Book Title: Aagam 43 Uttaradhyanani Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 220
________________ आगम (४३) "उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं [१३], मूलं [१...] / गाथा ||४०५-४४०/४०६-४४१||, नियुक्ति : [३२८...३५९/३३०-३५९], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [०३] उत्तराध्ययन नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: प्रत सूत्राक [१] गाथा ||४०५ ४४०|| श्रीउत्तरानमाणो दिवो, ततो अणुकंपापरेहिं तुरितं गंतूण परिसित्तो सो साधू तेण सितियपाणएण, विइतो वत्थप्पंतेण, समासत्यो य प- चित्रसंभूति ..चूणा ज्जितो, उचिति पाडिय णीतो गोउलं,पडि[द्वियरितो य तेहिं पराए भत्तीए,तेणवि जिणदेसियं धम्म गाहिता, तत्थ नाहा-तण्हा- समागमः १३ चित्रसंभूतीयं | छुहाकिलंतं०॥ ३३२ ।। गाहा, उक्तार्था, 'तचो दुन्नि दुगुंछ काउं० ॥३३३-३३६॥ गाथा,तेसिं गोवाणं दो गोवा साधुदुगुंछाए | पीतागोयं कर्म णिवति, साधुअणुकंपाए सावगत्तणेण य तेवि चत्वारिवि मरिऊणं देवलोग गवा । सतो जे ते अदुगुंछिणो ते 15 ॥२१॥ | कतिवि भवंतरियातो सुसुमारपुरे माहणदारगा जावा, दुगुंछिणो पुण दसन्नाजणवते एगस्स माहणस्स दासा जाता, एवं सव्वा भदत्ती हिंडी भाणितम्या । गतो णामणिप्फण्णो, सुचाणुगमे सुचमुच्चारेयचं, तं च इमं सुतं-'जाईपराजिओ जाखलु०॥४०६-३७६।। सिलोगो, जाई चंडालजाती पुर्व आसीत्, अथवा संसारजातयः गोपालदासाचा, तेहि दुक्खेहि पराइतो | कासि नियाणं तु हथिणपुरम णगरंमि गतो, देवलोगं गतो, ततो चुतो कंपिल्लपुरे णगरे बंभस्स रगणो भारियाए चुलणीए भदचो आयातो पउमगुम्मातो विमाणातो, 'कंपिल्ले संभूओ०॥४०७-३८३।। सिलोगो, चिचो पुण पुरिमताले णगरे इम्भकुले पुत्तत्ताए पञ्चायातो, तहारूवाणं घेराणं अंतियं धम्म सोऊण पचतितो, विहरतो कपिलपुरमागतो। तत्थ-'कंपिल्लंमि अ नयरे ला॥४०८-३८३॥ सिलोगो कण्ख्यः। 'चक्कवट्टी०॥४०६-३८४॥ सिलोगो, महायसोत्ति, अस्सुते सर्वलोकमिति यशः, मायर बहुमाणेण,द बहुमानग्गहणे मानेन, न कृतकेन उपचारमात्रेण, काले(न) स्वार्थ इति श्रेष्ठः, इदं वचनमब्रवीत-'आसिमो भायरा दोऽवि. ॥४१०-३८४॥ सिलोगो कण्ठ्या, 'दासा दसन्नये आसी ॥४११-३८४ासिलोगो कण्ठ्या,दसण्णाजणवते दासा आसि,मृग्यते इति ॥२१४॥ हामृगः, मिगा कालिजिरे णगे, न गच्छतीति नगा, पर्वत इत्यर्थः, 'हंसा मयंगतीराए' हसन्तीति हंसाः, गां गच्छतीति गंगा, दि| दीप अनुक्रम [४०६४४१] SECRECORA AA-%ERE [21]

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