ ६.२८ २१३,४ ११११-१३ ओ०सू० १४१ ३।४२ ३२४२ ६१२० ना० १।१।१६६ ११६५ अम्गिमित्ताए वा जाव विहाइ अज्ज जाव ववरोविज्जसि ३।४४ अज्भवसाणे जाव खओवसमेणं ८.३७ अट्टेहि य जाव वागरणेहि ७१४८ अट्टेहि य जाव निप्पट्ट ६.२८ अड़ढे चत्तारि ६।३,४;१०१३,४ अड्ढे जहा आणंदो नवरं अट्ठहिरण को. डीओ सकसाओ निहाणपउत्ताओ अहि वड्डि अहि ससाओ पवि अद्रवया दस गो साहस्सिएग वएणं अड्ढे जाव अपरिभूए १।११ अणारिए जहा चुलणोपिया तहा चितेइ जाव कणीयसं जाव आइंचइ ५.४२ अणारिए जाव समाचरति ३।४४,४१४२ अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ६२१,२२,२३,७१२३,२४ अण्णदा कदाइ बह्यिा जाव विहर इ १९५४ अपच्छिम जाव अणवखमाणे ११७२ अपच्छिम जाव भत्तपाण ८।४६ अपच्छिम जाव झूसियस्स ८।४६ अपच्छिम जाव वागरित्तए ८.४६ अब्भणुण्णाए तं चेव सब्बं कहेइ जाव ११७६ अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे ११५५ अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ८.१६ अभिगयजीवेजीणं जाव अणइक्कमणिज्जेणं ११३१ अभीए जाब विहरइ २१२६,३५; ३१२२ अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं ।२४ अभीयं जाव पासई २।४०,३१२३ अभीयं जाव विहरमाणं २।२८,३० अवहरइ वा जाव परिवेइ अस्मिणी भारिया । सामी सामासढे जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ । सामी बहिया विहरइ ६।५-१५ असोगवणिया जाव विहरसि ७१७ अहीण जाव सुरूवा ११४ अहीण जाव सुरूवाओ ८६ ८।४६ १७१-७८ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ २।२३ २१२३ २।२४ २।२४ ७२५ २१५-१५ ७८ ओ० सू० १५ ओ० सू० १५ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ س आओसेसि वा जाव ववरोवेसि ७.२६ ७२५ आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, २ ता जहा आणंदो जाव समणस्स २०१६ आलोइज्जइ जाव तवोकम्म ११७८ ठा० ३१३४८ आलोइज्जइ जाव पडिवज्जिज्जइ ११७८ वृत्ति अ०३ आलोएइ जाव जहारिहं ८५० वृति अ० ३ आलोएइ जाव पडिवज्जइ ३१४६ वृत्ति अ० ३ आलोएयब्वं जाव पडिवज्जेयव्वं ११८० वृत्ति अ० ३ आलोएह जाव पडिवज्जेह १७८ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव अहारिहं ८/४६ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव तवोकम्म ११७७ वत्ति अ०३ आलोएहि नाव पडिवज्जाहि १३१८,३।४५८४६ वत्ति अ०३ इ? जाव पंचविहे १।१४ ओ० सू० १५ इड्डी जाव अभिस मण्णागए २२४० २४० इमेणं जाव धमणिसंतए १२६५ ११६४ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ३४२ ११७३ उक्खेवो ३११४।१५।१६।१७।१८।१९।११०११ २१ उज्जलं जाव अहियासेइ २।३३,३९,३१२६ उज्जलं जाव अहियासेमि ३१४४ उज्जलं जाव दुरहियामं २।२७ उहाणे इ वा जाव अणियता ६२१,२३ उठाणे इ वा जाब नियता ६।२१,२३,७।२६ ६।२० उदाणे इ वा जाव परक्कम ६।२०,२३;७।२६ उढाणे इ वा जाव परिसक्कार० ७.२४ ६।२० उहाणणं जाव परक्कमेणं ६।२३ ६।२० उदाणेणं जाव पूरिसक्कारपरक्कमेणं ६॥२१७२३ ६२० उद्धाविए जहा चुलणी पिया तहेव सव्वं भाणियब्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहल सुणित्ता भणइ । सेसं जहा चलणीपिया बत्तन्वया सव्वा नवरं अरुणच्चा विमाणे उबवातो जाव महाविदेहे ३१४२-५२ उद्धाविए जहा सुरादेवो। तहेव भारिया पुच्छइ, तहेव कहेइ । सेसं जहा चलणीपियस्स जाव सोहम्मे ५।४२-५२ ३१४२-५२ वृत्ति वृत्ति ६१२० ६२० ७७५-८८ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ७।११,१८ ७/१० ८२७ ८.१८ ३१५०-५२ पा३५ पा१६ ८.१८ २१५३-५५ ११६४ ११६२ ६।३५.