Book Title: Acharya Hemchandra
Author(s): V B Musalgaonkar
Publisher: Madhyapradesh Hindi Granth Academy

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ १६२ आचार्य हेमचन्द्र अर्थात् परम शिवभक्त बने रहे । आचार्य हेमचन्द्र के प्रभाव से हिन्दू मन्दिरों का भी निर्माण हुआ और फलतः हिन्दू धर्म का भी विकास हुआ। अतः समन्वय-भावना जो कभी रवीन्द्रनाथ के शान्ति निकेतन में प्रकट होती थी अथवा महात्मा गांधी के सेवाग्राम में दिखायी देती थी, उसका प्रारम्भ आचार्य हेमचन्द्र ने ही अपने आचरण से किया था । आचार्य हेमचन्द्र की इस समन्वय-भावना के विकास के कारण गुजरात में धार्मिक कलह कभी नही हुए । धर्म के नाम पर कभी भी अशान्ति नहीं हुई । समन्वय-भावना के कारण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ। सम्भवतः विशाल यात्रा, व्यापक पर्यटन के कारण भी आचार्य हेमचन्द्र की दृष्टि अधिक व्यापक बनी थी। विद्या, कला, साहित्य, सभ्यता के क्षेत्र में उन्होंने समन्वय-भावना का ही प्रसार किया। उनकी दृष्टि में संसार के सभी दर्शन अपनी-अपनी दृष्टि से सत्य हैं। उनके जीवन में भी दुराग्रह के लिये कोई स्थान नहीं था। राजदरबार में अथवा छात्रों को उपदेश देने में उन्होंने कभी भी दुराग्रह से काम नहीं लिया । उपदेश करने के पश्चात् 'यथेच्छसि तथा कुरू' इस गीतोक्ति का उन्होंने सदैव अनुसरण किया । गुजरात, मालवा, राजस्थान आदि प्रदेशों में जैन-धर्म के प्रसार का जो महान कार्य किया गया वह किसी धार्मिक कट्टरता के बल पर नहीं, किन्तु नाना धर्मों के प्रति सद्भाव व सामञ्जस्य-बुद्धि द्वारा ही किया गया था। यही प्रणाली जैन धर्म का प्राण रही है, और हेमचन्द्राचार्य ने अपने उपदेशों एवं कार्यों द्वारा इसी पर अधिक बल दिया था। हेमचन्द्र का भारतीय साहित्य में महत्व एवं परवर्ती लेखकों पर प्रभाव - आचार्य हेमचन्द्र जैसे प्रतिभाशाली और उत्तमोत्तम गुणों के धारक थे वैसा ही उनका शिष्यसमूह भी था । कहते हैं कि १०० शिष्यों का परिवार उन्हें नित्य धेरे रहता था और जो ग्रन्थ गुरू लिखाते थे उनको वह लिख लिया करता था। रामचन्द्रसूरि, बालचन्द्रसूरि, गुणचन्द्रसूरि, महेन्द्रसूरि, वर्धमानगणी, देवचन्द्र, उदयचन्द्र, एवं यशश्चन्द्र उनके प्रख्यात शिष्य थे। इन्होंने आचार्य हेमचन्द्र की कृतियों पर टोकाएं तथा वृत्तियाँ लिखी हैं । साथ ही इनके स्वतन्त्र ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं । रामचन्द्रसूरि इन सभी शिष्यों में अग्रणी थे। उनमें प्रखर प्रतिभा एवं साधुत्व का अलौकिक तेज था। ये ही 'कुमार विहारशतक' के रचयिता हैं। इन्हें 'प्रबन्धशतकर्ता' कहा जाता है। रामचन्द्र और गुणचन्द्र सूरि ने मिलकर 'नाट्य दर्पण' की रचना की। महेन्द्रसूरि ने 'अभिधानचिन्तामणि', 'अनेकार्थमाला', 'देशी नाममाला' और 'निघण्टु' पर टीकाएँ लिखीं हैं । देवचन्द्र सूरि ने 'चन्द्रलेखा

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222