Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Anuttaraovavai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ संकेत निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठपूर्ति के द्योतक है । पाठपूर्ति के प्रारम्भ में भरा बिन्दु [[ और उसके समापन में रिक्त विन्दु [0] रखा गया है । देखें-पृष्ठ २ सू ६ । [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] अदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें-पृष्ठ ३. सूत्र ७ ॥ .' ये दो या इससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें पृष्ठ २ सू० ४। 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूत्ति स्थल का निर्देश है । देखें-पष्ठ १ टिप्पण ३ और पृष्ठ ३ सूत्र ८। काश [x] पाठ न होने का द्योतक है। देखें--पृष्ठ ३ टिप्पण ४ । पाठ के पूर्व या अन्त में खाली विन्दु [• ] अपूर्ण पाठ का द्योतक है । देखें-१० ३ सूत्र ७ टिप्पण ५। 'जहा' 'तहेब' आदि पर टिप्पण में दिए गए सूत्रांक उसकी पूर्ति के सूचक हैं । देखें-पृष्ठ ३०१ सूत्र ७ तथा पृष्ठ ३७८ सूत्र ५० ॥ क, ख, ग, घ, च, छ, ब, देखें-सम्पादकीय में 'प्रति-परिचय' शीर्षक । 'व्या० वि' व्याकरण विमर्श । देखें--पृष्ठ ३६६ टिप्पण १। 'क्व' क्वचित् प्रयुक्तादर्श । सं० पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है। देखें-पष्ठ ५ टिप्पण १ । वृपा वृत्ति-सम्मत पाठान्तर । देखें--पष्ठ १० टिप्पण ३ । वृ वृत्ति का सूचक है । देखें—पृष्ठ ६ टिप्पण १७ 1 पू० पूर्णपाठार्थ द्रष्टव्यम् । देखें-पष्ट ५२६ टिप्पण १ । अं० अंतगडदसाओ। अ० अणुत्तरोववाइयदसाओ। सूय सूयगडो। उवा० उवासगदसाओ। जंबू० जंबूदीवपण्णत्ति । ओ० ओवाइयं । ना० नायाधम्मकहाओ। भ०, भग०, भगवई। राय० रायपसेणइयं । पाहा० पण्हावागरणाई। वि० विवागसूयं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118