४१ २१५०-५६ ३१२७-३८ ३१४४ १९६६,८१३७ उप्पण्णणाणदसणधरे जाव तच्चकम्मसंपया उप्पण्णनाणदसणधरे जाव महियपूइए जाव तच्च० उरालाइं जाव भुंजमाणे उरालाइं जाव विहरित्तए उरालेणं जहा कामदेवे जाव सोहम्मे उरालेणं जाब किसे उरालेणं तवोकम्मेणं जहा आणंदो तहेव अपच्छिम० एक्कारसमजाव आराहेइ एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अंत काहिइ एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव आईचइ । अहं तं उज्जलं जाद अहियासेमि एवं दक्षिणेणं पच्चत्थिमेणं च एवं देवो दोच्चं पि तच्चं पि भणइ जाव ववरोविज्जसि एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्कक्के पंच सोल्लया ! तहेव करेइ, जहा चुलणीपियस्स, नवरं एक्केके पंच सोल्लया एवं वण्णगरहिया तिग्णि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ कज्जेसु य आघुच्छउ कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्टपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपणत्ति करएहि य जाव उट्टियाहि करगा य जाव उट्टियाओ करेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भद्दा भणइ । एवं सेसं जहा चुलणीपियस्स निरवसेस जाव सोहम्मे कल्लं जाव' जलते ४।४१ ४।३६ ४/२२-३८ ३।२२-३८ २।४५ ८।४२ १६५६ २।२४-४० रा० सू० ७६५ १११३ २।१८,१६ ওও ७७ ७।२२ ४।४५-५२ १५७,७११२ ३१४५.५२ ओ० सू० २२ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४५ १६५७ २१२२ २।२२,२३ २३०,३१ २।३-६ ४.३६ १२११-१४ वृत्ति २।३.६ ८.१८ कल्लं विउलं कामदेवा जाव जीवियाओ कामदेवा तहेव जाव सो वि बिहरइ कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिया । छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वभिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्व्या दसगोसाहम्सिएणं वएणं कासे जाव कोढे कुंडकोलिए गाहावई । पूसा भारिया छ हिरण कोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वडिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं कुडुंब जाव इमेयारूवे कुडुबस्स जाव आधारे केगटेणं एवं कोडुबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणति गिहाओ जाव सोणिएण गिहाओ तहेव जाव आइंचइ गिहाओ तहेव जाव कणीय जाव आईचइ गिहिणो जाव समुप्पज्जइ गुण जाव भावेमाणस्स गुरु जाव ववरोविज्जसि घाएत्ता जहा कयं तपा विचितेइ जाव गायं घाएता जहा जेठ्ठपुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं कणीयंसि पि जाव अहियासेइ चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेसं तहेव जाव सिज्झिहिति चुल्लसया गाहावई अड्ढे जाव छ हिरणकोडीओ जाव छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । बहुला भारिया चेइए जहा संखे जाव पज्जुबासइ जहा आणंदो तहा निग्गच्छइ तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ जाए जाव विहरइ ७१४६ ७.३४ ३१४२ ३।४२ ৮s ११४८ ३१४२ ३२४२ ३१४२ ११७६ २०१८ ३१४१ ३१२१ १७६,७७ ६१८ २४४ ३।४२ ३।२७-३८ ३२२१-२६ ५५२ २।५५,५६ ४।३-६ भ० १२११ २।४३ ८।१०-१५ है।१६,१७ १११६-२४ २११६,१७ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाया जाव पहिलामाथी जाव पज्जुवास जुगवं जाव निउणसिप्पोवगए जेल जाव कणीयसं जान आईच ठावेता जाव विहरित ए । संसद जाव पज्जुवास णमंसित्ता जाव पज्जुवास पाइरे जाव पंढलियडा हाए जाव अप्पमहग्वा० हाए जाव पायच्छित्ते हाए सुद्धप्यावेस अप्प० पहावा जाव पार्याच्छता तं मित्त जाव विउलेणं पुप्फ ५ सक्कारेइ सम्माणे २ ला तमेव मित्त जान पुरओ तच्च पितहेब भगद जाव वयरोबिज्जसि तत्थ णं वाणारसीए चुलणीपिया नाम गाहावई परिवसई अड्डे सामा भारिया अट्ठ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ अ वडि० अट्ठपवित्थरप० । अट्ठ नया सगोसाहस्सिएवं वएणं जहा आनंदो ईसर जान सब्बज्जवालए यानि होत्या तब जाव कणीय तितो जाय बंद तीसे य जाव धम्म हा सम्मत्ता तुमं जाव ववरोविज्जसि दुहट्ट जाव वक्रोविज्ज सि देवराया जाव सवकसि देवानुप्पिए समणे भगवं महावोरे जाव समोस देवाविया जाव महागोवे धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं धम्मायरियस जाव महावीरस्स नाममुर्गे च तव जाव परिगए . ३२ १५६ ७१४ ७/५० ४/४२ ११५७ १/२ ७। १५ ७।३५ १।५७ ७। १५ ११२० ७३५ ११५७ ५२४१ ३।३-६ ३।४५ ७३४ २०४४ ३।४४ ७७५ २२४० ७।३१ ७१४६ ७५० ७५१ ६।२८ १.५५ १।१६ राय० सू० १२ २।४२ १.