Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Anuttaraovavai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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तच्चो वग्मो ---पढम अज्झयणं (धणे)
घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए ° अडमाणे आयंबिल' •पडिगाहेति, नो चेव णं अणायंबिलं । तं पि य संसढें, नो चेव णं असंसर्दु । तं पि य उझियधम्मियं, नो चेव णं अणुज्झिय-धम्मियं तं पि य ज अण्णे बहवे समण-माहण
अतिहि-किवण-वणीमगा' नावखंति । २५. तए णं से धण्णे अणगारे ताए अब्भुज्जयाए पययाए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए
एसमाणे जइ भत्तं लभइ तो' पाणं न लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ ।। २६. तए ण से धणे अणगारे प्रदीणे अविमणे अकलुसे अविसादी अपरितंत-जोगी
जयण-घडण-जोगचरित्ते अहापज्जत्तं समुदाणं पडिगाहेइ, पडिगाहेत्ता काकं
दीग्रो नयरीनो पडिणिक्ख मइ, पडिणिक्खमित्ता जहा गोयमे जाव पडिदंसेइ॥ २७. तए णं से धण्णे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्मणुष्णाए समाणे
अमुच्छिए 'अगिद्धे अगढिए ° अणझोववण्णे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं
प्राहारं पाहारेइ, अाहारेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ २८. तए णं समणे भगवं महावोरे अण्णया कयाइ कायंदीपो नयरीनो सहसंबवणाप्रो
उज्जाणाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ॥ २६. तए णं से धणे अणगारे समणस्स भगवो महावी रस्स तहारूवाणं थेराणं
अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता संजमेणं
तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।। ३०. तए णं से धणे अणगारे तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं
सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसतए जाए यावि होत्था । जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठाइ, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामीति गिलाइ । से जहानामए कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा पत्त-तिल-भंडगसगडिया इ वा एरंडकट्ठसगडिया इ वा, इंगालसगडिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठ इ, एवामेव धणे अणगारे ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंस-सोगिएणं, हुयासणे विव भास रासिपडिच्छण्णे तवेणं, तेएणं, तव-तेयसिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणेउवसोभेमाणे • चिट्ठइ ॥
१. सं.पा. ---प्रायविलं नो अणायंबिलं जाव
नावकखंति । २. X (घ)। ३. अह (क)।
४. तहा (ख, ग) । भ० २१११०। ५. सं० पा०-अमुच्छिए जाव अणज्झोववण्णे। ६. सं० पा०-उरालेणं जहा खंदओ जाव
सुह्य चिट्ठइ।
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