Book Title: Aagam 43 Uttaradhyanani Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४३)
प्रत
सूत्रांक
[3]
गाथा
||१२८
१६०||
दीप
अनुक्रम
[१२९
१६०]
“उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र - ४ (निर्युक्तिः + चूर्णि:)
अध्ययनं [५],
मूलं [१...] / गाथा || १२८-१६०/१२९-१६०||
निर्युक्तिः [२०९...२३५/२०९-२३६]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [ ४३ ], मूलसूत्र [०३] उत्तराध्ययन निर्युक्तिः एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि:
श्रीउत्तरा० चूर्णां
५ अकाम
द्रव्याणि साम्प्रतं आयुष्कत्वेन गृहितानि पुनरायुष्कत्वेन गृहीत्वा मरिष्यति इत्यतो अवधिमरणं, तंपि पंचविधं तं० द०वी० खेो० कालो० भवोधि० भावोहिमरणे, दव्वोधिमरणे चउच्विधे णेरहया रहयदच्वे वट्टमाणा जाई संपई सरंति, जण्णं णेरड्या ताई दब्वाई अणागते काले पुणोवि मरिस्संति नेरहए, एवं सेसावि, खेत्तोवधिमरणं चउब्विहं एमेव, णवरं जण्णं णेरड्या णेरइयखेत्ते वट्टमाणा मरणे एवं रइयकाले वट्टमाणा णेरइयभवे णेरइयभावे बट्टमाणा. ओहिमरणं गतं । इदाणिं आदियंतियं मरणं (२३३-२३१) आत्यंतिक ॥१२८॥ ॐ अवधिमरणविपर्यासाद्धि आदियंतियमरणं भवति, तंजहा- यानि द्रव्याणि सांप्रतं मरति, मुंचतीत्यर्थः, न सौ पुनस्तानि मरि
ध्यति, तंपि पंचविहं णेरहयदव्यातियंतियमरणं, जे पेरश्यदव्ये वट्टमाणा जाई दवाई संपयं मरंति ताई दब्वाई अणागते कालेण पुणो ण मरिस्संति तं णेरइयदब्वातियंतियमरणं भवति, एवं सेसाणवि, एवं खेतेवि कालेवि भवेऽवि भावेवि, आतियंतियमरणं गतं ॥ इदाणिं बलायमरणं- 'संजमजोगविसन्ना मरंति जे तं बलायमरणं, जेसि संजमजोगो अत्थि ते मरणमन्वगच्छति, ण सव्यथा संजममुज्झति से तं बलायमरणं, अथवा वलंता क्षुधापरीसहेहिं मरंति, ण तु उवसग्गमरणंति तं बलायमरणं । इदाणिं वसट्टमरणं'इंदियावसतवसगता' गाहा ( २१७-२३२ ) जे इंदियविसयवसट्टा मरंति तं वसमरणं तद्यथा- वलभो रुववग्गो चक्षुरिंद्रियवशार्त्तो त्रियंते, एवं शेषैरपीद्रियैः (शेषाः) । अंतोसल्लमरणं 'लज्जाए गारवेण' गाहा (२१८-२३२) 'गारव' (२१९-२३२) एवं समल्ल ( २२०-२३३ ) गाहातयं सिद्धं, एवं अवोसल्लमरणं, इदाणिं तन्भवमरणं भवति, तं केषां भवति केषां न भवतीत्युच्यते'मोतृण कम्मभूमय' गाथा ( २२१-२३३ ) कंठ्या केसिंचिति मनुष्याणां तिरिक्खजोणियाणं च केसिंचि ण सब्वेसामेव, गतं तन्भवमरणं । इदाणिं बालमरणं, असंजममरणमित्यर्थः । पंडिताण मरणं पंडितमरणं, विरतानामित्यर्थः, मिस्सा णाम बालपं
[133]
मरणे
निक्षेपा
भेदाव
॥१२८॥
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