५७ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ १.२० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० १.५७ ५.४० २।३-६ ३२४४ १/२० २।११ २२२ २२२ वृत्ति ११४५ ७४४ ७१५० ७ ५० ६:२०-२४ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८५ वृत्ति ३१२१-३७ ३।२१-३८ २।२२ २।२२ ११६६ श६२,६३ निक्खेवो २।५७,३१५३:४।५३,५१५४% ६१४१७८६८।५४६२७ निक्खेवो पढमस्स १८५ नोमि एवं जहा चुलणीपिय, नवरं एक्केके सत्त मंसमोल्लया जाव कणीयसं जाव आइंचामि श२१-३७ नीलुप्पल एवं जहा चुलणीपियस्स तहेव देवो उवसरगं करेइ जाव कणीयसं घाएइ, २त्ता जाव आइंचइ ७।५७-७३ नीलुप्पल जाव असि २१४५,३।२१,४४,४२१ नीलुप्पल जाव असिणा रा२२,२६ पंचजोयणसयाई जाव लोलुयच्चुयं १९७६ पढम अहामुत्तं जाव एक्कारस वि .३३,३४ पढम उवासगपडिमं अहासुतं ४ जहा आणंदो जाद एक्कारस वि ३३४८,४६ पाउणित्ता जाव सोहम्मे १३५३ पाडिहारिएण जाव उवनिमंतिस्सामि ७.११ पावयणं जाव ज हेयं ७।३७ पीढ जाव ओगिरिहत्ता ७५२ पीढ़ जाव संधारएणं ७१५१ पीढ जाव संथारयं ७११८ पीढ-फलग जाव उवनिमतेत्तए ७११८ पुण्णे कयत्थे कयलक्खणे सलद्धे २०४० पुत्तं जाव आइंचइ ७७८ पुरिसे तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया धन्ना वि पडिभाइ जाव कणीयसं ४।४४ पुवरत्ता जाव धम्मजागरियं ११६५ पुन्वरतावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स ७.५४ पोसहिए. फग्गुणी भारिया। सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव मिहिधम्म पडिवज्ज इ जहा कामदेवो तहा जेपत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए। समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपति उवसंपज्जित्ताणं श६२-६३ ११८४ ११४५ श२३ १।४५ २४५ ११४५ ११४५ २१४० ३१४२ ३.४४ ११५७ २०१८ ना० ११११५३ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१५-२५ ७.१६ २।४० ३।१६ २१५५ १४५७ २।५-१६,५०-५५ ११४५ १९४५ १९६० १२६० ११८४ १६५७ २०१८ १२३ ७/७५ सू० ५२ वृत्ति ८२७ ८।२७ विहरइ । नवरं निरुवसगो एक्कारस्स वि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियवाओ एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे फलग जाव ओगिण्हित्ता फलग जाव संथारयं बंभयारी जाव दब्भसंथारोवगए बंभयारी समणस्स बहूहिं जाव भावेत्ता बहूणं राईसर जहा चितिथं जाव विहरित्तए बहूहिं जाव भावेमाणस्स भवित्ता जाव अहं भारिया जाव सम० भोगा जाव पव्वइया मंसमुच्छिया जाव अज्झोबवण्णा मत्ता जाव उत्तरिज्जयं मत्ता जाव विकमाणी महइ जाव धम्मकहा समत्ता महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव समोसरिए महासतयं तहेव भणइ जाव दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो तहेव मारणंतिय जाव कालं मित्त जाव जेट्टपुत्तं मित्त जाव पुरओ मुंडे जाव पव्वइत्तए मोहुम्माय जाव एवं वयासी तहेव जाव दोच्चं पि राईसर जाव सत्थवाहाणं राईसर जाव सयस्स लढे जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ ! धम्मकहा । वदणिज्जे जाव पन्जुवास गिज्जे वंदामि जाव पज्जुवासामि ७।३७ ७७८ ७१३७ का२० ८।३८ ८।४६ ७१६ २।४२ २।४३,७:१५ १११७७११२ २।११ १।१७ श२० ओ० सू०१६-२२ ८.३८-४० ८।२७-२६ ११५७ श५७ ११५७ ओ० सू० ५२ ११२३,५३ ८१४६ बा२७-२६ ११२३ १११३ ११५७ २१४३,४४ ६।२६,२७ ७१० ७११५ ओ० सू०२ ओ० सू० ५२ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदाहि जाव पज्जुवासाहि वंदितामि जाव पज्जुवासिस्सामि वंदेज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि व्यासी जाव उववज्जि हिसि वाताहतं वा जाव परिवेइ विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे विहरइ । तर गं बीताई तव पुत्तं ठवे धम्मपत्ति । वीसं वासाई परियागं नाणस अरुणगवे विमाणे उववाओ महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ वीइक्कता एवं तव जेट्ठपुत्तं ठवेइ जाय पोसहसालार धम्मपणति संचाएइ जाव सनियं संताणं जाव भावाणं संतेहि जाव