Book Title: Acharya Hemchandra
Author(s): V B Musalgaonkar
Publisher: Madhyapradesh Hindi Granth Academy

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Page 177
________________ दार्शनिक एवं धार्मिक-ग्रन्थ १६५ "मोहराज पराजय' नाटक में भी कुमारपाल द्वारा रथ-यात्रा महोत्सव मनाने की आज्ञा देने का उल्लेख है। श्री सोमप्रभाचार्य के 'कुमारपाल प्रतिबोध'(११८५ई.) में तो इस महोत्सव का विशद वर्णन है। तीर्थङ्करों के जन्मोत्सव के अवसर पर नत्थ-नाटकादिकों का भी आयोजन होता था । यह भी धार्मिक आस्था प्रकट करने का एक माध्यम था। कुमारविहार में भगवान महावीर की मूर्ति की स्थापना के अवसर पर यशपाल मोढ़ के "मोहराज पराजय"नाटक का प्रदर्शन हुआ था। श्री लक्ष्मीशंकर व्यास का मत है कि कुमारपाल ने गुरु हेमचन्द्र से वि० स० १२१६ में जैन धर्म की दीक्षा लेने के उपरान्त कुमारविहार का निर्माण और प्रतिष्ठा करवायी थी । इन्द्रमहोत्सव"के प्रारम्भ से सम्बन्धित एक कथा 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित' ( १-६-२१४-२५ ) में दी हुई है, जिससे आचार्य हेमचन्द्र की धार्मिक आस्था का स्वरूप मालूम पड़ता है। एक बार ऋषभदेव के पुत्र भरत ने इन्द्रदेव से पूछा कि क्या आप स्वर्ग में भी इसी रूप में रहते है ? इन्द्र ने उत्तर दिया कि वहाँ के रूप को मनुष्य देख ही नहीं सकता । भरत ने देखने की इच्छा प्रकट की तो इन्द्र ने अलङ्कारों से सुशोभित अपनी एक अंगुली भरत को दी। वह जगतीरूपी मन्दिर के लिए दीपक के समान थी। राजा भरत ने अयोध्या में उस अंगुली की स्थापना कर जो महोत्सव मनाया वह 'इन्द्र महोत्सव' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह कथा आवश्यक चूर्णि (पूर्वार्ध २१३५०) और वसुदेव हिण्डी (पृ० १८४) में भी दी हुई है। वे जैनाचार्य होते हुए भी सोमेश्वर की यात्रा में कुमारपाल के साथ गये थे तथा आवाहन, अवगुण्ठन, मुद्रा, मन्त्र, न्यास, विसर्जन आदि स्वरूप पंचोपचार विधि से उन्होने शिव की पूजा की एवं भगवान शिव को प्रत्यक्ष किया। सारांश यह कि आचार्य हेमचन्द्र की धार्मिक आस्था का स्वरूप अतिविशाल एवं व्यापक था। १-श्री लक्ष्मीशंकर व्यास-चौलुक्य कुमारपाल-भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १९५४ पृष्ठ ३३, ४०. न २-भक्ति के १२ भेद-सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगभक्ति, आचार्य भक्ति, पंचगुरु भक्ति, तीर्थङ्कर भक्ति, शान्ति भक्ति, समाधिभक्ति, निर्माण भक्ति, नन्दीश्वर भक्ति, चैत्यभक्ति, १२

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