Book Title: Adhyatma Pravachana Part 2 Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 5
________________ प्रकाशकाय समग्र जैन समाज में सन्मति ज्ञानपीठ से प्रकाशित पूज्य गुरुदेव, उपाध्याय श्रद्धेय अमरचन्द्र जी महाराज का साहित्य अत्यन्त लोक-वल्लभ रहा है। साहित्य की विविध विधाएँ उनकी लेखनी से उद्भव पा चुकी हैं। कविता, काव्य एवं गीत। निबन्ध, कहानी, रूपक, कथा, संस्मरण और शास्त्र-समीक्षा अति लोकप्रिय रही है। विशेष रूप में उनका प्रवचन साहित्य बहुत प्रभावक और आकर्षक रहा है, और आज भी उसकी उपयोगिता एवं प्रासंगिता में कमी नहीं है। इधर कुछ वर्षों में सन्मति ज्ञान पीठ से नया प्रकाशन नहीं हो पाया है। पुरातन प्रकाशन समाप्त हो चुके हैं। अतः उनके पुनः प्रकाशन की आवश्यकता है। नूतन प्रकाशन भी प्रारम्भ होने चाहिए। लेकिन पूज्य गुरुदेव राजगृही में विराजित हैं। स्वास्थ्य भी उनका अनुकूल नहीं रहता। उनकी वृद्ध अवस्था भी एक कारण है। यही कारण है कि नया प्रकाशन नहीं हो रहा है। लेकिन जनता में उनके साहित्य की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही इस स्थिति में, पूज्य विजय मुनि जी शास्त्री से हमने प्रार्थना की थी। प्रार्थना को स्वीकार करते हुए उन्होंने अध्यात्म-प्रवचन का द्वितीय भाग तैयार कर दिया है। प्रथम भाग का पुनः प्रकाशन भी हो चुका है। यह द्वितीय भाग भी छपकर तैयार हो चुका है। इसमें दो विषय हैं-ज्ञान-मीमांसा और आचार-मीमांसा। यह ग्रन्थ लगभग एक सौ साठ पेजों का है। पूज्य विजय मुनि जी ने अध्यात्म-प्रवचन का परिवर्धन करके तथा सुन्दर संपादन करके हमारी प्रार्थना को तो सफल किया ही है, साथ में अपने गुरुदेव के प्रति भक्ति की अभिव्यक्ति भी की है। ___ पुस्तक का मोहक मुद्रण, प्रकाशन की चारुता और साज-सज्जा, आगरा नगर के प्रसिद्ध साहित्यकार, लेखक तथा विद्वान श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने की है। समाज में आपके प्रकाशन कलामय तथा अत्यन्त लोकप्रिय माने जाते हैं। अध्यात्म प्रवचन के द्वितीय भाग के सुन्दर प्रकाशन के लिए उन्हें धन्यवाद है। अक्षय तृतीया ओम प्रकाश जैन १६-५-९१ मन्त्री, सन्मति ज्ञान पीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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