Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । [३८/१] श्री जीतकल्प (छेद)सूत्रम् नमो नमो निम्मलदसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः । “जीतकल्प” मूलं एवं भाष्यं [मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण-विरचितं भाष्यं] [आदय संपादकः - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.।। (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.) | 12/02/2015, गुरुवार, २०७१ महा कृष्ण ८ jain_e_library's Net Publications मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र-[३८/५], छेदसूत्र-[१/१] “जीतकल्प" मूल एवं भाष्यं Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) --------- मूलं ----------- ----...--- भाष्य ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं AWARANANJANAVVVVP पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी संशोधित: संपादितश्च जीतकल्प सूत्र मुद्रित पृष्ठरुपं - शत्रुजयतीर्थे शीलोत्कीर्ण: -सुरतनगरे तामपत्रोत्कीर्ण "आगममंजुषा या: उद्धृत-छेदसूत्रम् वीर संवत २४६८ विक्रम संवत १९९८ सन् १९४२ जीतकल्प -छेदसूत्रस्य “टाइटल पेज" Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाइका: १०३ 'जीतकल्प' छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम दीप-अनुक्रमा: १०३ मलाक: पृष्ठांक: मूलांक: पृष्ठांक: ०१९ ००१ ००४ ००५ ०१३ विषय: मङ्गलम् आदि तभय प्रायश्चितं तप प्रायश्चितं मल प्रायश्चितं ०१६ विषय: ___ आलोचना प्रायश्चितं ____ विवेकाह प्रायश्चितं प्रतिसेवना पाराञ्चित प्रायश्चितं पृष्ठांक: । ०१८ ०२३ । ०५० । ०५१ । ०२२ ०२४ । ०५१ । | मुलांक: विषय: ००८ प्रतिक्रमण प्रायश्चितं । ०१८ ___कायोत्सर्ग प्रायश्चितं ०८० छेद प्रायश्चितं १०३ | उपसंहार: ०२३ ०२३ ०८३ ०५० ०७४ ०८७ । ०५७ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । ~ 2~ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ['जीतकल्प' - मूलं एवं भाष्य इस प्रकाशन की विकास-गाथा पूज्यपाद आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) के संशोधन एवं संपादन से सन १९४२ (विक्रम संवत १९९८) में ४५ आगम+वैकल्पिक दो आगम+ पांच निर्यक्तिओ एवं कल्पसूत्र को मिलाकर “आगममंजषा" नाम से करीब १३०० पृष्ठ छपे, जिसकी साइज़ 20x30 इंच थी | इस संपादनमें ६+१ छेदसूत्र भी पूज्यश्रीने मुद्रित करवाए | यहीं "आगममंजुषा" पूज्यश्री की प्रेरणा से श्री शत्रुजयतीर्थ की तलेटीमें आगममंदिरमें आरस के पट्ट पर भी उत्कीर्ण हुई और सुरतनगरमे ताम्रपत्र पर भी अंकित हुई | हमने उसी ६+१ छेदसूत्रो को फोटो-स्केन करवाया, फोटो-स्केन कोपी को पहले 'A-4' साइज़ मे लेजाकर अलग-अलग ६+१ किताबो के रुपमे रखा, फ़िर उसी को इन्टरनेट पर भी अपलोड करवाया और हमारे प्रकाशनो कि DVD मे भी उनको स्थान दे दिया | हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा आदर देखकर हमने इसी ६+१ छेदसूत्रो को प्रत-स्वरुपमें यहां सम्मिलित कर दिया, ताँकी भविष्यमे को यह न कहे कि इस संपुटमें ३९ आगम हि है, और ६ आगम कम है। एक स्पेशियल फोरमेट बनवा कर हमने बीचमे पूज्यश्री संपादित पृष्ठो को ज्यों के त्यों रख दिए, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर अध्ययन या उद्देशक तथा मूल-गाथा या भाष्य-गाथा जो जहां प्राप्त है उसके क्रमांक लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन या उद्देशक तथा सुत्र या गाथा चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके | हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रो के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस - दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है। हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहँच शकता है । अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे ख़ास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन-भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है | अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसि को मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ___......मुनि दीपरत्नसागर..... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [4/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य ~3~ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [?] दीप अनुक्रम [2] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित *****py+v ........... "जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं) भाष्यं [१] मूलं [१] आगमसूत्र [३८ / १], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं - • अत्र मंगल आदि प्रास्ताविक गाथा प्रस्तुयते (सभाष्यं) श्रीजीतकल्पसूत्रम् - तुसारेते। अहय चउविहसंयो जत्थेव पट्टियं नाणं ॥२॥ अहवा पमय पसत्ये पहाण वयणं व पवयणं तेण । अव पवत्तयतीई नाणाई पत्रयणं 'कयपवयणप्पणामो बुच्छं पच्छित्तदाणसंखेवं जीयव्यवहारगयं जीवस्स विसोहणं परमं ॥ मूलं १ ॥ १ ॥ पवयण दुवालसँग सामाइयमाइ चिंगं ॥३॥ जीवापयस्था वा उपदेसिज्जति जस्थ संपुष्णा सो उवएसो पवयण तम्मि करेता णमोकार ॥४॥ वोच्छं वस्खामित्ती पच्छित्तं दसह एय उपरिंतु वहामि सवित्र किं मणियं होनि पछि ? ॥५॥ पानं छिंदनि जम्हा पायच्छिन्नंतिमण्णते तेणं पायेण बावि चित्तं सोहयई तेण पच्छिलं ॥६॥ पणगादी आयती निविगमादि एत्य दाणं तु संखेष समासोति ओहोति व होंनि एमडा ॥ ७ ॥ किं अत्थी अण्णेऽवी ववहारा जेण जीतग्रहणं तु? भण्णति चउरत्थणे आगममादी इमे सुणसु ॥८॥ पंचविहो बहारो दुग्गइभवमुरएहि पत्तो आगम सुय आणा धारणा य जीए व पंचमए ॥ ९॥ आगमओ बहारो सुणह जहा धीरपुरिसपण्णत्तो। पञ्चक्लो य परीक्खो सोचिह दुविहो मुणेयो ॥ १० ॥ पचक्खोऽवि य दुविहो इंदियजो क्षेत्र नोइंदियजो इंदियपबक्स्वोऽयि य पंचसु बिसएस गायडो ॥ १॥ जीवो अक्खो तं पति जं वह तं तु होति पथक्सं परओ पुण अक्खस्सा यह(सं) होइ पारोक्ल ॥ २ ॥ 'अमु चावणे 'उ धाऊ अक्खो जीवो उ भण्णए नियम जं वाक्यए भावे गाणं तेण अक्लोन्ति ॥ ३ ॥ 'जस भोषणम्मि' अहवा सहदाणि भोगमेतस्स आगच्छंती जम्हा पालेड व नेण अक्लोति ॥ ४ ॥ केसिंचि इंदियाई अक्साई तदुपलदि परचक्वं तं तु जुज्जति जम्हा अग्गाहगमिदियं विसाए ॥ ५ ॥ वादीवितयाणं जीवो खलु दिएहि उब लभगो जम्हाम (ग)तमि जीवेण इंदिया उपलभे विसयं ॥ ६ ॥ तम्हा बियाणं खलु अग्गाहमिदियं भवइ सिद्धं जं इंदिएहिं नलइ तं नाणं लिंगियं होइ ॥ ७॥ लिंगं चिंध नि मित्तं कारणमेगट्टियाई एवाई जाणार इंदिएहिं जीवो धूमेण अग्गिं ॥ ८ ॥ एवं सुइदिएहिं जनम लिंगियं तयं नाणं तम्हा सिद्धं अक्खो न इंदिया पंच सोयाई ॥ ९ ॥ एत पलंगाभिहितं जह कण्हुइ इंदियाई पथक्वं अरुणा उ ईदिएहिं गातृणं वचहरे इनमो ॥२०॥ सोइदिएण सोउं तस्स व अण्णस्स चावि पडिलेवं चखिदिएण द पडिसेवितमण यार ॥ १ ॥ धूवादि गंधवासे मूर्तिगलियादियं व उवियं कंदा व गंधोबि रसोषितत्येव ॥ २ ॥ फासेणऽम्भङ्गित्यमादि फासतो अप्पमासि गाऊनं इंदियपचखेणं इय गाऊ वहति ॥ ३ ॥ गोइंदियपथको वहारो सो समासतो तिविहो। ओहि मणपज्जवे या केवलणाणे य पञ्चाक्लो ॥ ४ ॥ अच्छ ता ववहारो ओहीमादीण लक्खणं तिष्हं संखेचजो उ एवं अस्वत्थं इमं वोच्छं ॥ ५ ॥ तत्वोहिणाण पदमं सामित्ताकमविसुद्धिओ होइ तो तं वोच्छ बहुविहं केलिय मेया भवे तस्स ॥ ६ ॥ संखादीआओ खलु ओहीनाणस्स समय डीओ काई भवपचया खओवसमिया व कायोऽचि ॥ ७॥ किह संखातीयाओ पगडी ओहिस्स ? भष्णए जम्हा अंगुल असंभागा आरम्भ पाएसटीए ॥ ८॥ उकोसेणमसंखा जा लोगा होति लेत्तमाणेणं काले बाऽऽवलियाए असंखभागाउ आरम्भ ॥ ९ ॥ समउत्तरचट्टीए उकोसेणं असंल जाव भवे ओसप्पिणिउस्सप्पिणिसमयपसाणा भये पगडी ॥ ३० ॥ इस होति असंखाओ ओहिणाणस्स सपगडीओ संखातीतग्गणा ण केवलं होंतिऽसंखेज्जा ॥ १ ॥ ता होंति अनंताओ पोग्गलकायत्विकायमहिकिय संखातीति ततोऽ अना य गहिया हु ॥ २ ॥ सो पुण ओही दुविहो भवपाइयो खओवसमिओ य देवाण णारयाण व नियमा भवपचयो ओही ॥ ३ ॥ उप्पजमाणओ खलु भवपचाइओहि जत्तियो सिओ ओभासति उ बट्टी व हाणी ॥ ४॥ गुणपचइयो ओही गम्मजमणुनिरिय संखमाऊणं कम्माण वयोवसमे नयवरणिजाण उप्पले ॥ ५ ॥ अवही मज्जायत्यो परिमिनदशं तु जाणते जे (नृ ) मुत्तिमदवे विसयो ण खलु अब दवे ॥ ६ ॥ अतमकलदा ओहीणाणस्स हाँति पथक्ला ओहीणाणपरिणया दशा असत्याया ॥ ७ ॥ न पुण ओहीणाणं समासतो हिं इमं होइ। अणुगामि अणणुगामी बनय हीयमाणं च ॥ ८ ॥ पडिवाति अपडिवाली छहिमेवं तु होति विशेयं अणुगामिओ उ दुवो अंगो मझगतो ॥९॥ अंतगतोऽयि यतिषिही पुरतो तह माती य पासगओ पुरतो पुण अंतगर्त इमं तु वोच्छं समासेणं ॥ ४० ॥ जह कोई तु मणुस्सो उकं विदीव म वाऽऽदी। काउं पुरओ गच्छड पडतो व जह पुरिसो ॥ १ ॥ मग्गत अंतगतो ऊ तह चेन य गवरि मम्मतो काउं। अणुकढमाणु गच्छति अंतगतो मग्मगतो एस ॥ २ ॥ पासगनअंतगत उादि तब जाव तु मणि तु परिकमाण गच्छति अंतगर्त एतमिह भूणितं ॥ ३ ॥ जो से किंमत ? जह पुरिसो (पुरिसो जो कोइ चुलिमादीणि । १०१० जीवकल्पभाग्य Guzine, मात्र मूलसूत्र मुनि दीपरसागर ~4~ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) -------- मूलं [१...] ---- --------- भाष्यं [४४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [१] दीप कातुं सिरश्मि गवाति मागतो एस ओही उ॥४॥ ममगतऽतगयरस व जोहिणाणस को पद्दविलेसो ?। पुरतो अंतगएणं जोयण संखेजसंसा गा ॥ ५॥ पुरतो जाणति पासति एस विसेसो उ माअंतगबो। एवं तु मागतोही पासगतो व बोदडो ॥६॥ अणुगामिओ उ ओही एमेसो बज्यितो समासेणं । एतो उ अणणुगामी ओहिण्णाणं इमाऽइंसु ॥७॥ जहणाम कोड पुरिलो एग महं अगणिठाण काउंजे। तस्सेवच पेरते परिपोलण हिंडमाणोतु दाते पेव अगणिठाणं तस्थ गतो पासती ण अण्णस्या एवं जत्युपजह तत्य ठितो जाण पासइवि ॥९॥णवि जाणा जग्णस्था संखमसले उ जोयणे जो उ। ओही तु अणणुगामी समासतो एसमक्लातो ॥५०॥ अजमवसाणेहि वसन्थाएहि मुद्धमाणचारिने। सरूवरि सुनते समततो बढ़ए ओही॥१॥ तत्व जहण्णादी तू जाच उ उकोस ओहिनाणं तु। बहते परिणामे गाहाहि इमं तु वोमडामि ॥२॥जावतिया तिसमयाहारगस्स मुहमस्स पणगजीवस्सा ओगाहणा जहण्णा ओहीखेतं जहणं तु ॥३॥ सबअगणिजीचा णिस्तर जत्तियं भोजमु। खेत्तं सबदिसार्ग परमोही खेत णिविही ॥४॥ जंगुलमावलियाण मागमसंसेज दोसु संलेजा। अंगुलमापलियतो जावलिया अंगुलपहनं ॥५॥ इत्पम्मि मुहुर्ततो दिवसतो गाउयम्मि बोडयो। जोयग दिवसपुत पसंतो पणनीसाएर भाहम्मि अदमासी जीव व साहिजो मासो। पास तु मणुयलोए पासपहले वयगम्मि ॥ संखजम्मि उकाले दीवसमुहा उ होति संखेजा। कालम्मि असंखेजे दीपसमुहावि भाया ॥८॥काले पाद युइटी कालो भइयों खेलबुड्ढीए। पुदीएं दापजय भजिवत्रा खेलकाला 3 ॥९॥ सुहमो य होति कासो ततो मुहमयरय हबति खेत। अंगुलदीमेले ओसपिणीओ असंखेना॥६० ॥ तिसमयहासदीर्ण गाहाणऽहहवासरून तु। वित्परयो वग्नेजा जह हेद्वाऽऽजस्साए भणिय ॥१॥ एवं तुबहडमानो ओही उ समा-19 | सो समस्खाओ। एतो परिहार्य मोहीणा दम होनि ॥२॥अज्सवसाठाणेहिं अप्पसत्येहि वहमाण चारिते। संकिस्समाण चिते समततो डायते ओही ॥३॥ पदिश्यमाणो ओही अंगुलमार्ग तुसंखोख पा । अंगुलमेव पुहुन हत्य घणु जोअणे नह य॥४॥जोअगसायं सहसा संलमसंस्खा बजाब लोग तु (त)। पासिताण पडेजा ओहीणाव परिचाती ॥५॥ से कि अप्पडिवानि ओहिण्णाणं तु ? जो अलोगस्स। आगासपएस तू एगमत्री पासती जाच ॥ ६॥ अस्संखजापऽलोए पमाणमेत्ताई लोगसंडाई । जागइ पासति य तहा खेसोही एसमक्रवातो ॥ ७॥ एसो अप्पढिवादी ओही तु समासओ समक्खाती । सऽपेतं घाउहा दशादि समासतो वोच्॥८॥रूपी दो पिसतो दोही सेत्तत्तो इमाऽहंसु। अंगुलजस-4 समार्ग उकोसेणं इर्म बोळ ॥९॥ असंखेज्जाई अलोगे पमाणमेत्ता लोगवंटाई। जाणइ पासति य तहा खेतोही एसमक्सातो ॥ ७० ॥कालतों ओहिणाणी असंखभागं तु आप-11 सीए उसाजहण जाणति पासति वा सो उणियमेणं ॥ १॥ उस्सप्पिणिजोसप्पिणिकालमतीतं अणागतं घेर । उकोमण विजाणति पासह या एस कालोही ॥२॥भापतों ओहि-BAI ण्णाणी अणंतभाये अर्गतभागं च। जाणति पासति य नहा भापोही एसमक्खातो ॥३॥ ओही भवपतियो सबोचसमियो य वणिओं दुविहो। तस्स उबह पिगप्पा दवे खेलेय कालादी ॥४॥त मणपजवणाणं दुहितु समासतो समसान। उज्जुमती विम(उ)लमती दशादि पबिहेकेक ॥५॥ दवाओं उज्जमती तू अर्णनपएसे अननसंचा ऊ। जाणा पासति ने बिय वितिमिरसुदेत पिडलमती ॥६॥ खेलता उग्जमती तृहेलोगे जाव स्वणपुढपीए । जाणइ पासति उपरिमहेहिते सुइपयरे तु॥७॥ एते चिय अमाहिते किऊलतBए उ मुणा पासति या सुब वितिमिरतराए चिडलमती उज्जुमतिको उ॥८॥ उज्जुमती उड्ढे क जोतिसियाणं तु जाप सपरि। जाणा पासाइते बिय चितिमिरसदेत पिजलमती ॥९॥ सिरिल उज्जमती तु उदहिए तह पदीय अदहिए। पंचिदियजीवाणं सणीपजत्नयागंतु ८०॥माचे मणोगहगए सो जागड मणिजमाणे तुाते वय विमलयरे नितिE मिरसुद्धे तु विउलमती ॥१॥णवर विलेसो तु हमी अढाइयअंगुलेहि खेतं तु । तिरिउटमहे अहित वितिमिरसुवेत विउलमती ॥२॥ कालतों उज्जमती न जहण उकोसएपि पलिया। भागमसंतेजाम अतीत एस्से कानुए।३॥जागइ पासह ते तू मणिजमाणे उ सणिजीवाणं । ते रय विमती वितिमिरखने जाणा ॥४॥ भारतों उज्जमती ऊ अर्णतभावे उ मुणति पासति या सबेसि भावार्ण ते गवरमणतमागे उ॥५॥ते सो विउलमती विसुद्धवर चितिमिरे तु मावतया। जामति पासतिय तहा मणपजवणाण उमेयं तमणपजवणा जेण विजाणाति सम्णिजीवाण। बदलें मगिजमाणे मणजे माणसं मार्च ॥७॥ जाणति पिहुजणोऽचिहु फुडमागारेहि माणसं भावं। एमवमा तस्स भने मगदवपगासिए अत्ये ॥ ८॥ मगरजवणार्ण पुण जणमणपरिचितितत्यपागडणं। माणुसलेतणिवदं गुणपतितं परित्तवतो ॥९॥ उज्जुमती निउलमती जेवहती सुतंगवी धीरा। | मणपजयणाणत्ये जाणसु पहारसोहिकरे॥५०॥ पंकसलिले पसानो जह होति कमेण तह इमो जीवो। आचरणे शिजते निगुनाती केवाल जाय ॥१॥ केवल संमिष्णं तु लोगमलोग तुपासती णियमाते णस्थि जण पासति भूतं भवे भविसं च॥२॥ सोहि जियपदेसेहि. जुमचं जाणति पासई । सण यणाणेणं, पहनो अध्यमस्सा ॥३॥ अंबरे व कतो संतो, १११जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरजागा अनुक्रम [१] ~5~ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सुत्राक “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [१...]-- ---------- भाष्य [९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । बत सतु पगासती। एवं उवणतो होति, तं संभिणं तुजं वयं ॥४॥पलोगमलोग च, समतो पुश्मादिसु । स स तु जे भाषा, दबतो खेत्तकालतो ॥५॥ भावतो व जे भाषा, मयि जे तुण पासती । अभाषा गस्थिताए तु. जाणती पासतीवि प ॥६॥ अह सबदापरिणामभावविष्णत्तिकारणमर्णत। खासयमचाचाहं एगविहं केवलण्णाणं ॥ ७॥ सर्व णेयं । पहा एतस्स परूषणदयाए । गाहामुत्त अहनि जे पपिणन हेहा ॥८॥ भिण्णग्गहणं खलु कालतो तु सो पेप्पती तु एनेसि । दवाबीण पाउण्ड परिणामो फजया जाण ॥९॥ जीवाण अजीवाण व उपाययवत्तपनाया। परपथएण तिष्हं धम्मादीयाण परिणामो ॥१०॥ गतिठितिअवगाहेहि संजोगवियोगमओ यसो होइ। ओवजयादीयाण परिणामो होइ भाषाणं ॥१॥ एतेसि चिय दशादियाण कालो तु होति परिणामो। कालं पति पति मुहमादिएसु पल्यादिपरिणामो ॥२॥ दशादीपरिणाम सा जाणाति केवली अखिलें। फिर भनी परिणामो ? एयरस उकारणं णमो॥३॥ बीसलपयोगि अम्मानियाण संधाण वीसमुष्पायो। पण्णरसहा पयोगो तिमिहे कालम्मि परिणामो॥४॥ जो केवली मणूसो सोस बाह करेग्णसत्तार्ण। णियमेण अगाबाई पावर मोक्वं खविय सेतं ॥५॥ उमत्थियमाणं केवलियो ग खलु विजए न तु । जम्हा सोपसमिए बहते छाउमस्या उ॥६॥ भावे केवलणाणं वहति णियमेण खाइए मिर्च। म उ अक्सीजे मीसे लाइयभावस्स उष्पत्ती ॥ ७॥ तम्हा एगविहं खलु केवलणाणं तु होति उनपणे । जेणाऽज केवलम्मिधि (ग)पुणाऽणामोहता नेसि ॥८॥आदिगरा धम्मार्ण चरितपरमाणसणसमग्या। सात्तगणाणेण क्वहार ववहरति जिणा ॥९॥ पचावयवहारो इंदियणोइंगिएस वक्तातो। आगमजो, काहारो पारोक्खं तुम पोच्छ ॥ ११॥ पचक्लागमसरिसो होति परोक्लोचि आगमो जस्स। चंवमुहीच तु सोवि आगमनहावं होति ॥ १ ॥णात आगमियंतिय एगई जस्सी सो परायतो। सो पारोक्सो युबति तस्स पदेसा इमे होति ॥२॥ पारोक्वं ववहार आगमतो सुतपरा पवहरति। चोइसइसपुश्परा गवविध गंधहत्यी य॥३॥ कि आपमपहारी, जम्मा जीपारयो णा पाया। उपलवा तेहिं न सोहिणपचियप्पेहि ॥४॥जह केबली बियाणति वर्ष लेतं च काल भावं या तह पउलक्षणमेस सुतणाणीची पियाणाति ॥५॥ पणगं मासचिवइिंट मासिगहाणी य पनगहाणी य । एमाहे पंचाई पंचाहे व एगाई॥६॥ रागहोसविषदि हाणि या जानु देति पवावी । चोहसपुवावीवितह गाउँ ति हीणउहि ॥ ७॥ पोजगपुच्चयापचपखणागिणो वेऽपिका देति । भण्णति सुगसू एवं विहृतं बागिएण इमं ॥ ८॥ जहमोल रयणं न जामति रयणागियो णिउणो। यो महासविकासति अपसचि परत ॥९॥ अनावि कायमणिणो मुमहतस्सावि कागिणी मोतं । सरस्स तु अप्पस्सवि मोत होती सतसहस्सं ॥ १२०॥ इय मासाण पहुणविराग-र दासपचार थोपं ना रागहोमोपचया पनगेचि जिणा पहुं देति ॥१॥ पयली पचचरर्स पासानि पबिसेषगस्त सो भावं। किह जाणति पारोक्सी ? गातमिणं तत्थ धमएणं ॥२॥ णालीधमएण जिणा उपसंचार करेंनि पारोक्से । जह सो कालं जाणति सुएण सोहिंतहा सोतु ॥३॥जेणं जीवाऽजीवा उक्लदा सबभावपरिणामा। तो पुष्परा सोहि कृति सुजी. परेशेण ॥४॥ पुण केण का तू सुतणाणे जेण जीवमादीया। गजति सबभाषा केवलणामीण तं तु कतं ॥५॥ संतेवि जागमम्मी जाहे आलोतियं तु तेण भने । सम्मै गाऽऽलोएती परिषजति सारियों जाया तो तस्स उपच्छिल जेण विमुमति लग पपच्छति । आगमबहारी उशिहोवि पलिथिएं ग देति ॥ ७॥ आलोनियटिकत होती आलोषणा मियमेणं । अगलोयाम्म भयणा किह पुण भयणा भवति तस्म ॥८॥ आलोयणापरिणतो अंतर कालं को अभि(वि)मुद्दो पा। अहवाची जायरिजो एमेव य होति संपत्तो ॥९॥आ-5 राहोत नही ज सम्मालोषणापरिणतो तु। णाराहेति अपरिणयो एवं भयणा भवति एसा ॥१३०॥ अबराहं विषाणति, तस्स सोहि व जरनी। नहानाऽऽलोषणा पुता, आलोले बह गुणा॥१॥ दहि पनहिब कमखेने कालमापरिसुद्ध। बालोयणं सुणिता तो क्वहारं पठति ॥२॥दो सवितादी पाच दहा वह विगप्पेहि। पुजाणपुषिमावी कमओ एवं आलोए ॥३॥ अवाण जगए पाखेने काले सुमिक्स दुभिकले। भावे हगिलाणे सविय जह तं सहाऽऽलोए ॥४॥ अहया सहसऽष्णाणा भीएण पपेशिएग परेहि। बसणे पमाएक मुढेबरागदोसहि ॥५॥ युवं अपालिऊणं कुठे पायम्मि ज पुणो पासे । ण प तरति णिवत्तेउं पार्य सहलाकरगमेयं ॥ ६॥ अण्णातपमाए जसंपउत्तम्साणीवात्तस्स। हरिवाजय भूताये अपनी एतदणाणे ॥ ७॥भीत्रो पलायमानो अभियोगभएण वापि जंजा। पडितो व अपदितो वा पेतिजा पतिमी पागे ॥८॥ गीतारि होति पसल सिपिहो । खनु भत्रे पमादो उमिन्टसमारणात मोहो तह रागदोसा ॥९॥ एतेसि ठाणाणं अण्णयरे कारगे समुप्पण्णे। तो आगमधीमस करेंनि अलान भएणं ॥१४०॥ जदि आगमोय। आन्दोषणा परामिणविसमत नियति। एसा खल बीमंसा जो असह जेण वा सुनो ॥१॥नागमाइणि अण्णा(त्ता)णि, जेण जत्थे(नो) 3 सो भवे । रागहोसप्पहीणे वाजे पाहा चिसोहिए।२॥ सुतं अस्ये उभयं आटोषण आगमो इती उभयं। जैसे उभयंति पुत्तं तत्थेसा होति परिभासा ॥३॥ पहिलेषणालियारे अदिनामा जहकर्म सचे। नहाती पच्छिल आगमपमहारिणी तस्साशा पडिलेवगातियार जदि आ जहकर्म सचे।देति नजो पच्छित आगमक्यहारिणी तस्स ॥५॥ कहहि सा जो पुलो, जाणमाणोधि गृहनि। ण तसा (२५३) १०१२जीतकम्पभाष्य मुनि दीपरतसागर दीप 949 अनुक्रम [१] 497 ~6~ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) -------- मूलं [१...] ----- --------- भाष्यं [१४६] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । प्रत पतीसाए । सूत्राक [१] WITTPासाने दीप देनि पण्डित, पेन्ति अण्णस्य सोहय ॥६॥ण संभरनि जो बोले, सम्भाचा ग य मायया। पचक्ली साहए ते उ, माइणो उग साहई ॥ ७॥ जति आगमो य आलोषणा य दोणिवि समं ण गिनापाई। ण हु देति उ पच्छित आगमश्वहारिणो तम्स ८० जति आगमो य जालोयणा य दोनिवि समं णिपदताई। दिनि नतो पच्छित आगमयपहारिणो तस्स ॥९॥ का पुण पायपिउने दायो अणरिहोप अरिहो पा । भण्णा इणमो पुणसू अरिहो जो वा अपरिहो उ॥१५०॥ अहारसहि ठाणेहि.जो होतिऽपरिणिदिओ।नलमस्थो वारिसो होति. वहार ववहरिनए.१ अट्ठारसहि ठाणेहि. जो होति सुपरिहितो। जलमत्यो तारिलो होति, पबहारं बहरित्तए ॥२॥ अट्ठारसहि ठाणेहि. जो होड अपतिहितो। मालमत्यो नारिसो होनि. पाहार परहस्तिए ॥३॥ अहारसहि ठाणेहि, जो होनि सुपतिहितो। अलमस्यो वारिसो होइ, पवहार पहरितए ।। षयक कायठक, अपो गिहिभापर्ण। पन्नियंकर गोयर )णिसिज व्हाणे, भूसा अट्ठार ठाणेते ॥५॥ परिणिट्टियों परिणाया पतिहितो जो ठिो उ तेसु हो । अचिनू सोहि ग पाणति अहितों पुग अग्णहा कुजा ॥६॥ बत्तीसाए त नाणेहि, जो होवऽपरिणिहितो। मालमत्था नारिसो होइ, पबहार काहरितए । बत्तीलाए तु ठाणेडिं, जो होति परिणिहितो। अलमत्यो तारिलो होति, बबहार बहरिनए ॥८॥बनीसाए उठाणेहि, जो होति अपइडितो। मलमल्यो नारिसो होति, ववहार वषहरिलए ॥९. बत्तीसाए तु ठाणेहि, जो होति सुपतिहितो। अलमत्यो तारिलो होति, वहार पहरिलए ॥१६॥ अहरिहा गणिसंपय एकेका चउबिहा उ बोदका। एसा खलु बत्तीसा ने खलु ठाणा इमे हॉति ॥१॥ आयार मुयसरीरे क्यणे पायण पती पतोगमती। 13एनेस संपया खल अहमिया संगहपरिष्णा ॥२॥ एसा अहविहा खल एकेकाए पविहो भेदो। इणमो उ समासेणं वोच्छामी आणुपुष्पीए॥३॥ आयारसंपयाए संजमधुपजोगजुनया पढमा । वितिय असपाहिया अणियपचित्ती भवे नतिया ॥४॥ तनो ब युबसीले आयारे संपया पाउबेला। चरणमिह संजमो न ताहिय णिचं तु उचउत्तो ॥५॥ आयरिओ अबहमयतस्सिनचाइएहि व मदेहिं । जो होति अणुस्सित्तो सोनु असंघमाहीउत्ति ॥६॥ अणिययचारी अणियतविती अगिहोय होति जो अणिसो । णियसहापचंचलर गायब्यो पुलसीटोति ॥ बहमुत परिजितसुने विचित्तसुने य होति बोबने। घोसविसुविकरे या चहा मुतसंपदा होति ॥८॥बहमुत जुगप्पहाणे अम्भतर बाहिरंच पर जाणे। होनि सहसाणा चारिनपी सुबहुयं तु॥९॥ सगणाम व परिजिनं उधमकमयो बहुहि कमेहिं । ससमयपरसमएहिं उस्सग्गऽक्वातयोवि पितृ(जित) ॥१७॥ पोसा उदात्तमानी नेहि बिसुदं तु घोसपरिसुदं । एसा सुनोचसंपय सरीरसंपयमतो बोच्छ॥१॥ आरोहपरीणाहो तह य अगोनप्पया सरीरस्सा परिपुगिदियमाइय संघतणथिरे व बोदनो ॥२॥आरोहो दिग्पतं विश्वंभो होति तित्तिया(पिहूलया) क्षेत्र। आरोहपरिणाही य संपया एस णादव्या ॥३॥ तपु लजाए धातू अलमाणिजो अहीणसवंगो। होति अणोत्तप्पो खलु अपिकलादीन परिपुण्णों ॥४॥ पढमादीसंघयणो बन्दियसरीरो चिरो मुणेबन्यो । एमा सरीरसंपय एनो पयाम्मि योण्डामि ॥५॥ आएमा महरायणे अणिसियश्यणे नहा असंदिवे आदिन गमवको अत्यवगाट भने महर ॥६॥ अहवा अपरसश्यणो खीरासपलबिमादिजुनो बा। अहवा सूसरसूहगगंभीरजुत्रो महरखको ।। आ णिस्सिओं कोहाबीहिं रागहरोसेहि वापि यह । होनि अणिस्सियषयणो जो पयती एयवहरिनं ॥८॥ आले अफुडतं अस्थपत्ता व होति संदिवं। विवरीयमसंविदं वयणेसा संपदा चतुहा ॥९॥ पायणभेदा चनुसे विपिउहिसणा समुहिसणो या परिणित्रविया पाए णिजवणा चेन अस्वस्स ॥१८०॥ तेणेच गणेणं तुवाएपव्या परिक्तितुं सीसा । उदिसई रिजिगेज जसा जोग्ग नं नस्स ॥१॥ अपरीणामगमादी पियाणिनुमभायणे गवाएनि। जद्द आममाहियपटे अखे व ण छुम्भए स्वीरं ॥२॥ जदि हुम्भई विणस्सति गस्सति वा एवमपरिणामादी। गोहिस्से वेदमुन समुरिसपावित मेत्र ॥३॥ परिणिविया बाए जत्तियमेतं नु तरति नुग्धेनुंजाइगदिद्धतर्ण परिजिएं नाहज्य उदिसति ॥४॥ णिजपयो अन्धस्सा जो उपजागेनि अत्यो मुत्तस्स। अत्येविहिनि अत्यपि कति जे भणितं ॥ ५॥ मासंपय चउभेदा उम्गह हा अवाय धारणया। उम्गहमति उम्मेता नत्यमे हानि हम्मेवा ॥६॥ खियामहरि पाप मिस्सित नह य होयऽसंदि। ओमिन्हति एपीहा अपायमिति धारणा छ । ॥ पराइम सिम्सेण । उचास्तिमेत्तमेव ओगिरहे। खिप्पं बहुगं पुण पंचव सल गंधसता ॥८॥ बहुविहऽणेगपया जह व्हिति पहारए गहऽपिय। अक्साणगं कहेति सदसमूहं वागविहं ॥९॥णवि विस्तार पूर्व से अनिस्सिर्व जण पोथए लिहिना अणुभासिया गोष्हति निस्संकित होजसंदिवं ॥१९०॥ उमाहियात हा रहिए पच्छा अर्णतर अचायो। अबगते पच्छाधारण इंच बिसेसो इमो गई ॥१॥पर पहुन्हि पोराण उबर मिनपं नहब असंदिव। पोराण पुरा जित दुबर णय गमुक्लित्ता मशाएतो उपजोगमती पाउमिहा होति जाधीए। आय परिसं च खेतं वधूपि पाउंजए पातं ॥ ३॥ जाणति पयोग मिसजो पाहीजे. गाऽऽउरस्स छिजति उइय वाओ व कदा वा णियसत्ती माउ कातम्मा ॥४॥ पुरिस उवासगाई अड्वाची जाणगाइयं पुरिख। पूर्व नगमेऊण नाहे वाओ पउत्तमो ॥५॥ खेत १०१३जीनमायभाष्य अति दीपरनसागर अनुक्रम [१] ~7~ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) -------- मूलं [१...] ---- --------- भाष्यं [१९६] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [१] दीप मालवमाई अहवाबासाहुमाविर्य जंतुणाऊन हा विहिणा बाजोतहिं पउत्तमो॥६॥वत्यु पुन परवाई बहुबाममिजोनमाचिनाऊन राया परायमचो रास्मभहस्तभावो या ॥७॥ एसा उपओगमई एत्तो बोमामि संगइपरिणं । सावियपश्विमप्पा बीय विमागो इमो होइ॥८॥ जयजोग्ग पहे खेस वह पीडफमोमिन्छे। पासासु एते दोग्पिवित्र काले य समागए काले ॥९॥ पूए अहागुरूपिच चउत्प एसा उ संगररिया। एतो एकेडीय य इमा विमासा मुणेयच्या ॥२०॥ बासे बहुजणजोग्ग पिस्थितु गच्छपायो । पहिलेदपालतुपालगिलाणमादेसमादीनं ॥१॥ लेते असइ बहिसा ताहे गच्छवि वे उ अन्यत्या पीडकलगम्हणेबउमालती मिसिनादी ॥२॥ वासामु चिोसेणं अच कालं तु गमयअण्णास्था पाणा सीयलकृयाविनायतो गहन पासासु ॥३॥ जम्मि होति काले काय ते समाजए वम्मि । सज्झायपेहउपहीउपायणमिक्समावी तु॥४॥जाक जेणं पहाविओ तु जस्स व अहीत पासम्मि। अहवा महागुरु खलु हति रातिभियतरया उ॥