Book Title: Acharya Hemchandra
Author(s): V B Musalgaonkar
Publisher: Madhyapradesh Hindi Granth Academy

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Page 110
________________ १८ आचार्य हेमचन्द्र किया है। हेमचन्द्र के छन्दोऽनुशासन में उल्लेख किया है कि जयदेव यतिवादी थे और इन्होंने छन्दनाम-नर्कुटक सर्वप्रथम दिया है । हेमचन्द्र के छन्दोऽनुशासन में प्राप्त होने वाली कितनी ही कविताएँ, कितने ही नये छन्द 'स्वयम्भू छन्द' में प्रथमतः देखने को मिलते हैं। हेमचन्द्र ने नागवर्मा (१० वीं शती) द्वारा रचित छन्दोबुधि' (कानडी) में वर्णित अङ्गरुचि इत्यादि नये छन्दों के नाम भी अपने छन्दोऽनुशासन में दिये हैं । यद्यपि उन्होंने उनके नामका उल्लेख नहीं किया है 'छन्दोऽनुशासन की रचना निश्चित् रूप से 'काव्यानुशासन' के पश्चात् हुई, यह स्वयं हेमचन्द्र के कथन से स्पष्ट होता है। छन्दोऽनुशासन में कुल ७६३ सूत्र हैं जो ८ अध्यायों में विभक्त हैं । विवरण निम्नानुसार है - प्रथम अध्याय -सूत्र १६, संज्ञाध्याय, द्वितीय अध्याय-सूत्र ४१५ समवृत्त व्यावर्णन, तृतीय अध्याय- सूत्र ७३, अर्थसमवृत्त, विषमवृत्त, मात्राछन्द; चतुर्थ अध्याय-सूत्र ६१-आर्या गलितक, खञ्जक, शीर्षक; पञ्चम अध्याय-मूत्र ४६उत्साह छन्द तथा अन्य; षष्ठ अध्याय-सूत्र २६-षट्पदी, चतुष्पदी; सप्तम अध्याय-सूत्र ७३, द्विपदी तथा अष्टम् अध्याय-सूत्र १७-प्रस्तरादि व्यावर्णन । 'छन्दोऽनुशासन' से भारत के विभिन्न राज्यों में प्रचलित छन्दों पर प्रकाश पड़ सकता है । इस ग्रन्थ में प्रस्तुत उदाहरणों के अध्ययन से हेमचन्द्र का गीति-काव्य में सिद्धहस्त होना भी मालूम पड़ता है। आचार्य हेमचन्द्र ने 'छन्दोऽनुशासन' में विरहाक, स्वयंभू, राजशेखर आदि के प्रति ऋणी हैं। महाराष्ट्र के प्रख्यात कवि के० माधव ज्युलियन अथवा डा० पटवर्धन ने "छन्दो-रचना' नामक संशोधन प्रबन्ध में पृष्ठ ५५५ पर हेमचन्द्र के छन्दोऽनुशासन के विषय में लिखा है कि "छन्दोऽनुशासन' नामक ग्रन्थ में आचार्य हेमचन्द्र ने वृत्त-छन्दों का एक बड़ा सङ्ग्रह कर रखा है। इसमें आप सूत्र पद्धति का ही अवलम्ब करते हैं। उदाहरणार्थ “मत्नायि : कुसुमितलता वेल्लिता : डचे :" य गण लगातार तीन बार आता है, इसलिये यकार तीसरे स्वर से युक्त है, क से ड पञ्चमाक्षर तथा च यह षष्ठाक्षर है। अतः "डचैः" सूत्र से इस वृत्त की पहली यति ५ अक्षरों पर तथा दूसरी यति (विराम) ६ अक्षरों पर ऐसे दो विभाग होते हैं, यह तात्पर्य निकलता है। सूत्र-पद्धति की यह विशेषता, तथा वृत्त-जाति सङग्रह की विशालता-इन दो बातों के अतिरिक्त 'छन्दोऽनुशासन' में विशेष कुछ भी नहीं है । हेमचन्द्र साधारणतः स्वरचित उदाहरण देते हैं । वे बड़े सङग्राहक हैं । छन्दों को यदि भिन्न नाम किसी ने दिये हैं तो वे मावधानी रखकर निर्देश करते हैं । क्वचित् प्रसङग में नाम देने वाले का नाम

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