Book Title: Adarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji Author(s): Krushnalal Varma Publisher: Granthbhandar Mumbai View full book textPage 5
________________ समर्पण । स्वर्गीय युगप्रधान, आचार्य महाराज १००८ श्रीमद्विजयानंदमूरिजीके पादपद्मोंमें, पूज्यवर्य, जिस आत्माको आपने पदाश्रय देकर उन्नत्त बनाया, जिस । आत्माको योग्य समझ कर आपने अपने लगाये हुए बागीचेका माली नियत किया, जिस आत्माको आपने अपना असीम प्रेम के । देकर प्रेममूर्ति बनाया, जिस आत्माकी वाणीमें, आपने अपना । वाक्चातुर्य देकर, जादूका असर पैदा किया, जिस आत्माको आपने अपने अथाग परिश्रम द्वारा प्राप्त किये हुए ज्ञानका * कवच पहनाकर अजेय कर दिया, उसी आपके अनन्य भक्त, आपके नामपर प्राण न्योछावर * करने की हौस रखनेवाले, आपकी सरस्वती मंदिर बनानेकी अधूरी रही हुई इच्छाको पूर्ण करनेके लिए अपनी सारी शक्ति लगा देनेवाले, समस्त भारतमें आपके नामका डंका बजाने वाले, आपहीके समान जीवनभर ब्रह्मचर्य पालकर जप तपा है संयमसे रहनेवाले, ___ महान् नरकी जीवन-घटनाओंका संग्रह आपके पादपों में 1 अर्पण करता हूँ। चरण-चंचरीक कृष्णलाल वर्मा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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