Book Title: Acharya Hemchandra
Author(s): V B Musalgaonkar
Publisher: Madhyapradesh Hindi Granth Academy

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Page 25
________________ जीवन-वृत्त तथा रचनाएं पिता ने सन्तान मोहवश स्वेच्छा से अनुमति नहीं दी। इसलिये चाङ्गदेव मामा की अनुमति से चल पड़ा तथा मुनि देवचन्द्र के साथ हो गया और उनके साथ स्तम्भतीर्थ (खम्भात) गया। इस प्रकार सोमप्रभसूरि के अनुसार चाङ्गदेव को पिता की अनुमति नहीं मिली थी। माता की सम्मति के विषय में वे मौन हैं । उनके अनुसार बालक चाङ्गदेव स्वयम् ही दीक्षा के लिये दृढ़ था। इस कार्य में चाङ्गदेव के मामा ने उसे अश्वयमेव प्रोत्साहन दिया। पांच या आठ वर्ष के बालक के लिये ऐसी दृढ़ता शंका का विषय है और इस शंका का मनोविज्ञान की दृष्टि से शायद निराकरण हो सकता है। सम्भव है केवल साहित्य की छटा लाने के लिये सोमप्रभसूरि ने यह वर्णन किया हो । खम्बात में जैन संघ की अनुमति से चाङ्गदेव को दीक्षा दी गई और उनका नाम सोमचन्द्र रखा गया तदन्तर तपश्चर्या में लीन हेमचन्द्र ने थोड़े ही दिनों में अपार ज्ञान राशि संचित की । गुरुजी ने उन्हें सभी श्रमणों के नेता, गान्धार अथवा आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। सचमुच हेमचन्द्र में कुछ अलौकिक शक्तियाँ विद्यमान थी। सोमचन्द्र का शरीर सुवर्ण के समान तेजस्वी एवं चन्द्रमा के समान सुन्दर था। इसलिये वे हेमचन्द्र कहलाये । श्री कृष्णमाचारियर के अनुसार एक बार सोमचन्द्र ने शक्ति प्रदर्शन के लिये अपने बाहू को अग्नि में रख दिया। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से सोमचन्द्र का जलता हाथ सोने का बन गया। इस घटना के पश्चात् सोमचन्द्र हेमचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध हो गये। मेरूतुङ्गसूरि के 'प्रबन्धचिन्तामणि' में यही वृत्तान्त कुछ रूपान्तर में मिलता है । एक समय श्री देवचन्द्राचार्य अणहिलपत्तन से प्रस्थान कर तीर्थ यात्रा के प्रसंग में धुन्धुका पहुँचे और वहाँ मोढ़वंशियों की वसही-जैन मन्दिर में देवदर्शन के लिये गये। उस समय शिशु चाङ्गदेव की आयु आठ वर्ष की थी। खेलतेखेलते अपने समययस्क बालकों के साथ चाङ्गदेव वहाँ आ गया और अपने बालचापल्य स्वभाव से देवचन्द्राचार्य की गद्दी पर बड़ी कुशलता से जा बैठा। उसके अलौकिक शुभ लक्षणों को देखकर आचार्य कहने लगे, 'यदि यह बालक क्षत्रियोत्पन्न है तो अवश्य सर्वभौमराजा बनेगा। यदि यह वैश्य अथवा विप्र 1--"To demonstrate his powers he set his arms in a blazing fire and his father found to his surprise the flashing arm turned into gold." - History of classical sanskrit literature krisbaomacharior, Page 173-174

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