Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 56
________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [९४] दीप अनुक्रम [१४] 4 "जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ - • (मूलं) आष्यं [२५७०] मूलं [१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... ...आगमसूत्र [ ३८ / १ ], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं - -----RAA अचरिती ॥ २५७० ॥ तित्थगरपदमसीसं एकंची सादयंतो पारंची अत्पस्सेय जिनिंदो भयो सुत्तस्स सो जेणं ॥ १॥ आसायणपारंची एमेसो वणितो समासेणं पडिसेवणारंची एत्तो बोच्छं समासेणं ॥२॥ जो व सलिंगे दुडो कसायविसाएहिं रायवहओ य रायग्गमहिसिपडिसेचओ व बहुसो पासो प ॥ ० ९५ ॥ ३ ॥ पडिवणारंची तिथिसो बणिओ तु सुप्तम्मि दुट्टादीहिं पदेहिं समासओ हूँ पक्क्वामि ॥ ४ ॥ दुट्टो य पमन्तो या अन्योन्यसे वापसत्तो उ। एतेसि विभागं तू बोच्छामि जहकमेणेव ॥ ५ ॥ दुषो य होति दु कसायो य विसयो यदुविहो कसायदुडो सपक्लपरपक्वचतुभंगो ॥ ६ ॥ सासवणाले मुहगतए यउनुगच्छसिहरिणी चे एते सपा एसि परूवणा इणमो ॥ ७ ॥ साणा गुरुदय लक्ष्य सहितर कोहो। सामण अनुमसमन्ते गणि उत्तणाहि परिणा ॥८॥ पुच्छंतपणखाए सोचो गंतु कल्प से सरीरं । गुरु पुत्रकहित दाइय पडियरणं दन्तमंजणया ॥ ९ ॥ मुहणंतयमालवण आभियमुको गति गुरुमा कुणि निसी गंगलए लड़ओ व पात्तो ॥ २५८० ॥ सम्मूनियम तो मता दोऽवि अग्णी पुण सितो अत्यमिए गुरूहि अह भणितो ॥ १ ॥ अत्यमियम्मिपि सिकसि गरि तो बड़े रुसितो तुह उक्खणामि अच्छी खामिजतोऽविनवि पसिए ॥ २ ॥ तोषिय गणि गच्छे मतपरिण्णं करेति ने जह पदमो वरि इदं उअच्छीउनि दोकेति ॥ ३ ॥ अबरोधि सिहिरिणीए दिय साइयतो उगिरणा तत्येव तू परिणाण गच्छती गवर अण्णत्य ॥ ४ ॥ जन्हा एते दोसा तम्हा नवि व्हिवयं गुरुणा एगस्सेव तु सवं अन्यायापारसीलस ॥ ५॥ महणम्मि विही इणमो जति गहिया मतगा तु सहि सिमितेन्ताणं अलाहि जन्तमो वेति ॥ ६॥ निबन्धे यो ससि गेव्हएन एगस्स सोलिंपण गेहति बितियाएसँग गहियपि ॥ ७॥ गुरुमत्तिमं जो व मणाणुकुलो, सो गिष्हति णिरसमणिस्सयो या तस्सेव सो येष्वृति रेसिंग घोचो ॥ ८ ॥ सति लामम्मि मेहति इतरेस जाणिवून नियंतिय सावसेस जाणति उवधारभणियं च ॥ ९ ॥ गुरुरियं बालादती मण्डलि जाति जो अण्णायारमत्त गिलाणवतेऽवि ।। २५९० ॥ साणं संस न भई मंडली पहिए। पत्ते गतिं सुम्भ उन्नास तंभ मोनू ॥ १ ॥ पाहुणगडा व तयं परेतु अपि पिचेति विजय विहि अनि इति ग्रहण दोसते ॥२॥ एते सपखा परपक् उदायिमारगादीया परपनसम्म पालकादी मुतथा ॥ ३ ॥ पालको तु पुरोहितो दगपमुहाण जेण पंचसया पुद्धिं विराहिये जंतपीयाविता जतिणो ॥ ४॥ मुनिमुश्यनित्यम्मी बाएण परातिओ स पुर्वि तु खंगरणी ता पावोस जमाव ॥ ५॥ परपखो परपकले रायादी अभिमरा जहां केति परिणया बहुगा भणिता पत्तारि ते ॥ ६ ॥ एतेसि चतुष्पी पच्चित्तमहाविह पत्रक्खामि जे सासवणालादी लिंगविवेगो भये तेसिं ॥ ७॥ जोऽवि सपक्खी रामादियाण परिवहन या सोलिंग पारंची जोऽविय परिषद् तं तु ॥ ८ ॥ सम्मी व असग्गी वा जो परपनले सपनले डुडो तु तस्स सिलिंग असेसी बाचि से देना ॥ ९॥ परपक्त्रो परपक रायमादीपट्टी जोऽवि मये। तस्स सदेसे ण कप्पति कप्प अणम्मि उक्ते ॥ २६०० ॥ एसो फसाया विसयप इदाणि वच्छामि तस्सविय चतुभंगत ॥ संज कपति पदमी तर अण्णतिरिधणी बीओ परपक्से संजती उभयपरो होति चतुत्यो ॥ २ ॥ लिंगेण लिगिणीए संपत्ति जति निगच्छती पायो। गिरयाउ निषेध आसायणओ अबरोही य ॥३॥ लिंग लिंगिनीए संपत्ति जो विगच्छती पायो। समाजात संघो आसादितो तेगं ॥४॥ पावागं पावयरो दट्ट् ण बहाए हु(सु)साहूणं जो जिम णमिऊण तमेव परिसेति ॥ ५ ॥ संसारमण जातिजरामरणवणारं पापमपडलमा भमंति मुद्दाधारिणं ॥ ६॥ एसो पदमगभंगी पारंचियमेत्थ होति पछि वित्तिय गर्भगम्मि तहा अणुवरयम्मी भने परिमं ॥ ७ ॥ जत्थुष्पजति दोसो कीरति पारंचिओ स तम्हा उ सो पुर्ण सेवि असेनी गोमीयो मे ॥ ८ ॥ वहिणि वासाही तह गाम देख रन् थ। कुल गण संधे हिमाएं पारंचिओ होति ॥ ९ ॥ उवसंतोऽवि समाणो वारिजति तेसु ते ठाणे इंदि] हु पुणोषि दो साणा सेवणा कृष्णाति ॥ २६१० ॥ जेसु विहति ताओ वारिति णवर ते ठाणे पढमगर्भगे ताई सेसेसुचि ताई ठाणाई ॥ १ ॥ इत्यं पुण अधिगारी पदमण उभयदुद्वेण उच्चारियसरिसाई सेसाई विकोणा ॥ २ ॥ इति एस अभिहिओ तू उभय व रायगो रायग्गमहिसिपटिसेवओ उ अरुणा इमो होति ॥ ३॥ रायस्स महादेवी अहवा जा जस्स होति इट्टा तु सा तस्स होति अग्गा अग्ग पहाणति एमद्वा ॥ ४॥ से पडिसेबति जो तू पुगो पुणो होति बहुससदो उ लोगपगास अहवा सो पावति परिमाणं तु ॥ ५ ॥ चसदा अण्णापनि जा इडा सा दुलेसि हो अग्गा परायादी आणं सिपि जब राइस ॥ ६॥ इयरमहिला चरिमं बिजली कीस एवं पोएति भण्णइ बहुआयाया इतर अपणो देव ॥ ७ ॥ रायस्स अम्गमहिसी अप्पणी कुलगणे वा पत्थराई दोसा पागतमहिला तस्सेव ॥ ८ ॥ वलोवो सरीरे वा दोसा ण हुकुलगणादिपत्यारो एतेन कारणं इतरासु होति परिमपदं ॥ ९ ॥ सो पारची १०६१] जीवकल्पभायं १ - ~ 55 ~

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