Book Title: Acharya Hemchandra
Author(s): V B Musalgaonkar
Publisher: Madhyapradesh Hindi Granth Academy

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Page 197
________________ हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा १८५ इस प्रकार आधुनिक भाषा-विज्ञान के लिये भी उनको 'शब्दानुशासन' पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत करता है । प्रत्येक स्तर के पाठक के लिये 'शब्दानुशासन' में अवकाश है । उनका व्याकरण-ग्रन्थ परिपूर्ण एवं समझने में सरल है । कातन्त्रव्याकरण केवल लौकिक संस्कृत का व्याकरण है और वह भी अतिसंक्षिप्त । चान्द्र-व्याकरण में लौकिक भाग के साथ वैदिक स्वरप्रक्रिया भी है। पाल्यकीर्ति का व्याकरण केवल लौकिक संस्कृत का है। इस दृष्टि से आचार्य हेमचन्द्र का व्याकरण संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश सभी का सर्वाङ्गपरिपूर्ण है। उसमें स्वोपज्ञ-वृत्ति-कोष एवं शास्त्रकाव्य संयुक्त है। अतः आचार्य हेमचन्द्र का व्याकरणशास्त्र में अपूर्व योगदान है। ___ कथा-साहित्य की प्रगति में हेमचन्द्र का योगदान- संस्कृत कथा-साहित्य में आचार्य हेमचन्द्र का योगदान सशक्त है। जनसामान्य में प्रचलित कथाओं का साहित्यिक और धार्मिक स्तर पर सर्वप्रथम सोद्देश्य उपयोग जैन-बौद्धों ने ही किया । इन्होंने लोकभाषा के साथ-साथ लोककथाओं का उपयोग अपनी बात की पुष्टि के लिये किया। उन्होंने कुछ नयी कथायें गढ़ीं, कुछ पुरानी कथाओं में परिवर्तन किये । जो काम ब्राह्मण-ग्रन्थों ने कथाओं के माध्यम से किया था, वही काम जैन और बौद्धों ने लोक-कथाओं से लिया । संस्कृत भाषा में लोक-कथाओं का पहिला सोद्देश्य सङग्रह हमें 'पञ्चतन्त्र' के नाम से उपलब्ध होता है । पञ्चतन्त्र की कहानियाँ धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूढ़िगत भार से सर्वथा मुक्त, विशुद्ध व्यावहारिक जीवन की कहानियाँ हैं, जिनमें मानव-प्रकृति के उदात्त और कुत्सित दोनों स्वरूपों के दर्शन होते हैं । विश्व की उपलब्ध कहानियों में 'पञ्चतन्त्र' प्राचीनतम है, यह निर्विवाद है । 'पंचतन्त्र' का अनुवाद संसार की सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है । वास्तव में 'पञ्चतन्त्र' वर्तमान विश्व के कथासाहित्य की पहली कृति है । 'हितोपदेश', जिसकी प्रथम प्रति १०७३ ई० की मिली है, पञ्चतन्त्र के आधार पर तैयार किया गया ग्रन्थ है । "वेतालपञ्चविंशति' कहानियों का एक सुन्दर सङग्रह है। इसी प्रकार की लोककथाओं का एक सङग्रह "सिंहासन - द्वात्रिंशिका" है जो विक्रम चरित के नाम से प्रसिद्ध है । 'शुक सप्तति' में ७० कथाएँ सङ्ग्रहीत हैं जो शुक द्वारा कही गयी हैं। आचार्य हेमचन्द्र किसी रूप में 'शुक सप्तति' से परिचित थे, ऐसा डॉ. ए० बी० कीथ का निश्चित मत है । वे लिखते हैं "हेमचन्द्र द्वारा दिया हुआ एक गद्यात्मक उद्धरण 'बृहत्कथा' से लिया हुआ माना जा सकता है अथवा हो सकता है कि वह किसी पीछे के संस्करण से या दूसरे स्रोत से लिया गया है। यह सम्भव है कि हेमचन्द्र द्वारा दिये गये पैशाची शब्दों के उल्लेख और उद्धरण

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