Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 41
________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [५४] ------ ---------- भाष्यं [१८२०] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य 24*40, कपास पछ प्रत सुत्रांक [५४] दीप अनुक्रम [१४] A दिग्गहणेनो पत्तेयं एत्य सोहऽभत्तई। समुणादिन्ते(चित्ते)पुरिमं आदिग्गहणा पलंडम्मि ॥१८२० ॥ तण्णगवंधणमुयमा सोही एत्यं तु होति पुरिमहद । आदिग्गहणणं पुण हंसमचयूरादिएरॉपि ॥१॥ अशुसिरतणेगु निधिगतियं तु सेसपणएम पुरिमळ । अपडिलहियपणए एमासण तसबहे जंच।मू०५५॥२॥ अज्झसिरे तु कुसादी परिभोगा कारणे तु णिब्धि गति । सेसपणगं तु पंचद सपंचमेयं पुणेककं ॥३॥ पोत्थय तणपणगंवा दूसे पणगं च दुप्पडिरहे। अप्पडिलेहियसे पंचमयं चम्मपणगं च ॥४॥गंडी कच्छवि मुट्ठी छिचाटि संपुढ-श्र यपोथए वा साली बीही कोदव रालग रपणे तणाईच॥५॥अप्पटिलेहियदूसे तूली उपहाणए यणायच्वे। गंदुवहाणाऽऽलिंगिणि मसूरए थेव पोत्तमए ॥६॥ पति कोयवि पाचार पचपए तह य दादियाली या दुष्पडिलेहियदूसे एवं वितियं भवे पण.७॥ गो महिसं अया एलग मिगचर्म पंचर्म मुगेयचं अहवाचि चम्मपणर्ग एवं चितियं तु विष्णेयं ॥८॥ सलिमा खाग बजो कोसग कत्ती व पंचमं पणर्ग। एते पंच उ पणमा सयं च भेया समताता ॥९॥ ठपणमणापुच्छाए णिविसणे पिरियगृहणाए या जीएगेकासमय सेशगमायास सपणं तु ॥ मू०५६॥१८॥ ठपणकुल वाणसइदादियाइ ताई तुगुरुमणापुच्छा। परिसद णिचिसणात पटिगाहे जंतु भत्तादी ॥१॥ विरिय सामर्थ वापरणकमो चेष होन्ति एगहा। 18 गृहण गोषण नमण पलियंषणमेव एयई ॥२॥ एरिसमाचासहिए जीएणं वेज एगमतं तु।सुयषवहारे अण्णह सेसं मार्य अयो योच्छं॥३॥ भरगं माहगं मोबा, विष्णं विरसमाइरे। आयरियाग सगासे, जसोत्थी एप चितए॥४॥ सूहवित्ती महाभागो, एस साहू जितिदिजो। रसचामं करेइत्ती, अंततेहिं लाढए॥५॥ दप्पेणं पंचिंदियवोरमणे संकिलिकम्मे य। दीहवामासेपिय गिलाणकापावसाणेसु ॥ मू०५७॥६॥ दप्पो धमागधावणडेवणमादी तु होति णायनो। पंचिंदियवोरमणं उदयण निराहणेगई ॥७॥ कर्म तु संविलिट्ट करकम्म कुणति अंगदाणे उादीहेणऽदागेर्ण कम्म पलंबादि बहु सेवे ॥८॥ गेलग्णम्मि तु दीहे जाहाकम्मादि सम्णिहीमादी। बहुअतिवारणिसेवी सोही एत्वं तु अवसाणे ॥९॥ एयम्मि जहुदिहे पोरमणादी गित्त्रणपजते। पत्तेयं पत्तेयं सोही तू पंचकवाणं ॥१८४०॥ समोवहिकप्पम्मि य पुरिमत्ताहणेय परिमाए। चाउम्मासे बरिसे य सोहगं पंचकाता म०५८॥१॥ पाउ सकाले सरोबाहिम्मि जयणाविऽकप्पिए सोही। पुरिमत्ताएँ पमाया चरिमाएँ अपेहिते चेत्र ॥२॥उपही घोयवसाने पुरिमत्ताहणाएँ चरिमाए।पत्तेचं पत्तेयं सोहत्य पंचकहा ॥३॥ चाउम्मासिय परिसे गिरतियारे यञ्चस्स दाया। आलोइयम्मि सोही णियमेणं पंचकहाण ॥४॥कि कारणमिह सोही भिरतियारेऽपि दिगए एक चोयग! सहमऽतियारे कएनिस वि जाणति कयाति ॥५॥ अहरण संभरती तुजह पायोसीय अड्वरत्तीए। रत्तिय पाभाइय अमाहणा काल अतिवारं ॥ ६॥सुत्तत्यपोरिसीअकरमम्मि दुप्पेहदुष्पमजासु। एतेण कारणं सोही तू पंचता ॥ ७॥ छेदादिमसरहयो मिउणो परियायगवियस्मविय। छेदातीएऽपि तवो जीएण गणादिवाणो य ॥०५९॥ ८॥ विपुलं तपमफरतो किन सन्मति छेदमूलमेण । गुरुआणामेतेणं असदहते तो देयो ॥ ९॥मतुओचि छेद मूले व दिनमाणम्मि होतिपरितहो । इहरावि बंदणिजो तिक्मत्तो तस्या देह त्वं ॥ १८५०॥ इपिहो या गविजो खलु चिरपरियाओ तहेष तववलिओ। ठेदम्मि दिजमाणे परियादी गतिओ होति ॥१॥ केत्तियमेत छिविह? नहऽपिय है तुम्भ होमि राइणिओ। एसो उ गविजो खल चिरपरिवादी मुणेयत्रो ॥२॥ नफ्यालिजो देह वर्ष अई समस्योति गपिलो होति। तम्हा तदोसहर विवरीयं तेसि दाक्ष्यं ॥३॥ गणबाहिपति आयरियो सस्सपि छेदादि होनि पत्तस्स। आप्परिणयसेहादिगु मा होजा हीलचिजोति ॥४॥धीवलसंपवणं वा पातुं कालं च तिमिह मिम्हादी। तम्हा नहोसहरं तवारिहं विजए तस्स ॥५.जंग भणियमिति तस्साबत्तीय दाणसंखे । भिष्णादिया य वोच्छ उम्मासन्ता यजीएणं ।मु०६०॥६॥ जति होति विच्छा पनि भनियमिइति जीतवहारे। पच्छित्तविसोहीत नस्सापत्ती पणगमादी दाणं णिनितिमादी मेव विलेसेणमेत्य भनिहामि। संखेयो तु समासो किह गरि जीएण मगितमिहं? ५८॥कम्ही या भणियोती गुस्याह मिसीहकप्पववहारे। युत्तत्ययो यभणिय आणादि सवित्वरेण तु॥९॥ पानादीउम्मासारसाणआवत्तिचिरयणाओ यागनिहा भनिताबो मिसिहाविस बित्वरेणं तु.१८६ह पूण जीए किग्णापनिदा-1 पससेवं । मिण्णादी छम्मासा णेदाणजिएणिमं बोकं ॥१॥ भिण्णो अविसिहो बिय मासो चउरो य च सहगुरुगा। णिमितियादी अहममत्तन्ता दाणमेसेति ॥ मू०६१॥२॥ पणुवीस दिणा मिष्णो अविसिडो एस गुरु लहू वापि। अविससिओऽविसिहो एसो तू होति णायको ॥३॥ मासो लाओ गुरुओ चतुरो मासा य होन्ति लागुख्या। छम्मास्सा नहरुमा दाणं एनेसि घोच्छामि ॥४॥ पणगं दस पण्णरस बीसा पचीस जाच णिविगती। हमासे पुरिमड्ड गुरुमासे दाण भत्तिक॥५॥चऊपहुए आयाम चडनुष्य होनि दागऽभनाई। उलए छई तु लम्गुरुए दाणमट्ठमयं ॥ ६॥ णिविमतीमादीयं अहममतन्तमेव दाणति। भिण्णादी कमसो उम्मासंतापसाणाणं ॥ आइप सव्वापसीओ नवसो गाउं अहकर्म समए। जीएम दिज गिनीतिगाति दाणं जहाभिहितं । मु.६२॥दा इय एनेण कमेण एवपगारेण महप इतिसादो। सव्वाऽऽपत्ती पनगादिया नु छम्मासपजन्ता ॥९॥ गिप्पीइगमाईजोला १०४६ जीतकल्पभा - मुनि दीपरतगागर A VEENA ~ 40~

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