वागरित्तए संतेहि जाव वागरिया सखिखनियाई जाव परिहिए सहामि णं जाव से जहेयं सद्दालपुत्ता तं चैव सव्वं जाव पज्जुवासिस्सामि समएणं अज्जसुहम्मे समोसरिए जाव जंबू पज्जुवासमा समणे जाव विहरइ तं महाफलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि समणोवास जाव अहियासेड समणोवास जाव विहरइ समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया समणोवासया ! तं चैव भणइ समणोवासया ! तं चेव भणइ सो जाव विहरइ समणोवासया ! तहेव जाव गायं आइंचइ ३५ ११४५ ७१३१ ७१११ ७|१० ८४६ ७१२६ ७२४७,४६ २१५१-५४ ६१८-२६ ८२५, २६ २/३४ १२७८ ८।४६ ४ ७ १० १/२३ ७ १७ ११३-५ १।२० ५। ३८ ४ ४०,५३८ जाव न भंजेसि समणोवासया ! जहा कामदेवो जाव न भंजेसि ३१२१ समणोवासया ! जाव न भंजेसि ३।४४७।७५ २/३४,५१२१,३६ ७७७ ३२३, २४ ३०४४ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ ८।४१ ७/२५ ७१४६ १/६२-६५ २११८, १९, ५०-५६ २१८, १६ २२८ १७८ ८ ।४६ ८४६ २४० रा० सू० ६८६; ओ० सू० ८२,८३ ओ० सू० ५२ २।२७ ३/२२ रा० सू० ६६५ ७ १०, ११ २/२२ २/२२ २२२ ७७४ ३२१,२२ ३।२३-२५ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३६ २०२२ ७७८ ३.४२ श१७-२३,५४-६० वृत्ति २।२७ २२७ भ० ३१०२ २१७-१६ समणोवासया ! तहेव जाव ववरोविज्जसि ३६४१ समणोवासया ! तहेव भणइ जाव न भंजेसि ॥२८ समुप्पज्जित्था एवं जहा चुलणीपिया तहेव चितेइ समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव सावयधम्म पडिबज्जइ । साचेव वत्तव्बया जाव जेट्टपुत्तं २१७-१६ सहइ जाव अहियासेइ २।२७ सहति जाव अहियाति २०४६ सहितए जाव अहिया सित्तए २०४६ साइमं जहा पुरणो जाव जेट्टपुत्तं - १५७ सामी समोसढे । चुलणी पिया वि जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ। गोयम पुच्छा । तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाए ३१७-१६ सामी समोसहे जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्ति ५॥७-१६ सामी समोसढे जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जद्द । सा सव्वेव वत्तब्बया जाव पडिलाभेमाणी विहरइ ६१७-१७ साहस्सीण जाव अधणेसि २१४० सिंघाडग जाव पहेम ५१३६ सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए ५१४२ सीलब्बय-गुणेहिं जाव भावेत्ता ८.५३ सील जाव भावमाणस्स सीलव्वय जाव भावेमाणस्स बा२५ सीलाई जाव न भंजेसि ४।२१ सीलाई जाव पोसहोववासाई २०२२ सीलाई वयाई न छई सि तो जीवियाओ रा२४ सुक्के जाव किसे ११६४ सुद्धप्पावेसाईजाव अप्पमहरघा ७.१५,३५ सुरादेवे गाहावइ अड्ढे छ हिरण्णकोडोओ जाव छ व्वया दस गोसाहस्सिएणं वएण २१७-१६ २१७-१७ वृत्ति ओ० सू० ५२ ५०३६ ११८४ ११५७ ११५७ ७१५४ २१२२ २।२२ २।२२ भ० २०६४ ११४६ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३-१६ १।११-१४:२१७-१६ २।३६,३७ २३४,३५ तस्स धन्नाभारिया । सामी समोसढो जहा आणंदो तहेव पडि बज्जइ गिहिधम्म जहा कामदेवो जाव समणस्स सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ हंभो ! तं चेव भणइ सो वि तहेव जाव अणाढायमाणे हट्टतुट्ठ जाब एवं वयासी हट्ठत? जाब गिहिधम्म हट्टतुट्ट जाव समण हट्टतुट्ठ जाव हियए हट्टतुट्ठ जाव हियए जहा आणदो तहा गिहिधम्म पडि दज्जइ, नवरं एगाहिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगाहिरण्णकोडी वडिपउत्ता एगाहिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं हट्टतुट्ठा कोडुबियपुरिसे सहावेइ, २ सा एवं बयासी खिप्पामेव लहकरण जाव पज्जुवासइ पा२६,३० ११२३ ११५१,५२ २।४८ १७४८१४८ ८।२७,२८ ओ० सू० ८० ११२३,२४ ११२३ १२३ ११२३,२४ ११४६-४६ हट्टतुट्टा समणं हणेसि वा जाव अकाले हारविराइयवच्छ जाव दसदिसाओ हेऊहि य जाव वागरणेहि ७३७ ७।२६ २१४० ओ० सू० ८० भ० ६१४१-१४३; उवा०७।३३ ११५१ ७।२५ ओ० सू०४७ ६।२८ ७.५० अंतगडदसाओ अंतिए जाव पव्वइत्तए अज्जा जाब इच्छामि अणगारे जाए जाव विहरइ ८२० ६५२ ३१२० ८७ ना० १।५३५ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६२ ३१२३ ३१८६ ३।