५॥ तेसिं जम्मुडा बण्डमा सहय होति आधारे। उपहीण विस्तामणं च संपूषणा एसा ॥६॥ एसा खल बत्तीसा जाणति जो सो पतिहितो एत्यं । सहारे अलमल्यो बहपावि भवे इमेहिं तु॥७॥ छतीसाए ठाणेहि,जो होयऽपरिणिडिओ।गलमत्यो तारिलो होति, पबहार काहरितए ॥८॥छत्तीसाए उ ठाणेहि.जो होति अपतिहितो।मलमल्यो तारिसो होति. पयहार बाहरितए॥९॥चीसाए उठाणेहि, जो होह परिणिहितो। अलमत्यो तारिलो होति, ववहारं पहरितए ॥२१॥ छत्तीसाए उ ठाणेहि, जो हो सुपरहिलो। अलमस्थो वारिसो होति, कबहार काहरित्तए।१।जा होती बत्तीसा सम्मी छोदन रिणयपतिपत्ती चतुमेव तो होती उत्तीमा एस ठाणाणं ॥२॥ बत्तीस कम्पिय विष योण्ठ पाउमेष विनतपरिवति आपरिर्थतषासी जद विणएता भवे णिरिणो ॥३॥ आधारे सुत& विगए विक्तिपणे व होति बोयो। बोसस्स बाणिग्याओ विजए बजेस पदिक्ती ॥४॥ आधारे विणलो खालू पपिहो होति जानुपुत्रीए। संजमसामायारी नये य गणिविहरणा चेच ॥५॥ एगछविहारे या सामावारी य एस पातु। एतेसि तु विभागं वोच्छामि हामपुचीए ॥ ६॥ संयममायख सलं परं च गाइड संजमं णियमा। सीयंतथिरीकरण उवृतचरण बापरे । सो सत्तस्सो पुलपातियाण परियाषणोरपणे । परिवरिया नियमा संजमया एस बोबा ॥८॥ पक्से व पोससं कारेति तय सतं कोविऽविध । भिक्खायरियाय वाणिजति परं सर्य पापि ॥९॥ समम्मि बास्सपिई पिउँजति पर सतं च ममति गमसामाचारीए गर्ण विसीयंत चोएति ॥२२०॥ पक्लेिमपलोडणचालगिसागापपोस। सीवंतं ठाये(काडेतीसच जुत्तोतु एएस।एमालविहारावी पडिमा पढिषणए सतं पापं । पदियजावे एवं अप्पाण परं च विणएति ॥२॥ आधारविषय एसो जाम पग्गियो समासेण। एनो उ मुत्तविणर्य जहाणपुष्धि पक्वामि ॥३॥ सुतं अत्यं च सहा हितकर णिस्सेलयं च पाएछ । एसो घडम्पिको खलु मुतविणतो होति पायथ्यो ॥४॥ सुसं गाइविध जुलो जत्यं च सुणावए पयत्नेन। जं जला होति जोग्गं परिणामगमावि तुहियं ॥५॥ निस्सेसमपरिक्षेसं जाच समतं तुलाप पाएति। एसो सुसविणयो खल बोच्छ विक्रवणावि नर्थ ॥६॥ अरि विद्यखल विडं साइग्मियत्तविणएणी चुतघन्य ठाव घम्मे तस्सेच हित जमविल्लामामावम्मिपि 'लित पेरण' रिक्सिपिच परसमया। ससमते नमः निष्पने अविपन्न तरिहला माघम सहापो सम्पास जजेज पुधि का उलय। सो होवऽविद्वषो न गाहे विपुनमिष ॥९॥जह माय पियरे मिचारिडिपि गाह सम्मत। रिडं पुणे साग साइम्मित पचाये ॥२३॥धम्मो मधम्मो चरितधम्माजों ईसबाबो वा। तं ठामेति नहि पिय पुगोवि धम्म जरिडे ॥१॥ तस्सली तस्से 34 परितधम्मा दियो भारतानेसणाची नथ गिण सर्य विवहाए ॥२॥ जंहपरलोए या हितं सुई से समं पुणेतक। मिस्सेपस मोक्तो त अणुगामऽगपाए विश्लेषणविणएसो जालम पणितो समालेगा एतो तुपक्लामी विषय दोसान मिग्याते ॥४॥ बोसा साथमाई बंधो मावि अपवडीयो। मियर्थ मिचिाय वा पाय - विणासो म एगहा ॥५॥ कस्स कोरिणयण हम य दोसविणवणं जैतु। कखियकलच्याए बायप्पणिहाण पझेसा ॥६॥ सीयपरम्मा म दाई जुलललो जहर उरगरिस। कदम्स सहा कोहं पविणेती उपसमेतित्ति ॥ ७॥रहो कसापविलयावरहि भाषपय(जेच)भावयुडो मा तस्स पविणेई दोस पासपए सिए पति ॥८॥ कला उ मलपाणे परसपए आपकल एमा। तरस परिणाम संसदि अब देसेज ॥९॥चरगाइमाइएस्तु अविसमक्लोज अस्थि ा साकार िविषयमा निलो ॥२४॥जो एएमु म यह कोई (कमिथि) बोसे तहेव कैसाए। सो होति सुपणिहिजो सोमणपरिणामजुत्तो वा ॥१॥ छत्तीसेयाणि ठाणाणि, मणितामऽनुपरसो। जो कुसो एसेहि, सो पहारी समरसातो ॥२॥ अहदि बहारसहिप बसहिय ठाहिजे अपारोक्त्वा । आलोपनदोसेहिं सहिय अपारोक्त विन्नेवा ॥३॥ आलोयणागुणेरि पहिय हाणे जे अपारोक्ला। चहिय नियंठेहि पंचहिय चरितमंतेहि ॥४॥ अदायारमाही वयसकावी हवंति बनारस बसदिपायच्छिते बालोयममादिए चेष ॥५॥ आलोचणदोसेवि आकंपनमाविए । १.१४ जीतापमाप्य - मुनि दीपरनसागर अनुक्रम [१] RANAate4marp4%AN एकमल ~8~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) -------- मूलं [१...] ---- --------- भाष्यं [२४६] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । प्रत सत्राक PATAarathARATOR [१] लवसहिं तु । छहिं काएहिं कएहि प वसाह चाऽनोयण गुणेहि ॥ ६॥ आधार विषयगुण कप्पदीक्षा अससोहि उजुभायो। अजय माप लापन तही पहायकरथं च ॥७॥ मिातविषाचार पढर्म आलोयणा सहि पार्म विषयो विणासति यमाचार विषयगुणेसोटाचारित को नियमा मिरविधारित विमतिये सो बाबीविष पमासिउत्तिय पगासितो चेक एगहा ॥९॥ अतियारकप कितो याचा विसोहिजोहोति। चालोबए य आया उजमावे ठावित्रो हो।२५०॥ जपमा अजय सर्च चियालोपए कोहरामसभा. वेणं पुण अमाणि होऊण आलोए ॥१॥ अतियारगुरुमएणं अतालोतिए लह होति। मुखोजंती व तुही अतिवारहोयपहाणो ॥२॥ आलोयणागुणे जे ऊएवं हतऽपारोक्सा। छहाणयपडिएहिं सहिप बजे अपारोक्सा ॥३॥सलादीया ठाणा सहि ठाणेहिपडियाच अचान। जे संजया सरामा एसे ठाणे विनयरामा एमागमस्याहारी पल्यता रागबोसणीया। आगाएँ जिणिवाणं जे क्वहारं मनहरंति ॥५॥इयमगिए पोएवी वे बोछिन्मा (संपदं खाई। तेसु प बोधिान्येस परिष विसुदी चरितसा ॥ ५॥ चोरसपुष्वध राणं वोच्छेदो केवलीण बोच्छेदो। केसिचिव आदेसो पायलिपि बोचिये ॥आजत्तिएन सुमति पाय तस्स नाइ देति पछिस। जिगचोदसपुष्यधरा विवरीता जदिच्छाए पारगमपारर्ग का जाते जस्स जंचकरणिनंदेति तहा पथक्सी घुणक्खरसमो तु पारोक्ती ॥९॥ जाय ऊमाहिए युत्ता, मुले मग्माविराहणा। सुजो तीच देतो उ, असुबो कंप सोहए। ॥२६० ॥ देताविण दीसंती मासषउम्मासियाओं सोहीओ। कुणमानाविध सोहिम पासिमो जो बसि बेजा ॥१॥ सोहीए य अभावे बताण करतगाण प अमावे। बहति संपतिकाले नित्य सम्मत्तवाहि।२॥णिजषमा यमसंती महरितार्थ तु तेसि बोच्छेते । तम्हा संपयकाले मस्थि विसही सुपिरिया एवं बोलियम्मी आचरिलो ll मणति णहु तुमे णातं । पच्छितं कहित तू किं परवी किंवा वोजिणं ?॥४॥ अत्यं पहुच सुतं अणागतं तंतु किंचि आमसति। अत्थोवि कोवि सुक्तं अण्णागतं व आमसति॥५॥ सर्व चिय पच्छिल पवस्वानस्स ततियवत्पुमि। सत्तो विष पिज्जूर्व कप पकप्पो यवहारो॥६॥वाणि घरती अमाधि सुधतिम भणसि। बोछिन् पश्चिातं तस्या मा तू परूपणया ॥ ७॥ सपवपरूषण अणुमानणा य बल चोइस एप्पसहे। अस्थिपदीसति धमिए म विणा तित्यं च निजवए ॥८॥ पण्णवनस्स तु सपलं पहिलं बोयगरस तमणिई। न संपर्यपि विसति जहा हा मे णिसामेहि ९॥ जति पकी मोए पासार सिपिरयमणिम्मथिए।सं बढ़ राचीर्ण अमेसिळा समुष्पण्णा ॥२७॥जन्हे कारेवेमो पार साए एरिसत्ति इति तेहि। चित्तकरा पेसविया पिउणं लिहिऊण आणेह॥१५पासावस्स य मेमण हारित हि चित्सकारेहि। लीलविहूर्ण गवार आगारो होति सो पेय ॥२॥ जहर रूषादिविसेला परिहीणा होति पागतजमरसाण पते पहाति गहा मुंजंतिय तेसुने मोगे ॥३॥ एमेषय पारोक्ती तदाऽशुरूष सोच हरति।रिपुषहरित पायश्छि इम इसहा ॥४॥ आलोयण पडिकमणे मीस वियेगे तहा बियोसम्गे। सब छेद मूल अणपट्टया य पारंचिए चेव ॥५॥ एतुमारि मणिहिती सपिल्यरेणं तु आपलीए । एवं पुण जह घरती जत्था व चिमासु ॥६॥ बसहा अणुसनती जा चोरसपुनि पामसंचतगे। तेणारेषज्वविदं वित्यतिम जाप एप्पसहो ॥७॥ तम्मि कालगए नित्य, चरिच बोषिणिही-- निदोसुतुबोभिाग्येसू पोरसपुष्याति य संघयणे । तपारंचावडा पपनस पचित्त बोगिया सेस महासजतिजा तित्वं मम इसे व लिगादी। बोरे सपि ग.दीसरिS एक भगत गुरू भणति ॥९॥ वोम तु बोहिणेस बहुयिह देतवा करता यायकेयी बीसती एव मतस्स चतुगुरुया ॥२८॥ दोमुतुबोधिछन्णेमू अहमिह बेतया करेंना या पवावं बीसती जहा सहा मे मिसामेहि ॥१॥ पंच पियंठा भणिया पुलाग पाउसा कुसील निम्मंठा। तहब सिगाओ तेसि पचिा जाम बोचा ॥२॥ आलोषण परिकमणे मीस विवेगे हा विजओसग्गे । तत्तो यातये दे पमित्त पुलागे छाप्यते॥३॥ उसपडिसेषगाणं पायच्छिना हवंति सोऽपि। बेराण मवे कणे जिणक अहहा होति ॥ ४॥ आलोयणा विधेगो वा, णियंठस्स दुवे भये। विवेगो य सिणाचस्स. एमेचा पहिवतीनो ॥५॥ पंचेच संजया खलु बायसुएन कहिता जिमयो । सामाइसंजबादी पश्चिात तेति षामि ॥ ६॥ सामाइसंजताणं पच्छित्ता जेवमूलरहियहाराण जिणाणं पुष तर्गत छवि होति ॥७॥छेदोपहावणिए पायच्छिता इति सोऽपि। राण जिणा पुण मूनन अहहा होति ॥८॥ परिहारविसुदीए मूलता अहहोति पच्छित्ता। राण जिणाणं पुष छबिइमेत चिय वर्ष ९॥आलोयमा विवेगे य, ततिचं तुम विका।सहमम्मि संपराए, आक्साए नई ॥२९० पासपडिसेषया खलसिरि वा वसंजता दोनिमा नित्य अनुसनति अस्थिरतेनं तु पच्चिसं. १जदि अस्थि मीसंती नकोता 3 मणती सुस। बीसंतु उपाएनं पुष्ता तस्थिमं जातं ॥२॥जापणियो सावेषसो जिरवेपरखो व होड दुविहो तुाचारमग संतषिमयो असंतविभयो यसो विहो ।शा संतविभवो तुजाहेर ममितो साहे। देति से सत्रं । जो पुण असंतविभयो तस्ा विरोलोमो होति ॥४॥मिरवलो विधि पयसी असाच प दयघारम। सामसो पुष वसतिबयान पर्णधारमर्ग ॥५॥ १०१५जीतकस्यभाये - अतिवरलसागर एकपाका कमल दीप अनुक्रम [१] PARAN बलि सेवाओषामा विवेने र राति बाकि केरण जिलागि उन तति कृच्छामि ।। ~9~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) -------- मूलं [१...] ---- --------- भाष्यं [२९६] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक दीप जो तू बसंतषिमयो बम पेज पर पायेगा सो अप्पाच वर्णपिप धारण र मासेति ॥ ६॥ जो पुष सहती काले सो अत्यति सतियाण किलिमा यसतंपी एक उपायोसाय आजोन घरेज अमहद, असंतविमयो सत। कुणमाको यकमंतु, निविसे करिसावणं ॥अणमपेण कालेणं, सो तगं तु विमोपए।रिहतेसो भणितो, अस्थी. मणयोमो तस्स ॥ ९॥ संतषिमवेहिता चितिसंघयणेहि जे उ संपण्णा। ते आपल्या सर्व वहनि णिस्णुग्गाहं धीरा ॥३०॥ संघयणधितीहीणा असंतविभवेहि होति नाला तु। बजिरवेक्सो जवि नेसि देवि नयो नेम सुज्मनि ॥१॥ तेण परिचन्ता लिंगविवेगं तु काउ नति। वित्युच्छेदो एवं अप्याविय चल णमो उ ॥२॥से उद्धेनु पलाणा पच्छा एगाणियो | क्यो होनिाताई किनुकरेत ? एवं अप्पा परिचतो ॥३॥ साविक्लो परयणम्मी अणवत्वपलंगवारणाकुमलो। चारित्तरक्तगट्ठा अशोपिछत्तीय विसुज्झे ॥४॥ कालाणगमावणे असनि जाकमेण काउंजे। बस कारेंति चनुत्ये सम्बिटनायबिलावे या५॥ एकासण पुरिमइदा गिधिगती व विगुणविगुणाओ। पत्तेयासहुदाणं कारतिय सपिणगासंति ॥ ६॥ चाउनिगगयाहाणा एर्ग कसाणमंचकारिता जे जो उतरति तं तस्स देति अलाइस मोसेंति ॥७॥ एवं सदय बिजनि जेणं सो संजमे थिरो होति। ण प साहा ग दिजा अणपत्यपलंगनोसाओ॥८॥ तिहारगदिईतो पसगडोसेण जहाई पत्तो। जमणीय बगच्छेयं पत्ता अणिचारयन्ती तु॥९॥ निम्मन्यलाइ चिनियाए वारिओ जीविभादिआभागी। गेवर यथणवादी पत्ता जमनीय अपराई। ३१०॥जय अणियारियडोसा संसार तुक्खसागरमुनि। बिगियत्तपर्सगा पुण करेंनि संसारचोच्छेद ॥१॥ एवं करेंति सोही देत करतावि एवं दीसनि पिय सणणाणेहि जाति तित्यति त सुगम् ॥२॥ एवं तु भणतेणं सेणियमादीवि वाचिया समणा । समणस्स उ मुलम्मी जत्थी गरएम उपघाती ॥ ३॥ अपियर एकवीस & पाससहस्सा होहिती नित्यानं मिच्छा सिद्धी वा सवगतीसुपि होनाहि ॥४॥ अज्वाइमो दोसो पच्छिताभावतो न पावडर। जहनदि चिट्ठति पर नत्थम गाहमाय ॥५॥ पायतिले असतम्भि, परिलपि ण चिट्ठति। चरित्तम्मि असतमि, तित्ये गो सचरितया ॥६॥ अचश्तियाए नित्ये, शापि ण माती। शाणम्य असंतस्मि.समा रिक्सा गिर13 स्थिया ॥७॥ण विणा नित्यं णियहिं. नियंठा अतित्वमा । कायसंजमो जाय, नाथ दुण्डाणुसजणा ॥८॥ साहिं परुविय काय महाया य समितीओ। सबेर य पणाला . संपयकालम्मि सारणं ॥ ९॥ तं गो वचन नित्यं दसणणाणेहिं एवं सिद्ध नु। णिजवगा बोचिण्णा जंपिय मणिय नुनैण तहा ॥३२०॥ सुण जह णिजवगाथी दीसनि जहा य गिज-: विजता। रविहा निजषणा जताण पोय पोदा ॥ १॥ पाओवगमे इगिणि दुविहा खल होति आवणिजवगा। निजवणा य परेण व मतपरिणाएं मोजमा ॥ २॥ पाओगम । गिगि दोम्मिपि थिईन ताच मरणाई । मतपरिणाएं विहिं बोच्छामि अहाणपुचीए ॥३॥ पनजादी काउं गेयचं नाच जावऽबोडिती । पंच तुलेलण यसो भनपरिण परिणयो य ॥४॥ सपरकमे व अपरकमे य वाचाय आणुपुत्रीय । मुलत्यजाणएणं समाहिमरणं तु कात ॥५॥ निक्युरियारसमयी जो अण्णगणं तु गंतु पाएति । एस सपरकमो लाल नवि-A रीओ भये इयरों ॥६॥ एकेक दुपिह निवाचार्य नहेच वाचार्य। बापासोविय दुविहो कालाइधरोइपरो ॥७॥ सपरकम तु नाहिय मित्राचार्य नहेच वापान। पोण्डामि समासेणं सय(इषि) अपरकम दुविहं ॥८॥ पुण अणुगेनन हारेहि इमेहि जागुपुछीए। गणिसिरणाएहि सि विभागं तु पोषामि ॥९॥ गणगिसिरणा परगणा सिनिसलेहा अगीय 3 संविगे। एगा भोगण अण्णे अणपुच्छ परिच्छ आलोए॥३३० ॥ ठाण बसही पसत्ये भिजवगा दबदायणा परिमे। हाणि परिसंत गिजर संथावतमादीनि सारेऊण पका णियापाएण पिंधकरणं चा वाघाए जयणा या मतपरिणाय कायचा ॥२॥ गणणिसिरणम्मि उ विही जो कप्पे परिणतो उसत्तविहो। सो पेव गिरवसेसो मनपरिणाए हाईपि ॥॥ अभिणपाणिमित्तरियपि गिसिरितु गणं तु सो नाहे (मिसिरितू गण वीरों गंतृण य परगणं तु सो ताहे)। कुमति दासायो अत्तपरिण परिणयो य ॥४॥कि कारण अपकम राणायोकिलाण ?/ अनुजम्मि मरणे कालुणिया मा(कालनिजत्ता)गपापातो ॥५॥ सगणे आणाहाणी अग्पत्तिय होति एपमादीहिं । परगणे गुरुकुलमासो अप्पत्तियनितो होति ॥६॥ उक्मरणमणिमित्तं तवणही दिस्सवानिगमभेदो बालादी घेराण उचियाकरणम्मि वापातो॥आसिणेहो पेलले होती, निगए उभयस्सपि। आइय वावि बाधाए, मो से होड बिउम्मभो ॥८ाबसिती भावसिती दबसिती हो बारुणिस्सेनी। भाषसिति संजमो जातीय विभंगा इमे होति ॥९॥ संजमठाणाणं कंडगाण साठितीविससाणं। उवरितापरकमण भावसिती केवल जा ॥३०॥ भावसिनीअहिगारो विशुदभावेण तत्य ठानच्यं । गहु उद्गमणको हेशिरपर पसंसति ॥ १॥ सहणा लिपिता जहण ममा तहेष उकोसा। जम्मासा परिर्स का पारस परिसा जहाकमसो ॥२॥ वितु जहण्ण ममा उकोर्स तत्व लाच बोच्छामि। जे सैलिहिऊग मुणी साहनी अप्पणो अई॥३॥ वनारि चिचित्ताई चिगनीणिहिया चत्तारि।दीस पात्यायाम अविगिह विगिढ़ कोडेक ॥४॥ संवचाराई चउरो त विचित्तं पउत्यमादीय। काऊण सच्चगुणित पारेती उम्ममपिमुवं ॥५॥ पुणरवि चउरग्णातु पिषित काऊण पिगतिवापारेति सो महप्पा णिवं पणियं च बजे ६॥ अण्णा दोषिण समाओ चढत्य काऊण पारे आयाम। जीएन तुतयो अण्णे (२५४) १०१६जीतकल्पमार्थ - मुनिवरसागर अनुक्रम [१] ~10~ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [?] दीप अनुक्रम [2] "जीतकल्प” छेदसूत्र-५/१ (मूलं) - • भाष्यं [ ३४७ ] मूलं [...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं कसम हा कार्ड ॥ ७ ॥ तत्येकं छम्मा चतुत्य च कार्ड पारेति आयामेनं नियमा चितिए उम्मासिए विगिद्धं ॥ ८ ॥ अट्टम दसम दुवाल काउं पारे तमेष आया। अन्येकहायणं तु कोटीसहितं तु काऊ ॥ ९ ॥ आयामचत्यादी काऊन अपारिए पुणो अण्णं जं कुणयायामादी तं भण्णति कोडिसहितं तु ॥ ३५० ॥ आदि उसिनो पारें हावतो आए जह दीलवन्तीखओ समं तह सरीरायुं ॥ १ ॥ बारसमम्मि य वरिसे जे मासा उवरिमा उचत्तारि पारणए तेसिं तु एकतर इमं धारे ॥ २ ॥ स उ गंडू पीस जाखेल तो मिसिरे खेलने (ते) कि कारण ? गाभरणं तु ॥ ३ ॥ लुखत्ता मुहतं मा हु सुजति तेण धारेड मा हु णमोकारस्सा अपचलो सो हु होजाहि ॥४॥ उको सिया तु एसा संतेहा ममा जहणा व संवच्छर उम्मासा एमेव य मासपरहिं ॥५॥ एतो एरेस अप्पार्थ कुजा मतपरिणं इंगिण ओमणं ॥ ६॥ अग्गीयसगासम्म मतपरिणं तु जो करेाहि ठगुरुणा तस्समये किं कारण? जेणिमे दोसा ॥ ७॥ मासेई अगीयत्यो चउरंग सबलोगसारंग जम्प चउरंगे हु सुलभं होत रंग ॥ ८॥ कि पुण रंग पुगो होति ? माणुस्सं धम्मसुती सहा वह संजमे विरियं ॥ ९ ॥ कि मासेति अगीतोपदमचितिएहि अहिओ सो उ ओभाले कालियाए तो निदम्योति उडेला ॥ ३६० ॥ अतो या बाहि या दिया व रातो वसो विचित्तोतु अहहहह पडिगमणादीणि कुलाहि ॥ १ ॥ मरिण अझाणा गच्छेतिरिय वणसुरेसुं था। संभरिऊण व वेरं परिगीयतं करेाहि ॥ २॥ अहबाब सबरीए मोयं देवाहि जायमाणस्स सो इंडियादि होया रहो साहे णिवाणं ॥ ३ ॥ कुजा कुलाचार सो बाझे तु गच्छ मिच्छतं तपचयं तु दीह मे संसारकंतारं ॥ ४॥ सो दिट्टो व विनिचितो संचिमोहिं तु अण्णसाहूहि आसासियमणुसो मरणजद पुणोषि पडिवो ॥५॥ एए अण्णे य] बहू तहिये दोसा सपनाया व एएहि कारणेहि अग्गीय व कप्पति परिष्णा ॥ ६ ॥ तम्हा पंच व उत्सन्न वादि जोयणसते समहिए था। गीयत्यपथमूलं परिममा अप रितो ॥ ७॥ एक व दो व तिथि व उको बारसेव वासाई गीयत्यपायमूलं परिमा अपरितो ॥ ८॥ गीतयदु खलु पहुंच कालं तु सम्गणा एसा ते खलु गवेसमा खेले काले परिमाणं ॥ ९ ॥ तेण य गीयत्थेनं पचयणमहियत्यससारेण विवरण समाही काया उत्तिमम्मि ॥ ३७० ॥ एवमसंवियोनी परिवतस्स होति गुरुगा। किं कारण तु तहिये जम्हा दोसा हवंति इमे ॥ १ ॥ णासेति अविग्गो चउरंग सहलीसारंग मि व चउरंगे म हु सुलहं होति च ॥ २॥ आहाकम्पिय पाजय पुष्का सीया य बहुजणे गायें। सेना संचारोऽविय उपहविय होति अनिसुद्धो ॥ ३ ॥ एते अण्णे य तहिं महवे दोसा सपचवाया य एतेण कारणं असंदिग्ध व कप्पति परिणा ॥ ४॥ लम्हा पंच व उस बाबि जोयणसने समहिए था। संकिपादमूल परिमा] अपरितो ॥५॥ एक व दो व तिष्णव उक्को बारसेव वासाई संविमापाद परियोजा अपरितो ॥ ६ ॥ संविग् हंख काले तु पचमाणा एसाने खगसमाने खेते काले य परिमाणं ॥ ७॥ तेण य संवियोणं पणगहित्यसारेण समाही काता उत्तिमम्मि ॥ ८ ॥ एसम्म निज विराणा होति कहाणी य सो सेहाविय चत्ता पावणं चे उड्डाहो ॥ ९॥ तस्सगतोमासण सेहादिजदाणे सो य परिचनो दातु व अदा वा हति सेहावि टिम्मा ॥ ३८० ॥ वह अमाणे मारेति बलपवणं च सेहा व जं पढिगया जणे अवणं पयासति ॥ १॥ यमेवाभोएवं अतिसेसि निमित्तियो व आयरिओ देवय शिवे (दया)पणे वजह पागरे कंचनपुरमि ॥ २॥ कंचनपुर गुरुसन्या देवयरुयणाय पुच्छ कणा य पारण वीर कहि आमंत्रण संपणासणया ॥ ३॥ अवादि सोपरलो पार मिष्त पाए गुरुगा असता व पविसी ॥ ४॥ सतं चेन चिरामासो, वासावासे नवस्तिर्ण नेणं तस्स दिलेलेणं, वासासु परिवर्ण ॥५॥ असियोमाड़ीएस तु पंडित हमे भवे दोसा संजम आयविराहण आणाईया य दोसा उ ॥ ६ ॥ असिवादीहि बहता ने उपरणं व संजना चत्ता उबहिं विणा य उडड चलो सो ॥ ७॥ एगो संधारगता बितियों संततिय पहिले अपत समाही तस्स व तेस व जसमाही ॥८॥ हवित्र जति वायातो वितिय तत्यठाए। चिलिमिलि जन्तरे काउं [हि] दाव जर्म ॥ ९ ॥ अणपुच्छाएं गणस्सा पडिए तं जती गुरू गुरुया चत्तारि तु विष्णेया गच्छमणि पावे ॥ ३९०॥ पाणगादीणि जग्गाणि जासिमाहिए। अनमे तस्स जा हामी परिकेसी य जायगे ॥१॥ अपरं अजोग्गो वा जोग्गोडी न जह भने एसणादिपरिकेसो. जाय तस्स बिराणा ॥ २॥ अपरिच्छ गुरुगा दोह जो जहाकमलो होति विराण दुविहा एको एको जं पाये ३ तम्हा परिष्णख रहे मावे व होति दोष सहियं तु जो परिच्छनि दक्षाएँ ॥ ४ ॥] मादणपदिवादी र मेसिन उदिते यदि उसंत ते तू अहो महिति ॥ ५॥ कि मोहिम से दहयो परिच्छा माये इ लेखि समासे ण पवित्रे ॥ ६॥ अ पुण विरुरुचे आणी दुर्गुणं आणेमोलि लिए पडिवति तेसि सो पासे ॥७॥ एवंभासी (सीने) तु परिभावयो १०१ जीत पाये - मुति दीपरलसागर ~ 11~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [१...] ---- --------- भाष्यं [३९८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य KARTy4JAre/ 4 प्रत RE सुत्राक दीप विहिमा। नेवियनंत परिच्छे विहपरिच्छाएं इणमो तु॥८॥कलमोयणो य पयसा अर्णव सभावअनुमतं तस्म। उपनीयं जो जलपरिच्छाएं सो सुदो ॥९॥ भावे पुष पुब्जिा कि सलेहो कतोलिन कयोति । इति उदिए सो ताहेतृणं अंगुलि दाए॥४०० ॥ पेच्छह वा एवं कि कतो नतोति एवमुक्तिम्मि । भगति गुरू ताग तयो एवं चिय ने ण संलीदं ॥१॥गर्ने दासलेखपुच्छे पासामि ते किस कीस ते अंगुली भग्गा?, भावं संधिमाउर! ॥२॥ भावो चिय एवं तसंलिहियग्नो सदा पयते। तेणायह साहे दिढतोऽमबकोंकणए ॥३॥ण्णा कोंकणगामचा, दोऽवि णिधिसया कता। बोबिए कैजियं छोईं, कोंकणो तपसमा गतो ॥ भणिोतए काए, अमची जा भो तुरताच पुण्णं तु पंचाहं, मेलिए णिहणं गतो ॥५॥ एवं हित लीटो, भावो जे ते तू साहणा। असलीदे ग साइग्लि, अमयो इव ते खलु ॥६० दिवाणि कसाए य, गारखे व किसे कुणान चर्य ने पसंसामो, किस साह! सरीर॥७॥ एवं परिचिऊण जदि सुबो वाहे पहिच्छति। ताहेब अत्तसोहि फोति विहिणा मेणं तु ॥८॥ आपरियपारमूलं गंतणे सति परकमे नाहे । सग अनसोही परसक्सीर्य तु काया ॥९॥जह सकुसलोबि वेजो अण्णास्स कहनि अप्पमो वाही। केजस्स बसो सोतुं वो परिकम समारमा॥४१॥ जाणतणवि एवं पायच्छिन्नविहिमपणा मिजणी हरिय पागहताय आलोएताय होति ॥१॥ उनीशगुणसमन्नागएन नेणवि अमरस काया। बालोयन निरण गरणा पण पुणो य पितियति। ॥२॥किं कारणमालोषण एवं पयत्तेण होति दायका । ममा सुणसू इनमो आलोचंतस्स जे उ गुणा ॥३॥ आचार विषयगुण कप दीपणा अत्तसोहि उजुभाषो। अजय परब साथच नही पहायजपर्ण च.४॥ पायजादी आलोषणा तु तिचतुकिय विसोही। जह अपलो तह पोकावत्रा उनिमम्मि ॥५. निम्ती वाचावी सादियाउको मुणेयम्। जो अतिवारी नेमू कयों आलोएति ने सा॥६॥णाणे विवाहपरूपण जेवा आसेवितं तवहाए। चेयणमषेयणं वा दो खेनादिसु इमं तु ॥७॥णामणिमि अवाणमेनि ओमेय अच्छति नबहा। गार्ण पागमेस्सा कुणती परिकम्मन देहे ॥ ८॥ पडिसेवति विगईजो मेहावर एसती पियति। बायंतस्सव किरिया कया तु पणगारिहाणीए ॥९॥ एमेव सणम्मिवि सरहणा परिनत्य पाणनं। एसपहस्थीयोसे पति धरणे सिया सेवा ॥ ४२०॥ बहला लिग साबण दामादी चाकमाइब()। आसेवियं गिरावजो आलोयए नेतुत्र ॥१॥पडिमेवणानिधारा जदि बीसरिया बहिचि होनाहि । तेसु कह वड़ियचं सादरमम्मि समनेनं १ ॥२॥जे मे जागति जिणा अपराहे जे जेसु ठासु। तेष आलोएई उप हितो सत्रमाण ॥३॥एवं आलोएलो पिमुखभाषपरिणामसेजुत्तो। आराहो तहवि सो गास्वपलिउंचणारहितो ॥४॥ ठान पुन केरिसय होनि पसत्यं तु नमाज जोग । मणति *जय होजा सागस 3 तस बाधाओ ॥५॥ गंधानहजड़ाऽस्मयकतऽम्मिकम्मपुरुसेव । गन्तिकरयगदेवदाम्बिल पाराहिय रायपहे ॥६॥ चोरगकोहगकतालकरकए पुफ. गसमीर या पाराममहे वियडे पागधरे पुषमणिएप ॥ ७॥पढमपिसिएसु कप्पे उदेससू उपस्सया जेतुविदिसतेय मिसिदा निरीए मरे सिना |CI उमाणे तब नमस)मूले मुण्णापर अणिमह हरिय मग्गे या एवंविहे ग ठाया होज समाहीय पाधानी ॥९॥ हरियपदिसंधारो मगसखामकरणं जहिं गरिय। चाउत्सान्या ने अगुणवेऊण ठातिर na.पाणगजोग्गाहर उनि से वन्य जत्वक उन्निा अप्परिणया व सो वा अप्पचय मेहिरक्सहा ।१॥ मुत्तमोगी पुरा जो तु, गीपायोपिय माक्तिो । सतेसाऽजारधरमेश सोपि सिर्फ तुमुन्भती ॥२॥ पहिलोम अणुलोमा पा, विसया जत्य दस्तो। वित्ता तस्य से निकलगा जामगरसचि॥३॥ पासस्योसम्मकुसीलतानपरिषभिया उणिवाया। पियधम्मऽपामीरू गुणसंपन्या अपरिलता ॥४॥जो जारिसतो कालो भरहेरखएर होति बासस । ते वारिसया तहमा अड्यालीसात मिया ॥ ५॥ अस वार संचार का पानी व अम्गवारम्मिा भने पाण विचारे काग दिसा जे समस्या या मालससं एतेसु. एकेके पटरो भये । दिसि पाउस पृष्ण एकेके, सपाली मति ॥ ७॥ एवं खलु उकोला परिहार्यती निदो मारोगीय कि णिमिन असुणकरण जाणे ॥८॥ तस्काय परिमाहारो बडो दायों तपासासापरिमकाले अतीच तना समजला ॥५॥ विगत सन औरण प्रहारस जणुषामा अष्विपिहारीगं समाहिकामाण उपाय ॥४०॥ कालसमानानुमतो पुमजासिओ सुमोचाडो पा। मोसिनति सोविया जयणाय पानिशहारे॥॥मारम्भिकोणतम ताहित पपत्तए माचो मायकषिपातिपनि नियम एवं ॥२॥किपत गोवल मे. परिणामासपि विशिसारो । मार, चोपणेब सीपयो ॥३॥चरिख च एस मुंजति सहाजण होति उमएवि। संजयगिहियान वा वो ऐति मीच शिीच ॥ िबोसिरिधीच सोला उसो. | समासामगेला जपणाए परिमाहार पर्वति ॥५॥ पासित वाणि कोबी तीरपत्नरस किमतेहि बेरमामगुणत्तो संवेगपसपनो होनि मोचा को पिवीकार प्रमेण किमनि । मेरमामणुपत्तो संवेगपरायणो होति। सा मोचा कोई मनुन्नरसपरिचतो इजादि। पाचतो देश का परोहीया ॥८॥सिपीकपाणये नावार. १५१८ जीनकापभाष्य - मनि दीपालसागर अनुक्रम [१] 19 -19 -1104 ~12~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [१...] ----- --------- भाष्यं [४४९] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सूत्राक घणाएं गोच्छेदो। परिहायमामदो गुणवडिव समाहि अनुकंपा ॥९॥ विवपरीणाम ता हावेति दिने विणे तुजा विधि विन्तिम समति उलमे सलमम्मिवि होतिमा जपणा ॥५०॥ आहारे साथ जिंदाहि गेहि तो पास्ससि। मुनमा पूर्व ते वीरपत्तो तमिच्छसि ॥१॥ हंति अपरिसंवा दिया रायो पसापरिकम्म। परियरमा मुणियरमा कम्मरय भामिरेमाणा ॥२॥जो जत्य होति कुसलो सो तुमहान सब बलम्मि । उजुत्ता सति जोगे तस्सवि दीवेति तं सहदे ॥३॥ वेदवियोगो खिप्पं व होज आवावि कालकरनेणं । दोमपि गिजरा हमाणो गच्छो उ एयद्वा ॥४॥ कम्ममसंखेममय सो अनुसमयमेव बाउत्तो। बच्चरम्मिवि जोगे समायम्मी विसेसेजे ॥५॥कम्मा काउस्सग्गे विसोसेच ॥६॥कम्म पेयापचे विससेणं ॥७॥ कम्म विसेसतो उत्तिमहम्मि ॥संचारो उत्तिमद्धे ममिसिलापलगमारि मात्रा । संचारपामावी गचीरा ऊपर वाचि ॥९॥पि असंघरमाणे कुसमादी विणि अमुसिरतणाति। तेसऽसति असंघरलेसहोज सुसिरावि तो पचा ॥४६॥ तदविजसंपर कोतव पाचारम गवय वृलि भूमीए । एमेच जनहिवासे संचारगमादि पाकि।१॥ पहिलेवन संचार पाणग उम्पसमावि मिग्राम। सयमेव करेति सहू असाहस कति अच्ने उ॥२॥काचोपचिनो बल मिक्समम पसरसो कुणति। तहविध अविसहमाणे संचारगतं तु संघारे ॥३॥ संचारों तस्स मउतो समाहित होति कायो। नविय अविसहमाणे समावि उपाहरणे ॥४॥धीपरिसपण्णले सप्पुरिमणिसे. लिए परमरम्मे । धष्णा सिलातलतले गिरावयाला जिवजति ॥५॥जदिवाव साक्याकुलगिरिकवरविसमकनगनुग्गेसु । साहति उत्तिमह चिनिधणियसहायगा धीरा ॥६॥किं पुन अणगारसहायगेण अयोग्णसंगहवलेणं । परलोतिएपसका साहेउ अयणो बह? ॥७.जिणवयनमण्यमेयं पिउणं कमाइ सुतण। सबाह साहुमको संसारमहोवरि तरित nan सोसावाए साष्णू सनकम्मभूमीसा सम्वगुरु सबमहिया सब्जे मेम्मि अहिमिता ॥९॥ सम्मासिनि लबीहिं सम्मेवि परीसहे पाता। सम्मेनिय तित्यगरा पायोपगमेण सिदि गया ॥ ४७० ॥ अकलेसा अणगारा तीयपडप्पयाडणागया सने। के पायोपगया पथक्लाणिगिणी केयी ॥१॥ सबानो अगाओ सोवि य पदमसंघयणमा। सव्ये य वेलविरया परफ्लामेण तु मरति ॥ २॥ सवसुहप्पमकाओ जीवियसाराओ सबजणयायो। बाहाराको रतणंग विमए उत्तिम अणं ॥३॥ सेलेसि सिख विमाइ बलियोपायए पमोचूर्ण। सो सव्यावस्थं आहारे हॉति आयत्ता ॥४॥ संसारिसर्च स्वर्ग सारं जं सम्बोगरयणाना सर्व परिचात्ता पाओगया पविहरति ॥ ५॥ एवं पाओवगम णिपतिकम्यं जिनपि । जसोऊन परिणी सापपरिकम कुणति ॥६॥कोई पीसोहि पाउलिओ बेयरियो पावि। जोमासेज कया पलम वितियं च आसज ॥७॥ गीयत्वमगीयत्वं सारे सोहेतब विनोहणं कार्ड। यो परियोदय (तड) पढमेऽपगए सिया वितिएकदाहन्दिर परीसहनम् जोईतबामणे कारण। तो मरणदेसयाले कषयमनोतु आहारो ॥९॥ गाय संगामपूर्ण हा महसिलसमुसलमपणा तेसि। असुरमुरिन्वावरणं चेटग एगो गा सरस्म ॥४८॥ महसिलकंटे बहियं बईते कृणिोतु रहिएण। सखग्गवलम्गेण पहतो पहम्मि कमाए॥१॥ उफिडितु सो कणो कषयावरणम्मि तो ततो पबिती। तो तस्स कोपिएक छिण सीस सुरवणं ॥२॥ वितस्सोपणो कमयत्यानी हाजारो। सलू पीसका खलु आराहना रमपाणीया ॥जह पारियपाए पार्यकाऊण हरियणो पुरिसो। आवति तह परिन्थी बाहारे माणकरं ॥४॥ उक्गरणेहि विणो जापा पुरिलो , साबर का एच-151 उजार परिनी रिहता सत्यिमे होति ॥५॥सपए पथए जोडे, संगामे परिवाए श्यामातुरे सिक्लाए सरित समाविकामे तोरणं बाबाए बाब परोपावणोखरिया उपगरणेहिं च विमा जाहसंखमसाइमा सो ॥७॥ एवाऽमारेण विणा समाहिकामो साहएं समाहि। तम्हा समावि बायको तस्स बाहारो ॥॥ चितिसंघयणविजुत्तो असमात्यो परीसइडियासेउ पिकति चंवगपिनमा तेण विणा रुपयएनं ॥९॥ सरीरमुग्मिय जेल, को संगो तस्स मोपले । समाहिसंपणारेउ, रिगए सो सि बतिए ॥४९॥ सुब एमित ठाति, हामित्रों का दिणे दिणे। पताए उ जयमाए, तंतु गोवेन्ति अगाहिं । निधाचाएवं कालायविनिघणा विहीपूर्व काताधिकरण अधिकरणे मचे मुख्या २॥ उपगरण सरीरश्मि य अधिकरणमि इंडिओ सहिय। मग्गणगवेसनाए गामा चाय कुणति ॥३॥पगासेज लहर परीसारखएक होज बाधाओ। उप्पणे पापाए जो गीय-15 स्थाण तु उचाओ ॥४॥को गीयाण उवाओ? संलगओ ठविजए अन्यो। उच्छाए जो पायो इयरे उ गिलानपरिकामं ॥५॥ यसमो वा ठाविमति अग्णस्मसतीसबम्मि संचारे। कालगतोत्तिय कार्ड संझाकासम्मि गीति ॥ ६॥ एवं वण्यायम्मी इंडियमादीहिं होति जयमेसा । सतगमन पेसचंबा खिसण पाउरो अनुग्धाता ॥७॥ सपरकमेव मणियं निवाचार्य खदेव वाचार्य। निशापाइम इयर एतो अपरकर्म बोच्छ॥८॥ अपरकमों बलवीमो बच्चाममजाविणा गचम्मिासपरकमोसेस विधाचाती गतो एसो॥९॥वाचाति जानु। पुषी रोगाऽऽयंकेहि गरि अभिभूयो। पालमरणपिय सिया मरेज उमेरअहि.५... बालामामाचिसमयक्यिाधिमाउयकसन्निकोसलए। उसासगवरजोमासिवनी. १०१९ जीतकम्पभायं - मुनि दीपरतसागर से एकाएकामाला दीप अनुक्रम [१] ~13~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [१...] ----- --------- भाष्यं [५०१] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक दीप चायसंबदेवालेन गोषसाइन लामो होजाहि सहिउमास्यो।कन्योहमासिगादी विभंगिया अमामालेण ॥२० लाब)ोक विसर्ग विसूपिया वा सि उहिता होजा। आयको पा कोपी सयमावी उहिओ होगा।३. विनितु वारा किरिया तस्स कया णविय उपसमो जातो। जह ओमे कोसलेणं समीण पंच उ सयाई ॥४॥सणीण वा अहय मतं तु तुम दाहामि । सामंतरं पणालोन विकिय धन्.५॥तो गाउ वित्तिछे ऊसासगिरोहमादिणि कताणि । अणहीयासन्तेहिं सहवेदण ओमि साहहिं ॥६॥ एवं ता कोसलए अण्णम्मिवि जोमों होज एमेचा सहसा विपदाणे असिवम्महिया वकुमाहिआ अमिषाओ या विजू गिरिभित्ती कोणगाविसु होजा। संपदाइत्वपादादयोगबारेण होनाहि ॥८॥ एतेहि कारणेहि बाधाम मरण होनि माय। परिकम्ममकाऊर्ण पचवाई ततो भत्तं ॥९॥बह पुण जदि होजाही पंडिवमरणं तु काउ असमस्यो। उसास गदपटुं रजुगाहर्गक माहिः५१०॥ अणुपुत्रिविहारेण उस्सग्गनिवाइयाण जा सोही विहरंतएण सोही मणिता आयारलोक या ॥१॥ एसो परफ्लाणे आय परे मणिष मियाण विही। इंगिणिपायोवगमे बोच्छामी आपणिजमणं ॥२॥ पबलादी काउंगेत जाव होययोपिछत्ती। पंच तुलेवूण यसो इंगिणिमरणं ववसिओ उ ॥३॥ आयपरपरिकम्म भत्तपरिष्णाएं दो अ. गुणाना। परिवनिया य ईगिणि पउचिहाहारविस्तीय॥४॥ठाण णिसीय तुबहण इत्तरियाई जहासमाहीए । सयमेव यसो कुणती उनसम्मपरीसहहियासे ॥५॥ संघयणधितीजुत्तो गब दस पुत्रा मुलेच अंगाबाइंगिणिमरणं णियमा पडिवजा एरिसो साह॥६॥ पाजादी काउंया जाय होयडयोमानी। पंच तुलसूण यसो पायोवगम परिषतोय ॥ ७॥ विहं णायां जीहारिप तह अणीहाशिवहिता गामादी मिरिकंदरमादि गीहारिं ॥८॥मायाविलुजे अंतो उद्देउमणा य ठाय अणीहाकिम्हा पादवगमगं? ज उपमा पादये। जय ॥९॥सम विसमस्थिप परिमो अभाति जा पादवोक गियो । गिवलाणिप्पडिकम्मो मिक्खिक्ती जं जाहि अंगं ॥५२०॥ तं ठित होनि तह धिय गवरं चल परययोगातो। वापादीहि तस्स र पडिपीयावीहि तह तस्ल ॥१॥ तलपाणबीयरहिते पिचिमरियार पंडिल चिसुद्ध। णिहोंसे निहोसा उति अग्भुजय मरणं ॥२॥ पुखभविषवेरेणं देवो साहस कोनि पाताले । मा सो परिमसरीरो ग बेदन किचि पाविहिती ॥ ३॥ उप्पणे उपसग्गे दिवे माणुस्सए लिरिक्से या सवे पराजिणिता पायोपगया पहिरति ॥ ४॥ देवणानुगतिम उस्से केथी पक्वेवगं सिया कुजा। बोसवत्तदेहो हाउय कोइ पालिजा ॥५॥ अणुलोमा पडिलोमा दुर्ग तु उभयसाहिया निगं होति। अहला चित्तमचिर्न दुर्ग तिगी मीसगसमग्ण BH॥ पुढविदगमणिमास्यास्सतितसेस कोड साहस । बोसङ्गचत्तरेहो अहाउय कोई पालेजा ॥ ७॥ चितिषलजुलेहि सहि उपसग्गा असदा उ धीरेहि। निदरिसणा केहि बोच्छामि इमे समासेणं ॥८॥ मुणिमुध्ययंतेवासी खंदगमगार कुमकास्कई । देवी पुरंदरजसा हंडगि पालकमको य॥९॥ पंचसया जेनेणं कट्टेण पुरोहिएण मलिया उरागहोसनुन समकरण विततेहि ॥५३०॥ जनहि करकएहि व सत्यहि व सावरहि विविहि। देहे विवंसन्ने ण य ते माणातो फिहति ॥ १॥ परिणीययाएं को अमिलि परेज अमभपरिणामी। पारोक्गले संत जह चाणकस्स वा करिसे ॥२॥ पदिनीयपाएं कोई चम्म से लीलएहि चिहणिता । महषयमक्सियह पिपीलियाण व दिशाहि ॥ ३॥ जह सो चियपुतो पोसद्गुणिसद्चत्तरेहो छ। सोणियगंधण विचीलियाहि जह चालमित्र कनोमा मोगल्डसेलसिहरे जह सो कालासवेसिमो भगय । खाओ विउविजण देखेण सिबासको जह सो पंसिपदेसी पोसहगिसहमतदेहो उापंसीपलेहि विभिगए आगासमुज्झितो ६॥ जयंतीमुकमालो गोसदणिसदुपत्तदेहागो। धीरो सपेशियाए सिपाएं खाजो तिरनेणं ॥७॥जह ने गोहाणे बोसहुनिसहपत्तदेहागा। उबगेऽम्भमाणा वियरम्मी संकरे लामा ॥८॥जह सा पतीसघडा बोसङ्कणिसरपतहागा। धीरा पाएण उ दीपिएण डिलयम्मि ओलइया ॥९॥बावीस आणुपुच्ची तिलिस मणुयाय भसगस्याए। निसवाणुकंपरस्रवण करेज देवायमणुया बा ॥५४॥ जहगाम असी कोसा अणो कोसा असीवि खलु अन्यो। यमे अग्णो देहो अपणो जीपोति मनि ॥२॥ एगंतणिजरा से दुविहा आराहणा धुवा तस्स। अतकिरियं च साह करेज देषोपली वा ॥२॥ एवं चितिथलजुत्तो अहियासेनि पडिप्रेम उपसम्मे। एनो पुण अनुलोमे जह सहती ते नहा बोच्छ॥३॥ सकारं सम्माण व्हाणादीयाणि तत्य कुजाहि। बोसदुपत्तदेहो अहाउचं कोर पालेजा ॥४॥ पुषमवियपेमेणं देवो देषकुरुउत्तरकुराम। कोई हु साहरेणा सबसहा जन्य अगुभाषा ॥५॥ पुत्रमरियपेमेण देवो साहरति जागभषणम्मि। जहियं हवा कता सासहा होति अणुभाषा ॥ ॥जीसलक्समधरो पायोक्मयो य पागडसरीरो। पुरिससिणि कमा रापैकिंदिग्णातु गिन्हेजा ॥ 30 मजण गंध पुष्फोचधार परियारणं च कुजाहि । सा पपर रायकपणा इमेहि जुत्ता गुण गणेहिं ॥८॥गवयंगसोयमोहियाहारसरतिविसेसकुसल्या तु। योयडीमहिलगुणा मिणा य विसन्तरिकलाहि ॥९॥ दो सोय नमादिंग गवंगसोया हन्ति एले। देसीभासद्वारस सस्तीबिसेसा उ उगुवीस ॥५५॥ कोसाइगे व वीसइविहं तु एवमादिएदिन गुणेहि जुलाएरुपोषणविलासलायणकलियाए॥१॥ चउकग्णम्मिरहरसे राए रायदिग्णपसरा(पासा)ए। तिमिमगरहितही न खोभितो जो मणो मुणिगो ॥२॥ जाहे पराजया साग समस्या सीलसंदणं का। मेऊण सेलसिहरं तो सिलरि मपति नसा ॥ एतजिरा (२५५) १०२- जीतकम्पमाप्य - मुनि दीपरनसागर अनुक्रम । [१] ~14~ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [?] दीप अनुक्रम [3] "जीतकल्प” छेदसूत्र-५/१ (मूलं) मूलं [...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .... ...आगमसूत्र ........... • - [३८ / १], छेदसूत्र से दुवा] राहणावा तस्स अंतकिरिया व साहू करेन देवोववत्ति वा ॥ ४॥ एमादीहि बहुविहं दुविहं तिविहेहि ते महाभागा घोरेहिं उक्समोहिं पालिताविया ॥ ५ ॥ पुत्रावरदाहिणउन्नरेहि बाएहि आपर्यंतहि जह गवि कंपड़ मेरू तह ते झाणाओं न चडिंति ॥ ६ ॥ पदमम्मिय संपवणे पता खेलकुदसामाना तेसिपिय वोच्छेदो चउदसपुडीन योच्छेदे ॥ ७॥ एवं पावगमं विप्यहिकम्मं जिहिं पण्णत्तं तित्ववरगणहरेहि य साहूहि य सेवियमुदारं ॥ ८॥ एवं जहागुरूवा संपतिकालम अस्थि जह सोही वितिय सो हिकरा तं सज्ञेयं समस्वायं ॥ ९ ॥ एसाऽऽगमत्रहारो जहोबएस तहकम कहिओ। एतो सुतववहारं सुण वच्छ जहाणुपु ॥ ५६ ॥ णिज्जू चोरसपुविण जं भवाणासु । बहादुगर गवणीयं ॥ १ ॥ जो सुतमहिजति बहु सुत्यं च णिउण ण याणाति कप्पे महारधियण सो प्रमाणं सुधराणं ॥ २ ॥ जो सुनमहिजति सुत् वाणानि कप्पे पारम्य सो उपमाणं तराणं ॥ ३॥ कप्पस्सव विहारस्सेव परमणिउणस्स जो अत्यो न जाणति सो हारी गुन्यातो ॥ ४ ॥ कप्पम्स बिहारस्सेव परमणिउणस्स जो अत्यतो विजापति यवहारी सो अणुष्णातो ॥५॥ एसो सुतवहारो जहोबएस जहकर्म कहितो आणाएवमहारं सुब जहरू वीच् ॥ ६ ॥ समणस्स उभिम सदरमकरणे अभिमुहस्स दूरत्या जत्थ मने उत्तीसगुणा उ आयरिया ॥ ७॥ अपरकमो मि जातो संतुं कारण तु उत्पष्णं अहारसमायरे वसणगते इच्छिमी आण ॥ ८॥ अपरकमो तस्सी तुंबते सोहिकरमूलं सीसं पेसेति तहिं जहिच्छ सोहिं तुमसमीचे ॥ ९॥ सोबि अपरक्कमगती सीसं पेसेति धारणाकुसल गातु नहिं जो जोगो इमेण विहिणा परिचिता ॥ ५७० ॥ अपरक्कम य सीस आणा परिणाम परिच्छेखा सक्से व बीकाए सुने वामोहणा (णाचा महा महीरुह भणित देवे अपरिणतो बेति तयो णो वहति रुक्ख आरोढुं ॥ २ ॥ किं वा मारेको अत? तो बेहदेव रक्खातो अतिपरिणामो भणती इस हो जहवेसिन्छा ॥ ३॥ बेति गुरू अह तं तु अपरिगय अत्ये अ मासले एवं किं व मए भणितो आम्ह रुक्ले तु सम्बिते ॥ ४ ॥ तबणियमणानरुक्त्वं रुहि भवमण्णावतं संसाराग मूलं देहि मए भणितो ॥ ५ ॥ जो पुण परिणामो खलु आर मणितो तु सो विचितित पावमेते जीवाण यावपि ॥ ६॥ किं पुण पंचिदविका तुम्हणवयसि नृ वारेति गुरुवा पैने ॥ ७ ॥ एवाणच बीवाई मणिते पडिसेह अपरिणामो तु। अतिपरिणामो पोइल बंधूण जगतो तत् ॥ ८॥ पचा गुरू तंजदिवाणेही विरोहसमत्थाई सचित्ताई विभणियाई ॥ ९ ॥ परिणामो हु तत्यवि भगती आणेमि केरिसाई तु? किनियमिना वा विरोहमविरोजग्गा ॥ ५८० ॥ सोचि गुरूहि भणिओ ग नाम फलं पुणा भणीहामी हसिओ व मए वाऽसी बीमसत्यं व भणितोसि ॥ १ ॥ पदमक्सरमुदेस संधी मुत्तस्य तदुभयं पुट्ठो अक्खर वंजण कति स जहा भणितं ॥ २ ॥ एवं परिच्छिऊ जोगां नाऊण पेसवे तं तु यथाहि तस्सगास सोहिं सोऊन आगच्छ ॥ ३ ॥ अह सो गयो उ नहियं नम्स समासम्म सो करे सोहि दुनिय कविदं निविहेकाले विगभावो ॥ ४॥ दुहि तु दप्यकप्पे निहिं णाणाइणं तु अाए दये लेते काले भावेय चउहिं एवं ॥ ५॥ तिविह अनीयकाले पष्पणे व सेवियं जंतु सेविस्स वा एस्से पागडभावीगडभायो ॥ ६ ॥ किं पुण आलात? अतियार, सो इमो व अतियारो छकादीओ खलु मातथ्य जाणुपुथ्वी ॥ ७॥ वयचकं कायलकं कपो गिहिमायणं पलियंक गिसेला व सिगाणं सोहबनणं ॥ ८ ॥ तं पुण होजासेवियदप्पे अहव होज कप्पेण दप्पेण दसविहं तू हणमो च् समासेणं ॥ ९ ॥ प प गिरा लंब चियते अपत्य की सत्ये अपरिच्छ अकदजोगी अमाणुताची व गीतको ५९०॥ यायामवग्गणादी विकारण धावणं तु दप्पो उ कायापरिणतगणं अकप्पो जंवा अगीने ॥ १ ॥ सारखडिनो गागादसमुलर मोक्खन जह पुरिसो बलियाण विसमाओ ॥ २ ॥ णाणादी परिवहदी व भविस्सनि में अवयो विनयं पि सायणिसेवा होति ॥ ३ ॥ जा पुर्ण विकारणयो अपसत्थालंबणा य सेवा उ अमुवि आपरियं को दोसो वा निरालंब ॥ ४॥ जं सेवितं तु विलियं यादी अपर होवि पुणो तं पिय वियत्तकियो शिसेवंती ॥ ५॥ लवण कायभोईनि होति अपत्यो। किं पुण जो अविसुद्ध निसेवाए मादा ? ॥ ६॥ सेवंती नृ कि लए लोउरम्म यविरुद्ध परपल सपकले वा पीसत्याणमल ॥ ७॥ अपरिच्छिनुमान विमानो उ होइ अपरिच्छो तिगुणं जोगमका वितियासेवी अफडजोगी ॥ ८ ॥ विनियपदे जो तु परं तावत्ता तपती पच्छा। सो होति अणणुतावी किं पुण दप्पेण सेविता ॥ ९॥ करण भए तु संका करणे कुसंक कथाई इहलोयस्स न नाय परोए वाऽभया एसा ॥ ६०॥ एसा पियसेवा इसमेय समासती समवाया। एलो कपियसेवंचवीसविहा इमाऽऽहं ॥ १॥ दंसणणाणचरिते तवपचयणसमितिगुनिहे वा साहमिच्छा कुली गणसेव] १० ॥ २ ॥ संघस्साऽऽपरियरस य असा उदयचोरसावयनयकंताराऽऽतीवसणे २४॥ ३ ॥ भावार्ण सत्थामढाए सेवाए जंतु। १०२१ जीतायं - मुति दीपनगर भाष्यं [ ५५५ ] [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भयं ~ 15~ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) --------- मूलं [१...] ------ --------- भाष्यं [६०४] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । जम्मी मा दिविलतो रक्सिया गाए गीतकामी उ ॥५॥ एचजन्यायाणा प्रत रणकप्पे हेवा दम्पस्स दस पो लाने सुत्राक दीप माणे मुतत्यानं असंचरावणे सोपरणे एकपोता इत्मीयोसा बजत्व खेतम्मि । ततो विचिक्लमंतो सेवेऽसंघरे सबो ॥५॥हावित भए विभिडेविकागतरजाती। अभिभावमा पपय विस्त विधामा मारिबबलोहार सुनिमित्त किरिया उरीयाए। सितानि भीम या मासाविसमत तायाए। अवाणका पामेसी अण्ण बतियारिकारनेदितासकियमाई मिले जयनाए पत्य सुबोआवाले बलत्यो पमजमानेदियहिं जाइ।बहपावितरस अहा जोसह किंचीकोनाहि ॥९॥ पंचमिए कारमादिधमा उबारने किंचित क्विादि मनबनुले पाकार सिसदिशादी।६१०॥ बच्यो बसिबमुंबो, मित्वारियों अह अजहरेटिं। कुरुगनसंघ बभिचारणावि राया जा ॥१॥ आयस्थि असहु बतरा वाले मुझे बजेण तु समाही। जाचितूम देन्ती पनगावीदिनु जयनाए॥२॥विषविक्खियाविबाला पालो पाचन विक्सितो को। बुबडोची कामी दिक्सितों रक्सियहिं ॥३॥ उदयग्निचोरसाक्यमएस यमणि पत्नजलसे था। तारे पर्तबादी बवादी जा चहा ॥४॥ कोई तु बियाममणी गोजमायी बाबि होज मिक्खयो। जयनाएं वियडगाणे गाएज म गीतवसभी उ॥५॥ एयजन्मायरामादे सबसने जाणकरण लालंयो। पहिलेकिन कयाची होति पसस्थो पसत्येसु ॥६॥ एसा कम्पियसेवा परीसमिक्षा समासतो कहिता। बहुमा उचारणातूदणमो बोच्छ समासे ॥७॥ ताबेतु रणकप्पे डायरस बस परे ठाये। कप्पाहोचाउनीसह लेसिमा बहारस परा 3100 पदमस्त बकमस्सा पदमेण परेल सेवित होणा। पदमे के अष्मितरं तु पवर्म मवे ठाणे ॥९॥ परमस यकजस्ता परमेण पदेन सेवित होगा। परमे सो अस्मितरं तय जाच मिसिमतं ।। ६२०॥ पक्षमा पारसा परमेण पदेन सेविध होगा। वितिए के जस्मितरंतु पार्म मचे ठा,१॥ पामरस बकास्ता पामेच पण सेवितं होगा। चितिए एक अम्भितरे तु पच जाय तसकार्य ॥२॥ पामस्स यकजस्सा पढमेच पएम सेवियं होजातइए के अभिमा तुपाम भये ठाणं ॥३॥ पक्षमस्सय कजला पढमेण पवेज सेवियं होगा। पतिए के अस्मिता तुच जाय तु विभूशा ॥४॥ पढमममुर्चत बितियादीए तु जान इसमें तु। पदमाईनु उ पुलो पुगो चारणिमाई ५॥ इपियसेवाए तू येणं चारिवाणि अदरसा बस बहारसमिता जासीयसतं तु गाहा ॥६॥ एवं बीविजस्तविकजस्ता गाह होति सवा समाबो गाहाबो पसारि सता बत्तीसा ॥ ७॥ चितियल्स य कास्सा पामेण पवेज सेवियं होजा। पामे के अम्मितरं तु फार्म मबे ठाणे ॥८॥ एवं वितियस्ताविकजससा एप पेप गाहायो। बितिमगा। मिलावणं सबाजी माणियबाजो॥९॥ पटर्म ठाणे यो दम थिय तस्स वा भवे पढी। पदम छपक बयाई पाणविषाओ सहि पडर्म ॥६३०॥ एवं तु मुसाबायो अपच मेहुन परिम्गावे चेच चितिळके पुवादी विपके होयप्पाची ॥१॥एवं वनपयम्मी रमेचारिया उ बहरल। एवमकप्पादीसुवि एकेके होतिमहरस ॥२॥ वित्तिय कर्ज कप्पो पदमपर्व सत्य मणणिमिता पार्म छक्क पयाई तत्पचि पढमं तु पाणयहो ॥३॥ क्षण अनुम्युयन्ते पुत्रकमेचं तु चारणीचा । बझारस ठाणाई एवं माणादि एक्केमके ॥४॥ उविस महारलगा एवं एते वंति कप्पम्मिा बस हाँति अप्पम्मी समसमासेण मुण संस॥५॥ येणासीयसतं गाहाणं कप्पे होति पचारि। बत्तीसायाते समय होती तु पारस य॥६॥ सोतृण तस्स पडिसेवणं तु आलोय कमविहिना आगम पुरिसमायं परिणाम बलं चर्सच॥७॥ सो गतो सवेश संतस्सालोइयायं सत्र। जापरियाण ती परिमाग वर्स चखेतं च ॥॥सोपचारविवि अनुस(म)जिता सुतोवरेसेणं । सीसस्स देव जाणं तस्स इमं वह पच्छितं ॥९॥ पठमस्त यकजस्सा इसपिहमालोषण मिसामिला। गक्स पीला में सुक्के पण तवं कुणा ॥४०॥ पदम सुक्के समं तवं कुणह ॥१॥ पदम सुकं पसंत कुणय।२॥ पाम मुकबीस सब कुणह॥३॥ पामः पशुपीसता मुझे ॥४॥ एवं सा उपचाए अणुचाए एक पेस गाहाओ। मकरं तू अभिलायो किहे पणगादि पत्तको ॥५० पाउमासवर्ष कुणह सुक्के ॥६॥ पदम चाउम्मासं कुणा किणे पठमा सम्मासत कुणा सुके॥८पदम छम्मासत कुणा किरे ॥९॥ किंतु वसं माणं गच्छतु व तस्स साहुणो मूल। असाचारा गयो अम्बितिया मा परिवरंत ॥१५॥ पणमादिभाणई साडूमूल मवे पुणकरणं । पुषमवहाय सर्व पंचाऽऽभवमाउ उचारितु.१॥लिंगाची जो गच्छे जहम उकोसओ बमोबसो। उकोस जहन्यो वा विहरडलो बम्बितीओ उ ॥२॥ वितियस्मयकजस्सा ताहि चउपीसगं विवाणित्ता। जयकारेणाउता इवन्तु एवं मजासि ॥३॥ एवं गतृण सहि जहोबएलेज बेहि पच्छिा आणाचवहारो मगिए सो धीरपुरिसेहिं ०४॥ एसाऽऽभाववहारो जहोपएस अहम भनितो। पारनवमहारं पुण सुण पच्छ! कम बोचई ॥५॥ उदारणा विहारण संधारण संपहारमा चेव। धारणा रसारणामा एगहिसा एते॥६॥ पाचशेण उमेव उबियपधारणा उ उदारो। विविधति पगारेदि धारेयऽत्य विचारा तु॥७॥ एगीभावम्मी भी धरणे' शानि एव मावेन। धारेवत्वपयामि तुम्हा संधारणा होति ॥८॥जन्हा उ संपहारेड, पबहारं पशुंजती । तम्बा उकारने वेण, गावचा संपहारणा ॥९॥धारणपणहारेसो पजियहो तुरिले पुरिसे। १०२२ जीतकम्पमाय - मुनि दीपरमसागर अनुक्रम [१] 192752 ~16~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [२] ----- ---------- भाष्यं [६६०] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । भण्णा गुणसंपणे जास्सिए व सुमेहति ॥ ६६०॥ पपयनजसंसि परिसे अनुग्गाह(हिय)विसारए तबस्सिम्मि । सुस्मूल बहुस्सुयम्मि य विवकपरियागवृद्धिम्मि ॥१॥ एतेमु धीरपुरिसा पुरिसजाएमु किंचि सलिएम। रहिए विहासत्ता जहारिह देन्ति पच्चित्तं ॥२॥रहिए णाम असन्ते आतिहाम्मि क्यहारतियगम्मि। ताहे विहासत्ता कीमसेतृण जं भणियं ॥३॥ परिस. स्स उ अबराहं विधासत्ताण जस्स जं भगिता त देन्ती पचिर्स केण देन्ती उ4 सुगम् ॥४॥ जो पारिलो सुतस्यो अणुशोगविही य धीरपुरिसेहि। अहीणपलीणहिं जतणाजुत्तेहि दंतहिं ॥५॥ अडीणा जाणाविसु पह पहलीमा उ होन्ति तु परतीमा। कोहाबी वा पलयं जेसि मया ते पालीचा तु॥६॥ जतगाजुत्तो पयत्तव देतो जो उपरतो तु पावहिं। अहवा दन्तो इवियरमेण नोहरिएन चा॥ एसिया जे पुरिसा बत्वधरा ते मवेति जोगाउाधारणपहारणहरिङ धारणाकुसला ॥८॥ अहका जेणे या विद्वा, सोही परसा कीती। वारिसय चेष पुणो, उप्पणं कारणं तस्स ॥९॥ सो सम्मि पसे खिसेकाले पकारले पुरिसे। तारिसय अकरेन्तोष सो आराओ होति ॥६७० ॥ सो तम्मि व दो खित्ते काले य | कारणे पुरिसे। वारिसयं चिय मूतो कुधवोडाहो होति ॥१॥बबाविइमे बन्ने धारणयवहारजोग्यमुति। चारवववहारेण जे बबहार बहरंति॥२॥यायकरो वा सीसो वा देस हिंडओ वावि। दुम्मेहताण व अपधारेउं बहुं जो तु॥३॥ जस्स उ उदारिऊर्ग अत्यपयाई तु देवि आयरिया। जेहिं करेहि कर्ण ओहारे आराहि)न्तो तु सो देसं ॥४॥ धारणवबहारो अखिल जहरूम बणितो समासेणं। जीनेणं बरहा सुण मच्छ! जहामं वोच्छं ॥५॥वसक्तपरत्तो बसोबासेवितो महा। एसो उजीतकप्पो पंचमयो होति ववहारो॥६॥बत्तो सणार्म एकति अणुक्त्तो जो पुगो वितियथारे। ततियष्यारपवतो परिग्गिाहीओ महामेण ॥७॥बहुसो बहुस्सुएहिंजो पत्तो ग य निवारितो होति । बत्तगुणवत्तमाणं जीएण कत हमति एवं ॥८॥ जो आगमे य सुत्ते य सुग्णतो आम धारणाए या सो ववहारजीएम् कुमती बत्तामुक्तेन ॥९॥ असतो असुपथकतो जह असुयस्स असुएण वयाहारो। अमुअत्यषिय तह कओ असतो अभएण यवहारो ॥६८०॥ तं काणुकनंतो कबहारविहिं पयुजति जहुतं । जीतेण एस भणितो वकारो धीरपुरिसेहिं ॥ १॥ धीरपुरिसपणत्तो पंचमयो आगमो विशुपसत्यो। पियपम्मऽनमीकपुरिसजाताणुचियो य ॥२॥ सो जह कालपदी अपवितस्स निविगाय तु। मुहर्णतपिडियपाणगासवरेएपमारीम् ॥३॥ एगिन्ति णन्तपजे पण नावेऽणगाव गाडे या निधिगतियमावीर्य जा आयामन्तमुरपणे ॥४॥ विगलिवर्णवपक्षणपरियारणगाडगाउनवणे। पुरिमाविकमेण उमेत जान समर्ण तु॥५॥ पंचिदिर पहलावणऽणगावगाडे बडेच उगवणे। एगालणमायाम लमण वह पंचशा ॥६॥ एमावीको एसो भायत्रो होति जीयवहारो। अणवापिसोहिको संविग्गणगारचिनोति ॥॥ जे जीतं सायब तेण जीएम होति बहारो। जीयमसाव तेज उजीएच पहारो ॥८॥केरिस साकत केरिसर्य वा भये जसाय । केरिमयस्सव दिजाति साप बानि इयरं वा॥९॥ सार धनि(डी) इस्माला पोोण रिंगण तु सापज। इसधि पायष्ठितं होड असावजजी तु॥६९०॥ जोसम्मे बहुबोसे नियंघस पत्यगे य गिरवक्ते। एयारिसमि पुरिसे रिजति साचा जीर्य तुर॥ संविगे पियचम्मे बजपमते यजमीसम्मिा कही पमायललिए देयमसावन जीर्य तु॥२॥जंजीयमसोदिकोण तेण जीएण होति पहारो।जी सोशिक रोष उजीएच पहारो।जंजीयमलोविन पासस्थपमतसंजयाचिन् । जावि महापाचि म नेण जीएण पहारो ॥ ॥जी सोविय संधिगपरायणेच तणा एवंणविमान्य तेग 3 जीएन चारो॥५॥ एवं जहोस धीरक्दुिदेसितम्पसत्यस्स। निस्सयो पहारस्स एस कहितो समासेण ॥६को वित्यारेण यो । सूण समत्यो मिरवसेलए अत्ये। पहारो जस्स ठितं जीहाच मुहे सतसहसा ? ॥७॥ कि पुच गुणोपदेसो ववहाररस तु वितुष्पसत्यस्त। एवं मे परिकहिय सुवालसंगल्स गवणीयं E वहारे पंचसुषी विजाले फेण तवक्करेजा । आमममहारे तस्स अमावा मुतेमं तु॥९॥ सुतवहारबमाचे मबहार बमहरेज आगाए । जेणं सो उ सुतस्सा अणुसरिसो एगईसेणं | ॥७॥आणाएँ अभाषाओ मबहार मबहरेज घरणाए। जेजेसावि सुखस्सा बहत एगवेसम्मि ॥१॥धारण शंकर जीयं एवं पुण जीयकप्पे पगर्य तु जेणेसो सायेक्यो अणुसहम जाय तित्यति ॥२॥ अण्णं च- खेसं काले भावं पुरिस परिसेपणाओबाधिति बल संघय वा आचेक्सति जीयकप्पो उ॥३॥ एल पर्सनामिहितो चोयगरपणाओंण जीवस्त। वोच्छामि सोइर्ण तृ परमं सुलमाहितो एपिं॥४॥'जीपत्ति पाणधारण' पाणा पुष उमावि निहित । अहबा जी जीविस्सई य जीवति होजिओ ॥५॥ हो विसोहण सोहण जापत्यस तोपमारीरिक कम्ममलक्सउरतियस जीवरस पचितं ॥६॥ एवं पुष पछिस परम पहाति होति एगई। कसोय परसीली जीपस्स र पचिारी MEI संपरविणिजरामो मोक्तस्स पहो सको पहो वासि। सकसो य पहाणगं पठितं जंचमानस्स मू०२॥८॥ संकर पदम पिहणं एगई सो व संवरो बिहो। वेसे सो यतहा एभेष यर मिजरा इच्छिा ॥९॥ संगरियासकारो नपकम्मोषजनकम । पुषभितस्स खर्च विचिजरा सा उ माया ॥७१०॥ सेलेलि पहिलो एचरिमामयभि पामागे या महिला १०२३ जीतकरूपभाष्य - भूगि परनसागर ~17~ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सुत्राक “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३] ------ ------------ भाष्यं [७११] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य सासंवरो गिजरा य अवसेस देसम्मि ॥१॥ संवरविगिजराजो उमयमची मोक्सकारण होति। मोक्सपहो हेतु कारणति एते उ एगवा ॥२॥ एतेसिं दोहवि त यो पहोत कारण होति। एतस्सपि पछि पहानमर्ग मुणेत ३.जेम तो बास्सहा पच्छिते निक्क्ती तु इसमेवे। तेण पहाणं अंग तवस्स तू होति पच्छितं ॥४॥ गाहापच्छदे तस्सचिज भ. णिय जंबणाणस्स। गतस्ततिगाहाए सारे न त चिमं आह॥५॥ सारो चरणं वस्सा निशाणं चरणसाहनत्यं च। पच्छितं तेण तयं मेयं मोक्सास्थिणाऽवस्सं ॥३॥६॥ सामाइयमादीय सुतणार्ण बिंदुसारपजन्ता तसाविशारो चरण चरणसविहोनि मेवाणं ॥७॥णेशामरस अणकर चर चरणा बर्ष मात्रामाणविसीय पूण चारितविक्षनमा होति ॥८ चारितविमुवीए णेवाणफलं तु पावती अचिरा। सा पुण परित्तसुद्धी पच्छित्साहीण जातवा ॥९॥जन्हा एतेऽत्य गुणा पश्चिडले पणिया तु सुतम्भि। सना खानु माया दसहा मो कलात्विमा जहिम ॥७२०॥ तं दसापिहमारेषणपदिकमणोभयविवेगवोसम्मा। तवमूलजणबया व पारंचियं के मू०४ा बालोयणविंती जा मजाआ लोयचा मुख्याले। भाजपाव विगरिएणं मुमति पन्छित परमेय ॥२॥ मिच्छाकामेतेच पेज सुजाती तु पार्य तुमय विगविगति गुरुयो पदिकमणखि पति एवं ॥३॥ अणामोगेण खेलादी मिसिरितं तु होजाहि । हिंसाए य दोसे ग य आल्यो तु किंचिदवि ॥४॥जं पाच सेचितूर्ण गुरुको विगडिजती उ सम्म तगुरुसरित परिकम समयमेत मुताई ॥५॥ जंकिंचि वा गहितं अहिक अप अप ऊतु विहिना तु विनिचन्ते पति विवेगमावि ॥६॥कायचेहमेसेज गिरोदे तुसुजाती पाये। जब इस्सिमिणाधीय पच्छिते | वियोसगं ॥७॥ निधीतियमादीजो सम्मासंवो उ जत्य दिगद तु। एक तवारिह मणितं पानि छेवारि बोय ॥८॥जेच पदिसेपिएन सिकाइ जस्स पुष्परिचाओ । सत्तियमेत छिनाइ सेसमपरियायरक्सहा ॥९॥ जम्मि पडिसेवियम्मी समेतून पुश्परियाय। पुनरवि महाबाई आरोविनति मूखथि।७१०॥ जम्मि पडिसेवियम्मी अनपढ़ो विकास कीरस तु। मूलवएसं पंचसुचिमातको पच्छ होतूर्ण ॥१॥ वदोसोकरयस्स उ महायाममा कीरती तस्स। अमबहप्पो एसो एत्तो पारंचिय बोचलं ॥२॥बंधु गतीपूजनायो पारंचा मचाती तुपारं तु वपमादीच कमसो सो लिगारीरितुधा तु३॥ बालोयणमादीचं इस वा एस होति बित्यो। सहा सहाणे विमागतो नमो घोच्छामि मिनाजेन जोगा तेसुष्युत्तरस पिरतिचारसा छमत्यरस विलोही जाणो आलोयणा मणिया। मू०५ पुष करविना जे नित्यंकरगणहरोवाडा सासुत्तानुसारबो तू संगम सक्सया II डाजेतिष णिरिता जिजोगे कातमादिना तिमिाजी मुंजयती पेत्यती या तो जोमा ॥७॥षयो उ एते मालियसारि जाप उत्साम्यो। विचरायो-II मायारी जा जहियं पुत्त सुत्तम्मि ॥८॥ ते तुजया उपउत्सो असपता चिरतियारो या तदबालोयणमेसेज चेष सुखी तु छामस्सा ॥९॥छठर्म कम्यं मन्बाइ वाणाचरणं च जावरणं। मोहणिय अंतराय पनि होति माया ॥४०॥ ते तुजया करबिले उपयुत्तो कनेति चिरतिकारी यामनुतत्व कापसुदी कारगुती काचोएति ॥ १॥ गुलाह सत्य बडा मा किरिया सुरुमे आसवेसुंगा। अहम पमाचा मुहमा अविचार न जाणती तुमो ॥२॥ ते अहवास सुहमा बासोश्यमेत्तया विसुरांति ला बालोषण पोषण का णिमा तीस जोगेसाको कारयो जती तजा साहु मत्तियो चिणिविडो। पंचम गाइ समत्ता गाई छई इस बोचा ॥४॥ आहाराईग्दो तह पहियागिणमेस मेगेन । उचारविहारावणिचायजापरणारी समू०६आहारी जेसि भावी सोचना होडमो उपाहारो । म पानं लाइम साविम होती पात्य आदिमागेण पुण सेशासंचारचा स्वपापहार पाउंछमबहा बा ओहोयहाउगा पासआर गिलाणस्सा आचरिए माल मुल समए था। दुखल सेवा महोबरे व आवेसजसा पा ॥८॥ एतेसि पाउन आवारो अहर होगा सेजारी जोसहसमाणिव एमादी होज बडो उ॥९॥ एवेसि बहाए गुरु पुष्ठित्ता गुरुनगुन्याओ। मुक्तानुसारओ तु उपयुत्तों बिहीच घेत्तूर्ण 1940 आलोएतीन गुरुयो जजह गहिवं तु मत्तमारीचा सुत्तानुसारतो तृ आलोपामेत्तयो सुयो।१॥ सीसाइजई एवं विहिवर्ष होति एक्स वाली गणमेस मावतारीण मा ॥२॥ पोजग! जति एवं तु संजमजोगा उहाँति संपुच्या आहारमाश्यानं को माम परिग्गई कुमा?॥३॥ बच्चामो बोसो अग्गाणा पावती महतो जा आयरियादी पला गाणा. वीणं च घोच्दो ॥४ातमा अपरागइर्ण आहारातील होति बिहिना उा आहाराईवणे एगो पायो समत्तेसो ॥ ५॥ निगम गुष्मलामो सेलामो पाइश जिग्गामा बम मेगा जिम्मम कुलादिया मुबोमामि ॥६॥ कुलगणसंचे पाय तरबविणासले विहलेदे। एतेसि विचारणया गुस्मूल करेज निमामगं ॥७॥संधारादरीण आवा अप्पिणणत्या पाहिहारी निम्ममो गुरुमूलाओ पसहीनो पा करेजाहिदा गाहापचा ज मभितारजपनिसहोला अवणी भूमी मन्नति रोग उचारमनी। समाचविचारोत अपणीसहिजो विहारभूमी उपाययोगमा बासच्या रंगा ।। ७६०. आयरियातु अशा आमा साह अतीय संविमा। पंदणसंसपो मोबास रंगा ॥१॥ मादीमा मेण पुष सहदा सम्णाय अब ओसणा। ईसणगाइन निक्सम्म प जोसच्याउमणा ॥२॥ एवेहि कोहि गुस्मूला निगमो उ साहूण। गाहा समना मला पुण (२५६) १०२५ जीतकल्पनाये - मुनि दीपरनसागर अत्र आलोचना-प्रायश्चित वर्णयते दीप अनुक्रम [३] सिमा नाद कई नमो विगम गुरुमूला ~18~ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [७] ----- -------- भाष्यं [७६३] ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य TATOLARVANTARights रागतो होति दात दुविधा होति ममतयो मुदायका समितिविमति सत्तम बोच्छ ॥३॥ज घडण करणिज जतिणो इत्यसयबाहिरापरियं । अचियढियम्मि असुद्धो बालोएंतो तयं खुदो ॥५.७॥४॥ज चायं पुस्ती करणिज तमं तु खेत्तादी। इत्यसया आरेणं परयो काम पवक्रवामि ॥५॥लित्तपदिय पंडिल जिक्समर्ण बहव होज सहस्सा संलेनर्णयकोई आपरिवादीप कुना तु त्य सबाओं परेचं आब-13 रिथ त होज खेतादी। समितिनियुधिणिमित्त अपस्स बालोषणं कुकाम पुष हत्यसयाओ अंतो बासेवियं हजाहिरात विगविमा किंची आरन विगडिजा विधि जह पासवणलेलसिंघाणगाविउपयुत्ते मस्थि आलोया। आलोश पमतोऽमाताएं होतऽसुदो तु ॥९॥ सत्तम माह समता एसो पुच्छामि अहमंगाई। कारणनिगमेंजस्य उसप-17 रंगणाओवागमणं ॥ ७० ॥ कारणविषिमावस्त व सगजाबो परगणामकस्सविय। उक्संपया विहारे बालोयनमायारस्त ॥८॥१॥विको उनिगमो खलु कारण निकारणो गच्छामओ। अतिवादी कारणियो पिकारण रकचूमादी २॥ अतिचे बोमोयरिए रायढे मएस गेलने । गावि उत्तम समाहिकामो तुगमोमा ॥३॥आयरियपेसणावी विणिमामो गच्छयो महोजाहि कारणनिम्ममों एसो भिकारमयो इम बोच.४॥ पके घुमे पडिमा जम्मण निक्समण गाण विधा। महिम समोखरणे या सण्णायगवश्यमादिसु ॥५॥ असमत्तऽकप्पियाणं णिकारण निगमा भये एते। एते बिय कारणयो जपनाजुत्तका गीलाकारणनिणिग्गएणं गिरतीयाराणवी अवस्सं तु आलोयण दाता समितिविसुद्धीणिमि तु.७॥सा आलोयण दुविधा मोहन विमागतो यमाया। ओहो संखेषो ऊ विभागों" पुण वित्थरो अमिओ८॥ ओहो तत्व इमो खल अर्थ- 121 तरमबमासायरसपविकतस्स य हरिवं साहुसमुरिसणवेला तु ॥९॥ निसंचारो य जती भत्तद्वीक्यि हवेज जदि सो तु। ओहेण तत्व आलोतृण तो मंडलि पविसे ॥ ७८०॥ अप्या मूलगुणेमुं विराहणा अप्प उत्तरगणेसु। अप्पं पासस्थावसु बाणग्गहर्णतु ओहसा ॥१॥ अण्णाय उ बेलाए विभागालोयणात वाया। समितिविमुदिणिमित्तं एमेव य यात्रपरयोऽपि ॥२॥ एवं ता कारगिए असिवादीमियरस सगणाओ। अतियारविरहियस्सपि बालोषणमेत्तयो सुखी ॥३॥जे पहियाऽगतसाहले दुविहा होन्ति तमणेता। समणुष्ण-18 उमणुण्णा वा समणुज्ण सगच्छतो चेव ॥ ४॥ परगणे जे अमष्णा ते बुयिहा हॉति तू मुणेयवा । संविग्गमसंकिग्णा पासत्यादी असंविग्गा ॥५॥ परगणसंविग्णाजो जो साहु आगतो उ अण्णगण । तेण अबस्माऽडलोयण विमागतो होति वाय ॥६॥ उक्सपद पंचविका सुत मुहल्ले व खेत मग या विणयोषसंपयाविय पंचमिया होति नाया ॥७॥ पंचविहाएस नियमा एगविहाए व जत्य उपसंपे। निरतीयारेगप्रक्यिा विमागतोऽवस्स वावया ॥८॥विहरन्ति एगसमोइया उडवावती उगीतत्या। तत्यज्यत्व पखेने समगुणा एस गा. मि ॥९॥ एगार पणा पासे चाउम्मासेऽपि जस्पचि मिति। तत्व विभागालोयण अक्रोग्यर तेहि यशा ७२आलोयणारिहति पदम बार इय समक्रवाती परिकमणातिमेसो मितियं डार इर्म बोधं ॥१॥ गुत्तीसमितिपमत्तो(माए) गुरुणो जामायणाविषयमंगे।इच्छाईणमकरणे लटुसमुसाविष्णमुच्छाम् ॥०९॥२॥ निरि(पुरख) खणम्मिगुप्ता वाणि मणादीणि होम्ति तिम्णेचा तेहि कहिचि पमा साहु कोजाइम ॥३॥ दुधितिय दुम्भासिय दुवेद्विय एसयुनिया होति। मनमावीणं कमसो एस प्रमाओ उ साहस ॥४॥ गुत्ता होड करण्णू मणमाबीहिंतु साहूणो नि । तस्योबाहरणेतू जिपवासादी इमे बोच्छ॥५॥ मणगुतीए बहियं जिणदासो सावजो उ सेहिमतो। सो सनराइपढिम पडिवष्णो जाणसालाए॥६॥ भजुम्मामिगपातंक पे लीलजपमागमा तत्य । तस्सेष पायगुगार मंचगपा उबेऊणं ॥७॥ अणयारमायरंती पायो विजो प मंचलीलेणं । तो महंतिश्विर्ण अहियालेती सहि सम्मं ॥८॥ मगदुख्यमुप्पणं ण तस्स झामम्मि मिचलमइस्सा बठून वीच विलियं इय मणगुनी करेतया ॥९॥ मागुतीए साहू समायगपति गच्छए बढ़। चोरगह सेणाचा विमोइतो मषिउ मा साइ॥८००॥ चलिया व जन्मजत्ता सण्णायग मिलिय अंतरावा माइपितिमातिमादी सोधि नियत्तो सम तेहि ॥१॥ तेणेहि गहित मुसिया विवो तो बिन्त सो इमो समणो। अम्हेहिं गहियमुक्छो तो बेती अम्मया तस्स ॥२॥ तुम्हेहि गहिय मुखो' आर्म आणे बेति तच्छुरियं । जा जिंदामि वर्णति किती सेगावती भा॥३॥ जायजम्म एसो बिडं अईतहानि गवि सिहूं। कह पुत्तोली आमं करणवि लिडाति धम्मकहा ॥४॥ बाउको उकसतो मुकाममपि संसि मापत्ति। सबै समप्पयंती बागुती एव कातका ५॥ गगुताहरणं अदाणपवणगो जहा साहू। आवासियम्मि सत्ये ग लमति ताहि टिलं किंचि ॥६॥ लवण किहवी एगो पाओ जहि पाहाइ। तहिय ठिएगपादोसा सहा पदो ॥७॥ण प ठवितो तेचा डिलम्भि होतामेव गुत्तेणं । मुमहम्मएवि बाबा साहमिदे गई एगो ॥८॥ सकपसमा असाहहाग रेवागमो वि. उथ्यणया। मंडपति सुकुमबह जतणा सो संकमे सनियं॥९॥हत्वी विगुपिनो या आगच्छति मग्मतो गुलगुतो। जयकुमति गतीभेद गएन हत्येण उपतो।८१०॥ बेड पडतो मिठामिछदं जिय चिराहिया मेत्ति। गवि अध्यागे चिंता देयो को जर्मसतिय ॥१॥ गुतीदारं मणियं अगुतत्तोनिह पसगेन । समिईदारं वोच्छ समिती समतिवि(मितिति)माताको १०२५ जीतकरुपमाय - मुनि दीपरतसागर अत्र प्रतिक्रमण-प्रायश्चित वर्णयते ~19~ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) -------- मूलं [९] ---- ------- भाष्यं [८१३] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य ॥२॥गमणकिरिया हु समिती सामग्णे परिणयरस वा गमण। सम्ममयतित्तिसमिती सा पंचह हरियमादीयामा कह समितीसु पमाद साह करेजा तु भण्णए मुणसु । उढमहो कहरनो पमा साह पमाएको सावजनास भासति गारस्थिय ददरेवमासेजा। एमादी तु पमाओ भासाए होति णातको ॥५॥हितों गोचरम्मि संक्तिमादीस जोतनाऽयुत्तो। भिक्खाएं गहणकाले एसण एसो पमाओ तु ॥६॥ आदाणमंडगिरसेवणम्मि जो होइ एत्थमाउत्तो। एसो होति पमायो एत्य पमायम्मि उम्भंगा ॥ ७॥ महर्ग आदाणती होतिला Sणिसहो नहाऽहिवत्यम्मिा लिन पेरणे व मणितो अहिउक्खयो तु णिक्वेयो ॥८॥णवि पेहे ण पमजे णपि येहे समजनी तु विनिमंगो । पेहे ण पमज नतिओ पेह यमजे चात्यो तुर ॥५॥ जो सो चउत्प भंगो पहेति पमजती य तस्स पुणो। भंगा भनति चठरो दुपेहनुपमजणे पढमो ॥ ८२०॥ मितियो दुपेहसुपमजणम्मि तहओ सुपेहहुपमा। सुप्पडिलेहियमुष मस्जियम्मि भगो बाउत्थेसो॥१॥ आदिमभंगा तिणि अपेदापमजणे य पदमादी। लिणि उपेहादीविय भगा होति एते ऊ॥२॥ उबारे पासवणे खेले सिंघागमारियाणा Fचा परिठवणे एत्यपि र पमाइणो होति छरभंगा ॥३॥ परिठवणुचारादी उबरती तेण होति उबारो। परसवात्ति य तेणें पासपणं भण्णए काई ॥४॥ अहवरई कात्रय पायं सई या पासपणसणा। सेलरणाओ खेलो णासिगललणाओ सिंचाणो एस पमाओ मणितो पंचसु समिम इरियमादीसु।अण पर्सगेण चिय पोष्ठामिह अप्पमायं तु ॥६॥ जगमे नरविही पद पद नसति चस्पूवंचा अक्सित्तायुत्तोऽहष्णगो एल्युदाहरणं ॥ ७॥ अह अहल्पगसाहू समितीअसमीय गइट हैपन्नी। लिओ पादो विष्णो अण्णाए सचिनी बार्वि भासासमितो साहु भिक्खडा मगररोहए कोबी। णि 'बाहिकडए हिंडतो केणयी पुट्ठी॥९॥ केवाय आस हत्थी? पणगिषयो दावणमादीणि । शिविण्णमणिः विषण गगर? नो बेदम समितो ॥८३०॥ बेहण वाणामोनी समायज्माणजोगवक्वित्ता। हिंडता णवि पिच्छह नवि सुबह किहहु? तो बेति ॥ १९ पुणेति कण्णेहि. बहु अच्छीहि पेण्यति। ण य दिई मुर्य सावं. मिक्यू अक्साउमरइति ॥२॥ अहव य भासनि कजे णिखजमकारणे न भासनिय। विकइविसोनियपरिवजितो जनी भासणासमिनो ॥३॥मायालमेसणाओ भोषणयोंसे य जो किसोइति । सो एसणाए समिओ दितो इत्य वसुदेवो ॥४॥ वसुदेव अग्णजम्मे आहरण एसणाएं समिएणं । मगहा गदिग्गामे गोयम विना पका परो ॥५॥ तस्सव मारुणिमजा गम्भो तीए कया संभूत्रो। विजार मतो उम्मासि गम्भ घेजाअणी जाए ॥ ६॥ मातुलसंवइदण कम्पकरण बेपारणा अलोए । गस्थि गुहा एत्व किंचित नो बेती माउलो तं च ॥ ७॥मा सुण लोयस तुम घुयाओ विणि वासि जेट्टयरी। दाहामि को कम्म पकयो पत्ते य बीचाहे ॥८॥ सा णेचा विसष्णो माजलओ मणति अता दाहामि । सावि तहेव य णे तइयंती गेठा य साचि ॥९॥ निविष्ण नंदिवडगावरियाणं सगासि पिकवतो । जाओ उद्गुक्त्वमञो गिहा य अभिग्गहमिमं । Kamv॥ बादमिलानादीण पेयावर्थ मए तुकायत कुणा निवसनो स्वायजसो समगुमकिती ॥१॥ अस्सरहाण देवस्स आगमो कुणा दो समणकवे। अतिसारगहियमेगो अहः वीय ठियो गओ विनिओ ॥२॥ पति य गिलाणों पढितो वेषाचचं तु सरहे जो उ। सो सिगा उद्धेतू सुतं च नं नंदिसणेणं ॥ ३॥ छट्टोववासपारणगमाणितो कवल पेनुकामेण । न सुत मोनु रभमुदिओ व मण केण कति ॥ ४॥ पाणगदपतहिं जगत्थी तेण बेति कति । मिग्गय आर्डिने प्रणेसणं कुणनि ग य पाडे ॥५॥ इति एकवार वितिय च हिडिओ लव तायवाराए। अणुकंपा नरंतो गयो यतो तस्सगास तु ॥॥ खरफरमणिरेहिं अकोला सो गिलाणतो कहो। दे मंदभाग! पु(कु)किय ससिरणाममेनेणं आसाहच्यारिनि तर्मणाम अहत उरिसिड आयो। एवाएं अपत्याएनअासि भत्तलोहिको ॥ ८॥ अमयमिव मणमागो ने फरमगिरं तु सो समतो। चालणगतो खामेती पुपति यत समनरित्नं तु ॥९॥ उडेह क्यामोनी सह काहामो जहा उ अचिरेणं । होहिह गिज्या तुम्मे बेती म नरामि गंतु जे ॥८५० ॥ आरमहा पट्टीए आरुदो नाहे नो पयारंगा परमामा गंध मुगनि सो तस्स पहीए ॥ १ ॥ फारसं पनि मुष्टिय वेगविपात्रो कनोनि दुकसबिओ। इय बहुपियकोसानि पदे पदे सोनि भगवं तु ॥२॥ण गणेनी करसगिर नविरपिसहमसागंध चाचरणमिव मणलो मिच्छामी दुई भणति ॥३॥ चिते कि कोमी कह णु समाही हवेज साहस । इय बहुविहापगारं गवि निष्णो आहे सामे(सोमे) ॥४॥ नाहे अभियुणिता गतो सयो आगयी वायरोपि। आलोएर गुरूहि य पाणोति तयो समणुसहो ॥५॥जह नेणं गवि पशिष एसण इय एव साहना गि। जामा एमेसा एसणसमिती समक्खाया ॥६॥ पुषि चक्न परिक्सिय पनि जो उति गिधा बा। आयाणडनिक्वेवणाएं सो होत ह समितो ॥ ७॥ एत्यवि से बिय भंगा काया जाच होनि अंतिमती। सुपटिलेडियमुपमनिर्वच भगो चउत्यो उ ॥८॥ एसो गेजमो एत्यं तम्मुत्युत्तो स होति खलु समिती। बाहरण गुरुण मणितो साहु पचामो गामति ॥५॥ ओगाहिए पहिगहनाहे ठिया कारण मावि जायेगो मेहेड मिक्सिकनी शिओं पुण आह८६०० पेडियमेतं कि पहला पुणो होज एव सिपोरा सम्मिहितरेक्याए वितरिता तस्य १००६ जीनकल्पभाष्य - मुनिटीपरमागर Pa4%A9- 10 yoछकासकरू ~ 20~ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [९...] ----- --------- भाष्यं [८६१] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [4/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य त्यवि त विलिया सहित आज आयो होइ आत सचदाण सकारणावतादि य छविय एका तसिगाए हक तो सप्पो ॥१॥ उम्पादिए प विडो भाउहो मेति मिथाकार या समितासमिता एते उकोस जहण्णया होन्ति ॥२॥ उचारं पासवर्ण खेलादिक अण्णपाणमहियं वा। मुनिव्हए पदेसे मिसिरंतो होइ बह समिओ ॥३॥इत्यपि ते पिय भंगा तहेव समियो तु अंतिमे होति । आहरणं धम्मस्ती परिठावणसमितिमुजुनो ॥४॥ काइवऽसमाहि परिठापणे य गहितो अ मिग्नहो नेणं सक्षपसंसा जारहाण देवागम विडो ॥५॥ सुबह पिपीलियाओ बाहाडा वावि काइयऽसमाही। अग्लो बकाइयाए उनहितो बेवजं असहू ॥६॥ अयं तु काइयाडो म परिव समाहिमा अच्छा जिग्गय मिसिने जहि जहि पिपीलिया ऊसरे सत्य ॥७॥जह साडू किलामिज नाहे पीतो य परितों देवेगे। मामा व णिसिदोजी मा पिय देवोन कब आउनो॥८॥ वितु मतो देखो समितीम् एव होति जतित। एत पसंगाभिहितं आसातणणमु बोच्छामि ॥९॥ गुरुखो जायरिया तृणावादीओ उहोड आयारो। आयरण परू पणया महा सो सिमाऽप्रसाणा 100॥तीय विभासा इनमो आसावण पदयणमेपम्तिा आयो प सातणाव आया उसाडणा जा ॥१॥सा होती आसावण आओ लाभो. ति आगमो याचि। जाणादणं साया सायण पैसो विणासोति ॥२॥ आतस्स सारणती यकारलोचम्मि होह आसयणा । आवरियाणं इगमा आसपणा होडमेहिन॥३॥डहरो अकुलीणोसियाम्मेहो मग मंदमुवित्तिा अपि अप्पलाभलबी सीसो परिभवा आयरियं ॥४॥ अहवांवि वदे एवं उपदेस परस्स देन्ति एवं तु। इसयिह वेयापर्य काया सर्यण कुति ॥५॥मार विहा भासायण मणनाकारण मणपदोसादी। बायाए आसायच अंतरभासादिकृषिमा ६॥ कारणं संघण जमलित पुरतो व पचती पंचे। आगा आसायचो तुमि-17 भीमावी मुणेयवा ॥ ॥आलते पाहिले वाचारिय पुभिाए जिसड़े या। गुरुवयणा पंचते सीसस्स तुकाइमेकेके ॥८॥तुसिणीए हुंकारे किंातिय कि बड़गर करेसि?नि। कि णिपुर बदेसी । बापाविससिलिया बालने मुसिणीमादी उ हाँति णातबारावाहित्तादिय उचिव एकेकायश्मि पोवा ॥८८0 | गुरुमासायण भगिया एनो पोचा-15 मि विणय गं तुागविह अपमुठाणे अभिग्गहे आसगे च ॥१॥ आसपदाणं सकारणा य सम्माणणाय कितिकम्मे। अंजलिपाहणं अणुगती य ठितपनुपासणता ॥२॥जते पहिसंसाइण भासणमारीदिहति सकारो। सम्मानो उपहीए जो जजस्सत कुजा ॥३॥ कप्पो संचारो वा जहि बेहो अच्छत आयरियो । णायाममा काले पहिलहिय पेच अयो॥४॥कितिकम्मे परणय इत्युस्सेहो निहालदेसम्मि। अंजलिपग्गहमेत सेता उ पया हुकटोत्ता ॥५॥ एमादी विणयं जोगवि कुणती उमरियमादीण विणयम्भंगो एसो सत्तविहो जपणाणादी॥६॥माणे सण चरणे मण वा कायोक्खार सतविहो। एतेसु अपहले समासओ एस भंगो तु॥७॥ विषयम्भंगो एसो ओहेण समासओ समक्सायो। उपकाची बसहा तू अफरणेगमो तू (णमेते तु)मोचठामिठा मिच्छा तहकारी, आवसिया व मिसीहिया । आपुच्छणा व पडिण्डा, दणा व निमंतणा॥९॥ उपसंपया बकाले च्याविजकरणचा उपसोसा। लहुसमुसाचादादी एलो उ समासतो बोच्च ॥८९० ॥ पयलागते मए पचक्लाणे य गमन परिवाए। समुदेस संसडीओ सदस्य परिहा-12 यि सहीओ(स्समुही) ॥१॥अथस गमणे दिसाय एगकुले चेक एगदबाएमादी तुपदेहि मुसंतुलस गए साह ॥२॥ पयलासि किं दिवा?ण पयामि र वितिय मिन्हले गुरुतो। अण्णहाविध मिचावि महगा गुरुगा बहुतरा ॥३॥ णिचवणे मिभरणे पश्चिातं बढई जा सपये । लागुरुमासो सुहमो सहमादी बायरो होनि ॥४॥ किं पचसि पासण गरि गणु वासविंदयो एते । भुजती मिह माया कह ति गणु सवगेहेसु ॥५॥ जसु पवाखाणं महंति तक्रवण पजियो पुट्टो किचन मे पंचनिहा पचासाता अविरतीओ ? ॥६॥ | वचसि भाषच्चे तक्लप पच्चंत पुभिाजी भगति। सिद्ध कवि जाणहणणु गम्मति गम्ममाण तु॥७॥ बस एयरस य मजा य पुच्छितों परियामबेहतलेगा। मम गवनि बदिए भणारे पंचगा बस उ॥८॥ वह तुसमुसो किजमह' कय एस गवर्णमि । बहन्ति संखडीओ घरेस गणु पाउलंडणया ॥९॥ सुडगजगणी उ मुया परुष्णों ठियत्तिएव भनियमि। माता सहजिया भविमु तेगे समायाते ॥९०७॥ ओसणे बठूर्ण रहा परिहारियत्ति लहुकहगे। कन्युजाणे गुरुओ अविध विहे व सगुणा १m. एगा उ नियले आलोएतम्मि समगुरु होन्ति। परिहरमाणा चिकह अपरिहारी भवे दो ॥२॥ खाणुगमाई मूल सने तुम्भेगांति अगवहो । सने उ बाहिरा पक्षणम्स तुम्मेनि | पारंची ॥३॥भण पय विद्वणिय आलोपार्मति घोडगमुहीउ किमगुस्सी सम्मेगो सो बाहिं पक्यणस्स ॥४॥ मासो लहओ गुरुओ चाउरो मासा हपनि लगुरुगा। उम्यासा ला. गुरुमा दो मूल सागंच॥५॥ गच्छमियताच गा तक्खन वर्चत पुछितो भगा। बेला ताव ग जायन परलोग पावि मोक्स बा ॥६॥ कतार दिसि गमिस्ससि पुर्व अवर |गतो मजति पुहो। विवाहोति पुगइमा बिसा अवरनामस॥७॥ अमेगकुलं गच्छ पचा महकुलपमेसने पुहो। मणति का दोनि कुले एमसरीरेण परिसिस्सं ॥८॥पचा एवं भगद पुभित्रो भवति। गहन तलाव पोमालान पामेति नेणेग ॥९॥ पयासी गुपदा खलु एमेते पनिया समारोगा मगुरुया जार मुसलसममेयं मुने १०२७ जीतकम्यभाये - मुनि दीप्नलताना ~21~ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [१०] ------------ ---------- भाष्यं [९११] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्रांक एलेमें सलमा हामि ए [१०] एस वित VITTHATgtrack dog PONENTATION दीप अनुक्रम नई ॥९१०॥ तगडगलकारमाएगउगहमणणुण्णवेतु जो गिव्हे । लहसग अदत्तमेयं अहवा रक्तादिस लहुसं ॥१॥ महणत पायकसरि पत्तहमण च गोचाओ बेच। लहसपरिगहमेसो मुच्छ करंतस्स साहुस्स ॥२॥ अगावि इमो अग्णो सेज्जातरगोनसानकागादी। धारण कल्पहरस बमक्सममत्तादि कुजा तु॥३॥ चितिवषयततियपंचमलहुस्सगा एतें होति मानमा । गाहेसा तु समता पवमी रसमि अतो वोळ ॥४॥ अपिहीय कासगंभियखुपपायाप्रसंकिलिहकमेस। कंदापहासविनासायपिसवाणुसंगेसु।मू.१०॥५॥ अविही हत्यमदा जहवा मुहत अबरातृर्ण जमाएविएवं सत्रएची एक बत्त ॥ ६॥ सुत्ति कतं ते सातं जीयं वा होति । उखातं तु बायजिसम्मो चिो उडले ओपनायो । ॥७॥ उडई उहहोवादी पायणिसम्मो अहे मुतलो। मुहर्णतय हत्यं वा उड्डोए तत्थ जयमाए ॥८. पुषकदमा उडेढे वायनिसम्मरस हो जपणेसा। पपिरितो जो खरी अविहीए सो जिसम्मो तु॥९॥ठेपणमेयणमादी असफिलिडेय होत मंतु। कंदप्यो बायाए कारण बहोति नावनो॥९२०॥हास तुहासमेच तु चिकहा पुन इस्थिमाइया चहा। कोहादी उकसाया विसया सहाया गेया॥१॥जा सितु पसजण सहसाउमाभोगयोरसाणं। सो होति विसयसंगो अविहीगाहा समत्ता ॥२॥ ललितस्सय सात्यवि हिंसमणावजत्रो जयन्तस्सा सहसाऽणामोगेण मिष्ठकारो पटिकम । मू०११॥३॥ स्खलमा एमिहा भणिया सहसाऽनाभोगतो पहोणादि । सा काय पुणो सुविधा सत्य इम पवस्वामि ॥ साधएम गुलिम समिती जाणाविएसपहवेना । सनत्यवि एते लालसा होति मायच्या ॥५॥ सहसाऽणाभोगेण हिंसमवावजओ जपतरस सहसाणामोगाणं को गु विसेसोलि पोशाउत्तोऽपिय होतु कारन्तोऽपिय ग यामतीबार। जहणं करेमि एवं कए व नार्थ जणामोनो ॥७॥आउन पुग्मभासा पबिसेषण सहसा एम जानु भो। म य नरति णियत्ते सहसकारो मवे एसो ॥ सहसाऽणाभोगा ऊ मनत्य उपणिया समासेणं। एस चिसो बिद्वाणं मिपाकारो पदिकम ॥९॥ आभोगेशविर तYएमु णेहमयसोगबाउसावीस । करसोगविगहापिएस मेयं पदिकमणं । मू०१२॥९३०॥ बानोगे जाणतो नबो यो तहोतिभातको। पुण करेग कप्पडसेमरसणिमाइम पा॥१॥ एमादी गेहा ऊजं कय कयहगादि आभोगा। नस तु पायचिन मिश्कारो परिकम ॥२॥ नमो मेहो मणितो भय सत्तविह हम तमोपामिशहपरलोगाऽऽयाणे अकर आजीवियऽसिलोए॥३॥ मरणभयं सलमयं एतेसि समासतो विभागों इमो। मगुवा मणुयस्सेव तु देवा देवस्स तिरीड तिरिए तु॥४॥ बीमेह सजाए लोगभए यहोतियोबा। परलोगभर्य विसरिस जहमतुओं की लिस्विचा ॥५॥ चणमाया मणति तन्मय चोरादियाण बीमे। तस्सेव य सहा सापागाराज कुमति ॥६॥ अणिमित अक-15 महाभयं यदि किसी पासती नहनि दी। अहवीए रातीय आजीवनयं जहा अहणो॥७दुबालो आयेसो कह जीवीहति' एस चितेति। मनभय सिवं चिय मरणमिति महा भयं जहन ॥८॥ असिलोगोनिह अयसो जाएष करिस्म होहि अयसो। असिलीगभर्य एवं वेयणमय हो सीवादी ॥९॥ सत्सपिई भयमेवं एएस उ बहिय तुज गणुए। नस्स विसोहिद्वाण मिच्छकारो परिकमणं ॥९४०॥ सोगं आमोएणनि चिन्तादि कांति विषयोगम्मि। तस्स तु पायलि मियाकारो पतिकमणं ॥१॥ आभोगमनाभोगे संवृष्यसंकुरे । पअहमरमे। पंचविहो बाउसिनो सहमानोगेण पायेय ॥२॥ कदयादी तुपदा पुनकमा तुइसमगाहाए। एक जहरिडेम तणुए सोही परिकम ॥३॥ वितियारसमस परिकमणारिहमाण सतिय नागनयवार बोळ तस्य इमा हो माहातु ॥४॥ संभमभयातुराबतिसहसागाभोगणपक्समो वा। सापातीचार तदुभवमासंकित पेन ॥ म.१३ ॥५॥ संभोगविहीं खलु हत्थी अगली उगमादीओ। भय वसुम मिलान वा मालबतेणाइओ पाहा ॥६॥ परममितीपातिएवि परीसहाऽऽतरो महान भाषा पहा इणमो समासतोऽहं पपरसामि ॥७॥ वाचति खेसाचा कालावा भावाचई चा दयावती नुसं जंबुलभ होति साहुस्स ॥८॥विस्थियमामा(ग्या)ी खेलापति एस होइ माना। कानपती तु ओमे भावे तु गुरु गिलाणादी ॥९॥ सहसाणामोगा तृ पृष्युत्ता अहुण बोच्छणपवलो । गायकसो उ पाक्सो सो होति इमेहि कमेरि॥९५०॥ वायपिनियसिमिय अहवाची होज मणिपाए। एतेहि अगप्पासो अहचा होना इमेहि ॥१॥ जक्खाइडसरीरो मोहणिए अहम होज कम्मदए। एतेहि अगमवतो होनाही कारणेति ॥२॥ जहुरिदमुं संभममादी कारणेसं तु। सहायायियारं णास तुकोजगप्पयसो ॥३॥ पुढविजलअगणिमास्यवणस्मती कुज सहगंगा। वियतियचउरो पंचिंदियं वसाह विरादेना ॥ एष मुसापावादी अणपको आपरेन साहं तु पिंडक्सिोहादीणि व सेवेज म उत्तरगुणाणि ॥५॥ एमावी आणण्णे अतियार चिसोहि समय होति। तामय गुरुमालय मिच्छामीएकर पति । आसकिए नभयं भूलगुणे उत्तरे व मानवं । परिच्छिवित गरि सके कतमस्य एस आसंका वितिय एम्मासिय रहिय एकमादिय पाहा। उनउत्तोविण याणतिज देवसियातिधाराति।मू.१४॥८॥ इति दुगुका' धातू संजमउपरोहि कुभिव्य होति। तं मणमा जाचिनिय बुधितिय एवं भान ।९॥ एवं मासिय चंद्विय एपमेषणाता। पडिलहियमादी आदीसरेण बोबा ॥ ९६०॥ एमादिर्य तु बहुसो अगसो होइमणेताच । उवउत्तोरिम जामति गवि समरती उजे मणियं ॥१॥ (२५७)। १००८जीनाम्याय - मुनि दीपरतसागर अत्र तदुभय-प्रायश्चित वर्णयते ~ 22~ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) मूलं [१५] --- -------- भाष्यं [९७०] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । प्रत सुत्रांक [१५] ककककककक दीप अनुक्रम आदिग्गाहणेणं पुण राहय पक्षिय तहेव चउमाले। संवच्छरिए यतहा अतियारा होति योजना ॥२॥ सोमय वितियपए बसणणाणचरणापराहेसु । आउत्तम तदुभयं सहसकाराणा चेन ॥ मू०१५॥३॥ परम उस्सम्मपदं अक्वादपयं तु विविययं होति। सवग्गहणेणं पुण सबक्राहा मुयथा ॥४॥ दसगणाणचरिते जे अवराहातु होस्ति गीतत्थे। कारणजयगाजुने दाएवजयंतस्स जे उ भने॥५॥जह निक्सउदगमे विसमम्मिन विजम्मि पर्वतो। कुणमाणोचि पयतं अचसो जहपावर पडणं ॥ ६॥ तह समनसुबिहिया सापयनेणची जयंता। कम्मोदयपचाया विराहना कस्सह हवेना ॥७॥ एरिसजतणाजुले तस्स विसोहीय तदुभयं होति। सहसावि होड तनयं जापणे समाईसु ॥८भयहार समनं विषेगवारं अबो पक्क्खामि। करस पुण विवेगो ऊ? तत्व इमा होति गाहातु ॥९॥ पिंडोबहिसेनादी गहियं कहजोगिनोपयुत्तेन। पमहा मायमसुदं मुडो बिहिमा विगिचंतो मू०१६॥९७० विवि संपाए' धातृ पिंडो संघाओं मन्मए तन्हा। सो सह सबिताई गवणयमेदो पुणेकेको ॥१॥ पुढवीजाउकारतेसाऊनणस्मती नामांदियतेवियचाउरो पंधिविया चेक ॥२॥ एकेको पुण तिविहो पुढतीमादी सचित्तमादीजो। सत्ताकीलपमेयो पिंडस समालो होसि ॥३॥ ओहिय ओषमाहिलो उपही दुविहो समासतो होति। हर विभागेण पुण जह मनिओ ओहजुत्तीए ॥ मम्मति सिमा बसही आदीसरेन होति जगलादी। ओसहमेसजामियाबीसरेण महियामि ॥५॥ करजोगी जीवत्यो पुल होति जो उमहिबत्यो। पिंडेसगपासणवत्येसणसेजमावीणं ॥६॥ अहवा छेदसुयादीसुलत्याहिणिवो तु गीयत्यो। गहितं तेणुक्युसेण जात पळा असुर्व तुज केण असुब! भणति उम्ममाप्पायनेसणाबीहिं। अहवावि संकियादी सो सुमति विहि मिनिचतो ॥८॥कालवाणाप्रतिषियमनुग्गवत्यमियगहियमसदोजाकारणहिटगरिए मत्तादिविचिंचणे सुरोमू०१७ S॥९॥ पदमाएं पोरिसीए पहिगाहेसाण असणपाणादी। जो नायनाचा कालावीन इमं होति । ९८०॥दोषणा परेनं आणिय णीय असणपाणारी। एषयामातीत सो सब असदो पाकामो।१॥ निहाकिदहाचीहि होति सदो एस होति असदो तामेलमवावहता होजर सागारिया तस्य ॥२॥ पंबिराजभाषा वा तेणाहि(वि)भयं सत्य होजाहि। एमावीकजेहिं असदोहोर पापड़ो ॥ ३॥ एमादी असदोज विही विगिंचंतों होति सुबो उ। अशुषित अत्यमिओ या महिय असदेणिय वोच्च ॥४॥ निरियडूमेहमाहियामु-- रवाचरिओं होज या लबिया। उग्णयमुखी साहू एमेच य होयऽनत्यमिए ॥५॥ पच्छा गायमगुग्गय अहब अत्यमियों एस इणि तु। एयण्णायंमिप्रसाडो सुद्धो तु निही विगिंचतो । ॥६॥ आयरिए य गिलाणे पाहणए समग बाल पुढे या एतेसऽवा गहित में होती कारणम्माहियं ॥७.विहिपरिभुत्नुचारियं विही बिगिचन्त होति मुख ता एवं विवेगवार एतो चो छामि बोसमां ॥८॥ गमनागमणविहारे सुयंमि सावजसुविणयाबिसु या गावाणविसंतारे पायपिास वियोसग्गो । मू०१८॥९॥ वसाही गुल्मूला वा गमणं अण्णस्य पुनरवागमर्ण। एवं गमनागमण विहारसमायभूमी तु॥९९०॥ तो समायणिमित्तं गमर्ण अनत्य होज साहुस्सा गमणागमणविहारं गात होति एतं तु॥१॥ समितिबिसुरिणिमिन एवं पश्चिात होति उस्सम्यो। होति सुतं सुरगाणे उदेसामादि जात २पद्मदिसणे या समुविसणे इय होतऽणुज्याए । कालपटिकमम्मि य सुपसा एत्य त उस्सागो ॥३॥ पाणनिमायादीया सावजो सुमिणतो तुणातको आदिग्गबणेणं पुण अगवनउपसत्थाएमपि ॥ यस्लाहगाहणाबो एस्साउणा दुनिमित्त गहिया उ। पदमक्याचीएस् य साबेसु विसोहि उम्सगो ॥५॥णापा बउबिहा तू समुरणाविक तिणि उणवीए। उजाणी जोयाणी तिरिच्छगामी भवे ताया ॥ ६॥ जघडा संघहोणाभी लेगोवारं तु लेगुवरि । बाहोडपाइओ स्खलु णविसंतारेसमादीओ ॥७॥णावादीहि पएहि जाय तुजपाबि संतरतो तु। सत्य तु पण्ठितं जवनाशुत्तस्स उस्सम्मो ॥मते पाने सवणासने व असंतसमणसेजा। उचारे पासपणे पण-- बीस होन्ति उसासा ॥मू-१९॥९॥ मत्तं पाणं बैठ सवर्ण सेजाउ होति पाता। आस उमेसण' पानू उबविलणं आसणं होति।१०००॥'अरह पूयाए' बागूपृयामरिहति नेण अहिंता। अरिहंनि बदल गसणं चतम्हातु अरिहंता ॥१॥ कोहाई उ अरी उप रयं काम होइ अहविह। परिणो यस्य ईता तन्हा उइति अक्षिता ॥२॥ सवर्ण से पहिः। साय भन्नादी जाप होति सेना आहत्यसमाउ परेण गमनागमनम्मि सवत्य ॥३॥ समितिक्युिरिणिमित्त जयणाजुलस्स होति उस्सगो। पणुवीस उत्सासा प्रचारमयो त बोचामिल ॥४॥ उपरती उचाई परसवती तेज होति परसवर्ण । सल्या काश्य कमलो अइन इमो होर सात्यो॥५॥ उच्चरति कालयं तू जहा तेण तु होति उचारो। पायं सक्ती जन्हा नन्हा होनि पासपणे ॥६॥ परिठविएसएम हत्यासया बारतो परसो वा । सोही काउस्सम्यो पदीसं होति उसासा ॥ ७॥हत्वासनबाहिरानो गमनागमणावएस पणुवीस । पाणिबहावि भूमिणए सतमसन चउत्पम्मि मु.२०४८ गाव पदम कठ पाणबहे सुमिगसो रायो। कनकारियाविएवं विसोहि मास समेग॥९॥एस मुसाबारातिय उसामो जाग होति णिसिमतं । सतमुस्सासाण भने बहुमतं पुण धउत्पम्मि ॥१.१देसिय राज्य चक्सिय पाउण्मासे व बरिसे या सतम तिथि सता पंच सतना सहस ॥ ०२१ १०.५ जीतकल्पनाय - अभियान [१५] अत्र विवेकाह एवं कायोत्सर्ग-प्रायश्चित वर्णयेते ~ 23~ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [२१] ------ --------- भाष्यं [१०१२] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [२१] दीप अनुक्रम SAR45Pg ॥१॥ देसिवमादिषदाण कमसो ऊसासमाणमेव नानपुण कह विष्णेया उस्मासा ? तमिह वोच्छामि ॥२॥ लोयस्मुजोयगा चउरो एग सत मुगप पंचासा दोहि भने निरिण | सया होनि वारसहिं ॥३॥ पंच सपा बसाए असहस्स च होति बत्ताए। देसियमाउस्सगे होड एवं तु परिमार्ग ॥४॥ अहवा-पणुकीस अडतेरस सिलोग पणनरिच बोहरा। सतमेगं पणवीसं दो बावणा य परिसणं ॥ ५॥ उदेस समुदसे सनावीस तहेवऽणुण्णाए । अव य उसासा पहुषणापडिकमणमादी ॥ २२॥ ६॥ उसय अझयणे मुतबंधे च | होति अंगे या उरिसगाविषयाणे सत्तावीस तु उस्सासा ॥७॥ पवणपतिकमणे अठुस्सासा उ होति उस्सगो। आदिग्गहमेग पुण पटुवयंसेवि अणुओगं ॥८॥ कालपडिकमणेऽविय असणे व होनि सदस्य । उम्सासा अहम काउसम्मो मुणेतबा ॥९॥ उदेसय अज्झायणे सुतखधगेसु कम पमादिस्स । कालाइकमणादिसणाणावाराइयारम् ॥ ०२३. ॥१०२०॥णाणायारो विहो मोहेग विभागयों व णालयो। उसय अजमवणे सुयसंधी विभागों तु ॥१॥ उदेसादिचउहवि अलियारो अहहा मतदी। पलेय पोय कालादि इह परयणम्मि ॥२॥ काले विगए बहूमाणे उपहाणे नहा अपिण्हवणे । बंजण अन्य नभए अडविहो गाणमायारो ॥३॥ जो तु करेनि अझाले सरमाय कुणा या असमाए। सन्माए वा ण कुणनि कालतियारी भवे एस ॥४॥ जच्चादिमदुम्मनो यदो विणयं ण कुष्यति गुरुणं। हीलयादव जो तु गुरु पिणपइयारो भये एस ॥५॥ गुनणागम्मि मुसम्भिव भनी परमाण जो न ण करनि। मनी होयुक्यारो बहुमायो गोस्वसिणेहो ॥ ६॥ बहुमाणे अड्यारी एमेसो पविणाओ समासेण। उपहाग होति यो आथतिमादिश्री सो य॥ ॥ जोनण कुणनि साहु महपाविण साहेवमुपहाण । सो उपहाणतियारो गेहवणेत्तो पचासामि ॥ ८॥ णिष्ट्वर्ण अवलवणं अमुगसगासे अहं गडहिनामि । अर्थ जगप्पहा आय. रियं सो उ उदिसानि॥९॥ पिष्टपणे अनियारी एमेसो पणितो समासेणं। पंजणमादिपदाणं अतियारमतो पवस्वामि॥१०३०॥ अपितं वंजणमक्खर नगिण सुन मुनव्व। पागमणिबदमे समयमादी कोजाहि ॥१॥ चम्मो मंगलमुकदै दया संपर गिजरा। तस्सेव य अत्यम्सा अण्णाणि य बंजणाणि करे ॥२॥ अहया मना बि अण्णमिहामेष बाधित अन्य । बजिजनि जेण अन्थी बंजणमिति भण्णते सुन ॥३॥ बंजणभेदेण इह अत्यविणासो हकेन तु कयाई। अस्थरिणासा चर चरणविणासे अमोक्सोमा मोस्वाभावानो पुण प्रयत्नविक्सा गिरग्विया होति। जहा एते दोसा नन्हा मुलग भिदिना ॥५॥ बंजणभेदो भणियो अन्य भेदं अतो पक्वामि। अत्यंत विषणती तेहि थिय पंजहरणं ॥५॥ आवारे मनमिणं आयंती पंचमम्मि अन्यणे। आयंती के आवनी लोगसि विपरिरा)मुसतिनि। अद्वाएं अगडाए एनेसु विष्परामुर्सती नुएवं मुनं आरिस अन्य विज्ञप्पेनिम अण्ण ॥८॥आवंती होनि देसो तत्थ नु अरहा कृवजा केया। सा पडिया हेडा तू तं लोगो विष्षरामुखद ॥९॥ अत्यविसंबाएवं तदुभयदारं इमं पाखामि। जन्य मुनस्था बल दोषि पिणमसनिच इमं ॥१०४०॥ धम्मो मंगारमुकत्यो, अहिंसा पचतमस्थए । देवाधिनस्त पसंति, जस्स धम्ने सया मती(सी)॥१॥ अहाकाय विति, कडेस रहकारी रणो भगम्मि गो जन्य. गहमो जय दीसनि ॥२॥ एसो तदुभयभेदो दोविणविणासंनि एत्य मुन्नत्या। एवं नुण कात दोसाने चेष पुषना॥३॥णाणायारो एसो अढविगप्पो जिणेहि पाणनो। उढेसगमादीण पग्लिनदित इम कमसा ॥४॥ गिविगनिय परिमडेगभन्न आयंबिल चणागादे। पुरिमादी खमण आगाढे एवमत्थेपि ॥ मू०२४॥ ५॥ उसे विविगत पुश्मिद सोहि नि अजायणे। सुनर्स एगमनं अंगम्मि य हॉनि आयाम ॥ ६॥ एवं जाणागादे गादजोगम्मि होति पुरिमादी। अनम्मि होनि समर्ण एमेवय होनि अन्धेऽवि॥७॥ सामागं पुण मुले मनमायाम पडत्यमत्यम्मि। अप्पत्तापत्ताचनचायणुदेसगादीम् ॥ २५॥८॥ ओहो सामण नुसत्रम्मी ने होति मनम्मिा अक्सेिसिय सनाये आयाम पन्य कमरोतु ॥॥ अपनी दृविहान मुनेण अन्धेण व बोदथ्यो । पुचित मुन जत्थे विनिय अपनो मुनयो । १०५० अनिन्तिणिआदि अपनो नो यएमएन पातयो। वायतस्स तु एते चउगुरुया उरिसादिस्य॥२॥ पत्नमपाएनसषि उदिसणादीगु व य पदेमु । यउगुरुया बोदचा अपवाए कारणा सुबो ॥२॥ कालाक्सिनणादिस मंदविसुहाउसमजणादिस या णिवीनिय प्रकरणे अपसमिसेजा अभत्तहो । मु.२६॥३॥कालासिजणाती पडिक जमिह कालमा तिनिहाय होति मंडली पराहा भूमी मणे. नच्या ४॥ भोयण सुने अन्य विविहला मंडली पुगेयष्या। कालऽविसम्मण मंडलिभूमीअपमजणे विगती ॥५० सुते वा अन्ये वाण करि गिसेच अक्ल का गए नि। चम्सहेज बदण उस्समा ग कुबनि नटत्य ॥६॥ आगादागागादम्मि सयभग य देखभंगे या जोगे उद पाउन्ध पाउथमायंबिलं कमसो समू:२७॥७॥ जोगो न होति दुनिहो अागादो क्षेत्र मह अगागादो। दुविहऽपि होति मंगे सने देसे यणातथ्योदामध्यभंग छह होति नजुध न देखें आगाटे। गागादे तु त्वं सजे देसे य आयाम ॥९॥ कह भगो साम्मी कर ना देसम्मि' एव चोएति। भणनि फरविगडाहि गाहाहिं इस पवारवामि ॥१०६॥ विगति अणडा जति न कुणा आयंबिल ण सरहनि। एसो उ साभगो देसे भंगो इमो होनि २०५० जीनकपभाय - मुनि दीपरनसागर [२१] अत्र तप-प्रायश्चित वर्णयते ~ 24~ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) --------- मूलं [२७...] ----- --------- भाष्यं [१०६२] ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [२७] दीप अनुक्रम ॥१॥ काउस्सग्गमकार्ड मुंजा मोतृण बा.कुणति पच्छा। संदिसहति व भणती एवं देसे भवे भंगो ॥२॥ गाणायारो भणिओ अहविहो एस त समासेणं। आहुणा अविहो बियर आचारों दसणे होति ॥३॥णिस्संकित णिकलिन णिनितिमिश्छा अमूढदिही या उपचूह थिरीकरगे बच्छाव पभाषणे अ॥४॥ देसणयारो अवह एमेसो होइन समासेगा एतेसि | विवक्लो ऊ अइयारो होति सो य इमो ॥५॥ संसयकरणं संका कंखा अण्णोण्यासणग्गाहो। विनिगिच्छा अप्पणो उ सोग्गति होवाण बाचिति ॥६॥ अहवा विदुगंगा ऊ निउनि साहू हनिणातयाते उ दुर्गुठति णिचं मंडलि मोए य जाहादी ॥७॥णेगविहा इइडीओ पृथं परतिस्थियाण दळूणं। सोतूणं वा जस्स उ महमोहो होति मूढेसा ॥८. उपमूह होति दुविहा पालथ अपसत्विया य मानवा । साहूर्ण तु पसत्था चरगादीनापसत्या तु ॥९॥ दसणणाणचरिने नवसंजमविणयवेयपचादी। अभुवयस्स उच्छाहवर्ण होति तु पसत्या ॥१०७०॥ अपसस्था उपहा अण्णाणे अविरतीय मिष्ठले। बरगाडी बहते उवहति दुविह एस गता।।थिरकरणावि व बुषिहा पसत्य इयरा यहोति णातया। साहूण पसत्यात णाणादीएहि सीयति ॥२॥ बहुदोसे माणसे मा सीव चिरीफोति एवं तु एस पसत्था भणिया अपसत्येत्तो परक्यामि ॥ ३॥ मिच्छादिद्वीए न परमादी थिरिफरेंत अपसस्था। पासन्यादी अहया चिरीकोन्नम्मि अपसस्था ॥४॥ बच्छाडापि य बुरिहा पसत्य इयरा य होति णानका। आयरियादि पसत्या पासस्थादीण इयरा तु ॥५॥ आवरिय गिलागे या पाहणए असदुचाइदादी। आहारोचहिमादीण समाहिकरणं पसत्यं तु ॥ ६॥ पासत्योसण्णाणं कुसीलसंसत्तणीयवासीण। अह य गिहत्यादीणं एमादी अप्पसत्या तु ॥आदुपिहा पहावणात्रिय पसत्य इयरा य होनि णाया। निस्थगरादि पसत्या मिच्छनऽण्णाअपसत्या ॥८॥ नित्यपर पचयणे वा गाणादीण व तिषियानी लोए। मां शाणस्स उपभावयते पसत्येसा ॥९॥ मिउनण्णागादी पभावयतेस होति अपसत्या। एसो देसणयारो पच्छित्तं तेसि वोच्छामि ॥ १०८०॥ संकादिएमु देसे खमणं मिच्छोवडणादिसु या पुरिमादी समर्णन समिक्खुप्पभिनीण य चतुहं मू०२८॥१॥संकादी अट्ठपदा देसे सोय होति णाया। संकादीण चउष्टं देखे खमणं तु गाया ॥२॥ उचहादिचउहनि अपसत्ये देसि होयमनाई। सबम्मि होनि मूल एवं सकाइएमुंचि ॥३॥ एवं ना आहेणं अधिससो होति एस पचिडते। पुरिसविभागणणा देसे साही इमा होति ॥४॥ संकादी अहसुपी देसे भिक्युरस होति पुरिमइट। नसभे एकासमय आयाम होति उज्माए ॥५॥ आयरिय अभत्तहो एस विभागेण हो सोही नु। जहुणा उचहादीणं अकरणे सोही इमा जविणो ॥६॥ एवं चिय पत्तेयंश उपमहादीण अकरणे जतीणं । आयामनं णिशीतिआदि पासत्यसाइडेमु । मू०२९॥७॥ एवं बिय पुरिम अगंतरिहपुरिसभेएणं। पिह पिह जति न करंसी उक्मूह पसत्यसाहुणास ॥८॥ एन थिरीकरणं न पडल्ड पभाषणा पसत्येषु । पचवणजइमादी अहिले तथिमा सोही ॥९॥ भिक्खुस्स तु पुरिमइट बसमा भत्तेक होनि सोही तु। अभिसेगे आयाम आयरिए होयमनहूँ ॥१०९०॥ गाहापण्वसाऽणन्तरगाहाएं होति संबंधो। एयस्सऽवियन्तपए संबंधो न चिमं वोच्च ॥१॥ परिवारादिणिमिनं ममतपरिचालणादि वहाले । साहम्मि उनि संजमहेई बा सबहिं बुद्धो मू.३०॥२॥ पालत्योसण्णाणं कुलीसंमत्तणीयवासीणं । जो कुणति ममन्नाडी परिवारणिमित्तहेतुं च ॥३॥ तम्स इमं पच्छिनं नित्रीयादी तु ते आयामंनिस्मादीयाणं चारह वा होति जहकमसो ॥४॥ आदिग्गहणेणं पुण सइदा सम्णायगाव सेजतरा । दाहताऽशारादी नेण ममतादि कुजा तु॥५॥ अह पुण साहम्मित्ती - संजमहेच उजमिम्सानिया। कुलगणसंघगिलागे नप्पिस्सति एवबुद्धी तु ॥६॥ एवममत्त करेंने परिवालण अहर नस्स बच्छाई । बदावणचित्तो मुमनि सनत्य साहू नु॥७॥ एसो अहरियप्पो अतिपारो देसणे समक्तातो। चारिने अतिवारं इणमो उ समासतो वोच्छ ॥८॥ एगिदियाग पट्टणमगादगादपरिलायगोरचण। णित्रीय पुरिमइट आसणमायाम | कमसो मु.३१॥९एगिदिय पुढवादी जा पन्नेया वणस्मती होति । एतेसि पंचव्हवि पिह पिड संघहणे विगनी ॥११००॥ परियावियाऽणागादे पुरिमइदं गाढ़े होनि भनेक । उगवणे आयाम एनो गंताइणं शेन्ट १॥ पुरिमादीसमग अनंतविगनिदियाण पत्तेयं । पचिदिवम्मि एकासणादि काणगमहगं । मू.३२॥२॥साहारणवणकाए बिय नियमरिदिए य विगलाम्म । एनसि पहपी पिह पिह संपट्टणे पुरिमं ॥३॥ परिजापिताणामादे भनेक गाढ़े होनि आयाम । उत्रपणेऽभनाई पंचिंदिविसोहिम पोई॥४॥ पंचंदियसपढे एकासगत होति णान। अणमा आयाम परितापिएं गाढ़े भन्नई ॥५॥ उगवणे काका एग चिय होति तस्य णायापदमवए सोहेसा पमायसहियरस पायबा ॥६॥ मोसादिम् मेहुगनिएम दवादिवाभिमसु। होणे मज्मुकोसे आसणायामसमगाई ॥३३॥७॥ मोसादनादाणं परिगहो चेव होनि णाता। एते मोसादिनया मेहुणचना मुगेना 100 तन्य मुसं वाउभेई दो खेत्ते य काल भावे यानन्थ निहा दरमुसं जहण मन तहुकोस .९॥ एवं खेनमुसंपी कालमुसा नह य होति भावमुसा हीणं ममुक्कोस सभेदभिषण मुणेना॥१११०॥ एवमदत्तपरिगह दमादी चाह होम्ति णायचा होणा मझुकोसा तिचिहं पत्नय पत्तेयं ॥१॥ मोसम्मि चउम्भेले वजाची हीण मला उकोसे। शादीणं कमसो इम १०३१ जीनकम्पबाय - सुनिटीपरनसागर [२७] ~25~ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३३] ----- --------- भाष्यं [१११२] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य MAg प्रत सुत्रांक [३३] दीप अनुक्रम 4555412 नुसोहि पक्क्वामि ॥२॥ दशमसेतु जहणे भने मजो होति आचार्म । उकोसेसुपाडवं एवं खेतादिएपि ॥३॥ एवमदत्तपरिम्गह शादीगुंतु एस चेव गमो। हीणे मकोसे भासणायामलमणाई ॥४॥ एष मुसाबायादिसु सोही मणिया समासतो एसा । एसो तु राइमनले सोहिं यो समासेर्ण ॥५॥ लेखाइयपरिवाले अमतहो मुकसपिणहीए या इतराप छवमन अहमग सेस णिसिमले ॥ मू. ३४॥६॥ लेवाडय कठोरी मुंलिबहेडादि अगयमादी पार परिषासेन्ते एलि सोही साहुस्स भन्नई ॥७७ इतरा य गिलसपिणहि गुलयतनागादिया मुणेनच्या। परियासते नेसि सोही छई तु साहस ॥८॥ णिसिभत्तसेस निविहं दियगहियं राजमुन्न पाम तु । राजोगह दिवभुतं गहभुजणमुभययो रातो ॥९॥ विविहे णिसिमन सोही एग्य नअट्टम होति। तिनिहम्मिवि पत्तेयं एप समनं तु णिसिमतं ॥११२०॥ उलियचरिमनिए कम्मे पासंहसपरमीसे या पावरपाडियाए सपथमायाहडे सोभे ॥३५ ॥१॥अच्छाउता गाहत्यो एनेसि उम्गमादिअदृन्हं । लखग आपत्ती दाणमेव बोच्या सवित्यस्तो ॥२॥ सोलस उग्गमदोसा मोलस उपायनाएँ दोला उ। बस एलणाएं दोसा संजोयणमादि पंचेष ॥३॥ सो जग्गमो चनुवा मामावी नत्य निमो होनि। जोतिसतणोसहीण मेहरिणकोषमादी ॥४॥ अहवापि लहडगादी भाचे तिविग्गयो मुणेतष्यो। देसणणाणचारिने परिसुग्गमेणऽत्य अहिगारो॥५॥ किं कारणं परिने अहिगारो एल्थ होति भगितो तु?| घोडग ! सुण पारित जे तु गुणा ने तु हानि इमे ॥ ६॥ देखणणाणप्पभवं चाणं मुझे नसम्मि नमुदी । चरण कम्ममुखी उम्गमसुदी चरणसुदी ७॥ पिंडोचहिसेजाम् जेण असुदाम भरण पनि सुनो। पिटोबहिसेगाम सुबासु उ चरणजी 3000 तो चरणमुदिहन पिंडस्म उ उगमेण अहिगारो। तस्स पुण उग्गमस्सा सोलस द्वारा इसे होन्ति ॥९॥आहाकम्मुरेसिय पूतीकम्मे य मीसजाये या ठरणा पाहुडियाए पायोयर कीत पामि ॥११३० ॥ परियहिए अभिडे उम्भिरणे मालोहडे इय। अमन अणिसट्टे अझोपरए य सौलसमे ॥१॥ एते सोन्म दारा उघिमियाणि विवरण बोळ। एनेसि पदम आहा नम्स इसे हानि गर वारा ॥२॥ आहाकश्मिरणामा एगवा करस बावि किं वापि। परपक्व य सापकले पाउरोगहणे य आणादी ३० नत्य इमे गामा खल आहाकम्मरस होन्तिच. नारि। प्राह महाकम्मे या अहय(यहम्मे अनकम्मे या ओरालसरीराण उडवणचायणं तु जस्सहाामणमाहित्ता कुपति आइाकम्म नय बेन्ति । ओरालगाहणेण निरिक्त्रम याहया सुहमवत्रा। अपर्ण उत्नासण अनिवानविधनिया पीला ॥६॥ कायक्रमणा निणि ऊ अहका बेहायइंदियणागा । सामिनवायाणे होतिबाओ करणस्मि ॥lt हियवम्मि समाहेउ एगमणेगे व गाहगे जो नु। हर्ण करति दाता कायाण तमाहकम्मं तु ॥८॥ जस्सट्टा न तु कन ने जो मुंजनि सतं तु काययह । अणुमणा आहेड यस कम्मबन्ध नमायाए ॥॥ अपिय विवाहमा जो) मणिनं मुंजनों आकम्मं तु। पसिदिलबन्धादीया पगडीओं कति धणियादी॥११४०॥ मंजमठाणा कडगाण लेक्साहितीविसेसाण। मा अहे करेनी तम्हा तुमचे अहेकम्म ॥१॥ एगीभावम्मी जम उबरम एगीभाव उबरमण। सम्म जमो या संजम मणहकायाम जमणं तु॥२॥चिट्ठा संजमो जहियं न हो। हुसंजमम्स ठाणं नु।नं पुष परिनपजप होलि अर्णतेकटाणं तु॥३॥ संजमठाणमसंवा उकंड कंडगा असंला उ। बनि उनसाताण ने असंखेज जवम ॥४॥तनो परिहा | । यता लेसाकंडा व संजमडाणा । एसियाणमसला लीगा उ हवंति ठाणार्ग ५॥ एसा संजमसेदी कन्या विमुदामु ठाणमादीसु। बहतुकोसाउगुरतिनिजोगेम होतृणं ॥६मुंजम | हेकम्म हेहिले हिवेनि अप्पाण। मुने उदियमहेतु करपरचिणोचचिणमादी॥ ॥ धनि अहेमवार्ड पकरनि अहोमुहाई कम्मापणकरण तिरेण उमावेण चयो उवषयोन सदासि गुरुच उदएण अपयं गलीए पपईन। ण पाएनि विहारेउ महकम्म भए नम्हा ॥९॥ अदाएं अगहाए कायपमरणं जो कुणनि अणियाए पणियाए अनित: दहाऽऽयहम्मंनी ॥११५०॥ जागतम जाणतो नहेनि गिहिलिय ओहो बावि। जाणगमजाणए या भगिना णिय अणिय होनेसा ॥2॥दसायहम्ममेय भावाया तिणि गाणमा. इंणि। परपाणपारणरयो भावाय अप्पणो हानि ॥२॥ णिच्छयगयस चरणाऽऽयनिचाये णागदसणनहानि । ववहारम्स उपरणं यस्मि भयणा उससाणं । ॥ आयाहम्मग एवं एनो पाच्छामि अनकम्म तु। जो परकम्म जनीकरेनिन अत्तकम्यं नृ॥४॥ आहाफम्मपरिणयो कामुयमवि संकिनिवपरिणामी। आनियमाणो बनानि न जाणम् अनकम्मतु ॥५॥ परकम्ममनकम्मीकरति जो उ गिहिर भुजे। चोएति परकिरिया कहष्णु अग्णन्य संकमनि ॥६॥ भष्णा परपउन बह निसमाय नमार हानि। नह परकरपियो परिणामसेण जीयम्स 150 बेनी परकडभोयिण नो तुम्भवि एवं होनिबंधो उ।जह अण्णस्य पउने पूढे जो पद्धति सो बझं ॥८० गुमाह जो पमनो जी व अनक्सासमए तन्य। अपमनो णविबानि नहेब रफ्लो य जो होनि ॥९॥इय जो यु अप्पमत्ती मणवायाकायतोगकरगेहि। सो तुण बज्मनि णियमा पानि इयरी परकडेनि ॥११६॥ कामं सर्यन कुरति जाणंनो पुणनहानि नग्गाही। वहति नप्पसंग अगिण्णमाणो उ (न)नारेति ॥१॥ नम्हा 3 परकडम्मिचि अनीकरण तुहायऽमुहि । मणमादीहि कहं पुण अनिको? भणति इमेहि ॥२॥ पटिसेषणपडिसुमणासंचासणुमायणा चउहपि। एएहि पगारेहि अनिकरे तन्धिमे गाया ॥३॥ पडिसेवणाएं नेणा पडिमुणणाए परायपुनातु। संचा- (५८) २०३२ जीतकल्पमाय - मुनि दीपरनसागर [३३] ~ 26~ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [३५] दीप अनुक्रम [39] "जीतकल्प” छेदसूत्र-५/१ (मूलं) मूलं [३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...........आगमसूत्र. - - • आयं [१९६४] [३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं सम्मि य पहली अणुमोयण रावदुझे उ ॥ ४ ॥ आहाकम्मियणामा एते चउरो समासतो भणिया एमट्टिताणि अणा बोच्छामि समासतो चेव ॥ ५ ॥ एग एगवंजण एगणाजव गाण एवंजण गागड़ा गाणवंजणया ॥ ६ ॥ जह खीरं वीरं चिय एगई एगर्वजण दिई एग भाणवंजण युद्ध पयो वालु वीरं च ॥ ७॥ णाममेवंजण गोमहिसजाइयाण सीरेति णाण गामवंजय पडपटकडगडरहमादी ॥ ८ ॥ एवमिहमाहकम्पं आहाकम्मति पढाओ भंगो। आहहेकम्मादी विनिओ सक्किन्द इव मंगो॥ ९ ॥ ततितो भंगो तू जातकम्ममहकम्म प(म) गगमादी व जाहाकम्म पहुंचा पियमा सुष्णो चउत्यो उ ॥ ११७०॥ इदयं जह सहा पुरंदादी तु णानिवर्तति अहआहअनकम्मा तहा अहे पानिवर्त्तति ॥ १ ॥ जहाकम्मेण अहे करेंति हणति पाणभूयाई जंतं आतियमाथो परकम्मं अत्तणो कृण ॥ २ ॥ एगडितदारमिण अरुणा करत कहमाहरुम्म भये ? भणति साह म्मिक सो बारसहा इमो होति ॥ ३ ॥ णामं ठवणा दविए लेने काले व पचवणे लिंगे। दंसण गाण परिने अभिग्गहे भावणाहि च ॥ ४ ॥ णामेणं साहम्मी जाउ काले सो दवा । पययण लोणं या साहम्मिय एत्य चभंगी ॥ ५ ॥ पवयणमणुम्मुयंते दंसणमादी उ भावना जाप सहत्य तु चउमंगा जोएडा जहाकमसो ॥ ६ ॥ एवं लिपी तहसगमादिएहि चडभंगा। भइएस उवरिमेस हेपियं तु उडेना ॥ ७॥ एवं बुदीए तु सवि जहकमेण जोएजा बभंग जाब चरिमो अभिग्ा भावणाहि च ॥ ८ ॥ पत्तेयमुद हि उपाए केवली व आस लगाइए व भावे च भंगे तु जाएजा ॥ ९ ॥ जन्य तु ततिओ भंगो न तत् कम्पनि तु सए भवणा तित्बगर (रि) जिव्ह ओवासगादि कप्पे ध्ण सेसाणं ॥ ११८० ॥ कस्सति जदि एरिस साहम्मियाण गवि कप्पे किती? आहाकम्म असणाई इमे ते च ॥ १ ॥ सालीमाई अगडे फले व सुंठी य साइमं होति । नस्स कटगिट्टियम्म सुदासुदेव चनारि ॥ २ ॥ कोवरालगगामे बसही रमणिज भिक्ख सज्झाए। लेतपडिलेह संजय सावयपुच्ज्जुए कहना ॥ ३ ॥ जति गणम्स खेनं गवर गुरूणंति पायोग सालित्ति कए रूप्पण परिभायण नियमसु ॥ ४ ॥ बोलता ते व अण्णे जाव तु किमियंति कहिय सम्भावे जेन्ति एवं गाए अाजवर्धनी तु ॥ ५॥ एससणे कम्मं तु ये कह पाणगे हवेाहि ? तहविय साहू ण ठन्ती साचगपुच्छा दर्ग लोणं ॥ ६ ॥ अह ताप सावयो तू पणे मदुरोदगं तहिं गच्छति किए जा सातत्य ॥ ७॥ एत्यचि तहे जाणण ण तह व होति जातवा एवं साइम सातिम यह जहकमेणं तु ॥ ८॥ कफडिंग अंगा वा दाडिम दक्खा व बीवपूरा वा एमाइ खाइमं तू साइमन तिगडुआदीयं ॥ ९ ॥ किं आहायस्मंती एवं तं बणियं समासेनं परपक्वपक्लेनी अडणा दारं अणुपत्नं ॥ ११९०॥ परपक्व तु यो समासमणीय होइ तु सपक्खो। एत्थ कटनिडिएहि उमंगो होइ त बोच्च ॥ १ ॥ तरस कड वस्त्र निद्विय तस्स कढण्णस्स निद्वियं चेव अकड तस्स निद्विय अन्यकर्ड निट्टियम्णस्स ॥२॥ वातल्या मलिया कंडिल इउड निद्वियं स तु चिट निद्विय होती तेरा दुगुणमहकम्मं ॥ ३॥ कडनिट्टिया लक्खणमिणमो तु समासतो मुणेन फाकर्ड रा यिमितरं कई होति ॥ ४ ॥ समग बाबिवादी जा कुछड़ा एवं होति तस्स कई तस्स तिछदरद गिट्टितमेसो पदमभंगो ॥ ५॥ समण जान उडा गरि धरित) पण कार गुप्ययं । तेसऽङ्क तिउडरडा बिभिंगो एस जातो ॥६॥ जादुउटा अन्तडा गवरिय साहू तु पाहुणा आया। लेस कया निछड़ा ततिभंगो एस जातो ॥ ७॥ आयड़ा जा उडा आया व दिरदा एसी मंगो कतरे कप्पे कप्प वा ॥ ८ ॥ पढमतलिए ण कप्पे चितियचडत्या दोणि या कप्पे एमेव पाणी लानिय तह साइ ॥ ९॥ साहुणिमत्ता रजा फाकडे तु तावकडे फाकट मिट्टियं तू चालवणादि पाणम् ि॥ १२०० ॥ फलमादि जिष्णोडिय फाकडं गिट्टित मुणे एमेव साइमेची मादी मुणेला ॥ १ ॥ सन्ध तु चतुमंगो जोएअवो जहकर्म होति एत्वं तु परिहरणा विहि जनही सह मोदता ॥ २ ॥ छापि विवर्जनी केसी गानम्स ने तुग जति जम्हा किये विनियमं परपचया छाया गरि सा स्क्वण्य वदिता कता गइच्छाए व मेकप एवं मन ॥४॥ बनि हायनि छाया न कियेय आहाय विहिए नियती रवी छाया ॥ ५॥ अघणघणवारिंगगणे छाया पड़ा दिया पुणो होनि कम्पनि राय नाम आयतं वि६॥ नहा एस दोस्रो तुम कम्पय अतिथि बजेमाणा अदोलिता आ परचक्रवसपी एमेयं वणियं समासेणं चहरोनि दारमणा बोच्छामि समासनो चैव ॥ ८ ॥ चउरो अतिकमे पनिक व अतियार तह अणायारा जहाकम्मे एते चउरोषि जहकमं जोए ॥ ९ ॥ तम्स पुण संभवो ऊ आहाकम्मरस कह होजाहि ? गिरि जह भरए सइदा दण मरुपूर्व १२९० ॥ महसदादीएस नेवि सदा ततो समुप्पा अहेऽपि साहू करे मन तु सविसेसं ॥ १ ॥ सालीयोनये जाए। दाणा अभिगमसटी आहाकम्मे नियंतणया २ आमंतियपडिसुगणा सामु सुमो अतिकम होति पदमेवाइ बतिकम गहिए होई अईयारी ॥ ३॥ मुहछूडे जगायारो १०३३] जीतकल्पमायं - मुनि दर ~ 27~ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [३५] दीप अनुक्रम [39] " जीतकल्प” मूलं [३५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३८/१], छेदसूत्र ............................. - - छेदसूत्र -५/१ (मूलं) भाष्यं [१२१४] [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भयं केसी गिलियमिवेति अगवा किं कारण? छूटेनी पुणरायती कमाइ भये ॥ ४ ॥ तो मायम्मी निम्मल ण एवं पत्तोंणायारं गिलियम्म अणावारी तस्स नियतीत ॥ ५ ॥ सेसेहिं वियतेजा एग दुग तिने व एप दितो यह विहि आगास ठितो पदेहिं विविपत्तिओ हत्थी ६ ॥ चउरो गहणे एवं अतिकमादी तु या एते आणादी परोऽवि दारं तो पक्खामि ॥ ७॥ आणं सहजणाणं गेंतो से अतिकमति लुटो आणं च अतिकर्म (कं) तो] कस्साऽऽएसा कुणति से सं? ॥ ८ ॥ एगेण कयमकजं करेति उपचा पुणो जण सापाबद्दलपरंपर पोओ संजमतवाणं ॥ ९ ॥ जो जहवा कुणतिमिच्छादिडी ओहु को अणो है। यदेति यमिच्छतं परम्स संक जगेमाणो || १२२० ॥ दुबिहा विराणा जमतो व तह य आयाए। आहाकम्मम्म तत्थ इमा संगमे होति ॥ १ ॥ बद्धेति वप्यसंग गेही य परस्त अप्पणी चेष सजियपि भिन्नदाढोण मुवति निद्धंसो पच्छा ॥ २ ॥ खदे गिद्धे व रूपा सुत्ने हाणी तिमिच्छणे काया परिवरगाण व हाणी कुगति किलेस च किस्संतो ॥ ३॥ पाएणपकिचेण व आहाकम्मं तु भारिर्य होति। एसा आणि तम्हा तू भोत्तमं ॥४॥ अम्भोले गमनादी पृच्छा दव्य काल देस भावे य एवं जयंते उलगा दिता तत्यिमे दोणि ॥ ५ ॥ जह बतादि अभोज जावप चंदो य सूरउदयं च उणा दोणि भये सचित्रं सच्च बोद्धवं ॥ ६॥ जह से दंसणी अरितिच्छा विनासिया रण्णा दिडेऽक्तिरे मुक्का एमेव इदं समोआरी ॥ ७॥ जहाकम्मं भुजति ण पडिकमाए व तस्स ठाणा एमेव अडति मोडो लुकलुको जह कोडी ॥ ८॥ आहाकम्मारं एवमिगं मे समासतो कहित आवती दाग वा चिसोहिमेतसिमं योच्छं ॥९॥ आहाकम्मेपनगुरु आवती दाण होयमच उदेसिपि दुवि आहे व विभागओ चेव ।। १२३० ॥ आहे मासतु आवती दाण होति पुरिमर्द होन्ति विभागुरेसे मुल इमे निष्णि ॥ १ ॥ उद्देश कडे कम्मे एकेक चविहो भने भेदी । कह होति उम्भेदो? इमाहि माहाहि बोच्छामि ॥ २॥ उदेसिय समुदेसि च आदेसिय समाएस एमेन करें चरी कम्मम्मिय होंति चत्तारिं ॥ ३ ॥ जातिमुदेसी पासंटीगं भवे समुदेसो समणार्ण आएसो नियाण समाएसो ॥४॥ उदेसियम लहुओं पतेयं होति चतु ठाणे एमेव कडे गुरुओ कस्मादिम लग लिए गुरुगा ॥ ५ ॥ श्री (उ) लहुमासा गुरुगा गुरुगा लिपि तु सुतवा तबकालेहिं विसिद्धा दाणं तु जतो पक्क्ामि ॥ ६ ॥ मासेपुरिम गुरुमासे होति एगमनं तु । चलए आयाम चउर होय भत्तई ॥ ७॥ पूतीकम्म दुहि देवे मावे व होइ गाय (मावि पुण दुविहं) दम्म उमा दुइ होति ॥ ८ ॥ सुमं वाचादर वा दुविहेय होति ह मुणे बादर पुणरपि दुहिं उबगरणे भत्तपाणे य९ ॥ पण गंधे धूमे सुमेयं एत्थ पन्थि तं युल्लुक्सडियादीण उवगरणे पृतियं होति ॥ १२४० ॥ एवं मासलई तू आवती दाण होति पुरिमर्द डोए लोगे हिंगू संकमण भत्ततीयं ॥ १ ॥ एवं मास तू आवती दाणमेगमसंतु उपकरण भक्तपाणे पूतिस्स लक्खणं यच्छं ॥ २ ॥ सारं सिद्धस्स करेति वावि जं दर्ज से उपरणं भणति खलिदविदीयादी ॥ ३ ॥ संवया चुली उक्खलि डोए तब दही य सो होनि आइकम्मी पूतीकम्मं इमं होति ॥ ४॥ संघियचिक्स सीडाइलवणं एमेष उक्लीययि फड्डनमादी तु जं लोए ॥ ५॥ एवं सतहोतीए दीए वावि संघ दारुणं । अग्मिलयजदि नए डफ याविगत ६ उवगरणति भणितं एतो बच्छामि भतपूर्ति तु डाए दोगे हिंगू संकामण फोडणं चूमे ॥ ७॥ अनडिय जायाणे डागं लोणं व कम्म हिंगुं वा। तं भन्तपाणपूर्ति फोडणं ॥ ८ ॥ सकामे कम्मं तेणेव य भायण कामे (ड) संपूर्ण अहया र नहि होला ॥ ९॥ अंगारगृह चाली वेसण हेडामुहीए में घूमे संपकडे तम्मि जत करेले पूतीर्थ ॥ १२५० ॥ मीसजाय तिहिं जातिगत वितिय पासंडे साहूमी ततियं पनि सिच्छामि ॥ १ ॥ पद तू गुरूतबा काहिं विसिहा गुरुगा होति पाया ॥ २॥ हुए आयामं चउगुए होति च तु मी मणिनं ठपणानं अतो बोच्छं ॥ ३ ॥ उवणाभतं दुहि इत्तर हे चिरवियं इतरलिए पण चिरतलिए होति मास ॥ ४॥ पणगे शिविगई तू लहुमासे दाण होत पुरम इतर चितविए या समासतो लक्खणं यच्छं ॥५॥ [संपादन] हिडने परिवाडिदिए (तिम्) तु गेहे एको दोमुनयोग करेति मिक्लाएं गेहे ॥ ६॥ वितिओ सागादीप देवओगं ( प ) हेकम्मि परेण चत्ये उत्ता इत्ताविया ॥ ७॥ चतुषपरा तु परेण चिरविया जान पुत्रकोटी एवं विपाभिहितं एसो बोच्छामि पाहूदियं ॥ ८॥ सा पाडिया दुवामा बादराय बचाओ उसके एकेका सा भवे दुहि ॥ ९ ॥ सुदुमाए लपण आपत्ती दाण होति णिचिगति गुमायरा आयती दामन १२६० ॥ एवं हुमा तुइमा जह काह अमारि कन्तमाणी उ भणिया तु चेद्ररूपेण देहि अम्मो मह भत्तं ॥ १ ॥ मणिनोडिनोति होही जाया कामिता इमेज सुनि साहू ग एतत्य आरंभो ॥ २ ॥ असुडिया भणती तुज्झवि देमित्ति किति परिहरति कि दाणि उहिस्से साहुपभावेण मामी ॥ ३ ॥ एवं गाऊ तो परिहरती एस होनि ओसका। १०३४मुक्ति दीपरसागर ~ 28~ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३५...] ---- --------- भाष्यं [१२६४] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्रांक [३५] दीप अनुक्रम प्रकारका उस्सकन कन्नती मणिना वेटेण दे भत्तं ॥४॥ कन्नामि मणति पेल तो ते बाहामि पुत!मा रोच। साब समत्ता पेल देही एताहे सो भणति ॥ मा ताच मंल पुत्तय! परिवाडीए बहेहिहा साहु । एवमुट्टिता ने दाह सोउं विषनेति ॥६॥ अंगुलिए चालेउ कइदति कप्पहतो परं जत्तो। किन्ति ? कहिए ण वचति पाहुडिया एअ मुहमा उ ॥७॥ पायरपाडियाविय ओसकाहिसकणे य इविहा उ। कप्पङगसंघाडय ओसरणेणं च णिदेसो ॥८॥जह पुत्तचिचाइदिणो ओसरणातिच्छिए सुणिय सइदो। ओसके ओसरणं संखडिपाहेणदाही ॥९॥ अप्पनम्मी ठवियं ओसरणे होहिइत्ति उसके । संपागडमितरं वा करेति उनमगुन वा ॥१२७०॥ मंगलोतं पुष्णहया व ओस तं च उसके । किं कारणीति पुडो सिद्धे ताहे विधजेन्नि ॥१॥ पाइडिभन्न भुंजनि ण पडिकमए य तस्स ठाणस्स। एमेव अडति बोडो लुकणिलुको जह कवा(मे)हो ॥२॥ पाइडिया भणिनेता एनो पायोवगरण बोच्छामि। पाद पयासणम्मी अपगासपगासणं जनु॥३॥ पायोकरर्ण दुनिह पागढकरणं पगासकरणं च। पागडि मासलई तू पगासकरणे उ चतुलगा ॥४॥ लहुमासे पुरिम चतुलहुए दाग होति आयामं। पायोकरणं भणिय कीनकडमयो न पोच्छामि ॥५॥कीतकहंपिय दुविहं दोभावे व बुहिमेकेके आयपरकीयमे पचिन तेसि वोच्छामि ॥६॥ दबायपरसीए विहेवि चाह मुणेयम् । दाणं आयामं न भावम्मि अनो पर वोच्छ॥७॥ भाषेतू आयकीय पाउलगा एत्य वा मुणेया। दाणं जायाम भावे परकीय बोमामि ॥८॥ मासलहमिहावनी दाणं पुण एन्य होनि परिमाइडं। कीयकडेय भणिय पामियमतो उ बोच्छामि ॥९॥ पामिचंपिय दुविह लोइय लोउत्तरं समासेण। लोहएं चतुलहुगात आपत्ती वाण. मायाम ॥१२८० ॥ होउन मासलहूं दाणं पुण एत्य होति पुरिमाइद। पामिचेयं भणियं परियहियमिणमों बोच्छामि ॥१॥ परियाहियपि हि लोय लोउन समासेज। लोहएं। चालडूगा न आवनी दाणभाषामं ॥२॥ोउनरें मासरहुँ आवती दाण होति पुरिमई। परियष्ट्रिय मणिएवं अभिहडदार अयो वोछ ।३॥त होति तुहाऽभिहडं आनिष्णं चेष नह अणावणं । आइण्ण णोगिसीई होनि णिसीइंच इविहन॥४॥ उणे मिसीह भण्णाति पगई पुग होति गोपिसीइति । एकेक परगामे सम्मामे चेव बोदा॥५॥सम्गामाइड इहि आइष्ण चेप होयाणाहणं। अगदपणे मासलाई दागेत्थं होनि पुरिमड्ढे ॥ ६॥ परगामाहा विहं सदेस परवेसओवणायचं। एक्केरक पुण दुविहं जलेण नह पलपहेण च ॥ ॥ सप्पचवाय णिपबचाय पुण होनि विहमेक्केका संजमआयचिराहण सपथचायम्मि जोएजा ॥८॥ परदेसआइटम्मी सपषवायम्मि होम्ति पाउगुरुगा। शिप्पथमाएं लगा। दाणं एनेसि वोच्यामि ॥९॥ चउगुग्गे अमनहूँ दाणमिहं होलिन मुणेया। पाउलहुए आयामं एमेव य होति साडेसे ॥१२९० ॥ उभिष्ण होनि निविह पिहिनुभिष्ण कनाड| भिषण। जन पिहितभिष्ण ने दुविहं फासुगमफासु ॥ १॥ फासुगळगणे न दहरएणं च एत्य मासलहु । ताहिय पचहणदोसा दाणं पुण एत्य पुरिमददं ॥२॥ अफामुपुढविमादी सचिनेक नजभवे हिन्न । तहियं उम्भिन कायाण चिराहणा इनमो ॥३॥ सवित्तपुदाविलितं लेल सिलं वापि दाउमोलिन। सचिनपुदमिलेको चिरपि उदग अधिरमिते ॥४॥ चिरछिनपदविकायो निम्मेत लिप्पमाणि आउचहो। जउमुरताचणम्मी नेऊ वाऊपि तत्येव ॥५॥ पणगरियाइ वणस्सति तसथपिपीलिएवमादीहि । एने ऊ निष्पने इमे तु दोसा तु उलिने । ॥ परम्सन देनि साए मेहे, ना बलोणं व पयं गुलं वा। उम्पाडित तं तु करेयऽवस, स विख्य तेण किणाति वा ॥ ७॥ वाणकपक्कियादी अहिगरण होनि अजयभाषत। णिव:नि जे बनहियं जीना मुइयंगमूसादी ८॥ जहेच कुभादिमु प्रचलिने, उभिजमागम्मिधि कायपाओ। ओलिप्पमाणेवि तहेष पात्रो, उम्भिण्यामेय पिहियपि पुन ॥९.- पनि दाणमेय मोहेन पडलहू पुगेया। दाणं आयाम विभागो कायणिकम् ॥ १३००॥ एमेष कवाडम्मिवि कायपहो हो। ऊ मुयो। उम्पिदिय पिहिने सविसमा जनमाईम् ॥१॥परकोडरसनारा आउनण पेदियाए हिचरि। गिन्ते ठिने व अन्नो डिभावीपणे दोसा ॥२॥ एत्वचि पडलमा ओहेगं दाणमेत्यमायामाहोनि विभागेणं पुणी पुढवादीकायगिप्पणं ॥ ३ ॥ उम्भिण्णेयं भणियं अहणा मालाहट पवस्वामि । न लिविह उढमहे निरिपं मालाहट चेव।४उद्दड दुभूमादीयं अह उहियकोहयालय होनि। निति अदमात्मादी हत्यपसाराउज मिहे ॥५॥ संबंपियनं दुरिह जहष्ण उकोसयं च बोदा। अग्गपएहि जहष्णं नविपरीयनि उकोस ॥६॥ मालोहर उकोसे आवनी पड मुणेनया। दाग आयामं तु जहण्णमालोहडमियामि ॥ ॥ एत्य तु मासातहत आपत्ती दाग होनि पुरिमदद। इय मान्योहा मणितं अच्छेनं अहण बोच्छामि ॥८॥ निविहं पुण अच्छे पभूयसामी य नेगए चेव । एकेक बनुलडगा दाणं पुष एन्थमायामं ॥९. अणिसिटुंपि य निविहं साहारण चोलाए बजइडे या निविदापिय अणिसट्टे पडलहगा दाणमायाम ॥१३१०॥ साहारणमणिसदं दाइयमादीण जनु होनाहि । वीरे आपण संखडि दिहतो गोडिभत्तेणं ॥१॥सो बोलगोऽपि दृषिहो डिमडिण्ण समासनो होनि। परिठिण्णां चिय दिजनि एसो हिण्णो पुणेतको ॥२॥ अच्छिण्णपरीमाणो सोऽवि णिसलो तहेब अणिसहो। जीसहो नेसि बिय तृण समपितो जो तु॥३॥ जाणेनि मनसेस जगहिय एक होनि १०३५ जीतकल्पमाप्यं - मुनि दीपरमसमर [३५] ~29~ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सुत्रांक [३५] “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३५...] ----- --------- भाष्यं [१३१४] ---- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य अनिसहुँ । डिग्णम्मि बोधगम्मी कप्पनि पेनुं गिसढे य४॥ अणिसहमगुणावं कप्पति पेतु तहेर अहिई। चोग अणिसड्डेय जइटाणिसई अतो बोई ॥ ५॥ रायकुलातो भत्त सनीयं जडस्स तंग कप्पनि। मवि पिंडर्मतरा अविष्णमहणादिवोसा य॥६॥जइडो व पतीसगतो परिपाडे वसहियादि भंजिजा। डॉपस सैनिमोवि अदिडो कप्पती पर ॥७॥ अणिसह भणियमेयं एतो अज्बोयरं पवस्वामि। अहियं उदन अझोयरो तुजं सगिहमेगम्मि ॥॥ अहिगं तु नंदुलादी भाति अझोयरो उ सो लिविहो। जातिय पासंटे असा अन्मोयरे चेच ॥९॥ जानियम्मि सस्तो आपत्ती वाणमेत्य पुरिमड़ई। पासंडी साहूण य मासगुरू दाण भनेकै ॥ १३२०॥ एसो अझोयरयो सोलस या उगमस्स दोसने। कोडीउ भवंतिह कि भणिय होति कोडिति॥१॥कोदिते जम्हा बहवो दोसा ऊ सहिय एगत्व । कोडित्ति तेण भणति णन कोटीओ इमा नाओ॥२॥हणण हणावण अनुमोदणं च पवर्ण पयानणऽणुमोया । किणण किणावण जणुमोयणं च कोहीउ णय एया ॥३॥ गव वेवऽद्वारसर्ग सत्तावीसा बहेव पउपण्णा। णउती दो चेष सया तु सत्तरा होन्ति कोडीणं ॥४॥ना चेव य णच कोटी रागोसेहिं गणिय अहरस । अग्णाणमिच्छअचिरति तिहिं गणिए सनचीसा तु॥५॥ युटवादी उस संजय कहिं गणिया होति एस चतुपण्णा। संतीमादीदसहि ऊ गणिया पाउनी नुबोदवा ॥६॥णउती तिहिं गणिया न सगणाणेहि वह परिनेणं । सात डोलि होन्ति सयरा कोडी एस चित्वारो ॥ ॥ संलेवेण दहा उम्गमकोटी विसोहिकोटी य। उम्गमकोडी उनिह विसोहिकोटी अणेगबिहा ॥८॥हणणनियं पयणतिय उम्पामकोटी नु छबिहा एसा। अगावि इमा उबिह उम्गमकोडी मुनेयमा ॥९॥आहाकम्मुदसिय परिमतियं पूति मीसजाय चा बादरपाडियाविय अज्झायरए य चरिमदुये ॥१३३०॥ एसा विसोहिकोडी छबिहभेया समासतोऽभिहिता। एनो छहा सुर्व पोच्छामो आणुपुत्रीए ॥१॥ उम्मकोटी अवयन लेबालेवे य अकयकप्पे या। कंजिय जायामे चालुलोयसंसपूती य ॥२॥ सुकेणवि जछिक असुइण त घोषए जहा लोओ। | जय गणवि किक धागा कम्मेण मागं तु ॥३॥ लेवालेवत्तिज पुतं, अपि दवमलेवर्ट। तपि पेतुंग कप्पेति. तकादी किम लेवई ? ॥४॥ कजियमादीगह कहा तक त? भणनी | गुणम्। साहस उ आहेतुं जे कीरा आहकर्म तं ॥५॥ इय गाउमाह कोथी साहुणिमिना य ओयणी उकतो। ग उ कंजियमाचीणि नो बनो ओपणो एगो ॥६॥ण उजियमा दीगि तो नम्हणे कते तमे तु। जदिनि ग विद्वा आहा ओवनमहातहवि बजे ॥ ७॥ सेसा चिसोहिकोटी ठवितगमादी तुजा पडणाभोगा। गहिना हवेज उद्धा अण्णम्मी भनपा- IS प्रस्मि ॥८॥नाहे तु जहासनि विगिचित तमग्णपा(सं) तु। दबादिकमेणं तू इमेण वो समासेणं ॥९॥ दने त चिय द सेतपदेसेस जेसुले पडिय। काले अकालहीणं | जापाण्णा मिक्स कमति ॥१३४०॥ भाचे अस्त्तबुडो जसढो जं पासती नगे छड्डे । अणललियमीसदो सबविवेगोऽवयये सुखो ॥१॥ह पूणण संवरेजा नाहे परितारणा तनम्मत। इत्थं चउभंगो न सुक्खोतनिधाययो इनमो ॥२॥ सुक्खे सुक्ख पडियं मुक्से उातु सुक्स तु। डाले डाँच नहा एस पाल्यो भवे मंगो ॥३॥ मुक्से मुक्खं परियं । पढमगभेदो विभिचति सुनु। विनियम्मिच छोई गालेति च कर दाउं ॥४॥ ततिवम्मि कर छोई उपि ओदणादि जंतरति। चरिमे साविमो कुलमले पावि तम्मन् ॥५॥ का निमिचिन्तामढी जेसुपदेसं न सुनाए साह । मायावी गति सुज्को तम्हा असदेन होय ॥६॥ एवं गवेसगाए उम्गमदारं समासती भमिले। उपायणमहणात समासोऽहं पपासामि 1. सोसस उम्गमदोसे गिहिणो उसमूहिए विषाणाहि । उप्पायनाएं दोसे सात समुहिए जाण ॥८॥णाम उवणा दविए भावे उपायमा मुनयना । दा सवितादिविहानचिने दूपयादि तिनिहरमा ॥९॥ आवासुषमादीहिपालचियरंगवीयमादीमा सुवासदुमादीर्ण उप्पायणया तु सचित्ता ॥१३५०. कणगरपवाया जाचातपिहिता अमिता। मीसा उसका उपचातुणायणा दसे ॥१॥भावे पलत्याइयरा कोहादुष्पावणा तु अपसस्था। कोहाविजया धायादिणं च गाणादित पसस्था ॥२॥ अपसस्थियमापायणाएं एवं तु होति अहिगारो।सा सोरमाहातमा धावादीया मुयत्रा ॥३॥धाती तूती णिमित्ते आजीव वणीमए तिमिष्ठा या कोहे मागे माया सीमे पति दस एते। पपिच्छा. संवा विजा मतप चुणा जोए या उपायणाएं दोसा सोलसमे मूलकम्मे य॥५॥ धारयति धीचए मा चयंति वा समिति तेग पाती । जहाविमा आसि पुरा सीराई पंचधातीओ ॥॥सीरवमजणे मंडणे यकीलावणकचाती या धाइतं कुनमाणो एगवरं चातिपिडो तु॥७॥तं दुनिह पातितं करणे काराबणे य बोदान पुण रागमादी पहन पातित कुजाहि॥ पंचविहयातिपिटे आपत्ती पाउलाहु मुणेया। दार्ण आयाम तू दूतीपिं असो वोच्छ॥९॥ सग्गाम परम्मामे दुविहानी तु होति गाया। एकेकापिय दुनिहा पागर गाउण्णा यणाया पामह मिस्सको बिय अप्पाहेन्तो व भगति इयरोगा। सेजातरसंतिया सध्या वा अण्णमामस्मि ॥१॥ मिस्सारी पती अप्पाहमिति संलिया. ईणं । सा ते अमुर्ग माया सोरपिया पागई भणति ॥२॥ कण्णा पुणाइ विहा दूनी एवं तु होति गाया। लोउत्तरे तस्थेगा वितिया पुण उभयपक्रपेपि ॥३॥ लोउत्तर संपाङग संकतो ताव उग्णययगेहि। कह पुण उष्ण ? सेजायरीय अपाहिओ सेतु ॥४॥ संघाइयपचयद्वा वेती वित्ति अन्ह णवि कष्ये। अविकोतिया सुया ते जा बेड इन भणम् (२५९) S२०३६ जीतकल्पमाय - मुनि दीपरतसागर दीप अनुक्रम [३५]] ~30~ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ------ मूलं [३५...] ----- --------- भाष्यं [१३६५] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । हि नए। नामा म लामा प्रत HERE सुत्राक [३५]] दीप अनुक्रम संती ॥५॥साविय भणती होत पारिजिहिती अवाणिया सा जालोउत्तरवणेसा उमयच्छणं अतो पो ॥जामाइतित्यजत्लागतस्स जीवादि पोकोण की। सो आगतोति । या उभयाण इमं भणति ॥ ७॥ एवं भजाहिसंतीस कि तह चेष चितिथं जता जहणवि संघाडो से अण्णो पियामती कोति ॥८॥ उभयच्छणा एसा सम्मामे अभि. हिना भवे नूती। एमेव परम्मामे दह दृती कह पुण करेजा ॥९॥ गामाण दोष्टर सेजापरिपूय तत्व परगामे। सामत्वं गामस्स य जह एवं हणिमों परगार्म ॥१३७०॥ संतो तु नत्य पच्छा मिक्खापरिवाए तो तु सेजतरी । अप्पाहेती खतं मम घूय भणेजमू एवं ॥१॥जह गामों पडिउकामो सा उभणेनासुमा कुण पमार्य। तीय कहियं तु तस्सा नेणवि गामस्स त कहिये ॥२॥तेय ठिय एगपासे इतरे पडिता कर नहिं जुई । सेजातरिपतिपुत्ता जामाता व बहिओ उ॥३॥बेति जणों केगेवं कहियति तो उनि सेजवरी। जामातिपुत्पनिमारएण खंतेण में सिहूं ॥४॥ जन्हा एते दोसा इतित्तं पण कप्पती तम्हा। दूनीपिंटे चढला आपत्ती दाणमायाम ॥५॥णियमा निकालविलयभिम गिमित्ते उबिहे भवे दोसा। सजतुपामाणो आतुभए तस्थिमे णानं ॥६॥आकंपिया णिमिण भोइणी केणतीत लिंगीण। भाइयचिरमयपुच्छा केवतिकालेण एनाहि ॥७क चिय एतित्ती इयरी पडिमणनि पचयो को उ।तह गुजादेसतिलओ सुविणाती पचए कहए ॥दासीय कर्य आउत्तं पेसवित्रो परिजणो य पच्चोणी। इतरोऽवि अविदिओ पिय परिसिस्स मोइओ चिन्ते ॥९॥ परचितं ता मित्तं दिगो उपणिमाओय परिवग्गो। कहतुम्भे गायली पेसविना मोतिणीए उ॥१३८०॥ पुडा य आदिअत्ते(वियते) तीच ब सिट्ट सलाहमाणीए। समणे नीयमनिस्सं जाणइ तिलओ य णे सिहो॥१॥कोबो बलबाग च पुच्छितो पंचपुण्डमासु। कालण विही जदियेच तो तुहं अचि तह कते ॥२॥सम्हा ण वागरेजा णिमिनपिडेस वणिजओ तुमए। तीनणिमिने पाउलहु आवत्ती दाणमायाम ॥२॥ पडुपण्णऽणागए या चउगुरुमा दाण होवऽभत्तहूँ। आजीवपिडमेतो समासोऽहं पपरसामि॥४॥ जाती कुल गण कम्मे सिग्ये आजीवणा उ पंचविहा । सूपाए अस्याएप कहेड अप्पाणमेकेके ॥ ५॥ जाती• पंचविहा। एकेके चतुलहगा आपनी दाणमायामं ॥६॥ जाती माहणमादी मानिसमुत्था व होति बोदवा । तहियं स्याए तू जागायेमेहि अप्पाणं ॥७॥ होमाइवितहकहणे गजति जह सोनियस्स पुत्तोनिा बसितो बेस गुरुकुले आपरियगुणे व सुएति 1८॥ सम्ममसम्मा किरिया अपेण उणाहिबाब विपरीया। समिहामंताऽऽहुति ठाण जाय कालेय पोसादी॥९॥ बेति फुर्व चिय सुकयं असोहणं वापिने कतमिति सहित भाग-5 पंता दोसा इणमो भवंती नु॥१३९०॥ भदो अम्ह सपक्सो एससी भिव देजहेयस्सा तो ओभामेती मुहमंगन्ति कुणति मिक्सट्टा ॥१॥ उमाईयं तु कुल पिनुसादिश स्थवि तहेचा मानसरस्सतमादीण जम्पई मंडलपवेस ॥२॥देउलदरितगभासाउवणयणे मण्डवा(ला) मूएति। जंतुप्पीलगमादितुकम्मं तुण्णादियं सिप्पं ॥३॥ अहवाजे सिपिखजा आयरितुपदेसतो तय सिप्याज कीरती सयं तु तं कम्म लेस सोस् ॥४॥कत्तारिपयोयगड्ढा बल्यू बहुवित्वरेस नह । कम्मेमु य सिप्पेस य सम्ममसम्मेगु मूतिजतरा ॥५॥ सव्येसु भहपंता पियमा दोसा हति विष्णेया। आजीवगपिटेसो एनो तु वणीमर्ग पोच ॥६॥ कि भणियं वणीमेनि भणति वणि जायणम्मि धानू ना बगिमगपायपागं वणिमोनी भण्णए तम्हा ॥ ७॥ पंचहा वणीमग जायणविनीत होन्ति बोदया। समणा माहण किवणे अतिही साणा व पंचमया ॥८॥समणे माहग किवणे अनिही साणे य जाण पंचसपिनेयं पउल्लूगा आपली दाममायामं ॥९॥ मयमादि पच्छमपिच पणेति आहारमादिलोभेचं । अप्पाण समणमाइकिमिणाऽतिहिसाणभन्नेसु॥१४००॥ नियसकताचसोबाजी पंचहा समणा। तेसि परिएसमाए लोभेण वणेड़ को अप्पं ॥१॥ तब(क)ग्णियादि बद्धमुंजते दातुपीतिअणुकुलं । साहु तुमे विष: कर्य दाउंज देसि एनेसि ॥२॥ मुंजनि चित्तकम्महियच कारणिय दाणवणो वा। अवि कामगहमेमुचि णविणासह कि पुग जनीसु? ॥३॥मिण्टनथिरीकरणं उमामदोसा बने पुण करेजा। चदुकारऽदिग्णदाना पचस्थिम मा पुगो एंतु ॥४॥ एमेष माहणेमुनि दिर्जत दिस बेति अणुक्ला दोहं भणियं दाणं समणाणं माहगाणं च ॥५॥ लोगाणग्नहकारिस भूमीदेवेमु बहुफलं दाणं। अपि गाम बमबंधुसु कि पुण उसम्मणिरएस?॥६॥किमणा उ कुहिकरपापअच्छिमादीस जुगिया जे तु। बढण नेसि देन्तं तस्सऽणुकुल इम भणति ॥ ॥ किमणेसु दुम्बासय अधचार्यकजुगियंगे। पृयाहेजे लोए दाणपढायं हरति देन्तो ॥८॥ ते चिय एथवि दोसा कोई पुण देति दाणमतिहीणं । तस्यवि अणुप्पयं न दाणपतिस्मा दम भणनि ॥९॥ पाएण देनि लोगो उजगारी परिचिएपसिए वा। जो पुण अदाखिण्णं अतिहिं पृएति ने दाणं ॥१४१०॥ कोड पुण साणभनो मतं साणादिवाण दिर्जत। तस्सय पियति भासनि नुममेगो जाणसी दाउं ॥१॥ अपिणाम होज सुलभा गोणादीण तणादि आहारो। जिशिकारहयाण मय सुलभो होति गुणयाण ॥२॥ केलासभषण एने, आगया गुजामा महि। परनि जसकोण, यापूया - हिवाहिया ॥३॥ पूर्वति पूर्वणिजा पुयाएं हियाय आगया इहई। लोगस्स हिता एते पृाय बहया हिया होन्ति ॥४॥ अहवानि पृवपूया हिताहिता पूनिता हिवा होन्ति । अपूनिना २०३७जीनाम्पभाष्य मुनि दीपरळसागर म [३५]] 4RV4A4tvA जुगिया जे तानशाण माहलाण चाकरण उमामलोसार ~31~ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३५...] ------ --------- भाष्यं [१४१५] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य ण कतलेलं ॥२ लोहण संसमाजमजोगाणं प प्रत कोड़ादीण कमलो सुत्राक साहूण समुष्टावे को की जा [३५] 4ARTHATANTRAV-MARATAVMPION बअहिता तम्हा खल प्याणिजेते ॥५॥ एमादी अणुकूले भणिते सोसि माहगाईणं। दाता चिंतेति नतो मज्मयो एस समगोति ॥६॥ एतेण मज्झ भावो विडो लोए पणामहज म्मिा एकके पुजुत्ता भगवाइवा होता ॥७॥ दाणं ण होति अपलं पत्तमपत्ते य सण्णिउजतं । इयवि मणिएऽपि दोसा पसंसिमो किं पुण अपत्ते? ॥८॥ वणिमगपिंटो भणितो एलो वोच्छ तिमिच्छपिट तु । सा दुनिहा तु तिमिच्छा सुहमा तह बायरा चेव ॥९॥ मुहुमाए मामलई आवती दाण होति परिमदद । पादरतेगिपठाए पउलहगा दाणमायाम ॥१४२० ॥ भिक्लादिगतं संतं पुच्छति रोगी तु ओसहं किंचि । भणई किमहं वेजो ? पढमतिगिच्छा भने एसा ॥ १॥ वेजोत्ति पुछियो अत्यावशीइ मुतियं एवं । अनुहाग पोहणं वा अयानमाणाण कसमेतं ॥२॥बेतिय एरिस दुस्सं अमुएणं ओसहेण पउणं मे। सहमुष्पदयं च स्यं वारेमी अहमादीहिं ॥ ३॥ एसा चितियतिगिच्छा दोऽवेयाओत सहमतेमियां। पारस्तेगिई पुण सतमेव करेति वेज्जनं ॥४॥ संसोहण संसमणं गिदाणपरिवजणं च जे जत्य। आगंतुधातुखोभे व आमए कुणति किरियं तु ॥५॥ अस्संजयतेगियो कीरते तह प। मुहमकरणम्मि। तहियं तु अणेगनिहा डोसा इणमो पसनति ॥ ६॥ असंजमजोगाणं पसंजणं कायघाओं अयगोलो । दुबलनम्पाहरणं अच्चुदए गिम्हणुइडाहो ॥ ७॥ जन्हा एते दोसा तम्हा कायरिया गहु तिगिच्छा। भणितो तिमिच्छपिटो एत्तो कोहादि वोच्छामि ॥८॥ कोहादीणं कमसो आहरणा होन्तिमे समासेगा हत्यार्थ निस्फितिय रायगिह घेर चंपा च ॥९॥णगरम्मि हत्यकप्पे करडगमले उ खमओं विवतो। कोसलदेसे गिरिफ़लि गामे वणकोहकारम्मि ॥१४३०॥ साहण समाताये कोण अर्ज पए त साहणं आगेज दागातो सुवाहतहिं मई आणे ॥१॥पतगुलाजुत्तापिय जहाणिय इदगातु सुहडेणं । सेडंगुलिमादीहिंणाएहि एल्बमलाई ॥२॥ रापनि धम्मस्वी आसादभूती तु सहरी । तसारायणढगेहपविसण संभोइय मोदए लेभो ॥३॥ आयरिय उचझाए संघाडय अप्पयरस अड्डाए। मुजो भुजो पविसति काणकुणीसुज़रूहि ॥४॥ उपस्तिलत्यो पापडो पा. सति चिनेति मदिम मुटठा होज बडो सारिक्सो उवायजो एस पेसो ॥५॥ चितिय उवायमेयं वाहरिया देमि मोदए पहने। भणिजो य तो एजस दिणे दिणे जाहे कर्जत ॥६॥ धूपदुर्ग संदिसती हासखेड्परिहाससंफासे । एतेण सर्म कुबह जह भजति एस अचिरेण ॥ ७॥ अदि णाम मिहेजा तो बेजह अयस एय पान ताहि तहस्य समिती पहरणं लिंग मुयमुत्ति ॥ ८॥ गुरु सिह मोनुमातो दिण्णा पूया य मणिय घेणं च। एसुत्तमपगतीजो जनेणं उपयरजाह ॥९॥रायगिहे य कयायी मिन्महिलं णाडगं हा गच्छी। नाच विरहम्मि मत्ता उपरिगिहे दोषि पासुता ॥ १४४०॥ बाधाएण पविही विट्ठ विचेला विरागमावण्यो। आयरिषगुरुसमी पहित दिही गटेणं च ॥१॥ इंगितणाए प्रयासरंट पेसि- पय जीवणं देहि। देमिनि खपाल गाहग पचीय कुसुमपुरे ॥२॥ कड़गादिअत्यदार्ग पटु पटितं तस्य(नवगम्मि गते। मरहोयणादीया माहिती तत्व पनिषदा ॥२॥ इरसा सभरहो आसपरे य फेवाले लोओ। हत्ये गहिओ मा कुण किं भरहों गियत्तो ? पञ्चाह ॥४॥ण हु तंऽपडक्सइ एवं ओलंबो होलि जति नियशामि। पंच सता नेण समं पाहता गाइए व्हणं ॥५॥ एमादि मायपिंडोणकपती णपरि कारणे कप्पे। गेलपणलमगपाहुणधेशदट्टेव(साग)मादीसु ॥ ६ ॥ मायापिडो भणितो एलो नोच्यामि हपिटता सो कोदपि टमादिम सरत्याऽनुपाति अहन इमो॥ ७॥ सम्भंतपिण गिति अग्णं जमुर्गति जज पेहामि । भदरसंनि कार्ड मिष्हनि लद सिणिहादी ॥ तस्योदाहरणमिर्ण चंपाएं उणम्मि कोवि समतोता गेहति अभिग्गहं तू सीहसरमोदए पेच्छे ॥९॥ भिक्स पविही व तयो पडिसेहे अग्ण सम्ममाणंपि। सीहसरमलहतो संकिस्सनि भापतो अहसो ॥ १४५०॥ सीहसरगतचिनो विसरिसचिनो व धम्मलाभोलि। बेई सीहंसरए सूरथमिएवि हिंदवतु ॥ १॥ सढऽइदरसकेसरभायणभरणं च पुथा परिमड्ढे। उपओग चन्दजोयण साहनिलि निधणे गाणं ॥२॥कोहादीनं कमलो एमेते बम्पिया उ आहरगा। एतेसि बिय कमसो आबनी दाण बोच्यामि ॥३४ कोहे माणे चतुला आपली दाण होइ आयाम । मायाए मास. गुरु आवती दाण भनेकं ॥४॥ नोभे पाउमुरुगा तू आपसी दाण होयऽभत्तह। संधुगण संचचो तू पुणगा बंदनगमेगडें ॥५॥ दुविही य संथपी खाल संबंधी बयणसंथची वेषा एकेको पण विदो पुरि पन्छा यणायो॥६॥संबंधे पुर दुविही इत्थी पुरिस य होति णायचो। एमेवय पच्छापी आपत्ती दाण बोच्छामि ॥ ॥ बीए तमगा परिसेम पतलह मणे. तमा बडगुएन पात्यं चउलए दाणमायाम ८॥ क्यणेचि पुत्र दुविहो इत्थी पुरिसे यहोति गायो। एमेन य पच्छापी आपनी दाण बोच्छामि ॥९॥ इन्चीए मासन आपली दाण होति भनेका पुरिसे मासलाई न आपत्ती डाण पुरिमबई ॥१४६०॥ संबंचे पुत्रसंथवो मायपियादी होनि णायत्रो । सासुबससुरातीजो संबंधीसंघको पच्छा॥१॥ आयपE चपस्वयं गाउं संबंधती जयगुरुवं । मम माता एरिसिया ससा वधूया पणताही ॥२॥ अडी विट्टीपण्हय पृच्छा कहणं ममेरिसी जगणी। यणसेवी संबंधो विहवासष्हाय दाण च एमेवय परिसमुवि पिपनातादीहि होति संबंधी एमेष यच्ठसंधव अदिति दिहादि पुच्छादी ॥४४ पच्छासंचपदोसा सामय पिहवादिषयदाणं या मजा मम एरिसिया सज १-३८ जीतकस्पभाष्य - मुनि दीपरमागर दीप अनुक्रम 1 [३५]] ~32~ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) -------- मूलं [३५...] ----- --------- भाष्यं [१४६५] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य स प्रत सुत्रांक [३५] atisthatanAR दीप अनुक्रम घातो व भ(सं)गो वा ॥५॥ संबंधे संघक्सो एनोवोच्चामि संघर्ष भयो। पुधि पच्छा व लहा संधणणं कणति दाताए ॥६॥ गुणसंथवेण पुत्र संतासतेण जो धणेजाहि। दातारमहिम्मि सो वयणे संथवो पुधि ॥ ॥ सो एसो जस्स गुणा पयरति अवारिया दसविसासु । इहरा कहासु मुत्रति पचलं जज विडोति ॥८॥ गुणसंथनेस पच्चा संतासतेण जो पुणेजाहि । दातारं विष्णम्मी सो पच्छासंघवो वयणे ॥९॥ चिमटीकय णे चक्यं जहत्यतो वियारिया गुणा तुज्या । आसि पुरा गे संका इवाणि णीसंकियं जायं ॥१४७० ॥ तत्ववि महगपंता दोसा नह ये हानि णायका । भणिएस संधचो तु विजामते अतो बोचा ॥१॥ विजामते चतुलहु आवती दाग होति आयामं। विजामंताविसस उल्लिंगेऽहं समासणं ॥२॥ विजामंतबिसेसो पिजिस्वी पुरिसी होति मंतो तु।जह सलाहण विजा मंतो पुन पढियसिद्धोतु ॥३॥ विजाए उनिवरिसणं जह कोई मिच्वासयो पन्तो। साहूण विडियागं हर उहापो इमो तत्त्व ॥ ४॥ इय पंतभिच्यासो साहूण ण देति तत्थ भगएको । जाइछह विजाए ययगृलवत्याणि दामि ॥५॥ पेण्डामोतिय मणिए गंतु विजानिमंतिमओ बेति। कि.भि ?ची पतपुरुषस्थाणि विण साहरणं ॥ ६ ॥ अण्णाह य सा भागों किहते विष्णात भत्तपाणादा ?। तो बात तगो रहा कण हित ! कण मुट्टा मि? ॥७॥ पढिविज्ञ यमगादी सो बा जष्णो व से करेजाहि । पाचाजीची मायी कम्मणकारी य गहनादी ॥८॥ मंतम्मि उदाहरणं पाडलिपुत्ते मुरूंडराइस्स । उपपणा सीसवेदक पालित्तयकहण ओमजे ॥९॥ जह जह पदेसिणि जाणुयम्मि पालित्तयो भमाडेति। तह तह सीसे चिपणा पणस्सनि मुरुंडरायस्स ॥१४८०॥ मतेणं अनिमंतिय तह चेष दवाव दिन कोई तु। तस्यपि विष दोसा पडिमनादी इमे होमित ॥१॥ पडिमंतर्थमगादी सो वा अण्णो व से करेनाहि । पापाजीपी मायी कम्मणकारी य गहणादी ॥२॥ विजामताभिहिया अहुणा बोच्छामि चुण्णजोगादी। बसिकरणादी युषणा अन्तहाणंजणादीया ॥३॥ पुण्णे जोगे पउल आपत्ती दाणमेस्थ आयाम । गिदरिसणं दुष्पी उति समासेणं ॥४॥ दिहतो पुग्णजोगे जह कुमुमपुरम्मि केति आयरिया। जंघाचलपरिहीणा ओमे सीसस्स तु रहम्मि ॥५॥ कयंति चुण्णजोगा अंतहाणादि तस्य दो सुहडा। पच्छणाठिय गिसामे जपधारे अंजण एकं॥६॥ बीसजियावि साह गुरु हि देसत हडग गियत्ना। आयरिएहि य मणिना कुछ कर्य जं भियत्ता मे॥७॥ भिक्खे परिहार्यते घराणं ओमें टेसि देताणं। कि ओम गुरुर्ण न कुवामो ? सुहट सामन्ये ॥८॥ कुणिमो अंतदाणं दबे मेलेनु अनियंजणया । सह भोज चंदगुते ओमोदरियाएँ दोधातं ॥९॥ चाणकपुच्छ हालचुण्ण दारपिहर्ण तु धूमो य । बढ़ कुच्छ पससा घेरसमीचे उपालंभो ॥१४९०॥ एवं बसिकरणादिसु चुणेमु वसीकोन्तु जो तु परं । उपाएनी पिंड सो होनी चुण्णपिण्डो तु॥१॥जे बिजमन्तदोसा ते बियनसिकरणमादिचण्णेहि। एगमणे. गपयोर्स कुजा पत्यारयो वापि ॥२॥ मणिएस युग्णविन्दो अहुणा पुच्चामि जोगपिट तु । तहियं जोग अणेगा इगमो तु संपपपखामि ॥३॥ भगदोभग्गकरा जोगा आहारिमा य उपरे या आसनचासो पायपलेयायिनो इतरे ॥ ४॥ तत्थाहरणं णमो अणहारिमपाइलेवजीगम्मि। आभीरणविसयम्मी जह कत मुण तावसहित ॥५॥णदिकडवेपदीये सया तासाण निवसनि। पचदिवसेतु कुलपद पालये लिप पाएन ६॥ पाउगरूड सालिडप्परेग उत्तरिउ एति भगति । आउन लोग पूया पचक्ला नेले देवत्ति ॥ ७॥ जण सामाण लिंसण ताहियं तू बहरसाभिमाउलया। आवरियाजसमिता तेसिंचणिवेदियं तेहिं ॥८॥ तेहि मणिया प पचहते मातिहाणि पायलेवेणं। णातिमुत्तरति सगिद्दे गेउसिणीएण धोबह पं॥९॥ तेहि व सगिह पर पाय बन्ला धोयऽणिच्छमाणाणं कि जाणति लोगोली दिणं विणएग बहुपलाय? ॥१५००॥ पडिलाभिय पच्चंता णिबुडणविफल मिलिय समिया या पिम्हिय पंच सता तापसाण पान साहा य१ एमादीजोमेहि आउहावेतु एलती पिंड । सो गावि कप्पे एनो बोच्छामी मुलकम्मत ॥२॥ दुनिहत मलकम्म भादाणे तर परिसाडे। दुविहेचि मूलकम्मे पच्छिनं होनि मुलं तु ॥ ३॥ जादाणं अहिंगरण परिर्पयो छोभगाविडोसा या पाणबह सारणम्मि छोभग पहिणीय उइटाहो ॥