Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Anuttaraovavai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 23
________________ नाम-बोध- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है । श्रमण परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे । उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं । विषय-वस्तु २३ उवासगदसाओ भगवान् महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मुनि के लिए पांच महाव्रतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमणोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है | व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है । इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मुनि का आचारधर्म अनेक आगमों में मिलता है, किन्तु गृहस्थ का आचार धर्म मुख्यतः इसी आगम में मिलता है । इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है । इसकी रचना का मुख्य प्रयोजन हो गृह के आवार का वर्णन करता है। प्रसंग इसमें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सुन्दर चर्चा हुई है। उपानकों की धार्मिक कसोटी की घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखते थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। १. कसा पाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है । उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं- दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति, रात्रिभोजन विरति, ब्रह्मचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति' । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा- ये दो पद्धतिया हैं । समवायाग और नन्दी 'में व्रत और प्रतिमा दोनों का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमाओं सूत्र का उल्लेख है। Jain Education International -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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