१०२ ३१७४ ५।११ ८८ ६१६५ १११६ ३।१०१ १।१४ ३११०१ १११४ ६७६ ६५५५ ३१२६,३० अणुत्तरे जाव केवल अतुरियं जाव अडंति अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए अरहओ मुंडे जाव पव्वाहि अरिटुनेमिस्स जाव पन्वइत्तए अहासुत्तं जाव आराहिया आघवणाहि० आपुच्छामि देवाणुप्पियाणं आसुरुत्ते जाव सिद्धे आहेवच्चं जाव विहरइ इच्छामि णं जाव उवसंपज्जित्ता ईसर जाव सत्थवाहाणं उच्च जाव अडई उच्च जाव अडमाणं उच्च जाव अडमाणा उच्च जाव अडमाणे उच्च जाव अडामो उच्च जाव पडिलाभेइ उज्जाणे जाव पज्जुवासइ उज्जला जाव दुरहियासा उत्तर उम्मुक्क जाव अणुप्पत्ते उरालेणं जाव धमणिसंतया उवागए जाव पडिदंसेइ उवागच्छित्ता जाव बंद ओहय जाव झियाइ ओहय जाव झियायइ करयल करेइ जहा गोयमसामी जाव अडइ काएणं जाव दो वि पाए कामा खेलासवा जाव विप्पजहियव्वा कुमारस्स चउत्थ जाव अप्पाणं वृत्ति भ०२।१०८ उवा०२१२२ ३१८६ ३.७० ३७६ ठा० ७११३ नाभ ११११११४ ना०श८७ ३८६-६२ ना० १शश६ ३१८७,८८ ना० ११५६ भ० २।१०८ भ०२।१०६ ३१२४ २१२४ ३१२३ ३१२४,२५ ना० १११६६ ना० १११।१६२ २२६ ना० ११०२० भ० २०६४ ६६५७ ६८० ३१२८,२६ ३.६१ ३३९० ६।५२ ३१५० ८।१३ ६८७ ३१६८ ५।१७ ३२४३ ५।२२,६१३५,४१ ६५४ ३२८८ ३१७६ १११६ દાદ ३४३ ना० ११॥३४ ना० १११।२६ भ० २।१०७,१०८ वृत्ति ना० १११११०६ रायः सू० ६८ ५३१ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ८.३३ ११२१ ४७ ३२२१ ३२१७ ६।१,२ ५॥३१ ५।३१ १।२५ ३२० .३।३ ८.१७,१८ १।५,६ १७ ७।१,२ ३११ ८.१६ २११,२ ११५,६ ११५ ११७ १५,६ चउत्थ जाव भावेमाणी चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थस्स वग्गरस निक्खेवग्रो छटुंछट्टेणं जाव विहरंति जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स जइ छुट्टस्स उक्खेवओ नवरं सोलस जइ णं भंते अट्ठमस्स बगस्स उक्खेवओ जाव दस जइ णं भंते तेरस जइ णं भंते सत्तमस्स वगस्स उक्खेवओ जाव तेरस जइ तच्चस्स उक्खेवओ जइ दस जइ दोच्चस्स वगस्स उक्खेवओ जहा अभओ नवरं हरिणेगमेसिस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हइ जाव अंजलि जहा गोयम सामी तहा पडिदसे इ जहा गोयमो जाव इच्छामो जावज्जीवाए जाव विहरइ जाव सलेहणाकालं पहाए जाव विभूसिए व्हाया जाव पायच्छित्ता तं महा जहा गोयमे तहा तीसे य धम्मकहा तीसे य धम्मकहा देहं जाव किलंत धारिणी सीहं सुमिणे नमसामि जाव पज्जुवासामि नयरीए जाव अडित्तए नवमस्स उक्खेवओ निगया जाव पडिगया निक्खमणं जहा महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजभइ ३।४७-४६ ६५७ ३।२२ ८.३६ ३४४ ना०१।१२५३-५८ भ० २।११० भ० २।१०७ ६।५३ ८.१५ ओ० सू०७० ओ० सू० २० १११९,२० राय० सू० ६६३ ना० १११।१०० वृत्ति ३११३ ३१६२ ६१५०,८८ ३१६५ ३।११६ ३१२२ ३१११२ ओ० सू० ५२ भ० २११०७ ३३३ ना० १।१६५ ३१७८-८५ भ०११४१६८,ना०१११११५-१५१ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेरश्य जाय उबवजंति पउमावईए य धम्मकहा पवावेद जाव संजमियन्वं पारेइ जाव आराहिया पावणं जाव अभुमि पुरिसं पाससि जाव अणुपने सिए पोरिसीए जाव अडमाणा बहुवाह अणु लोमाहि जान आप वित्तए बारवईए उच्च जाव पडिविसज्जेइ भगवं जाव समोस विहरद भूतं जाव पब्वइस्संति भूतं वा जाव पव्दस्संति मालागारे जाव पाएमाणे मासिमाए संलेहणाए बारस वासाई परियाए जाव सिद्धे मुडा जाव पव्वइया मुंडा जाब पब्वयामि मुंडे जाव पव्वइए मुंडे जब पवत्तए मुंडे जाव पव्वइस्सर रज्जे व जाव अंतेउरे रुवेणं जाव लावण्णेणं लहूकरणजाणपवरं जाव उबदुति विष्णवणाहिं जाव परूवेत्तए संजमेणं जाव भावेमाणे संलेहणा जाव विहरितए संलेहणाए जाव सिद्धे समणेणं जाव छस्स समाणा जाव अहासुहं समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाव विहरइ सरिया जाव नलकुबरसमाणा सरिसियाणं जाव बत्तीसाए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा ४० ६।९४ श ५।२८ काह ६।५१ ३।१०४ ३।३० ३।०७ ३।२६,२७ ६/३३ ५।१४ ५।१३ ६।३६ १।२४ ३:३०:५।११ ५:२१,२२ ६/५३ ५।