Book Title: Acharya Hemchandra
Author(s): V B Musalgaonkar
Publisher: Madhyapradesh Hindi Granth Academy

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Page 198
________________ १८६ आचार्य हेमचन्द्र इस काश्मीरी ग्रन्थ से लिए गये हों, किन्तु यह निश्चित है कि जैन ग्रन्थकार हेमचन्द्र किसी न किसी रूप में 'शुक सप्तति' से परिचित थे" । विश्वसाहित्य में भारत के आख्यान - साहित्य का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है । मौलिकता, रचना - नैपुण्य, तथा विश्व व्यापक प्रभाव की दृष्टि से वह अनुपम और अद्वितीय सिद्ध हो चुका है । भारतीय लोक-साहित्य के परिज्ञान के लिये संस्कृत आख्यानों का अनुशीलन परमावश्यक है । उपदेशात्मक प्रवृत्ति का मनोरंजनकारी परिपाक नीति-कथाओं में हुआ है । इनमें रोचक कहानियों द्वारा चरित्र-निर्माण का उपदेश होता है । नीति कथाएँ संस्कृत भाषा की सरल एवं रोचक शैली का भी आदर्श उपस्थित करतीं हैं । इन कथाओं के प्रतिपाद्य विषय सदाचार, धर्माचार तथा व्यावहारिक ज्ञान होते हैं । प्राकृत - जैन-कथा-साहित्य जैन विद्वानों की एक विशिष्ट देन है। उन्होंने धार्मिक और लौकिक आख्यानों की रचना कर साहित्य के भण्डार को समृद्ध किया । कथा, वार्ता, आख्यान, उपमा, दृष्टान्त, संवाद, सुभाषित, प्रश्नोत्तर, समस्यापूर्ति और प्रहेलिका आदि द्वारा इन रचनाओं को सरस बनाया गया । संस्कृत साहित्य में प्रायः राजा, योद्धा, धनीमानी व्यक्तियों के ही जीवन का चित्रण किया जाता था, किन्तु इस साहित्य में जनसामान्य के चित्रण को विशेष स्थान प्राप्त हुआ। जैन कथाकारों की रचनाओं में यद्यपि सामान्यतया धर्मोपदेश की ही प्रमुखता है फिर भी पादलिप्त, हरिभद्र, उद्योतनसूरि, नेमिचन्द्र गुणचन्द्र, मलधारि हेमचन्द्र, लक्ष्मणगणी, देवेन्द्रसूरि, आदि कथा लेखकों ने इस कमी को बहुत कुछ पूरा किया। रीति प्रधान श्रृंगारिक साहित्य की रचना की कमी रह गयी थी । उधर ११-१२ शताब्दी से लेकर १४-१५ शताब्दी तक गुजरात, राजस्थान, मालवा में जैन धर्म का प्रभाव उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा था । अनेक अभिनव कथा-कहानियों की भी रचना हुई । अनेक कथा - कोशों का संग्रह किया गया । कथा-साहित्य में तत्कालीन सामाजिक जीवन का विविध और विस्तृत चित्रण किया गया । विशिष्ट यति, मुनि, सती, साध्वी, सेठ साहूकार, मन्त्री सार्थवाह, आदि के शिक्षाप्रद चरित्र लिखे गये । इन चरितों में बीच-बीच में धार्मिक और लौकिक सरस कथाओं का समावेश किया गया। उपदेशात्मक कथाएँ, जिसका साक्षात् उद्देश्य मनोरंजन के साथ उपदेश है, जैन साहित्य में प्रचुरता के साथ पायी जाती हैं । जैन विद्वानों की रुचि कहानियों में बहुत थी, परन्तु साथ ही उनका नैतिकता की ओर विशेष झुकाव था । इसीलिये जैन लेखक प्रायेण विक्रमादित्य के आख्यानों जैसी अच्छी कहा

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