Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Prakashan

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Page 250
________________ She Mahave Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailasagasan yamandir मल्लाणुलेवणविहीसुगंधेसु रज्जमाणा मंतिघाणिंदियवसट्टा ॥३७॥धाणिंदियदुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसोज ओसहिगंधेणं बिलाओ निद्धावती उरगो ॥ ३८॥ तितकडुयं कसायंबमहरं बहुख जलेझेसुआसायंभि 3 गिद्धा रमंति जिभिदियवसट्टा॥३९॥ जिभिदियदुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जंगललग्गुखित्ता फुलइ थलविरल्लिओ मच्छो॥ ४०॥ 33भ्यमाणसुहेहि य सविभवहिययगमणनिव्वुइरेसु फासेसु रज्जामाणा मंति फासिंदियवसट्टा॥४१॥ फासिंदियदुईतत्तणस अह एत्तिओ हवइ दोसो।। जखणइ मत्थयं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो॥४२॥ कलरिभियमहरतंतीतलतालवंसकउहाभिरामेसु। सहेसु जे न गिद्धा वसट्टभरणं न ते मरए॥४३॥थणजहणवयणकरचरणनयणगव्विय विलासियगतीसुरुवेसु जे न रत्ता वसट्टभरणं न ते भरए॥४४॥अगरूवरपवरधूवणउउयमल्लाणुलेवणविहीसु। गंधेसु जे न गिद्धा वसट्टमणं न ते मरए ॥४५॥ तित्तकडुयं कसायंबमहुरं बहुखजपेजलेझेसु। आसाये जे न गिद्धा वसट्टभरणं न ते मरए॥४६॥उउभयमाणसुहेसु य सविभवहिययमणणिव्वुइरेसुोफासेसु जे न गिद्धा वसट्टमरणं न ते भर५॥ ४७॥ सहेसु य भद्दयपावएसु सोयविसयं उवगएसु। तुट्टेण व रुढेण व समणेण सया ण होयव्वं॥ ४८॥ रुवेसु य भद्दगपावएसुचक्खुविसयं उवगएसुोतुटेण वरुटेण वसभणेण सयाण होयव्वं ॥४९॥ गंधेसु य भयपावएसु घाणविसयं उवगए। तुद्वेण व रुद्वेण व समणेण सया ण होयव्वं॥५०॥रसेसु य भद्दयपावएसु जिब्भविस्यं उवगएसुतुटेण व रुटेण व सभणेण सयाण होयव्वं॥५१॥ फासेसु य भद्दयपावएसु कायविसयं उवगएसु। तुडेण व रुटेण व समणेण सया ण होयव्वं॥५२॥ एवं खलुं जंबू! | ॥श्रीजानाधर्मकथाङ्गम् ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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