Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 7
________________ आगम (३८/१) प्रत सुत्राक “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [१...]-- ---------- भाष्य [९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । बत सतु पगासती। एवं उवणतो होति, तं संभिणं तुजं वयं ॥४॥पलोगमलोग च, समतो पुश्मादिसु । स स तु जे भाषा, दबतो खेत्तकालतो ॥५॥ भावतो व जे भाषा, मयि जे तुण पासती । अभाषा गस्थिताए तु. जाणती पासतीवि प ॥६॥ अह सबदापरिणामभावविष्णत्तिकारणमर्णत। खासयमचाचाहं एगविहं केवलण्णाणं ॥ ७॥ सर्व णेयं । पहा एतस्स परूषणदयाए । गाहामुत्त अहनि जे पपिणन हेहा ॥८॥ भिण्णग्गहणं खलु कालतो तु सो पेप्पती तु एनेसि । दवाबीण पाउण्ड परिणामो फजया जाण ॥९॥ जीवाण अजीवाण व उपाययवत्तपनाया। परपथएण तिष्हं धम्मादीयाण परिणामो ॥१०॥ गतिठितिअवगाहेहि संजोगवियोगमओ यसो होइ। ओवजयादीयाण परिणामो होइ भाषाणं ॥१॥ एतेसि चिय दशादियाण कालो तु होति परिणामो। कालं पति पति मुहमादिएसु पल्यादिपरिणामो ॥२॥ दशादीपरिणाम सा जाणाति केवली अखिलें। फिर भनी परिणामो ? एयरस उकारणं णमो॥३॥ बीसलपयोगि अम्मानियाण संधाण वीसमुष्पायो। पण्णरसहा पयोगो तिमिहे कालम्मि परिणामो॥४॥ जो केवली मणूसो सोस बाह करेग्णसत्तार्ण। णियमेण अगाबाई पावर मोक्वं खविय सेतं ॥५॥ उमत्थियमाणं केवलियो ग खलु विजए न तु । जम्हा सोपसमिए बहते छाउमस्या उ॥६॥ भावे केवलणाणं वहति णियमेण खाइए मिर्च। म उ अक्सीजे मीसे लाइयभावस्स उष्पत्ती ॥ ७॥ तम्हा एगविहं खलु केवलणाणं तु होति उनपणे । जेणाऽज केवलम्मिधि (ग)पुणाऽणामोहता नेसि ॥८॥आदिगरा धम्मार्ण चरितपरमाणसणसमग्या। सात्तगणाणेण क्वहार ववहरति जिणा ॥९॥ पचावयवहारो इंदियणोइंगिएस वक्तातो। आगमजो, काहारो पारोक्खं तुम पोच्छ ॥ ११॥ पचक्लागमसरिसो होति परोक्लोचि आगमो जस्स। चंवमुहीच तु सोवि आगमनहावं होति ॥ १ ॥णात आगमियंतिय एगई जस्सी सो परायतो। सो पारोक्सो युबति तस्स पदेसा इमे होति ॥२॥ पारोक्वं ववहार आगमतो सुतपरा पवहरति। चोइसइसपुश्परा गवविध गंधहत्यी य॥३॥ कि आपमपहारी, जम्मा जीपारयो णा पाया। उपलवा तेहिं न सोहिणपचियप्पेहि ॥४॥जह केबली बियाणति वर्ष लेतं च काल भावं या तह पउलक्षणमेस सुतणाणीची पियाणाति ॥५॥ पणगं मासचिवइिंट मासिगहाणी य पनगहाणी य । एमाहे पंचाई पंचाहे व एगाई॥६॥ रागहोसविषदि हाणि या जानु देति पवावी । चोहसपुवावीवितह गाउँ ति हीणउहि ॥ ७॥ पोजगपुच्चयापचपखणागिणो वेऽपिका देति । भण्णति सुगसू एवं विहृतं बागिएण इमं ॥ ८॥ जहमोल रयणं न जामति रयणागियो णिउणो। यो महासविकासति अपसचि परत ॥