Book Title: Acharya Hemchandra
Author(s): V B Musalgaonkar
Publisher: Madhyapradesh Hindi Granth Academy

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Page 112
________________ १०० आचार्य हेमचन्द्र मिलाकर सम्पूर्ण लक्षणा एवं साहित्य-विद्या का क्षेत्र पूर्ण हो जाता है। हेमचन्द्र के व्याकरण ग्रन्थों का महत्व- व्याकरण शास्त्र के इतिहास में हेमचन्द्र के ग्रन्थों का स्थान अद्वितीय एवं महत्वपूर्ण है । हेमचन्द्र का प्रभाव उत्तरकालीन जैन व्याकरणों पर विशेष पड़ा। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में तो इस व्याकरण के पठन-पाटन की व्यवस्था भी रही है। उनके शब्दानुशासन पर अनेक टीका-टिप्पणी की गयी है। हेम व्याकरण के आधार पर भी अनेक ग्रन्थ रचे गये हैं । आज भी श्वेताम्बर सम्प्रदाय के कई आचार्य हेम के आधार पर व्याकरण ग्रन्थ लिख रहे हैं । डा० वेलनकर ने अपने ग्रन्थ में ८-१० व्याख्याकारों के नाम दिये हैं। यथा; १, लघुन्यास - रामचन्द्र गणी, २, त्यासोद्धार - तनकप्रभ; ३, हेमलघुवृतिकाकल कायस्थ, ४, हेमदुर्गपद प्रबोध- ज्ञानविमल शिष्य वल्लभ; ५, बृहवृत्ति अवचूरि - अभयचन्द्र, ६, लघुवृत्ति अवचुरि - घनचन्द्र; ७, लघुवृत्ति ढूंढिकामुनि शेखरसूरि, ८, बृहद् वृत्तिदीपिका-विद्याघर । इनके अतिरिक्त सौभाग्यसागर उदयसौभाग्य, जयानन्द, पुण्यसुन्दर, गुणरत्न, जिनप्रभ, हेमहंस अमरचन्द्र ने हेम व्याकरणों से सम्बद्ध ग्रन्थ लिखे हैं । आचार्य हेमचन्द्र का व्याकरण उत्तर-कालीन समस्त व्याकरण ग्रन्थों में मौलिक सिद्ध हुआ है। हेमचन्द्र के बाद पाणिनीय व्याकरण का अध्ययन भी प्रक्रिया ग्रन्थों के आधार पर होने लगा औरअ तिशीघ्र सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रसिद्ध हो गया। १६ वीं शताब्दी के बाद अष्टाध्यायी क्रम से अध्ययन प्रायः लुप्त हो गया। हेमचन्द्र के परवर्ती वैयाकरणों पर दृष्टिपात करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है। हेमचन्द्र के परवर्ती वैयाकरणों में सारस्वत व्याकरणकार बोपदेव आदि विशेष प्रसिद्ध हैं । प्रक्रिया ग्रन्थों में भट्टो जी दीक्षित की 'सिद्धान्त कौमुदी' इतनी प्रसिद्ध हुई कि समस्त भारतवर्ष में 'सिद्धान्त-कौमुदी' के आधार पर ही व्याकरण का अध्ययन होने लगा। व्याकरण-शास्त्र के इतिहास में आचार्य हेमचन्द्र का नाम सुवर्णाक्षरों से लिखा जाता है, क्योंकि वे संस्कृत शब्दानुशासन के अन्तिम रचयिता हैं । इनके साथ ही उत्तरभारत में संस्कृत के उत्कृष्ट मौलिक ग्रन्थों का रचनाकाल समाप्त हो जाता है । राजनीतिक उथल-पुथल में प्राचीन ग्रन्थों के रक्षार्थ उन पर टीकाटिप्पणी लिखने का क्रम बराबर प्रचलित रहा है। छोटे-छोटे व्याकरण भी रचे गये । अतएव संस्कृत व्याकरण ग्रन्थों में हेमचन्द्र के व्याकरण ग्रन्थों का महत्व अन्यतम है - (१) जिस प्रकार व्याकरण शास्त्र में भगवान पाणिनि ने अपनी पर

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