१६ ३।५० ५।११ ३।५७ ३:३१ ६१४५ ६८४ ८१४ ३।१३ ६ १०२ ३/३० ३।१२ ३।३० ३।१० ५।१६ ६१६४ राय०सू० ६६३ ना० १।१।१५० ८1८ ना० १।१।१०१ ३।१५ ३।२२,२३ ना० १।१।११४ ३।२४, २५ २० १४१२२४ ५।१२ ५।१२ ६२६ ना० ११५१८४ ३.२० ३।२० ३१२० ३।२० ३/२० ना० १।१।१६ ३।६० ना० १।१६।१३३ ६/४५ ६:३३ ८१४ ११२४ ४३७ ३।२० ना० १।५।१० ke ना० ११११६० ना० १|५|२६ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६॥२८ ३।६२ ५।१६ वृत्ति सिंघाडग जाब महापहपहेसु सिद्धे जाव पहीणे सिरिवणे विहरइ सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे सोच्चा सोच्चा जं नवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्जं जाव वत्रियकुले ६।३६ १११६ ओ० सू० ५३ ना० १।१६६ ३।६३-७३ ६।५१ ३।२५ ३।४२ ना० १११११०१-१०७:११०-११३ ना० ११०१०१ ओ०सू०२० ३२५ हट्ट जाव ह्यिया हट्टतुटु जाव हियया अणुत्तरोववाइयदसाओ अंबगठिया इ वा एवामेव ३।४५ ३।३१ वृत्ति अमुच्छिए जाव अणज्झोववणे अं०६।५७ आयंबिलं नो अणायंबिलं जाव नावकं खति ३२४ ३१२२ इमासि जाव साहस्सीणं ३१५५ इ वा जाव नो सोणियत्ताए ३२३३ ३।३१ इ वा जाव सोणियत्ताए ३३६ ३१३१ उच्च जाव अडमाणे ३१२४ भ०२।१०६ उण्हे जाव चिट्ठइ उरालेणं जहा खंदओ जाव सुहय चिट्ठइ ३।३० भ० २०६४ ऊरू जाव सोणियत्ताए ३१३५ एवं जाव सोणियत्ताए ३२३४ ३।३१ एवामेव ३३६-४४,४६,४७,४६,५० ३।३१ गोयमे जाव एवं १।१० भ० २०७१ चंदिम जाव नवय० ३१५६ श जहा खंधओ तहा जाव हुयासणे ३२५२ भ०२।६४; मा०१॥श२०२ जहा जमाली तहा निग्गओ। नवरं पायचारेणं । जाव जं नवरं अम्मयं भई सत्थवाहि आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पब्वयामि । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ०६।३३,११,११ना० १११,११५ ना० ११११९३ जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ । मुच्छिया । वुत्तपडिवुत्तया जहा महब्बले जाव जाहे नो संचाएइ जहा यावच्चापुत्तस्स जियसत्तुं आपुच्चइ। छत्त चामराओ । सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेति जहा थाबच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पब्वइए अणगारे जाए--इरियासमिए जाव गुत्त बंभयारी ३।११-२१ जाव उप्पि पासा विहरइ तरुणए जाव चिट्ठइ ३२५१ तरुणिया एवामेव ३१४८ बिलामिव जाव आहारेइ ३२५७ मुंडावली इ वा मुंडे जाव पवइए सजमेणं जाव विहरइ ३६६ संजमेणं जाव विहरामि ३१५७ सुक्कं० सुक्काओ जाव सोणियत्ताए ३१३२ सुपुण्णे सुकयत्थे कयलक्खणे ३१५८ सोहम्मीसाण जाव आरणच्चुए १८ ३।२७ ३।३१ ३१२२ ३२७ ३१२७ ३।३१ ३१५८ ना०२१२११ पण्हावागरणाई १०।१४ १०११५ ५।१० ३१२६ ४१३ अंतरप्पा जाव चरेज्ज एवं जाब इमस्स एवं जाव चिरपरिगत० एवं जाव परियट्टति पत्थणिज्ज एवं चिरपरि० रूसियव्वं जाव चरेज्ज रूसियव्वं जाव न सज्जियव्वं जाव न सई सज्जियव्वं जाव न सति हीलियव्वं जाव पणिहिदिए ५८ ४|१५ १०११७ ४१ १०।१५ १०।१७ १०.१६ १०.१६ १०।१४ १०११४ १०.१४ १०११४ १०११४ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमस्स उक्खेवओ अट्टि जाव महियगतं अतुरिय जाव सोहेमाणे अद्धहार जाव पट्ट मउड अब्भणुष्णाए जाव बिलमिव अम्मयाओ जाव सुद्धे जाओ अवओडय जाव उग्धोसिज्ज माणं अविणिज्ज माणंसि जाव भियामि असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे अहम्मिए जाव लोहियपाणी अहम्मिए जाव साहस्सिए अहापरूिव जाव विहरइ अहिमडे इ वा जाव ततो वि अतिराए चैव जाव गंधे अहीण जाव जुवराया अहीण जाव सुरूवा अहीण जाव सुरू आसि जाव पचणुभवमाणे आसी जाव विहरइ आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे आसुरुते जाव साहट्टु आहेवच्चं जाव विहरइ इंदमहे इ वा जाव निम्गच्छति इंदमहे इ वा जाव निम्गच्छति वेजाव सुरू इमेरूवे जाव समुप्पज्जित्था इरियासमिए जाव बंभयारी इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा उंबरदत्ते निच्छूढे जहा उज्झियए उक्ट्ठिजाव करेमाणे कट्ठा समुद्द ४३ विवागसु ११८१,२ १६४१२८ १ १/२८ १६३८ १७७ १।