Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 19
________________ शतक १४ उद्देशक १०. पृ. ३६५-३६६. केवलज्ञानी छगस्थने जाणे.-सिद्ध पण छमस्थने जाणे, केवली अवधिशानीने जाणे. केवलज्ञानी बोले-केवलीनी पेठे सिद्ध बोले के नहि?केवलज्ञानीनी पेठे सिद्ध केम न बोले? केवलशानी आंख उघाडे अने मींचे! केवलज्ञानी रत्नप्रभा पृथिवीने जाणे? -सिद्ध पण रमप्रभा पृथिवीने जाणे? केवली शर्कराप्रभाने जाणे? केवली सौधर्मादि कल्पने जाणे?-प्रैवेयकादिने जाणे?-ईषत्प्रारभारा पृथिवीने जाणे?-परमाणुपुद्गलने जाणे? शतक १५. पृ. ३६७-४०२. श्रावस्तीनगरी.-कोष्ठक चैत्य-हालाहला कुंभारण.-गोशालकनुं संघसहित हालाहला कुंभारणने घेर आगमन.--गोशालकने छ दिशाचरोर्नु आवी मळवं.-श्रावस्ती नगरीमा घणां माणसो कहे छे के 'गोशालक पोताने जिन कहेतो विचरे छे' ते केम मानी शकाय?-भगवंते कहेलो गोशालकनो वृत्तान्त.मंखलि पिता.-भद्रा श्री. पारवण प्राम.-गोबहुल ब्राह्मण-गोशालक नाम.-भगवान् महावीरे मातापिता देवलोक गया पछी दीक्षा लीधी.-प्रथम वर्षे अस्थिप्राममा चातुर्मास.-बीजा वर्षे राजगृह नगर.-प्रथम मासक्षमणना पारणाने दिवसे विजयगाथापतिना घेर भगवंतनो प्रवेश.--विजय गृहपतिने धेर पांच दिव्यनुं प्रगट यq.-गोशालकनुं विजय गृहपतिने घेर आगमन.-पीजुं मासक्षमण.-भगवंतनो बीजा मासक्षमणना पारणाने दिवसे भानंद गृहपतिना घेर प्रवेश.-त्रीजु मासक्षमण.-जीजा मासक्षमणना पारणाने दिवसे सुनन्द गृहपतिना घेर प्रवेश.-कोल्लाक सनिवेश.-बहुल ब्राह्मण.-चतुर्थ मासक्षमणना पारणाने दिवसे यहुल ब्राह्मणना घेर प्रवेश.-भगवंते करेलो गोशालकनो शिष्यतरीके स्वीकार.-भगवंतनो गोशालक'साथे सिद्धार्थ प्रामथी कूर्मग्राम तरफ विहार भने मार्गमा सलना छोडनुं जोवु.-गोशालकनो भगवंत महावीरने प्रश्न.-तलनो छोड नीपजशे के नहि ?--गोशालफर्नु भगवंतनी वातने मिथ्या करवा माटे तलना छोडने उखेडी नांखg.-गोशालकने वेश्यायन बालतपस्खीनो समागम, तेमने गोशालकनु उपहासपूर्वक कथन.-तेमर्नु गोशालक उपर तेजोलेश्यानुं मूक.-शीतलेश्या मूकी भगवते करेलुं गोशालकनुं रक्षण.-भगवंते गोशालकने तेजोलेश्याप्राप्तिनो विधि बताव्यो.-भगवंतनुं गोशालकनी साये सिद्धार्थप्राम तरफ प्रयाण अने भगवंतना वचनने मिथ्या करवा माटे तलना छोडनी गोशालकनी तपास.-गोशालकनो परिवर्तवादखीकार भने भगवंतथी तेनुं जूदा पडवू.-गोशालकने तेजोलेश्यानी प्राप्ति.-गोशालकना छ दिशाचरो शिष्य थया अने ते हवे जिनतरीके विचरवा लाग्यो.गोशालक जिन नथी एवं भगवंतनुं कथन.--उपरनुं कथन सांभळी गोशालकने गुस्सो यवो.-आनंदने गोशालकनो समागम, भगवंतने बाळी भस्म करवानी तेणे आपेली धमकी, ते माटे तेणे कहेलं वणिकोनुं दृष्टान्त.-गोचरीथी पाछा फरतां आनंदनुं गोशालके आपेली धमकी, भगवंतने निवेदन.-गोशालक तपोजन्य तेजोलेश्यावडे बाळी भस्म करवा समर्थ छे ते संबन्धे प्रश्नोत्तर.-भगवंते आनंदने कडं के तुं गौतमादि मुनिओने कहे के गोशालकनी साये कंद पण वादविवाद न करे.-भगवंत प्रति गोशालकनो उपालंभ.-गोशालकनो गोशालकपणे इनकार.--गोशालकनुं पोतार्नु खरूपनिवेदन अने ते द्वारा खमत प्रदर्शन.-चोराशी लाख महाकल्पनुं प्रमाण.-सात दिव्य भवान्तरित सात मनुष्य भवो.-सात शरीरान्तरप्रवेश.