Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Anuttaraovavai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 95
________________ मिहिर जान सय्यदुक्खाण० सिद्धे जाव पहीणे सीलव्वय जाव न परिव्वयसि सीलव्व तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए सीनाय जाव रवेयं सीनाय जाव समुद्दवभूयं सुई वा० सुई वा जाव अलभमाणे सुई वा जाय लभामि सुई वा जाव उवलद्धा सुकुमालपाणिपाए जाव सुवे सुभवताए सुमिणपाढपुच्छा जाव विहरद सुमिणा जाव जो २ अणुवृति सुरं च जाव पसन्नं सुरट्ठाजवए जान हिर सुरूवा जाव वामहत्येणं सूमालं निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं सूमालिया जान गए से घम्मे अभिरुण तए णं देवा इत्तए सेयवर हयगय महया भडचडगरपहकरेणं सेसं जहा सागरस्स जाव सर्याणिज्जाओ सोणियासवम्स जाव अवस्स० सोणियासवस्स जाव विद्वंसणधम्मस्स हुए जाव पडिसेहिए जाव हिया हट्ठ जाव पच्चपिणंति हट्ठतुटु जाव मत्थए हटुटुटु जाव हियए हत्याओ जाव परिनिज्जाज्जासि हस्थिबंध जाव परिवुडे हत्वि संपवरगए जाय सेयवरचामराहि हत्थिणाउरे जाव सरीरा हत्थी जाव छुहाए Jain Education International २६ १।१६४६ १५८४ १२८/७४ ११८४७७७८ शा६७ १११८३५ १२६।३७ १।१६।२१५ १।१६।२२१ १११६/२२६ १।५।८ १।१५।१३ १२८१२९ १।१।३१ १०१८३३ १।१६।३१६ १।१६.१६३ १।१६।३०५,३०६ १।१६।८७ १।१२।१३ १।१६।२३७ १।१६।८१-८६ १११५६१ १११६४६ १।१६।२५७ २१२०, २१, २४, २५ १।१।२३ १९४१३ १।१।२० : १।१६।१३५ ११७१६ १।१६ १४९ १८१६३ १।१६।२०३ १।१।१८५ For Private & Personal Use Only १।११२१२ ठाणं १२४६ १/८/७४ ११८ ७४, ७५ ओ०सू० ५२ १८६७ ११२/२६ १।१६।२१२ १।१६।२१२ १।१६।२१२ ओ ०० १४३ १।१५।११ १।१।३२ PIPIRE १।१६०१४६ १।१६।३१८ वृत्ति १।१६३३,३४ १।१६।६२ १११।१०४ १८५७ १।१६। ५६-६१ १|१|१०६ १|१|१०८ ११८१६५ १|१|१६ १।१।१६,२२ १११।२६ ११११६ १२७१६ १।१६।१४६ १८५७ १११६/२०० १।१।१५७ www.jainelibrary.org


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