२।२४ १।३।१३ १।२।२६ ११६२३ |१|११४७, १|३|१६ ११३/७ ११११७० ११११२ १।१।३६ ११६२ १।२१७ ११२।१० ११२।१६ ११३।१६ ११३।४१ १।६।३५ ११२१७; ११३१७ १११११६ १।१ २० २१३१५ १/६/३४ १।१।७० २।१।३१ १।७१३४ १।३।४३ १/३/२४ १।२।१,२ १२/६४ वृत्ति वृति अं० ६।५७ ना० ११:३३ ११२।१४ ११२१२४ १।६।१६ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ओ० सू० २२ ना० ११८६४२ ११५५४ ओ० सू० १५ ओ० सू० १४३ १।११४२ १११।४२ ११२६४ ११२/६४ वृत्ति ना० ११११६६ ना० १।११६७ २११।१५ ११११४१ ओ० सू० २७ ओ०सू० २१ १।२।५६ १३१२४ ओ०सू० ५२ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११७० ११२।१४ ११२।१,२ श२११,२ १।२।१४,१५ वृत्ति वृत्ति उक्कोस नेरइएसु उक्खित्त जाब सूले० १६ उक्खेवओ नवमस्स १।६।१,२ उक्खेवओ सत्त मस्स ११७५१,२ उग्छोसिज्जमाण जाव चिता १।४।१२,१३ उज्जला जाब दुरहियासा ११११५६ उम्मुक्क जाव जोवणग० १२११७० उम्मुक्कबालभावा जोवणेण स्वेण लावण्णण य जाव अईव १।६।३४ उम्मुक्कबालभावे जाव विहरइ ११६२६ उराले जाव लेस्से २।१२० उवगिज्जमाणे जाव विहरद ११९४८ उस्सुक्कं जाव दसरत्तं ११३१५२ एवं पस्समाणे भासमाणे गेण्हमाणे जाणमाणे ११११५० ओहय० १२।२७ पोह्य जाव झियाइ १२।२४;११६१६ ओहय जाव झियासि ११२।२५,१।६।१७ ओहह्य जाव पास १।२।२५१।६१७ करयल० ११३१४०,५५,५६११६।३८ करयल० १४३१५० करयल जाव एवं ११३१४४,१।४।२८ करयल जाव एवं ११३१५२,५३; १६६१३४ करयल जार पडिसुणेति १९३१५३,६२११६:३४,११६२०,४० करयल जाव वद्धावेइ १।९।४५ करेइ जाव सस्थोवाडिए कुमारे जाव विहरद १२६।३६ खुत्तो १४१०७० गंगदत्ता वि १७।३३ गामागर जाव सण्णिवेसा २।१।३१ गाहावई जाव तं धणे २१११२३ गिण्हावेइ जाव एएणं ११५२७ घाएति २ ११३।१४ चउत्थं छ? उत्तरेणं इमेयारूवे ११७।१०,११ चउत्थस्स उक्खेवओ ११४११,२ ११४१३६ १२४१३५ ओ० सू०८२ ना० १११६३ वृत्ति १४१२५० १०।२४ वृत्ति ११।२४ १।२।२४ ११३१४० ११३१४० १।११६६ ओ० सू० ५६ ११३१५५ वृत्ति १४११६६ १।१।७० १२२१५५ ओ० सू० ८६ वृत्ति १०२१६४ ११३।१४ श७१२।१५ १।२।१,२ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ ओ० सू० ८३ छुटुंछद्रेणं जहा पण्णत्तीए पढम जाव जेणेव १४२११२-१४ भ० २११०६-१०८ छठुस्स उक्खेवओ १५६।१,२ १९२११,२ छिदइ जाव अप्पेगइयाणं शश२८ शरा२४ जणसह च जाव सुणेत्ता १११।१६ ओ० सू० ५२ जहा विजय मित्ते जाव कालमासे कालं किच्चा ११७।३१,३२ ११२१५०,५१ जातिअंधे जाव आगितिमेते १६११६४ ११।१४ जायसड्ढे जाव एवं ११११२५ जाव पुढवी ११३।६५१।४३६ ११११७० द्विइएसू जाव उववज्जिहिइ १११७० ११११५७ हाए जाव पायच्छित्ते ११३।४७,५५,१११।४५ शश६४ ण्हायाए जाव पायच्छित्ताए १।५० १५२।६४ हायाओ जाव पायच्छित्ताओ ११७।२० १॥२०६४ व्हाया जाव पायच्छित्ता १।३।२४ ११२१६४ तं चेव जाव से णं १३।१५ १।२।१५ तंतीहि य जाव सुत्तरुज्जुहि १६६०२३ ११६।१८ तं महया जहा पढम तहा २।११३२ २११:१२, भ० ६।१५८ तच्चस्स उक्खेवो ११३३१,२ श२।१,२ तह त्ति जाव पडिसुणति १।३१४६ शश६६ ताओ जाव फले १७।२३ १२७११६ तीसे य० १२१२२३ ना० १११११०० तेगिच्छियपुत्तो वा जाव उग्घोसेंति १६१०११३,१४ ११८।२१,२२ तो णं जाव' ओवाइणइ ११७।२१ ११७११६ दसमस्स उक्खेवओ १११०११,२ १२।१,२ दारगस्स जाव आगितिमित्ते शश२६ १११।१४ नगरगोरूवा जाव भीया १२।३४ १।२।३३ नगरगोरूवा जाव वसभा १२।३३ १।२।२४ नगरपोरूवाणं जाव वसभाण शरा२८ ११।२४ नगर जाव विणिज्जामि ११२।२४ ११।२४ निक्खेवओ ११३१६६ १११७१ निक्खेवो १।२१७४;११४१४०, ११५।३०।१।६।३८:१७४३६१।८।२८,१९६० १११७१ निच्छ्भेमाणे अन्नत्य कत्थइ सुई वा अलभ अण्णया कयाइ रहस्सियं सुदरिसणाए गिह १।४।२६,२७ ११२१६२,६३ नीय जाव अडइ १७७ १।२।१५ पंचमस्स अज्झयणस्स उवखेवओ ११५।१,२ ११२।१,२ पंच्चाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म २।१।३१ सश१३ पज्जेइ जाव एलमुत्त ११६२३ १।६१४ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ वृत्ति पम्हल० ११७२१ पावं जाव समज्जिणइ १४११७० ११११५१ पुढवीए संसारो तहेव पुढवी १।५।