९॥ अनावि कायमणिणो मुमहतस्सावि कागिणी मोतं । सरस्स तु अप्पस्सवि मोत होती सतसहस्सं ॥ १२०॥ इय मासाण पहुणविराग-र दासपचार थोपं ना रागहोमोपचया पनगेचि जिणा पहुं देति ॥१॥ पयली पचचरर्स पासानि पबिसेषगस्त सो भावं। किह जाणति पारोक्सी ? गातमिणं तत्थ धमएणं ॥२॥ णालीधमएण जिणा उपसंचार करेंनि पारोक्से । जह सो कालं जाणति सुएण सोहिंतहा सोतु ॥३॥जेणं जीवाऽजीवा उक्लदा सबभावपरिणामा। तो पुष्परा सोहि कृति सुजी. परेशेण ॥४॥ पुण केण का तू सुतणाणे जेण जीवमादीया। गजति सबभाषा केवलणामीण तं तु कतं ॥५॥ संतेवि जागमम्मी जाहे आलोतियं तु तेण भने । सम्मै गाऽऽलोएती परिषजति सारियों जाया तो तस्स उपच्छिल जेण विमुमति लग पपच्छति । आगमबहारी उशिहोवि पलिथिएं ग देति ॥ ७॥ आलोनियटिकत होती आलोषणा मियमेणं । अगलोयाम्म भयणा किह पुण भयणा भवति तस्म ॥८॥ आलोयणापरिणतो अंतर कालं को अभि(वि)मुद्दो पा। अहवाची जायरिजो एमेव य होति संपत्तो ॥९॥आ-5 राहोत नही ज सम्मालोषणापरिणतो तु। णाराहेति अपरिणयो एवं भयणा भवति एसा ॥१३०॥ अबराहं विषाणति, तस्स सोहि व जरनी। नहानाऽऽलोषणा पुता, आलोले बह गुणा॥१॥ दहि पनहिब कमखेने कालमापरिसुद्ध। बालोयणं सुणिता तो क्वहारं पठति ॥२॥दो सवितादी पाच दहा वह विगप्पेहि। पुजाणपुषिमावी कमओ एवं आलोए ॥३॥ अवाण जगए पाखेने काले सुमिक्स दुभिकले। भावे हगिलाणे सविय जह तं सहाऽऽलोए ॥४॥ अहया सहसऽष्णाणा भीएण पपेशिएग परेहि। बसणे पमाएक मुढेबरागदोसहि ॥५॥ युवं अपालिऊणं कुठे पायम्मि ज पुणो पासे । ण प तरति णिवत्तेउं पार्य सहलाकरगमेयं ॥ ६॥ अण्णातपमाए जसंपउत्तम्साणीवात्तस्स। हरिवाजय भूताये अपनी एतदणाणे ॥ ७॥भीत्रो पलायमानो अभियोगभएण वापि जंजा। पडितो व अपदितो वा पेतिजा पतिमी पागे ॥८॥ गीतारि होति पसल सिपिहो । खनु भत्रे पमादो उमिन्टसमारणात मोहो तह रागदोसा ॥९॥ एतेसि ठाणाणं अण्णयरे कारगे समुप्पण्णे। तो आगमधीमस करेंनि अलान भएणं ॥१४०॥ जदि आगमोय। आन्दोषणा परामिणविसमत नियति। एसा खल बीमंसा जो असह जेण वा सुनो ॥१॥नागमाइणि अण्णा(त्ता)णि, जेण जत्थे(नो) 3 सो भवे । रागहोसप्पहीणे वाजे पाहा चिसोहिए।२॥ सुतं अस्ये उभयं आटोषण आगमो इती उभयं। जैसे उभयंति पुत्तं तत्थेसा होति परिभासा ॥३॥ पहिलेषणालियारे अदिनामा जहकर्म सचे। नहाती पच्छिल आगमपमहारिणी तस्साशा पडिलेवगातियार जदि आ जहकर्म सचे।देति नजो पच्छित आगमक्यहारिणी तस्स ॥५॥ कहहि सा जो पुलो, जाणमाणोधि गृहनि। ण तसा (२५३) १०१२जीतकम्पभाष्य मुनि दीपरतसागर दीप 949 अनुक्रम [१] 497 ~6~Page Navigation
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