-प्रथम शरीरप्रवेश.-द्वितीय शरीरप्रवेशतृतीय शरीरप्रवेश.-चतुर्थ शरीरप्रवेश.-पंचम शरीरप्रवेश.-षष्ठ शरीरप्रवेश.-सप्तम शरीरप्रवेश.-भगवन्ते कद्दु के हे गोशालक ! तुं तारा आत्माने छूपावे छे.-गोशालकना भगवंतने आक्रोशयुक्त वचनो कहेवा.-सर्वानुभूति अनगारनुं गोशालकने सत्य कथन.-गोशालके सर्वानुभूति अनगारने बाळी भस्म कर्या.-सुनक्षत्र अनगारनुं गोशालकने कथन.-गोशालके सुनक्षत्र अनगारने पण बाळ्या.-गोशालकनो भगवंत प्रति श्रीजी वारनो आक्रोश.-गोशालके भगवंतनो वध करवा माटे शरीरमांथी तेजोलेश्या बहार काढी.-तेज़ोलेश्या गोशालकना शरीरमा पेठी.-'तुं तारा तपना तेजथी पराभूत थइ छ मासने अन्ते काळ करीश' एवं गोशालकने भगवंतनुं कथन.-श्रावस्ती नगरीना जनोनो भगवंत अने गोशालकना सम्यग्वादित्वसंबन्धे प्रवाद.-श्रमणोए गोशालकने प्रश्नो पूछी निरुत्तर कर्यो.-निहत्तर थवाथी गोशालकनुं गुस्से थर्बु अने तेना केटला एक शिष्योनुं भगवंतने आश्रयी रहेg.-गोशालक्नु भगवंत पातेथी हालाहला कुंभारणने घेर जq.-तेजोलेश्यानुं सामर्थ्य.-चार प्रकारना पानक.-अपानकना चार प्रकार.-स्थालपाणी.-स्वचापाणी.-शीगर्नु पाणी.शुद्धपाणी.-आजीविकोपासक अयंपुलकनो गोशालकनी पासे जवानो संकल्प.-अयंपुलकर्नु आगमन, गोशालकनी विचित्र अवस्था जोह पार्छ जवू, स्थविरोए अयंपुलने पाछा बोलावी तेना मनना संकल्पनुं निवेदन अने तेना मननुं समाधान.-अयंपुलनुं गोशालक पासे आगमन.-गोशालकवडे अयंपुलना संकल्पनुं निवेदन भने तेना मननुं समाधान.-पोताना मरण वाद देबने उत्सवपूर्वक बहार काढवा संबन्धे गोशालकनी भलामण.-गोशालकने सम्यक्स्व थएँ, 'हुँ जिन नथी' एम पोतानी वास्तविक स्थिति प्रकाशित करवी, तेनो पश्चात्ताप अने 'महावीर जिन छ' एवं निवेदन.-'मने काळधर्म पामेलो जाणी मा. रडाबा पगने दोरडावती बांधी घसडजो अने मुखमा थुकजो तथा हुं जिन नथी एम उद्घोषणा करता मारा शरीरने निंदापूर्वक बहार काढजो' एवी गोशा. लकनी पोताना शिष्योने भलामण.-आजीविक स्थविरोर्नु हालाहला कुंभारणना द्वार बन्ध करी श्रावस्तीने आळेखी गोशालकना कह्या प्रमाणे करवं.–में ढिकप्राम.-श्वानकोष्ठक चैत्य.-मालकावन.-भगवंत महावीरना शरीरमा पीडाकारी रोगर्नु थq.-'भगवंत रोगनी पीडाथी छद्मस्थावस्थामा काळधर्म पामशे'एवी सिंह भनगारनी आशंका.-भगवंतनुं सिंह अनगारने बोलावq.-भगवंतर्नु सिंहना मनोगत भाष- कथन.-भगवंतनुं रेवती श्राविका पासे थी बीजोरापाकनुं मंगावq.-सर्वानुभूति मरण पामी क्यां गया ते संबन्धे प्रश्नोत्तर.-सुनक्षत्र अनगार काळ करी क्या गया-गोशालक काळ करी क्या गयो?-गोशालक देवलोकथी च्यवी क्या जशे ?-महापद्म अने देवसेन नाम पाडवानुं कारण.-महापद्म.-देवसेन.-विमलवाहन नाम पाढवार्नु कारण.-विमलवाहननुं श्रमण निर्ग्रन्थोनी साये अनार्यपणु,-सुमंगल अनगार.-विमलबाहन सुमंगल अनगार उपर रथ चलावी पादी नौखशे.-सुमंगल अनगार विमलवाहनने तपना तेजथी भस्म करशे.-सुमंगल अनगार काळ करी क्या जशे?-विमलवाहन मरण पछी क्या जशे-हवे त्यांची व्यवी मनुष्यदेह धारण करी सम्यग्दर्शन पामशे.केवलज्ञान-दर्शन उत्पन्न थशे.-दृढप्रतिज्ञ केवली पई घणा वरस सुधी चारित्र पाळी मोक्षे जशे. 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