२६ १॥३॥६५ पुष्फ जाव गहाय १७२३ ११७२१ पुरा जाव विहर १११४१,४२,१४२१६५ ११११४१ पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं १२१५ १५११४१ पुव्वभवपुच्छा वागरेइ ११७.१२,१३ १।११४२,४३ पूवभवे जाव अभिसमण्णागया २२१४१५ वृति पुवाणुपुब्धि जाव जेणेव २१२ ना० १११४ पुख्वाणपुटिव जाव दुइज्जमाणे २१११३२ २।१।३१ पोराणाणं जाव एवं २७।११ १२।१५ पोराणाणं जाव पच्चणुभवमाणे ११११६६ ११११४१ पोराणाणं जाव विहरइ ११३१६४।१।४।६१,११५।२८,१।७३७,१८१८,२६:१।९।५८ १।१०।१८ १।११४१ फलएहि जाव छिप्पत्रेणं १1३.४३ ११३१२४ फुट्ट माणेहिं जाव विहरइ २।१।११ ना० १६१६३ बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव लावणेहि १२२१२६ १।२।२४ बहहिं चूण्णप्पओगेहि य जाव आभिओगित्ता १११०१७ ११।७२ बहहिं जाव हाया १७४२५ ११७२३ भगवं जाव जओ णं १९३४ ११:३३ भगवं जाव पज्जुवासामो १६११२१ ओ०सू० ५२ भवित्ता जाव पब्वइस्लाइ २।१।३५ २१११३ भवित्ता जाव पवएज्जा २१११३१ २।१।१३ मज्झमझेणं जाव पडिदंसेइ ११२।१५ भ० २।११० महत्थं जाव पडिच्छइ ११३१५६ ११३१४० महत्थं जाव पाहुडं ११३०५५ १०३।४० महावीरे जाव समोसरिए १११११७ वृत्ति महिय जाव पडिसेहेति ११३१४६ मासाण जाव आगितिमेत्ते १४१०६४ मासाण जाव दारियं १।३१ १।२।३१ मासाण जाव पयाया १७२६ ११२१३१ मित्त ११३२६०,११५१७ १।२।३७ मित्त० १७२७ १७११६ मित्त जाव अण्णाहि ११३१२८ ११३।२४ मित्त जाब परियणं ११६४७ १२।३७ मित्त जाव परियणेण १६५७ ११२३७ वृत्ति Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित्त जाव परिवुडा मित्त जाव परिवृढाओ मित्त जान परिवुडे मित्त जाव महिलाओ मित्त जाव सद्धि मिल जाय सदि मियादेवी जान पडिजायरमाणी मुंडा जाव पव्वयंति च रट्ठेय जाव अंतेउरे राईसर जाव नो खलु अहं राईसर जान पभियो राईसर जाब व्यभियओ राईसर जाव सत्यवाह० राईसर जान सत्यवाहाण राईसर जाव सत्यवाहेहि राया जाय जीवयमाणे वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि संगयगय० सणाहाण य जाव वसभाण सुण जा पहरणे सष्णद्धबद्ध जान पहरणेहि सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा 。 सत्येहिय जान नहच्छेयणेहि समये जाव विहर समाणे सिघाउन तहेव जय सुदरिसणाए समुपणे जाव तहेब निग्गए सागरोवम० सिंघाडग जाव एवं सिंघाडग जाब पहेसु सुंदरथण सुबहं जाव समज्जिणित्ता सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगस मत्थं तुहिया हय जाव परिसेहिए ४७ ११२।५४ ११७/२३ १।३।५५ ११७/२६ १७/२३ १२९४४५ १.१.२६ २।१।३१ १।१।५७ १।१।५७ २।१।१३ १/२/७२ १०१०१७ १।५।२२,२३ ११११५० १।६।५७ १/६/३७ १।६।२३ १।२२७ १।२।२४ १।२।२६ १।३।४७ १।३।२४ १/६/२३ १।१।२० १।४।२२-२४ १।३।१५ ११११७० १।१०।१३ ११२५७३११८१२१:२/१।२३ १।२१० १०८११२:१।९१२६:१।१०1० २।१।१०,११ १।१।२१ १।३।५० ११२।३७ १२७/१९ १४२०३७ १२७११६ १२७११६ ११२।३७ १।१।१५ २११।१३ १०१।५७ वृत्ति वृत्ति ११.५० १३१।५० ११११५० ओ०० ५२ १।१३५० १/६/३६ १०६।१६ वृत्ति १।२।२० ११२।१४ १।२।१४ १/२/१४ १।६:२२ ना० १।११६३ १०२०५०-५१ १०२।१५ २०१०५७ १०१०५३ १।१।५३ वृति १४१०५१ ओ०सू० १४८, १४९ ओ०सू० २० १०३२४१ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० ८ ५७ ६० १७७ २०६ ३०६ ४२६ ४५५ ४६१ ५१६ ५५१ ५७५ ५६८ ६१६ ७३० ७३८ ७३६ १६ ૪; ५२२ 11 पंक्ति 2 x mm o w २० १२ २२ ३ १० १६ १६ १५ ७ १६ ७ १६ १२ ६ २० ७ १२ पा० ६ पा० ४ पा० २ २४ शुद्धि-पत्र मूलपाठ अशुद्ध • मणप्पते जहेसु हत्थ कट्ट विप्पइर-माण संकाणि वेरमणाइ पज्जुवा सण्णयाए देवसंस तुम ताइ • समुदणं सस्सिरीएण दसं खणमाणे अप्पेगइयाण दुप्पडियादे पाठान्तर पटसि पिणद्धति आसुरुत परिशिष्ट अभिगयजीवेजी णं शुद्ध • पत्ते ० जूहे हत्थी कट्टु विप्पइरमाण संकामणि वेरमणाई पज्जुवासणाए देवसंदेस तुमं ताई ● समुदण सस्सिरी एण दस खणमाणे अप्पेगइयाणं दुप्पडियाणंदे पट्टसि पिणद्धेति आसुरु अभिगयजीवाजीवेणं Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्परोपग्रही जीवानाम