Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
| तते गं से पंडुसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सहावेति ना एवं व्यासी खिप्पामेव भो! देवाणु० ! निक्खमणाभिसेयं जाव उवद्ववेह | पुरिससहस्सवाहणीओ सिबियाओ उवटुवेह जाव पच्चोरुहंति जेणेव थेरा तेणेव आलित्त णं जाव समणा जाया चोद्दस पुव्वाइं । | अहिज्जति ता बहूणि वासाणि छट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं आवेमाणा विहरंति । १३४ । तते णं सा दोवती देवी सीयातो पच्चोरुहति जाव पव्वतिया सुव्वयाए अजाए सिस्सिणीयत्ताए दलयति, इक्कारस अंगाइ अहिज्जइ बहूणि वासाणि छट्ठट्टमदसमदुवालसेहिं जाव विहरति । १३५ । तते णं थेरा भंगवंतो अन्नया कमाई पंडुमहरातो णयरीतो सहसंबवणाओ उज्जाणाओ | पडिणिक्खमंति त्ता बहिया जणवयविहार, विहरति तेणं कालेणं० अरिहा अरिट्ठनेमी जेणेव सुरद्वाजणवए तेणेव उवा० त्ता सुरद्वाजणवयंसि संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमातिक्खइ० एवं खलु देवाणुप्पिया! अरिहा अरिट्ठनेमी सुरद्वाजणवए जाव वि०, तते गं से जुहिट्ठिल्लपामोक्खा पंच अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमहं सोच्चा अन्नमन्नं सद्दावेंति ता एवं व० एवं खलु देवाणु० ! अरहा अरिट्ठनेमी पुव्वाणु० जाव विहरइ, तं सेयं खलु अभ्हं थेरा आपुच्छिता अरहं अरिट्ठनेमिं वंदनाए गमित्तए, अन्नमन्नस्स एयमहं पडिसुर्णेति ता जेणेव थेरा भगवतो तेणेव उवा० त्ता थेरे भगवंते वंदंति नमंसंति ता एवं व० - इच्छामो णं तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा अरहं अरिट्टनेमिं जाव गभित्तए, अहासुह देवा०!, तते णं ते जुहिट्ठिल्लपामोक्खा पंच अणगारा थेरेहिं | अब्भणुन्नाया समाणा थेरे भगवंते वंदंति णमंसंति त्ता थेराणं अंतियाओ पडिणिक्खमंति मासंमासेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं० पू. सागरजी म. संशोधित
॥ श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्गम् ॥
२३०
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279