Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 27
________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३३] ----- --------- भाष्यं [१११२] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य MAg प्रत सुत्रांक [३३] दीप अनुक्रम 4555412 नुसोहि पक्क्वामि ॥२॥ दशमसेतु जहणे भने मजो होति आचार्म । उकोसेसुपाडवं एवं खेतादिएपि ॥३॥ एवमदत्तपरिम्गह शादीगुंतु एस चेव गमो। हीणे मकोसे भासणायामलमणाई ॥४॥ एष मुसाबायादिसु सोही मणिया समासतो एसा । एसो तु राइमनले सोहिं यो समासेर्ण ॥५॥ लेखाइयपरिवाले अमतहो मुकसपिणहीए या इतराप छवमन अहमग सेस णिसिमले ॥ मू. ३४॥६॥ लेवाडय कठोरी मुंलिबहेडादि अगयमादी पार परिषासेन्ते एलि सोही साहुस्स भन्नई ॥७७ इतरा य गिलसपिणहि गुलयतनागादिया मुणेनच्या। परियासते नेसि सोही छई तु साहस ॥८॥ णिसिभत्तसेस निविहं दियगहियं राजमुन्न पाम तु । राजोगह दिवभुतं गहभुजणमुभययो रातो ॥९॥ विविहे णिसिमन सोही एग्य नअट्टम होति। तिनिहम्मिवि पत्तेयं एप समनं तु णिसिमतं ॥११२०॥ उलियचरिमनिए कम्मे पासंहसपरमीसे या पावरपाडियाए सपथमायाहडे सोभे ॥३५ ॥१॥अच्छाउता गाहत्यो एनेसि उम्गमादिअदृन्हं । लखग आपत्ती दाणमेव बोच्या सवित्यस्तो ॥२॥ सोलस उग्गमदोसा मोलस उपायनाएँ दोला उ। बस एलणाएं दोसा संजोयणमादि पंचेष ॥३॥ सो जग्गमो चनुवा मामावी नत्य निमो होनि। जोतिसतणोसहीण मेहरिणकोषमादी ॥४॥ अहवापि लहडगादी भाचे तिविग्गयो मुणेतष्यो। देसणणाणचारिने परिसुग्गमेणऽत्य अहिगारो॥५॥ किं कारणं परिने अहिगारो एल्थ होति भगितो तु?| घोडग ! सुण पारित जे तु गुणा ने तु हानि इमे ॥ ६॥ देखणणाणप्पभवं चाणं मुझे नसम्मि नमुदी । चरण कम्ममुखी उम्गमसुदी चरणसुदी ७॥ पिंडोचहिसेजाम् जेण असुदाम भरण पनि सुनो। पिटोबहिसेगाम सुबासु उ चरणजी 3000 तो चरणमुदिहन पिंडस्म उ उगमेण अहिगारो। तस्स पुण उग्गमस्सा सोलस द्वारा इसे होन्ति ॥९॥आहाकम्मुरेसिय पूतीकम्मे य मीसजाये या ठरणा पाहुडियाए पायोयर कीत पामि ॥११३० ॥ परियहिए अभिडे उम्भिरणे मालोहडे इय। अमन अणिसट्टे अझोपरए य सौलसमे ॥१॥ एते सोन्म दारा उघिमियाणि विवरण बोळ। एनेसि पदम आहा नम्स इसे हानि गर वारा ॥२॥ आहाकश्मिरणामा एगवा करस बावि किं वापि। परपक्व य सापकले पाउरोगहणे य आणादी ३० नत्य इमे गामा खल आहाकम्मरस होन्तिच. नारि। प्राह महाकम्मे या अहय(यहम्मे अनकम्मे या ओरालसरीराण उडवणचायणं तु जस्सहाामणमाहित्ता कुपति आइाकम्म नय बेन्ति । ओरालगाहणेण निरिक्त्रम याहया सुहमवत्रा। अपर्ण उत्नासण अनिवानविधनिया पीला ॥६॥ कायक्रमणा निणि ऊ अहका बेहायइंदियणागा । सामिनवायाणे होतिबाओ करणस्मि ॥lt हियवम्मि समाहेउ एगमणेगे व गाहगे जो नु। हर्ण करति दाता कायाण तमाहकम्मं तु ॥८॥ जस्सट्टा न तु कन ने जो मुंजनि सतं तु काययह । अणुमणा आहेड यस कम्मबन्ध नमायाए ॥॥ अपिय विवाहमा जो) मणिनं मुंजनों आकम्मं तु। पसिदिलबन्धादीया पगडीओं कति धणियादी॥११४०॥ मंजमठाणा कडगाण लेक्साहितीविसेसाण। मा अहे करेनी तम्हा तुमचे अहेकम्म ॥१॥ एगीभावम्मी जम उबरम एगीभाव उबरमण। सम्म जमो या संजम मणहकायाम जमणं तु॥२॥चिट्ठा संजमो जहियं न हो। हुसंजमम्स ठाणं नु।नं पुष परिनपजप होलि अर्णतेकटाणं तु॥३॥ संजमठाणमसंवा उकंड कंडगा असंला उ। बनि उनसाताण ने असंखेज जवम ॥४॥तनो परिहा | । यता लेसाकंडा व संजमडाणा । एसियाणमसला लीगा उ हवंति ठाणार्ग ५॥ एसा संजमसेदी कन्या विमुदामु ठाणमादीसु। बहतुकोसाउगुरतिनिजोगेम होतृणं ॥६मुंजम | हेकम्म हेहिले हिवेनि अप्पाण। मुने उदियमहेतु करपरचिणोचचिणमादी॥ ॥ धनि अहेमवार्ड पकरनि अहोमुहाई कम्मापणकरण तिरेण उमावेण चयो उवषयोन सदासि गुरुच उदएण अपयं गलीए पपईन। ण पाएनि विहारेउ महकम्म भए नम्हा ॥९॥ अदाएं अगहाए कायपमरणं जो कुणनि अणियाए पणियाए अनित: दहाऽऽयहम्मंनी ॥११५०॥ जागतम जाणतो नहेनि गिहिलिय ओहो बावि। जाणगमजाणए या भगिना णिय अणिय होनेसा ॥2॥दसायहम्ममेय भावाया तिणि गाणमा. इंणि। परपाणपारणरयो भावाय अप्पणो हानि ॥२॥ णिच्छयगयस चरणाऽऽयनिचाये णागदसणनहानि । ववहारम्स उपरणं यस्मि भयणा उससाणं । ॥ आयाहम्मग एवं एनो पाच्छामि अनकम्म तु। जो परकम्म जनीकरेनिन अत्तकम्यं नृ॥४॥ आहाफम्मपरिणयो कामुयमवि संकिनिवपरिणामी। आनियमाणो बनानि न जाणम् अनकम्मतु ॥५॥ परकम्ममनकम्मीकरति जो उ गिहिर भुजे। चोएति परकिरिया कहष्णु अग्णन्य संकमनि ॥६॥ भष्णा परपउन बह निसमाय नमार हानि। नह परकरपियो परिणामसेण जीयम्स 150 बेनी परकडभोयिण नो तुम्भवि एवं होनिबंधो उ।जह अण्णस्य पउने पूढे जो पद्धति सो बझं ॥८० गुमाह जो पमनो जी व अनक्सासमए तन्य। अपमनो णविबानि नहेब रफ्लो य जो होनि ॥९॥इय जो यु अप्पमत्ती मणवायाकायतोगकरगेहि। सो तुण बज्मनि णियमा पानि इयरी परकडेनि ॥११६॥ कामं सर्यन कुरति जाणंनो पुणनहानि नग्गाही। वहति नप्पसंग अगिण्णमाणो उ (न)नारेति ॥१॥ नम्हा 3 परकडम्मिचि अनीकरण तुहायऽमुहि । मणमादीहि कहं पुण अनिको? भणति इमेहि ॥२॥ पटिसेषणपडिसुमणासंचासणुमायणा चउहपि। एएहि पगारेहि अनिकरे तन्धिमे गाया ॥३॥ पडिसेवणाएं नेणा पडिमुणणाए परायपुनातु। संचा- (५८) २०३२ जीतकल्पमाय - मुनि दीपरनसागर [३३] ~ 26~

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