४॥इय मूलकमेणं पिंटो उपादिओण पनि ना उत्पातणेस भणिया गवेसमा चेत्र व समना ॥५॥ एवं नु नचिहस्सा उगमउपायणाविसुदम्स । गहणविसोहि विमुदस्स होनि गहणं नु पिंडस्त ॥६॥ उम्मदोस निहीतो कुणापग होइ समगडल्याणा। गहणेसणाए दोसे आयपरसमुहिए बोमई ॥ ७॥ दोणिवि समगसमुत्था संकित तह भावतोऽपरिणय चा सेसा अहवि णियमा गिहियो समुदिए जाण ॥८॥ सा गहरण चनुहा णाम ठपणा य इति माथे य। दवे वागरजूहं सबं पता पित्थरया ॥९॥ दाबि एस भणिता भावे गहगेसन पोपटामिासहि । पदेहि सुदं संकितमादी इमेहिनु१५१०॥ संक्ति मक्खिन णिक्सिन पिहिन साहरण दायगुम्मसि । अपरिणय लिन उडिटय एसपदोसा दस हवंति ॥१॥सकाए चउभंगा पटमो गहणे या भोषणे या निनिओ गहण व भोषण तनिषो पुण संकिनो भोगे ॥२॥णीसंकिओन चरिमे किह पूण सका हवेज जह कोई। मिस पवितो सम्मि हिरिम मिस विनिवेति ॥३॥ कि लदा भिसा कहा णय तरति युनिट तहियं । हिरिम इनि संकाए मुजति इह संकितो पेच ॥ ४॥ बीएण गदिय सकिय विगहन्तऽसे य गरि संपा। १०३९जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपानमागर [३५]] tub ~33~ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३५...] ------ --------- भाष्यं [१५१५] ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य S प्रत सुत्रांक [३५] दीप अनुक्रम पार्य पहंणगं वा सोड मिस्संकिओ भुजेणीसंकगाहिवाओ विगहेन्तों जिसम्ममण्णसंपा। संका पूणाद जारिस सब मए अमगरोहमि॥६महती भिस्सा तारिस एते. हिवि लद किण्ण होजाहिराणीसंकित्रकाऊ मुंजति त सकिओ चेच ॥ ॥ पढमो दोविलम्मो बितिको पुण गहणे भोवणे तक्तो। संक्तिमाचपणो पणुनीसा चरिमए मुद्धो ८॥ उमत्यो सुनपानी गसती उजु पयत्तेणं आवष्णो पीस सुतणाणपमाणतो सुबो ॥९॥ साहू सुतोषयुत्तो सुतणाणी जइचि मिन्हा असुद्ध। न केवलीवि जति अपमाण सुर्य भवे इहरा ॥ १५२०॥ सुत्तस्स अप्पमाणे चरणामायो कसो य मोक्खस्स । मोस्वाभाषाओ चिय पयत्तदिनखा मिस्त्था य॥१॥ सोलस उग्गमदोसा गव एलणदोस संकमेतृण। प्रमाणामामा मामास सुतणाणपमाणतो सुखी पणपीसेए दोसा संफियमासकियो यो ॥२० जइसका दोसकरी एवं सुर्वपि होति तु जमुई। णीसंफमेसियंतिम जसणिजपि पिदोसं ॥३॥ मग्मति सकियभावो अविसुदो अपहितेशतरपरले। एसिपि कुणयपुणेसिं अणेलिपति विसुद्धोतु ॥४॥ णिस्संक काउ तन्हा मोना संकियं मणितमेयं । मक्सिसमिदाथि बोर्ड मक्खित ज होति संसर्त ॥५॥ विह चमक्खिन सन सचिनं येप होइ अचि । सबिन तत्थ विहा पुढची भाऊय बकाए ॥६॥ पुटवीससरस्रवेगं हत्ये मते व सुखें पनगं तु आवत्ती दार्ग पुण णिवितियं होति दात ॥ ७॥ कदममस्सियमीसे लहुगो निम्मीसे होन्ति साहुगा तु। लहुमाले पुरिमा बालहुए होति आयामं ॥८॥ ससणिदुदहे या पुरपच्छा(पुर पच्छा अणु)कस्म मरिसर्य चनहा। उपकुडपिडकुक्कुसमविखनमेवादि बकाये ॥९॥ ससगिदहत्यमले पणगं आपत्ति दाण गिविगई। उदयो मासलाई आपत्ती वाण पुरिमददं ॥ १५३०॥ पुस्कम्मपतकम्मे ।। आपनी चतुलहु मणेतचा। दार्थ आयाम नगणकाय अतो तु चोच्छामि ॥ १॥ उपद्दपिट्ठमक्खिय परित्तहत्थे च मत्त सबिने। मामत आपत्ती दाणं पुण होति परिमइदं ॥२॥ एते उमविखए हत्ये मलेय होन्तणन्ते । आपत्नी मालगु दाणं पुण होति भत्तेकं ॥३॥ हिवंतीए साग छदेवीए बजरसोनिसं। उसमरिखतेत परिमाणतण मा होना सेसहिन पाएनाहिवि समीरणतसेहि सचिरामीसएणमक्खितण बितिजए किविः ॥५॥ सवित्तमविलयश्मि उहत्ये मत्ले यहोति पाउभयो। पदमपि दोषि परिसय हत्यो बितिमम्मि पनि मतो ॥६॥ तनिए मनो मस्तिो गवि इत्यो चरिमए ण एकोवि। आदितिए पढिसेही परिमो मंगो अणुण्याती ॥ ७॥ अचित्तमक्खित इहा मरहितदवेग पाविस्तरेणं । गरहित होनि दुहानमोगे तह उभययो पानि ॥८मंसयससोणियाऽऽसवलवादी गरहिएस मेगामि । मुलपुरीसादीहिंगरहियमेयं भने उभाए ॥९॥ दुबिई नगरलिए आपनी पउलह मणेता दान आचार्म तू जगरहिनेतो पाखामि ॥१५४०॥ अगरहिव कुरकुसणं गोरसपततेतमादीहिजता संसलमसंसर्स इमिहपिय होलि णाय अमिनमविसपी पवि भंगसु होति भवणा तु । जगरहिएण तु गहणं पहिसेहो गरहिए होति ॥२॥ संगजिमेहिं मज अगरहिएहिषि मोरसस्नेहि । मधुपागलेहि मा मष्तिपिपीलियाधात्री ॥३॥ गोसासंसने या पलतागुलादिकीदिसंसते। चतुलहुगा आपत्ती दाणं पुण होति आयामं ॥४॥ लोइयमाहितमलार्मसयसादीहिं मक्सिय जताना पुराण भाविध देसि व पटुन गहणं तु ग५॥ दोहिपि गरहिएहि मनुमाराई होइ अन्गाहर्ण। मस्रिवत मणिनं एवं एनो घोच्छामि गिक्किानं ॥६॥शिक्विन ठवियन्ति य एगई टाणमगणा एय। विह होनि ठान सथितं मीस अचिन आएवं चतुभंग भने सचिनादी अणेगह इमो तु। सचिनं सचिने सचिन मीसे याचिने वा ॥८॥ मीसं या ससपिले मीस मासे व हानि णिविसले चिनेक मीण य एवेको होनि परभंगो ॥९॥ अमा चित्तानिने नितं निलम्मि होति णियो। चिन या अविनं अचित्त निनोनयमचिने ॥१५५० ॥ अहणा मीसं मीसे मीसमचिते अचित्त मीसम्मि। अशिच अशित्ते सलिएसो होनि चतुमंगो ॥१॥ चतुभगेसतेसुं संजोगाडणेगहा मुणेयका। पुट दिएमु उस्पषि काए सठाण परठाणे ॥२७ सचिनपुचिकाए सचिनो व पदवि गिक्विनो। सचिने अश्चित्तो अभिवत्ने वादि सचिनो ॥३॥ अथिने अभित्तो सद्वाणे एस होति पउभगो। परमाणे पंचाये भाउमादीसिम होम्नि शासभिलपुढाविकानी सचित्ताउम्मि होनि मिस्तितो। सचिनो अधिने अवितो व सशिने ॥५॥ अबिनो अचिने एवं सेसेस सेटमादी संजोगा | तथा पंचसु परठागे उभगो ॥६॥ एमेव आउनेऊवाउपणस्सलिनमाण पनुभंगा। एकेके विष्णेया उच्चतुनगाण संजोगा ॥७॥ चिने सचिनेणं ने उनीस पनि संजोगा। अस्मिनमीसएणपि एपनिया पसजोगा ॥८॥ मीस अरिचणवि एवतिय रिचय हुनि का जोगा। लिपिपि उनीसा तू मिलिया अनरसय ९॥ अयण सचिनमीमा एगयो एगया य अचिनो । एवं चतुभगो तू तत्वाऽऽदितिए कहा गस्थि ॥१५६०॥जं पुण अचिनदर्श शिक्टिव पनि यणेमु कार्यम् । सहि मग्गणा त गमो अर्णता परंपरा हाति ॥१॥चितपुचित तर मोगाहिमगाद होनि णिपिसना होती परंपर पुण पिहुडगये जंतु पुढविठिय ।।शा उदगमगनर शायणीयमादि पारंपरं न णावादी ते उ अतर पारंपरेट कायमा इमे सन ॥३॥ विसायमुमुरिगारमेव अपनपनसमजाले । बोलीणे सत्त दुगा एतेन अगंतर पोय ॥४॥ विमाउति गदसति आगी दीसनियरपणे पटे। वास्मीसा पिगल अगणिकणा मुन्मुरो होनि ॥९॥ गिजाला हिलिहिलिया इंगाला ते भये मुणेनचा। होति पउत्थी भंगी ने जालाऽपलपिहान ॥६॥ पंचम पमा चिहरे उडमि यहोति (२६०) 8 २०४जीतकल्पमाष्य - मुनि टोपरगागर | [३५] ~34~ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) --------- मूलं [३५...] ---- --------- भाष्यं [१५६७] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । प्रत सुत्राक [३५] कन्न लाएगा। लाये गाना बीपछामि साहरणदार अमिला। एस्थ दीप अनुक्रम करणसमजाला । सत्तमए समतीया अणंतरा होति सत्तसुधी ॥ ७॥ पारंपर पिहुवादिसु अगणीपटादि तस्य दोसा तु। भयणा तु जंततिम इणमो तु नहिं मुणेयो ॥८॥ पासोलित कडाहे परिसाटी णस्थि तंपिय विसालं । सोविय अचिरच्छूढो उच्छरसो माइउसिणो य॥९॥ गहणमघट्टिय कण्णे घट्टित हारादिषटण अग्गिवहो। उसिणोदगम्स गुलरसपरिणामिय गहाणबुसिना ॥१५७०॥ दुनिह चिराहण उसिणे उड्डम हाणीय भागभेदो या अचुसिणातों ण घेण्पति जंतोलिनेस जयणा तु ॥१॥ बाउक्सित्तागंतर पापड़गादी तु होति णाया। पत्विदतिपूरिजोवरिपतिहिय परंपर होनि ॥२॥ हरियादि अणंतर परिवाइ पारंपरे पिहुडमादी । गोणादिपिट्ठ पूवादणंतरे भरगफुतिगितरं ॥ ३॥ सा कप्पएवं मिक्खित्त समासतो समक्वान। पुटवादीण एत्तो आपत्ती दाण होण्ठामि ॥४॥ पुढवादी जाच तसे अगंतवणकाय मोतु मिक्खिसे। संलि अर्णतर सहूगा परंपर होति मासल ॥५॥ बनुलाइए जायाम मासलह दाण होनि पुरिमड्ढे। एवं सचित्तम्मी भणिय मीसे अतो वोच्छं॥६॥ एतेसु व पुढवादिएसमीसे अर्णतरे लहजओ। होति परंपर पणगं दाणं एनो तु बोमछामि ॥७॥ लहुमासे पुरिमड्डे पणगे पुण दाण होनि णिधिगति। वणकायमणतेमु आपत्ती दाण वोयामि ॥८॥वणकायअर्णतेमु मिक्खित अर्णतर तु चतुगुरुगा। होति परंपरि गुरुओ दाणं तु अनोतु पोछामि ॥९॥ चतुगुपए तुचउत्थं गुरुमासे दाणमेगभन तु। आपत्ती दाणंपिय पिहियम्मि अनो उबोच्छामि ॥१५८०॥ पिहियाताणतरपरंपर व होति गुरुपणर्ग। बहुपण तु परिने दोसुचि दाण न णिविगती॥१॥ आपत्ती दाणं या पुढवादीणिक्सिवंत मणिय तु। एतो समासयो बिय पिहितदारं पवस्वामि ॥२॥ सविनादिसु अधिलपिहिय चतुभंग नह य संजोगा। जह भणिया जिस्विने तह च य होन्ति पिहितेवि ॥ ३॥ सचिन मीस एको एक नोऽचिन एत्य चउभंगा। आदिने परिसेहो तनिए भगम्मि ममाया ॥४॥ अकिचन सचिनेणं अनिरसतिरं चमचे पिहित पुढवादिए उस्सुचि लोहादी अतिर पुढनीए ॥५॥ पच्छियपिहुडादि निरं ओगाहिमगाविठणगरं होति । वय - गियादि परंपर अगणिकाए इमं होति ॥६॥ अतिर अंगाराई सहियं पुण संतरो सरावादी । तस्येष अतिर वायू परंपरो वरिषणा पिहिते ॥ ७॥ अइरं फलादिपिहियं पणम्मि इनरंतु पच्छिपिटादी। कच्छय(त्या)संचारादी अतिरतिर परियादीहि ॥ ८॥ तइए भंगे मग्माण भणिएस बउत्थभंगभयणा नु। अचिन अचिनेणं चिहिए का भयण? मुणसु इमा ॥९॥ बनुभंगो पिहिए गुरुर्य गुरुएक गुरुजलहुएण। लडूयं गुरुएण नहा लहुएण परिम तहिं गमो ॥ १५९० ॥ पुढवादीणं कमसो आवनी दाण जह तु णिविषले। आयधिराहण गुरुयनिका गवरंतु बउगुल्या ॥१॥ एत्य प्राण चतुर्थ एनो चोच्छामि साहरणवारं । साहरण उकिरण विशेषणं घेच एगई ॥२॥ मग जेण राहिति नत्य अदेज होगा । तं साहरितुं अग्णहि मनेणं देव साहरणा ॥३॥ सा पुग छम गातका सचित मीसा नहब अमिता। एत्यवि जह णिक्तिते भंगा संजोग नह .४० सवित्तमीस आदिएमु दुमन गरिय माण विगो। सनियम्मि मग्गणा तू छम भोमादीम साहरणे ॥५॥ चरिम भंगे भयगाज दुहमचित्त का तहि भयणा । भण्णा मुणम् तहियं चाभगो होति णमोतु ॥३॥ सुके सुफ पदम सुके उाई तु वितियओभंगो। उहदु मुई तबजओ गते उगवं वउत्योतु ॥॥ एकके पाउभंगो मुकादीएम बाउसु मंगेसु। यो योव थोवे बहयं बडू थोष बहु बहुगं ॥८॥ जस्थ तु यावे योप सुस्से उचहुमति तं गम्। जति तनु समुक्खिनु थोचाहार वा मन (अन्न)॥९॥ सेसेसू तीमुंपी दाना भगेस होति णातको। थोष गई बड़ग पोपो बह गहूणे। पागमोतु ॥१६०७॥ उक्खेने जिक्वेचे महाभागम्मि ला यह टाहो। उकायवहो यतहा अचियत्तं चेव बोच्छेदो ॥१॥ थोचे यो छुट सुक्से जाना सुक्ल ताबारी। नुअगाइणं कडदोसो सोनिकातूर्ण ॥२॥ साहरणेय भगिय आपत्नी दाण जह तु णिविखने। दायगदार अणा समासोऽहं पपक्खामि ॥ ३॥बाने पुढे मने उम्मने वैविए यह जरिए या अघाए पगलिए आरुडे पाउयाहि च॥४॥हन्यदुणियलबडे विकजिए चेव हत्यपाएहि । नेरासि गुत्रिणी बालवच्छ भुजति घुमुनी ॥५॥ भजेन्नी व बलेन्ती कडेन्नी घेवनहाय पीसेन्ती । पिनंती अंचती कननी पमरमाणी य॥६॥ उकायबमाहत्या समनहा णिविविनु ने पेव । ते योगाहेन्नी सपनाऽऽरमंती य॥७॥ संसानेण तु वेग लिनहत्था य जिनमना या आयतेनी साहारणं व रेन्तीय बोरिवर्थ ॥८॥ पाहुडियं च ठवेन्ली सपञ्चमाया पाच उदिसा आभोग अणाभोगेण दलती वाणिजा 3॥९॥ एनेसि डायगाणं गहर्ग फेसिधि होति भाया । केसिंची प्रमाणं तपडिवावे भवे गवर्ण ॥१६१०॥ एते दायगदोसा एतेहि दिनमाण गरि । जेन अकारणे गेले पनि नेसित बोमडामि ॥१॥बाने पुढे पत्ते उम्मले बेचिए जरिए या एतेसि मासन आपत्नी दाण पुरिमइदं ॥२॥ अंधापगलियादी जापनदार मानवमानिा पनेयं चतुगरगा दाण पुग होयऽमनहूँ ॥३॥ मुंजन पुसलेन्लीए आपनी चतुलह मुगेया। दागं आयामती भजणमादी अतो बोच्छ ॥४॥ मजन्नीय क्षेत्री जाच कायमग्गहन्यत्ति। समगड्डा ते चतुणिक्विा ओगाह पहन्ती ॥५॥ एत्यनुविसरिसदाणं पच्छिल होति कायणिफण्णं। सेसेनू दारसंचनुन्छुगा दागमायाम ॥६॥ एने दापग भगिता एनो उम्मीसप परक्सा१०५१ जीनकन्यभाग्य - मुनि दीपरनसागर [३५]] ~35~ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) -------- मूलं [३५...] ----- --------- भाष्यं [१६१८] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य ight प्रत v सुत्रांक मामोदर [३५] दीप अनुक्रम मित विह सचित्त मीसग अपिचलेणं च उम्मीसं ॥७॥जह चेय संजोगो कायाणं हेहओ तु साहरणे। तह चेन य उम्मीले होति विभागो गिरवसेसो ॥८॥चोएतिको विसेसो का साहरनुम्मीसयाण दोन्हंपि । भणति साहरणं तू निस्सहा मत्तयं रेवे॥९॥ उम्मीसं पुण दायायं च दोवंत मीसितुं देना। बीयहरियाइएहिं जड ओदणकुसुणमादीर्ण ॥१६२०॥ तंपि य मुक्खे सुक्खं मंगा बचारि जह तु साहरणे। अप्पाहुएवि चाउरो तहेच चाइण्णऽणाइण्यं ॥ १॥ उम्मीस मणियमेयं एतो वोच्छामि परिणयं दुविहं । दो भाये यतहा दो पुढ-- पादि छातु ॥२॥जीवत्तम्मि अवियते अपरिणय परिणयं गते जीने । बिट्टतो दुदवही हय अपरिणयं परिणयं चेव ॥३॥ बच्चे अपरिणयम्मी पच्छित होति कायणिष्पारणं । भावे अपरिणतं पुण एतो बोसमासेणं ॥४॥ सझिाउगादिणं तू अहवा अग्णेहि होति सामग्णं । वत्येगस परिणतो भाचो देमिति साहुस्सा ॥५॥ ससाण गनि परिणयो अपरिणया भापतो भवे एवं । अपावि दाणसणं अपरिणय भावतो होति ॥ ६॥ संघाडम हिंडतो एगस्स मणम्मि परिणय एसी। वितिए ण तु परिणमती तपि अपेशामा कलहो ॥ ७॥ पढमिन्लग भावम्मी अप्परिणयगेष्हणे तु लामासो। तस्सारत्ती भवति दाणं पुण होनि पुरिमई ॥८ामणित अपरिणयमेयं एत्तो पोण्डामि लिसवारंतु। लित्तम्मि जत्य लेबो सम्भ(या)ति कुसणादिवास्स ॥९॥ तं खलु ण गेव्हिया मा दहिय होज पच्छकम्मा तम्हा उ अलेक्कड पिकावाडी गइतव्यं । १६३०॥ इति उदिते चोएई जदि पच्छाकम्मदोस एवं तातो पि भोना थिय जावटीचाएँ भणति गुरू ॥१॥ को कालार्म नेच्छति आवस्सगजोग जदि ण हायति। तो अच्छतुमा मुंजतु अह ण तरे तत्व भंगऽवा ॥२॥ संसहत्यमत्ते सन मी साक्सेस भंगहा। महणंतु सायसेसे संसयभंगेसु भयणा ॥३॥ सत्तहस्यमले लिने सहगा तु दागमायामं । अवसेस लिन्त गुरुगो दाणं पुण होति परिमड्ड ॥४॥ लिसतिगत एवं एनो योच्यामि छड़िदय अगा। तपि तिह उहिदयं तु सचित्त मीसं च अचित्तं ॥५॥ उड्डिएँ चढलडगा तू आवत्ती दाण होति आयाम। अहन सचित्ताहीणं आवत्ती कायणिफण्णां ॥६॥ समित्नमीसए या चउभगो उडणम्मि इत्य भये। चउमंगे पडिसहो गहणे आगाविणो दोसा ॥ ७॥ उसिणस्त रहाणे देन्ताजोपहजोज कायडाहोबा। सीयपटणस्मिर काया पडिए महुपिंदुआइरणं ॥८॥ उदिव्य भनिय एवं गहणेसण एस परिसमत्ता तु। गहितसा जतो चिहिणा घासेसण पत्तमहुणा उ॥९॥ सा चतुहा मामादी सर्व वणोतु एत्य : दारम्मि। एतस्सेनोवणयं चोच्छामि इमं समासेणं ॥१६४०॥ मास्थाणी साह मंसत्यागीय मत्पाणं तुरागादीण समुदयो मच्छयवाणी मुतो॥१॥ जहण ललिओ तु मच्छो उपायगहणेण एप साहवि। अप्पागमप्पणथिय अणुसासे भुंजमाणो उ॥२॥ बायालीसेलणसंकडाम्मि गेण्हतों जीन ! ण सि छलितो। एहि जह म उलिनसि भुजतो रागदोसेहि ॥३॥ पासेंसणानु भा होति पसत्या य अप्पसस्था या अपसस्था पंचविहा सविवरीता पसस्था तु॥४॥ संजोइय अइबहुयं संगाल समय अणडाए। पंचविह अण्णासस्था तधिवरीना पसत्या न॥५॥ संजोयणेत्य दुविहा दोभावे याबधि बहिअंतो। मिक्सं चिय हिंडतो संजोए बाहिरसा तु॥६॥ खीरदहिकहराविण को गुडसालिकूनयतमादी । जातिता संजोए हिलतो अतो वोच्छ ॥७॥ अंतो तिह पादम्मी लंगण वयणे य होड बोव। अंजं रसोचकारि संजोययए तु तं पाए । ८॥ वाकवडगवाईगणादि संजोएं लंबग सम। गम्मि छोरवण तो सारुणर्ग इभे पच्छा ॥९॥ वनम्मि एस संजोयणा तु संजोएं जं तु दवाई। रसहेउ तेहिं पुण संजोयण होति भावम्मि ॥१६५० ॥ संजोएन्नो दधे रागदो हि अप्पा जाए। रागदोसणिमिन संजोययए तो कम्म ॥१॥ कम्मेहितोय मर्च संजोयपए भवात तुकारेणं। संजोषयए अप्प एसा संजोयणा मावे ॥२॥ रसहेर पटिफुटो संजोयो । कपए गिन्नगडा । जस अभत्ताउँदो सहोदओं अनावितो जो य॥३॥ अहवण जाई दवे पत्ते य पयादिगावि मेलति । सगमादीहि समं मा होत विशिषणीयंति ॥ अंसो बहि मागुख्या वितियाएसेग बाहि पाउलगा। चगुरुोऽभत्तई पडलहुगे होति जायामं ॥५॥ संजोयण भणिएसा अहण पमाणं भजामि आहारे। जावतिय भोत्ता साहहिं जापनहाए । बत्तीस किरकवला आहारो कुचिपूरओ भगिओ। पुरिसस्स महिलियाए अट्ठावीस भवे कक्ला ॥ ७॥ चवीस पंडगमा लेण गहिल जेण परिसइवीण । पान पंटसा उ तम्हा ने गो गहित एत्वं ॥८॥ एनो किनाविहीणं अई अहवर्ग च आहारं । साहुस्स बेन्ति पीरा जायामायं च ओमं च ॥९॥ पकाम चणिकाच जो पणियं मनपागमाहारे। अनिबार्य अतिपतुसो पमाणदोसो मुणेयत्रो ॥१६६०॥ बत्तीसाउ परेणं पकाम पिचं तमेव तु णिकामं । जं पुण गळतगेहं पणीतमिति बहा नि ॥१॥ अतिपय अति. बहुसो अतिप्पमागेण भोयर्ग मुत्त। हादेजवनामेज व मारेज व अजीत ॥२॥ णियगाहारादीयं अश्वयं अइबहुसो विषिण वारा उ। विष्ट परेण तु जंतुन पेय अनिष्पमाणं ता॥ अहया अनियमाणो आतुरभूतो तु मुंजए जे तु। तं होनि अतिपमाणं हादणदोसा उ पुजुत्ता ॥४॥ जम्हा एते बोला अनिरिने नेण होति चतुरगा। आपनी दाणं पुण आयाम होति जाय ॥५॥ दोहो अनिपमाणे तम्हा भोत्तब होति केरिसया भणति सुणसू जारिस मीत्त होति साहदि ॥ ६॥ हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे गरा। in का १०४२जीतकन्यभार्य मनिपरलसागर कराकर [३५]] 4NN44PROth ~36~ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३६] --- ------- भाष्यं [१६६७] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्रांक [३६] दीप अनुक्रम ने विजा चिगिति, अप्पाणं ते चिगिच्छमा हितमाहित होति दहा इह परलोगे य होति पाउमंगो। इहलोग हितं ण परे किचि परे मेव इहलोए॥८॥ विचि हितमुभयली-- एणोमयसोए चनुष्यभो भंगो। पदमगर्भगो तहियं जे दवा होम्ति अविरुदा ॥९॥जह खीरवहिगलादी अणेसणिज्जा परतद्रेवा। मुंजने होति हियं हाईण पुणाई परलोए ॥१६७०॥ अमणुग्णेलणगई परलोमाहित ण होति इहलोगे। पत्थं एसणसुवं उभयहि होति णात ॥१॥ अहितोभयलोगम्मी अपत्य असणिज चा अहवापि रत्तदुद्दो भुजति कएनो मियं वो ॥२॥ अदमसणस्स सांजणस्स कुजा दवस दो भाए। वायुपवियारणहा छम्भाग ऊणगं कुजा ॥३॥ सीयो उसिणो साहारणो य कालो निहा मुयो। एएवं जीपी बाहारे होतिमा मना ॥ ४॥ एगो दबस्स भागो अपहिलो भोयणास वो भागा। बड्डति व हायनि व दो दो भागा तु एकेके ॥५॥ एत्य तु तनियचतुत्या दोण्णिादि अणवहिता भरे भागा। पंचम छटो पदमो बितिओ व अचहिना भागा ॥६॥ एवं तु मियं भणियं एसोपी होणगं भवे अपं । एप पमाणाऽमिहितं संगालादी अनो बोळ ॥ ॥ समाले पा. गुरुगा आपनी वाण होवऽमल पउलहूना तु सपूमे आवनी दाणमायामं ॥णिकारण भंजन्ते एत्पचि लहमा तु दाणमाचार्म। चिनियादेसे नही आपली दाण परिमदद 3 ॥९॥ गपि भुजह कारणलो एन्थवि लहुगा उ दाणमायाम । सँगालाविण कमसो सरूपमिणमो पक्क्तामि॥१६८०॥जह इंगाला जलिया रहति तस्य धर्ण परियाह थिय रागिगाला उहंनि चणिधर्ण नियमा॥१॥रागेण सहगाल जे आहार मुशिओ साहू। मुदढ़ सुसभित गिदं सुपक मुरस अहो सुरहिं ॥२॥ रागनीपजलिओ मुंजतो कासुयंपि आहार। मिहार्दिदगालगिर्भ कोनि परणिधर्ण सिणं ॥३॥ मणितं संगालेयं महुणा बो सघूमर्ग पगते। केबलवियणते तू धूमापंत वहा गर्म ॥४॥जह पापि चिनकम्मं घूमेणोरनयंग सोभा उनिह पूमदोसरन चरणचिन सोभए माले ॥५॥ दोसेण समं न जाहारेति साह जिंदंतो। विरसमलो कुहित रोरा भोपसं(भपसंति पण एवं ॥६॥ दोसम्मीविज लेनो अपनियधूमधूमि परण। अंगारमेलसरिसं जाण भवति गिद्दहति ताय ॥ ७॥ रागेण सईगाल दोसेण सधूममं मुणेया। रागहोससहगलं गन्हा तु ण होति भोत्ता ॥८॥ आहारति तबस्सी विगलिंगालं च विगयधर्म चामाणज्जायणणिमिन एसुपएसो पश्यणा ॥९॥ मणितं सपूममेयं एतो वोच्छामि कारणहार। पुन परिकमंतो चरिमुस्सग्गे विचिन्तेति ॥१६९०॥ भोला कारणम्मी कि अस्थि अहब नस्थि जड अस्थी। तो मुंजेगा साह के पुण ते कारणामुणम् ॥१॥हिं कारगेहि साह आहारतो आवरति धम्म। उहि पेच कारणेहि मिहतो उ आयरति ॥२॥ वेवण वेयापचे हरियडाए य संजमदाए। नह पाणवत्तियाए छई पुण धम्मचिन्ताए ॥३॥ गस्थि उहाएं सरिसिया वियणा मुंजेज सप्पसमणई। छादो पेयापर्षण तरति कार्ड अयो मुंजे॥४॥ इरिथ चण सोडेनी मुहितो ममाटीय पेच्छ अन्धारं। चामो वा परिहायर पेहादी संजम गतरे ॥५॥आयुसरीरप्पाणादि उसिंह पाण नताली मोनु निवारण नेर्ण भुजेजा पाणवत्तीयं ॥ ६॥ धम्मज्माण ग तरति चिन्ले पुरत्तकासम्मि। आवाची पंचविहग तरति समाय काजे॥७॥ एतेहि कारणेहि उहि आहारेति संजतो णियमा । कहिं पेव कारणेहिं जाहारेती इमेहि तु॥८॥आतके उपसग्ने तितिक्सया बमचेरगुत्तीए। पाणिदया गपहेक सरीरपोपडेयणडाए ॥५॥ आर्यका जम्मारी सम्प्प णे ग भुने भणितं पा सहमुपाया बाही पारेला अहमादीहिं ॥१७०७॥रावासमायादी उपसमो तम्मिपी ग भुजेजा। सहमहान तितिक्सा चाहिजते तु चिसएहिं ॥१॥ भगिने व जिणिदेहि अपि आहारं जवी हु बोमिंटने। लोगेऽपि भणिय विसया विणिवत्तते जणाहारे ॥२॥ तो बभत्सनहा जवि मुंजेजाहि एपमाहारं। पाणदय वास महिया पाउसकाले वाणवि मुंजे ॥३॥ तबहेतु पात्यादी जाच तु छम्मासिओ नको होति। उई निभिग्मभरो छड्डेतुमणो सरीरं तु ॥४॥ असमस्यों संजमस उ4 कतकिमोवावरं व ती देई । छड्डेमित्तिन भुंजह सबह वोच्नेय आहारं ॥५॥ सोलस उग्गमदोसा सोलस उन्मादणाएं दोसा तु। वस एसणाएँ दोसा संजोवणमादि पंचेच ॥ ६॥सीयालीस एनेसोपी विडिला मोरोसा जेहि अविसद पिंडे चरणुपयातो जतीण भवे ॥७॥ एतहासचिमुको मणिनाऽहारो जिरोहिं साहणे पावसानजोगा जेवण हायतिता कुजा ॥८॥ उमाममादरीण कारणपजन्तपत्थडो एस। लक्सण आपत्ती दागमेव कमसो समक्लाय ॥५॥ अहुमागाहानुबोच्छामी अक्सरत्यमिणामो तू। उदेस कम्म मोनु चरमतियं होति सेसं तु॥१७१०॥ पासंडाणं परम वितिय समगाण ततिय साधूर्ण। चरिमतिय एवं तृ कम्पती आहकम्म तु॥१॥ पासंदमीसजाए साहमीसे य सघरमीसे याबा-13 परपाडियात विवाहासाकोसका आहड सपचवाय निराहना जत्य होति आयाए। लोभेण जो एसति सो होती लोमपिडो तु॥३॥सोसपि एस सिममादिलो-121 अपनी पत्तेचे पाय सोही एल्यं तु भत्तई ॥४अति अणंतणिक्सित्तपिहियसाहरियमीसियादीसं । संजोग सड़माले इक्हि लिमिते प समणं तु ॥ म160५॥ अतिर गिर तर भणतितकायो नहोति वणकायो। पलिमादी किची मिक्सित्ते होति एवं तु॥६॥ पिहित अर्गतकाए साहस्पिमतमीसिय पानि। आदिग्गहणेणं पुण अपरिगएतका१०४३ जीनकन्यभाये - [३६] मुनि दीपरताना ~37~ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [३६] दीप अनुक्रम [३६] " जीतकल्प” - छेदसूत्र -५/१ (मूलं) मूलं [३६....]] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... ........... ...आगमसूत्र भाष्यं [ १६६७ ] [३८ / १ ], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं एत्रि ॥ ७ ॥ संजोए रसद् संगा रामसहित पेय पणा या दुवि निमित्तेय मातरं ॥ ८ ॥ सदुपनिमित्तादिपजते पत्तेयं पत्ते सोही एत्थ तुमस ॥ ९ ॥ फम्मुदेसियमी से पायादिपगास गादिएपि पुरषष्ठम्पत्तालितरमते ॥ मृ० ३७ ॥ १७२० ॥ जाति कम पढमे जातियमराजायमादिले। पंचपात पोखरा ॥ १॥ आणिं पुण दूतीपिंडे निमित्ततीए य आजीवयणिमपिंटो बादरगच्छणा च ॥ २ ॥ कोई माने यता संबंधी पयसंचये थी। विज्ञा मने चुणे जोगे एमेत आदिपदा ॥ ३॥ पादोकरणपाद कीए व आयपरकीए भावे तु आयकी टोयपामिथिए च ॥ ४॥ लोइयपरिट्टेऽनी परगामे आदमि गिरवाते । चिहिउम्भिणसचिने तह व कवाडे य] गायये ॥ ५ ॥ मालहडकोसे अच्छे तह य होति अणिस एमेने तु पमाणमादिवदा होति णाया ॥ ६ ॥ पुरकम्मपच्छकम्मे कुछ यदद्वेण मक्लियं जं तु । संसदलिने हत्ये यत्ते व गावं ॥ ७॥ एवेदिकम्मादतिपतिए पत्ते पत्ते सोही एवं तु आयामं ॥ ८ ॥ अतिरं परिणित्तिपिहियसाहरियमीसियादी अमाणधूमकारणजए चिहियमायामं ॥ मु० ३८ ॥ ९ ॥ जतिर निरंतर गणितं परितकाए होति निखितं परिणय जं निहित साहरियं वा परिणं ॥ १७३० ॥ मीस परितेनं चिय आदियाणा परिसलिलेऽपि परिने उड्डयन आणि तु मे ॥ १ ॥ अमाण सधूमे या बहारे कारणे दिवासा कारणतू फेरि होतिमं वो ॥ २॥ आहारेति असमुदिसे एक कारणे जो तु एस विवो भणितो सत्यपि सोहि आधामं ॥ ३ ॥ ज्यरकडनियमाया परंपरगए थे। मीसाणंताणंतरमता दिए बेगमास ॥ ३९ ॥ ४ ॥ पावर साय याय होति को चालू जातिमादिविशेषा ॥ ५॥ आहारे पूर्ति यम्मी मायापिंडे यांति का परंपरे तु मिलि ॥ ६ ॥ मीसातजणं तरणिति चेव होति पायो आदिम्ह पिहिते साहरिए मीसए चैव ॥७॥ महितागंतपरंपरमीसऽतिरं पिहिमादिनोद एवं जसि सत्यपि सोहि मकं ॥ ८ ॥ ओविभागदेसीवकरणपूर्ती अठवियपाडिए लोडसरपरिमियरभावी व ॥ मू० ४० ॥ ९ ॥ जोहुविभागे उस पवितुगात उबगरणपूत्तिए या चिठपिए पागटे चेव ॥१७४॥ लोउत्तरणामिचे परिवयि उत्तरे पायते परमापकीय मंशा दिए सचे उदो ॥ १ ॥ पतेयं पत्ते सोही एवं तु होति पुरिम सग्गामाइडमादी एवं वसामि ॥ २ ॥ सम्मामाइड दर जमालोहोरे पढ सुमतिमिच्छा संभव निगमनिलयायो मू० ४२ ॥ ३ ॥ सम्मामाददर उभि अब गडि (गति) साहिए तु मान्लोडे जन्मे उपरो अज्झोरो होति ॥४॥ पढमी जातोय तु एसी हो सुनो। सुमतिगिच्छाव तू होति णा ॥ ५॥ कदममक्लिप पुढवी आऊउदउलमलिए गुणकायपरिगं उकुडे मन्त्वियतिगेणं ॥ ६ ॥ दायनो दाय बालादि जे यएतेऽगारो य इमे होती ॥ ७ ॥ वाले मुद्दे मत्ते उन्मत्ते वेदिए य जरिए एते देति तु जंतू तं होती दावो ॥ ८ ॥ एते ज सामादी जरियन्ते पत्तेयं पत्तेयं सोही एवं तु पुरिम ॥ ९॥ पतेयपरंपरठपियपहियमी से अनरादी पुरिम सकाए संक समा ॥ ४२ ॥१७५॥ वणकापपरिणं सचितपरंपरं तु निखित्ते तेणे व चिहियं तु परंपरं होति विष्णेयं ॥ १ ॥ एमेव य सारिए सचित्तपरंपरे परितम्मि मीसपरित अतरणिक्खिन होति गायत्रं ॥२॥ आदिम्हणेणं तू पहिए उ अतरे तु मीसम्म एमेव साहरणे मी अनंतरे होति ॥ ३ ॥ स र सोहि पुरिममेत्थ पत्ते संकाए कतिसेवय होत ॥ ४ ॥ इतरविए मुहुमे ससिसिरक्लमलिए ये मीसपरंपरवियादिए चितिए वाऽधिगती ॥ ४३ ॥ ५॥ इरवणाने पाहुडिया हम न य ससिणिदे आयु मक्लियमेयं ससरकलं पुढविए होति ॥ ६ ॥ पुढवी आउकाएउवा ऊपरिवणकाए। इंद्रियतेइंदियचउरो पंचिदिएवं च ॥ ७ ॥ एते पुढवादिस बीसे उ परंपरेने प पत्तेयं लहुपण दाण णिविगती ॥ ८ ॥ वाखिते परंपरं तु सोहीमा गुरुगं आवती दाणं पुण होत विडिंगति ॥ ९ ॥ वितियातानंतरणिि आवृत्ती दाणं णिचिगती ऊ परंपरे होति एमेव ॥ १७६॥ वितियपरितारणक्खिते लगपणमावती दाणं णिडिग तू परंपरे होनि एमेव ॥ १ ससाण पडिकमणमाहियं तेषु । आभोगोऽवि बहुसो अतिप्यमाने व विती ॥ मृ० ४४ ॥ २ ॥ सहसा अगभोगा तू पुक्ता जे जे ठाणेगु देवि भये पक्रिमर्ण विहियं तु ॥ ३ ॥ तमुक्ति कारणेषु आभोगे हत्थ जाणमाणी उ बसी होति पुणी पुणो अतिप्यमाणेऽवि एमे ॥४॥ सत्य तु मिचिगई सोही आयोगाबद्सीऽपि सोहि एसा अतिप्यमाणेऽवि गातवा ॥५॥ पायगडेवणसंपरिगमण किड्डा कुपणादी उडिगीतठेलियजीवादी व चत्यं मू० ४५ ॥ ६ ॥ धावण गनिमतिरिना वाडिन व तु उडवणं । संघरिसो जमलिओ तू को सिम्पगतित्ति बच्चति तु ॥ ७॥ किड्टा होयावयचरंगाज्यमादि पायथा महादि इंद्रजाल सेड्डा हावा एसा ॥८॥ समा सओ पहेलिया कुडादी कुडी पुकारो गीत पुण होइ कंठं तु ॥ ९ ॥ जेलिय सेष्टा भगति गारो कीरती तु सा सा जीव मयूरादी कोइलमा वजन ॥१७७०॥ (२६१) १०४४ जीता - मुनि दी ~38~ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [४५] --- ------- भाष्यं [१७७१] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । प्रत सुत्राक [४५] दीप अनुक्रम धावणमादिपदेखें सव्वेस अहकमेण विष्णेयं । पत्तेयं पत्तेयं सोही साहुस्सऽभत्तदृ ॥ १॥ तिपिहोवहिणो चिचुतविस्सरितापेहिताणिवेवणए। णिनितियं पुरिमेकासणाइ सव्वम्मि थायामं ॥ मू०४६॥२॥तिविहो तु होति उचही जहणओ मज्झिमो य उकोसो। चतुचिह छविह चातुभेदयो य कमसो मुणेयत्रो ॥३॥ मुइपोति गायकेसरि पत्तषणं तु गोच्छओ वेव। एसो जहणओर मजिसमगमतो पक्क्यामि ॥४॥ पडलय स्यतरणं वा पत्ताबंधो य बोलपहो या मत्तय स्वहरणं वा मज्झिमओ एस जातको ॥५॥ पच्छादतिग पहिगाह एसो उकोसो चउम्भेजो। ओहोवही उ एसो तिषिहो तु समासतो होति ॥६. ओक्स्पहिलो विविहो जहण्ण मझो तहेब उकोसो। सबो बण्णेयम्बो जह मणिओ कप्पअजायणे ॥७॥ विद्युत पडियं भणनि पुनरपि लदे जहण्णमादी । सोही पमावमूला णिनियमादी य इणमो उदाणिनिगति जहष्णम्मि मजिमए सोहि होति पुस्मिइद। एकातणमुकोसे सबम्मिय होति आयाम ॥९॥ तिविहोवहि विस्तारिए णवि पडिलेडेड वस्य सोहि इमा। णिनितित परिमेकासणं तु सम्बम्मि चाऽऽयामं ॥१७८०॥ तिविहोचाहि विस्सरिए आयरियादीण जो तुगणिते । सोही णिनितियादी आयामंता मुणेयचा ॥१॥ हारिवधोतुम्ममिवाणिवेवणादिपभोगवास । आसणमायामचतुत्वयाई सम्बग्मि ई ताम्.४७॥२॥ हारेइ जहण्णोचहि सोही इकासणं तु दातव्यं । मजिसमए आयामं उक्कोसे होयऽमत्तई ॥३॥ सव्योवहि हारेती सोही छईतु होति गायव्वं । एतो धोए वोच्छ सोही उजहष्णमादीर्ण ॥४॥ धोएं जहाणेकासण मज्झिमए सोहि होति आयाम । उकोसेऽमत्तई धोए सबम्मि उई तु ॥५॥ लिपिहोवहिमुग्णामिन जापरियाणं तु जो ण गिज्येदे। आसगमायामचतुत्ववाई सबम्मि उहुं तु ॥६॥ उपही जहण्णमादी गुरुहिं अपिदिष्ण जो तु परिभुजे। सोहिकासणमाडी छटुंता होति सबम्मि ॥७॥ अणणुष्णाय गुरूहि उवहि जहण्णादि देति अण्णस्स। साहिकासणमादी छटुंतो होति जीएणं ॥८॥ मुहर्णतय स्वहरणे फिदिए णिविगतियं चउत्थं तु।नासिय हारविए वा जीएम चउत्पनहाई ।मू०४८॥९॥ मुहर्णत फिटिय उगाह सोही मिनिमतियं तु बायकं । रपहरणे तु पनत्यं फिडिए सोहेस लडम्मि ॥१७९०॥ मुहर्णत पमादेर्ण हारविए णासिए व भत्तहूं। रयहरणे उई तू सोहेस पमादिणो जीए॥१॥कालडाणादीए णिविगती खमणमेव परिभोगे । अविहिविमिचणियाए भत्तादीणं तु पुरिम ।मु०४९॥२॥ विकहादिपमाएणं कालावीयं करेन्ते भत्तादी। सोही मिचिगती तर परिभोगे होयऽभत्ताई ॥३॥ एवढाणातीए अपरिभोगवि सोहि णिविगति। परिमोगेऽभत्तहो अपिहीय विगिंधणे पुरिमं ॥४॥ पाणस्सासंचरणे भूमितिगापेहणे व णिविगती। सनः स्सासवरणे अगहणभंग य पुरिम।मू०५०॥५॥ पानस्सासंबरणे सोही साहुसा होति गिविगति। भूमीतिग इमं तु वोच्छामि समासतो इणमो॥६॥ उच्चारभूमि पठमा चिनिया पुण होति पासपणभूमी । तया उकालभूमी सोहेय अपेहणविगती ॥ ७॥ असणादी कलुभेदो सवोऽपि य एत्य होति आहारो। तस्स असंचरणम्मी सोही साहस्स पुरिमइदं ॥ ८॥ अहरणमुकारादी पनक्साणं म गेहए सा । गहितं वा जो भंजति सोही सात्य पुरिमड्ढे ॥ ९॥ एवं चिप सामण्णं तपपडिमाऽभिग्गहादियाणपि। णिधितियादी पक्सियपुरिसादिविभागती गेयं ॥ मू. ५१॥१८००॥ एवं चिय पुरिमददं सामष्णपिसेसियं मुणेपा । नवपडिमअभिगहें या अगहणभंगे इम बोच्छ ॥१॥ नमो बारसहा होति, पडिमा न एगरा-13 लिया। वाती अनिम्गह, अगहनभने तु पुरिमहा ॥२॥गाहापदरस तु इमा विमासा तु होति पाता। सहवादी पंचाहदि निविगती अन्नामलहो ॥३॥ पाउम्मासिय खुड्डगभिक्य घेरो उपन्दा आयरिए। परिमट एगमत्त आयाम चउत्थ छटुंता ॥ ४॥ पतिविण पचक्खाणं जाहसत्ति अगेहणे तुमयमाहियं । स्युड्डादी पंचण्हवि एकासणमट्टमं अंनो ॥५॥ पिडिए सतमस्सारिय भने वेगादि यंदणादीसु। णिविणतिय पुरिमेगासणादि सवेसु चावामं ॥ मू०५२॥६॥ फिटितस्सग्गे एके पमाणो सोहि होति णिविगति। दोहि परि म भये निहि पिदिए सोहि भनेक॥७॥ सो काउन्सग्गे फिडिए जयओ पडिकमे जो तु। सोही पच्छाऽऽयामं उम्सारते इमं वोच्वं ॥८॥ सतमुस्सारे एक काउन्सगति एल्य अणिविगनि । दोय न परिमइड भये एकासगय भवे तीहि ॥९॥ सत्रे सनमुस्सारे आयंबिल एस्थ होति सोही तु । भग्गेऽपि य एस थिय सोही तह बंदणमन्ति ॥१८१०॥ अकएम तु पुरिमाऽमनमायाम सास पाच तापमहिनडिल णिसिबोसिरणे दियासुवणे ॥मू०५३॥ १॥ण करेंतस्सस्सम्म सोही एवं तह पुरिमाद। दोहिय एकासणयं निहि अकरणे सोहि आयामं ॥२॥स चिय आपस अोते सोहि होयऽभनहो। काउस्सग्गे नह बंदणस्स सोही तहाऽकरणे ॥३॥ गाहापच्छदेण तु पूर्व तु अपहिए उ थडिडे। मिसिबोसिरणे सोही साहुस्स भने अमत्तई ॥ ४॥ दियमुकणे णिकारणे सोही साहुस्स होयऽभत्तई। कोहं परियलमाणे ककोडाडीमतो योच्छं ॥ ५॥ कोहे महुडेबसिए आसब ककोळगादिएस या लसुणादी परिमइद तपादीबंधमुवणे य॥५४॥६॥ पक्खियमतिकामन्तो बहुदेवसिनोत्ति एस कोहो तु। अहवा बहुदेवसिए चाउम्मासादिरिने तु॥७॥ एवं बहु देवसिय एत्य उ सोहीन होइ मनहूँ। आलवा वियर भापति तमाइयंने अभत्ताई ॥ ८॥ ककोलय सेवते सोही साहुस्स होयऽभत्तई । पूईफल जाईफालवंगतंयोलमादिमु य ४९० आF१० जीतबल्यमाय - मुनि दीपरनसागर [४५] ~39~ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [५४] ------ ---------- भाष्यं [१८२०] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य 24*40, कपास पछ प्रत सुत्रांक [५४] दीप अनुक्रम [१४] A दिग्गहणेनो पत्तेयं एत्य सोहऽभत्तई। समुणादिन्ते(चित्ते)पुरिमं आदिग्गहणा पलंडम्मि ॥१८२० ॥ तण्णगवंधणमुयमा सोही एत्यं तु होति पुरिमहद । आदिग्गहणणं पुण हंसमचयूरादिएरॉपि ॥१॥ अशुसिरतणेगु निधिगतियं तु सेसपणएम पुरिमळ । अपडिलहियपणए एमासण तसबहे जंच।मू०५५॥२॥ अज्झसिरे तु कुसादी परिभोगा कारणे तु णिब्धि गति । सेसपणगं तु पंचद सपंचमेयं पुणेककं ॥३॥ पोत्थय तणपणगंवा दूसे पणगं च दुप्पडिरहे। अप्पडिलेहियसे पंचमयं चम्मपणगं च ॥४॥गंडी कच्छवि मुट्ठी छिचाटि संपुढ-श्र यपोथए वा साली बीही कोदव रालग रपणे तणाईच॥५॥अप्पटिलेहियदूसे तूली उपहाणए यणायच्वे। गंदुवहाणाऽऽलिंगिणि मसूरए थेव पोत्तमए ॥६॥ पति कोयवि पाचार पचपए तह य दादियाली या दुष्पडिलेहियदूसे एवं वितियं भवे पण.७॥ गो महिसं अया एलग मिगचर्म पंचर्म मुगेयचं अहवाचि चम्मपणर्ग एवं चितियं तु विष्णेयं ॥८॥ सलिमा खाग बजो कोसग कत्ती व पंचमं पणर्ग। एते पंच उ पणमा सयं च भेया समताता ॥९॥ ठपणमणापुच्छाए णिविसणे पिरियगृहणाए या जीएगेकासमय सेशगमायास सपणं तु ॥ मू०५६॥१८॥ ठपणकुल वाणसइदादियाइ ताई तुगुरुमणापुच्छा। परिसद णिचिसणात पटिगाहे जंतु भत्तादी ॥१॥ विरिय सामर्थ वापरणकमो चेष होन्ति एगहा। 18 गृहण गोषण नमण पलियंषणमेव एयई ॥२॥ एरिसमाचासहिए जीएणं वेज एगमतं तु।सुयषवहारे अण्णह सेसं मार्य अयो योच्छं॥३॥ भरगं माहगं मोबा, विष्णं विरसमाइरे। आयरियाग सगासे, जसोत्थी एप चितए॥४॥ सूहवित्ती महाभागो, एस साहू जितिदिजो। रसचामं करेइत्ती, अंततेहिं लाढए॥५॥ दप्पेणं पंचिंदियवोरमणे संकिलिकम्मे य। दीहवामासेपिय गिलाणकापावसाणेसु ॥ मू०५७॥६॥ दप्पो धमागधावणडेवणमादी तु होति णायनो। पंचिंदियवोरमणं उदयण निराहणेगई ॥७॥ कर्म तु संविलिट्ट करकम्म कुणति अंगदाणे उादीहेणऽदागेर्ण कम्म पलंबादि बहु सेवे ॥८॥ गेलग्णम्मि तु दीहे जाहाकम्मादि सम्णिहीमादी। बहुअतिवारणिसेवी सोही एत्वं तु अवसाणे ॥९॥ एयम्मि जहुदिहे पोरमणादी गित्त्रणपजते। पत्तेयं पत्तेयं सोही तू पंचकवाणं ॥१८४०॥ समोवहिकप्पम्मि य पुरिमत्ताहणेय परिमाए। चाउम्मासे बरिसे य सोहगं पंचकाता म०५८॥१॥ पाउ सकाले सरोबाहिम्मि जयणाविऽकप्पिए सोही। पुरिमत्ताएँ पमाया चरिमाएँ अपेहिते चेत्र ॥२॥उपही घोयवसाने पुरिमत्ताहणाएँ चरिमाए।पत्तेचं पत्तेयं सोहत्य पंचकहा ॥३॥ चाउम्मासिय परिसे गिरतियारे यञ्चस्स दाया। आलोइयम्मि सोही णियमेणं पंचकहाण ॥४॥कि कारणमिह सोही भिरतियारेऽपि दिगए एक चोयग! सहमऽतियारे कएनिस वि जाणति कयाति ॥५॥ अहरण संभरती तुजह पायोसीय अड्वरत्तीए। रत्तिय पाभाइय अमाहणा काल अतिवारं ॥ ६॥सुत्तत्यपोरिसीअकरमम्मि दुप्पेहदुष्पमजासु। एतेण कारणं सोही तू पंचता ॥ ७॥ छेदादिमसरहयो मिउणो परियायगवियस्मविय। छेदातीएऽपि तवो जीएण गणादिवाणो य ॥०५९॥ ८॥ विपुलं तपमफरतो किन सन्मति छेदमूलमेण । गुरुआणामेतेणं असदहते तो देयो ॥ ९॥मतुओचि छेद मूले व दिनमाणम्मि होतिपरितहो । इहरावि बंदणिजो तिक्मत्तो तस्या देह त्वं ॥ १८५०॥ इपिहो या गविजो खलु चिरपरियाओ तहेष तववलिओ। ठेदम्मि दिजमाणे परियादी गतिओ होति ॥१॥ केत्तियमेत छिविह? नहऽपिय है तुम्भ होमि राइणिओ। एसो उ गविजो खल चिरपरिवादी मुणेयत्रो ॥२॥ नफ्यालिजो देह वर्ष अई समस्योति गपिलो होति। तम्हा तदोसहर विवरीयं तेसि दाक्ष्यं ॥३॥ गणबाहिपति आयरियो सस्सपि छेदादि होनि पत्तस्स। आप्परिणयसेहादिगु मा होजा हीलचिजोति ॥४॥धीवलसंपवणं वा पातुं कालं च तिमिह मिम्हादी। तम्हा नहोसहरं तवारिहं विजए तस्स ॥५.जंग भणियमिति तस्साबत्तीय दाणसंखे । भिष्णादिया य वोच्छ उम्मासन्ता यजीएणं ।मु०६०॥६॥ जति होति विच्छा पनि भनियमिइति जीतवहारे। पच्छित्तविसोहीत नस्सापत्ती पणगमादी दाणं णिनितिमादी मेव विलेसेणमेत्य भनिहामि। संखेयो तु समासो किह गरि जीएण मगितमिहं? ५८॥कम्ही या भणियोती गुस्याह मिसीहकप्पववहारे। युत्तत्ययो यभणिय आणादि सवित्वरेण तु॥९॥ पानादीउम्मासारसाणआवत्तिचिरयणाओ यागनिहा भनिताबो मिसिहाविस बित्वरेणं तु.१८६ह पूण जीए किग्णापनिदा-1 पससेवं । मिण्णादी छम्मासा णेदाणजिएणिमं बोकं ॥१॥ भिण्णो अविसिहो बिय मासो चउरो य च सहगुरुगा। णिमितियादी अहममत्तन्ता दाणमेसेति ॥ मू०६१॥२॥ पणुवीस दिणा मिष्णो अविसिडो एस गुरु लहू वापि। अविससिओऽविसिहो एसो तू होति णायको ॥३॥ मासो लाओ गुरुओ चतुरो मासा य होन्ति लागुख्या। छम्मास्सा नहरुमा दाणं एनेसि घोच्छामि ॥४॥ पणगं दस पण्णरस बीसा पचीस जाच णिविगती। हमासे पुरिमड्ड गुरुमासे दाण भत्तिक॥५॥चऊपहुए आयाम चडनुष्य होनि दागऽभनाई। उलए छई तु लम्गुरुए दाणमट्ठमयं ॥ ६॥ णिविमतीमादीयं अहममतन्तमेव दाणति। भिण्णादी कमसो उम्मासंतापसाणाणं ॥ आइप सव्वापसीओ नवसो गाउं अहकर्म समए। जीएम दिज गिनीतिगाति दाणं जहाभिहितं । मु.६२॥दा इय एनेण कमेण एवपगारेण महप इतिसादो। सव्वाऽऽपत्ती पनगादिया नु छम्मासपजन्ता ॥९॥ गिप्पीइगमाईजोला १०४६ जीतकल्पभा - मुनि दीपरतगागर A VEENA ~ 40~ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [६२] दीप अनुक्रम [६२] "जीतकल्प” छेदसूत्र-५/१ (मूलं) - - • मूलं [६२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३८/१], छेदसूत्र आयं [१८७०] [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भयं अपनो हो । जीएण दिन दाणं णिनिगमादिगं कमसो ॥ १८७० ॥ जहनिहितं जह भणियं तह तह देहिऽभिहितमयति सामण्णं एवं समासतो होति तवं एवं पुण व्यंचिय पायें सामण्णयो विजिदि। दाणं विभागतो पुण दव्यादिविसे सियं जाण ॥ ६३ ॥ २ ॥ एवंति जहुरिहं पुणलदो विसेसणे तु तो सध्वं पायच्छितं दाणं पाएण बाहु ॥ ३ ॥ सामण्णं अविसेसित मिटिड रिसेसितं विनिदिई दागं निश्चितिगादी विभागतो देश विचरतो ॥ ४ ॥ दव्वादीया पविणा तु लतिया तु जा. दिसरेण होनि विसेसेणाऽदेखि दिजाहि ऊपि ॥ ५॥ अवापि समतिरितं दाणं गाऊन देल जीएणं अहयानि तत्तियं विय दिजाहि सुयोवदेसेणं ॥ ६ ॥ इयं तं कालं भावं पुरिस पडणाओ यातुमितं विय दिजा तम्मत्तं हीणमहतं वा ॥ मू०६४ ॥ ७ ॥ आहारादी दव्वं खितं खादि काल गिम्हादी हिद्वादी भाव तू पुरिस गीयादि जागिना ॥ ८ ॥ आगमादीया पहिले होति तू मुणेतच्या गाऊण जाणितृणं इति (६) मिति जए त (यं तु) जीएगं ॥ ९॥ देजाही सम्मतं ही अहितं वमातु दवाती हीणे दवादीए ही देखाहिए अहि ॥ १८८० ॥ एसो तु अक्खरत्यो दव्वादीणं तु वचितो कमसो। पुणरवि दब्बादीर्ण विमागतो सूरिमाह ॥ १॥ आहारादी दव्यं बलि सुलभं च णामहियपि । देजाहि दुम्बा गाऊन होणंचि ॥ मृ ६५ ॥ २ ॥ आहारो जेसिमादी वाणं ताई होति दव्वाई। आहारादीयाई बलियाई जम्म देसम्म ३ ॥ जह अणुवदेस सालीको सभाहोति तुलमी व सो तु पि सेसा पति एमेव ॥ ४॥ एवं नाऊण तहिं तं भणितं दाण जीतवहारे देश समन्महियं जहि पुग चणवा कलमादी ॥ ५ ॥ कंजिसाहारा दुम्बल दुलोय एवं णाऊण देना तेऽत्यं हीणं जीत हारमणिवा ॥६॥ लुक् सीतल साहारणं च खेत्तमहितंपि सीयग्मि लुक्सग्मिय होणय एवं कालेवि विविहम्म मू०] ६६ ॥ ७ ॥ नृक्वं तु मेहरहितं जं से वापितलं वादि सीयं बलियं भष्यति अवा अणुर्व भने सीतं ॥ ८॥ साहारणं समं तू जंगविमिदं वक्संपि एवं तिहिं खेन दाणं एसि पोच्छामि ॥ ९॥ इय एव जीतदा गिद्धे खितेऽहियपि देनाहि साहारणे सम्म लुक्से से तु हीण ॥ १८९० ॥ सारी हि तं एवेयं पणि समासे अरुणा तु तिपि फलं गिम्हादिसमासतो बोच्छे १ गिम्हसिसिरवासास देनमदसमवार संता गातुं विणा वहिसुतववहारोपणं॥ मू०६७॥२॥ म्हिा चतुर्थ देता उई हिमागमे वासा अमं दिजा तो एस जहणजे ॥ ३ ॥ गिम्हासु उई देला अमं च हिमागमे वासासु इसमें देजा. एस मज्झिमओ व ४॥ म्हिा अट्टम देना, इसमे च हिमागमे। बासा दुवालसमं, एस उक्कोसतो तो ॥ ५॥ जहले एसो गिम्हादितयो समासतो होति एवं पुण कह दिला? नवविहोणं ॥ ६ ॥ सुतवहारेणऽहवा मेयिम जाणित्ता देनाहि तिविकाले पहा सो इमो वा ॥ ७॥ अलग सलोनी होति लसपसम्मि ओती हुक्म ॥ ८ ॥ गुरुयो गुरुयतराज अहगुरुजो एस होति गुरुपले विचारेसो आपती सिंच्छामि ॥ ९ ॥ पण इस परणरस वा निविस होति लहुस पक्व वीसा व पीसा तीसाविव दुगपक्खमि । १९०० ॥ गुरुमासो चतुमासो छम्मासा चैव होति गुरुपले नवविह आयत्तेसा णयविदाणं अतो वो ॥ १ ॥ णिचिगति पुरिम एक्कासणयं च क्लमि आलिम वा होति लपले ॥ २॥ अहम दसम दुवाल गुरुपले एप होति दाणं तु आपसी तो एसी समासतो व मक्खनो ॥ ३ ॥ हरेस सादिसमासतो समस्वाती पुणरचि आहेण विभागयो य गुरुमाद वोष्ठामि ॥४॥ गुरुओ गुरुगतराती अहागुरूयो होनि बहारो लहुओ राती अहाल व पहारी ॥ ५॥ लसलसतराओ अहालसो व होति बहारो एएसपछि पोच्छामि महाणुपु ६॥ गुरुओ य होति मासो गुरुयतराज व होति चतुमासो अगुरुओ उम्मासी गुरुपये एस पडिपत्ती ॥ ७ ॥ तीसा व पम्पचीसा बीसाविय होति लयपनसम्धि पण्णरस दस य पंच व लसगपक्वम्मि पडिवली ॥ ८ ॥ गुरु गुरुयतरा च होति दशमं तु अहगुरुवं चारसमं गुरुपले एस पडिवती ॥ ९॥ छईया एगठाण पुरिमइदं णिजितियं दाय अव सुदो वा ॥ १५१० ॥ वमहारो आरोपण सोही पच्छतमेयमेग पोषी तु हाल पडवणा होति दाणं तु ॥ १ ॥ आहे एस मणिओ एसो यो पुणो विभागे तिग सत्तावीस एकासीतीय भेदेणं ॥ २ ॥ गुरुपको लक्खो खो यतिविह एस भने एकेको पुणो तिविहो कोसादी इम चोच्छे ॥ ३ ॥ गुरुषले उक्कोसा मज्झ ज एवमेव सनी उकोसो मज्झिम जहणो ॥ ४ ॥ गुरुपकले उम्मासो पणमासो पेय होति उकोसा मज्झिम तू तेमासो दुमास गुरुमासिव जहणी ॥५॥ मात मिणमासोबीसाचिय तिविमेय लहृषकले पण्णरस इस पंचग सुकोसादि तिविहंसो ॥ ६॥ आवतियो एसो गयभेदो वणितो समासेणं अदुगा उ सत्तावीसो दाणतो तस्सिमो होति ॥ ७॥ गुरु लहू लसपसे एकेको मुलकोमुकोसो या उकोसममज्झिमणो ॥ ८ ॥ मज्झिमकोसी या मज्झिमम वहा जहणो १०४० जीतकल्पमा मुनि दीपरत्नसागर ~ 41~ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) जादी हमारामुलाया प्रत सुत्राक [६७]] “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूल [६७] --------------- ---------- भाष्यं [१९२०] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । लिया होति जहष्णुकोसो जहण्णमझो इह जहष्णो ॥९॥ गुरुपक्खो उक्कोसय उकोसगमज्झिमो जहष्णो या मजिसमउकोसो तू मज्झिममझो जहष्णो य॥१९२० ॥ होति जह- 21 गणुकोसो जहण्णमन जहण्णगजहष्णो । णवविहाहारसो सहुपरसे होति णातब्बो ॥१॥ उकोसुकोसो तू उनकोसगमनिझमो जहण्णो या मजिसमउस्कोसो त मजिमममझो जहष्णो य॥२॥ होति जहण्क्कोसो जहणमझो जहष्णगजनो। गवविहलवहारेसो बहुसगपक्खे मुतो ॥३॥ बारसमदसमअहमठप्पणमासेसू तिचिह दाणेद। उतेमासे दसमऽह उक्कोसगाति तिहा॥४॥एमेवृकोसादी दुमासगुरूमासिए तिहा दाणं । अदुमदुचाउत्थं णयविहमेयं तु गुरुपक्सो ॥५॥ दसमंअहमछई लामामुक्कोसमादि तिह दाण। अहमछट्ठचडत्य उक्कोसादेय तिह मिष्णे ॥६॥ छट्ठचउत्थाऽऽया उकोसादे य दाम वीसाए। टुपक्सम्मी गवगो बीओ एसो मुणेयत्रो ॥ ॥ अदुमदुपाङत्य एकुक्कोसादिदाण पण्णरसे । छयाउत्थाऽऽयामं दसम तिविहे तु वाण मवे ॥८॥समणायामेकासण तिनिहोकोसादि वाण पणगेयं । लहुसेस ततियणवगो सत्ताधीसेप्स वासामु ॥१॥ सिसिरे दसमादी पुण धारणभेदेण सनबीसे या ठायती पुरिमम्मि अढोकती य तह चेव ॥१९३०॥ अह्रममावी गिम्हे चारणदेण सत्सवीसेण । तह बड्डोकंती ठावति निजीतिए णवरि । अहुणा उचारणा तु उक्कोसुक्कोसगादि गुरुगादी। वासासू सिसिरे या गिम्हे य समासतो वोच्छं ॥२॥ अहगुए वासामू उक्कोमुक्कोसए य वारसमं । उक्कोसमजा दसम उको. असजहण्णमहमगं ॥३॥ अहगुरुए सिसिरेमु उकोमुकोसए य दसमं तु । उकोसमजिामऽहम उक्कोसजहण्णए छई ॥४॥ अहगुरुए गिम्हामु उक्कोयुक्कोसममं दिजा। उक्को. समज्म छ उनकोसजहण्णाएं बउत्थं ॥५॥ गुरुयतरा पासासु मजिझमउक्कोसए य दसमं तु । मजिसमजो अहम मज्मजहणेण छ8 तु ॥ ६॥ गुरुततरा सिसिरेसु मजिसमाउकककोसमट्ठमं देजा। मज्झिममझे छदमझजहण्ने चउत्थं तु॥आ गुरुततरा गिम्हेस मज्झिमाउकोसे देज उई तामज्झिममम चउत्वं मम जहाण उईतु(आयाम) सागुरुए वास जहणे उकोसे अहमं तु देजाहि। छह जहणमो होइ चाउथं दुहजहणे ॥९॥ गुरु सिसिरेऽत्य जहणे उकोर्स देज छहुमतं तु। जहणायमजिस पडत्यं दुहयो जहण्ोण आयाम A-१९४०॥ गुरुए गिम्ह जहणे उकोसा देज तू चउत्थं तु । जहणयममाऽऽयामं एकासणयं दुहजहणे ॥ १॥ लहुए वासारते उकोयुकोसगम्मि दसमं तु । उकोसमजिसमऽहम उकोसजहष्णए छह ॥२॥ लहुए उकोसुकोसतम्मि सिसिरम्मि अगुमं दिजा। उक्कोसमजम छई उकोमजहण्णएं धउत्थं ॥३॥ लहुपक्खे उकोसे गिम्हम्मी देज छभतं तु । मजिकमग तु पड़त्वं उकोसजहष्णमायाम ॥४॥लयतरे वासासु मज्झिमाउकोसमट्ठम दिजा । मज्झिममझे उई मजाजहष्णेणऽभत्ताई ॥५॥ ययतरा सिसिरेK मजिनमउकोस वेज उडंतु। मजिमममम चउत्यं ममजहणेगमायाम ॥६॥ यतारा गिम्हेसु मजिसमाउकोस देजमनई। मजिममममायामं मजाजहरण भने ७॥ अहलहुया वासासुम जहणउक्कोस छह बेजाहि । मजिसमगम्मि चउत्वं जहण्णगजहण्णमायाम ॥८॥ अहल्यग सिसिरेसु जहणउक्तकोस देजऽभत्तट्ठ। मनिममगे आयामं जहष्णगजहण भनेक्क H९॥ अहलहुगे गिम्हासु जहण्णगुक्कोस देन आयाम। एक्कासणर्ग मज्मे पुरिमइ दुहजहष्णम्मि ॥१९५०॥ लहुसग घासामुक्कोसमम्मि उस्कोसमर्म देजा। उक्कोसमजा छदं उसकोसजहण्णएं पात्यं ॥ १ ॥ लड्सम सिलिरासुक्कोसगं तु उक्कोस छह देजाहि । मजिसमगं तु चउत्वं उक्कोसजहण्णमाषामं ॥२॥ बहसम गिम्हासुस्कोसगम्मि उस्कोस देखऽ. भत्तई। मज्झिमग आयामं उक्कोसजहण भत्तेक्कं ॥३॥ लहुसतरा वासासु मज्जमुक्कासेण छहम तु। मनिझममझ चउत्थं मझजहष्णेग आयामं ॥४॥ लहुसतरा सिसिरासु ममुक्कोसंण देज भत्तह। मनिझममझापामं ममजहणेण भनेक ॥५॥ लहुसतरा गिम्हेसं मजककोसेण वेज आयाम। मजिममममेककासण मजाजहणेण पुरिमा । अहल्सय पासास जहण्णमुक्कोस देजामत्त । मजिसमग आयाम भनेक दुइजहणणं ॥७॥ अहलहुसग सिसिरामुं जहणमुक्कोस दिन आयामं । जहणगमकोकारण जहणजहणण पुरिम ॥ ८॥ अहलहसा गिम्हामु जहणमुक्कोस देज भत्तेक्कं । मज्झिमगं पुरियड्ड दुहयों जाहणेण णिविगति ॥९॥ एतेहि ठाणेहि (एया) आपनिओ सदान णियमा। गोया समाओ असहस्से केककहालणया ॥ १९६० ॥ जाप ठियं एककेक तंपिय हाचिज असहुणो ताहे। बाउं सहाणेच परठाणं देश एमेव ॥१॥ एवं ताणे जाणे हेहा हुनो कमेण हासेत्ता। णेत जाच ठित णियमा णिवीयियं एक ॥२॥ नवविहवपहारेसो आपत्तीदाणसहितकालजुतो। बुद्धीओ विज्जो विभागतो एसमक्सानो ॥३॥ अहन तिमोर लसादी तिनिहादि समास पिथो वोच्छ। हीणो मज्यकोसो तिविहेसो होति णायचो ॥४॥ लहुसगपकले पणगं दस पापार लिविह एप गान। पीसा य भिणमासोलमासो निविह बहुपक्से ॥५॥ गुरुमासो बउमासो उम्मासो पेय एस गुरुपाखे । गवविहावनेसा दाणं गबहा तिमं वोठं ॥ ६॥ णिचिगतिय पुरिमा एक्कासण लहसए य दाणति। आयाम पडत्य मा छई तू लहूमपारसम्मिा ॥ ७॥ अहम रसम दुवालस गुरुपक्से एष होति दाणं तु । गनिहदाणं एसो अहवाऽऽपनी इमा णमहा ॥८॥ पण दस पाणरस पा सहगुरुगा लगुसए तु पक्सम्मि। बीसा य भिण्णमासो लङ्ग गुरु लाजो य मासेको ॥९॥ गुरुमासो दुम्णि भासा लहुगुरुगा निग पटक यहगुरुगा । पंचग छम्मासा या लह - (२६२) १०४८ जीतकल्पभाष्य - अनिमलसागर || दीप अनुक्रम [६७]] -RITERARY करम ~42~ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) -------- मूलं [६७...] ----- --------- भाष्यं [१९७०] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य अहलाए मनिममममे छह मानमोल जहण ल ए कामहम ॥१॥ प्रत मुक्कोस बारसम रतमं ॥३॥ सुत्राक [६७] दीप अनुक्रम गुरुगा एस गवहा तु॥१९७० ॥ आपत्तियो एसो णयमेदो पण्णितो समासेणं। अहुणा तु सत्तचीसो दाणतयो तस्सिमो होति ॥१॥लसग सह गुरुपकसी एककेकको णवविहो मुणेतथ्यो। दुहयो जहणो जहणगमझो य जहणगुरुकोसो ॥२॥ मजिसमजहण्णगं तु मजिसममा तु मजिसमुफकोस. रक्कोसगे जहणं उनकोसगमज्म उकोसं ॥३॥ बहुसगपकले बेचे गवमेव समासतो समसायं । लहुपक्रखेऽपि गवयिह गुरुपये वा मुणेया॥५॥ वासासु अहालसो दुख्यो जहण देज भतेक्क। जहणगमझाया जह. वणगुफकोसएं घडत्यं ॥५॥ नुसतरमझिमजहणपम्मि वासासु देज आया। मज्झिममो चउत्थं मजिसमउकोसए ई०६॥ लड्सगउकोसजहणगम्मि वासामु देजड़भन्नई। उक्कोसमजन छह उक्कोमुफकोसममग ॥ ७॥ अइलजए वासामु जहणजहण्यो न वेज आयाम। जहणगमा बलत्थं जहणउक्कोसए छह ॥ ८॥ लहुयतरा वासामु मज्मजहष्णम्मि हवयमत्त । मज्झिममो छई मसिमुक्कोसमहमगं ॥९॥ लहुए वासामुक्कोसमम्मि जहणे तु देश छई। उफकोसमझमहम उनकोसुक्कोसए बसम ॥ १९८० ॥ गुरुपको जहणम्मि जहण होती पडत्यमत्ता हीणगमझे उई जहण्णउकोसमहमगं ॥१॥ गुरुजतरा बासा मजाजहोण देज छाता मझिमम अहम मज्झिमककोसए दसमं ॥२॥ अहगुए पासास उनकोसजहण्णमहम देजा। उक्कोलमज्जा इसम उककोमुक्कोस बारसमं ॥३॥अहलहसग सिसिरे जहणजहणेण होति पुरि-19/ महढं। हीणगमोक्कासग जहणउफकोस आयामं ॥४॥ लहसतरा सिसिरेसु माजहरणेण भत्तमेकं तू। मजिममममायाम मज्झिमाउनकोसएं चडत्य ॥५॥ लहसग सिसि-81 कक्कोसे जहण एवं तु देज आयाम । मसिमर्ग तु पउत्थं उनकोसुकोस उई तु ॥ ६॥ अहलहुयग सिसिरे दहाजहण्णेण देज भनेक्के । जहणगमनमायामं जहण्णमुक्कोतएं | चउत्थं ॥ ॥ नहुसतरा सिसिरेनु मनाजहण्यण देज आयामं । मज्झिममजा पाउत्थं मजिामउक्कोसए उद्धं ॥ ८॥ लहुए सिसिकरकोसे होति जहण चतुत्यम तु। उक्कोसमझ छदं उक्कोमुक्कोसमहमगं ॥९॥ गुरुए सिसिर जहणे जहष्णएणं तु देज आयाम । जहनगमम चउत्वं जहण्णउक्कोसए उई ॥१९९०।। गुरुयतरा सिसिसु माजहष्णेण देजइभत्तह। मनिाममो उट्ठ मज्झिमउकोसमट्टमर्ग ॥ १॥ अहगुरुए सिसिरे उक्कोसजहण्णएण छर्ट्स तु । उक्कोसमसिमऽहम उक्कोमुक्कोसए दसमं ॥२॥ अहलहुसग गिम्हासुर जहणजहाणेण होति णिनिगति। हीणगमको पुरिम जहष्णउक्कोस भनेक ॥३॥ लहुसतरा गिम्हेसुं माजहणेण होनि पुरिमदद। मनिमममोक्कासण ममिडक्कोसमायाम ॥४॥ लासग गिम्हस्कोसे जहष्णगे होति भत्तमेन तु । उक्कोसमजा आयंबिलं तु उक्कोलाएं चउथं ॥५॥ अहलहयग गिम्हेमं पुरिमइदं होनि दुहजहणणं । मज्जाजह-12 | गणेक्कासण जहाउसकोसमायाम ॥ ६ ॥ सहयतरा गिम्हेसमजाजहणेण भत्तमेकं तु। मज्झिमममाऽऽयाम मज्झिमाउकोसएं पात्या लहुयम गिम्हककोसे जहष्णएणं 9 नहोनि आयाम । मज्झिमर्ग तु पाउत्थं उकोमुक्कोसए कई ॥ ८॥ गुरुए गिम्ह जहाणे जहण्णय होति भत्तमेकं तुहीणगममाऽऽयामं जहउकोसएं षडयं ॥९॥ गुरुभतरा गिम्हागुं मजाजहण्णण होति आयामा मझिममा यउत्थं मज्झिमक्कोसए छ९॥२०००॥ अहगुगए गिम्हासु उनकोसजहणए पाय तु। उक्कोसमजा उई उनकोसकको समहमगं ॥१॥णबनिह पहारेसो आवत्तीदाणसहियकालजुओ। बुद्दीए चिण्णेयो निभागतो एसमकसातो ॥२॥ हडगिलाणाभावम्मि देज हदुस्स ण तु गिलाणस । जावनियं वा - चिसहति तं देज सहेज वा कालं मू.६८॥३॥भावं पडुन अहिय देजाही हबलियणिज्यम्स । गिलाणस तु उपतरं ग य देज सहेज वा का ॥४॥ असुमो सुभो न भावो लेम्साभेदेण होति णायत्रो। तियो तितो या विद्यतमो एवं मंदोधि॥५॥ पणएऽचि सेनियम्मी परिमं भावाउ कह पार्वति। परिमाओ वा पण एवमिण भावणिष्पग्णं ॥ ६॥ परिसर परब अहियं ऊणं वा दिज अहव तम्मा ते पुण पुरिसादीया इमे समासेण गायत्रा ॥७॥ पुरिसा गीतागीता सहासहा तह सदासदा केई । परिणामाऽपरिणामा अतिपरिणामा अवधूर्ण ॥ ६९॥८॥ केवी पुरिसा गीता केई अगीयत्व होति णातगा। विनिसंपयणादीहिं कह सहा केदतु असहा ॥९॥मायाची होति सदा असदा पुण उपग्ण येता। परिणामारी णमो समासतोड पलामि ॥२०१० परिणाम अपरिणामा अतिपरिणामा य बत्व चरिमदए। अचादी विहंता होति विभागो मो तेति॥१॥जो सेलफ-16 यकालभाषयी जजहा जिपकसाथ। तहसरहमार्ग जाण परिणामर्ग साहुं ॥२॥ जाणति दा जहाद्विय सचित्तापित्तमीस पा पार पतहा जोग वा अस्स होति P३॥ खेले जंकाया जवाणे जयण एष सरहनि। काले सुभिकपरिभक्तमादिम जो जहा कप्पो ॥४॥ भावे हडगिला आगाज जहा पकाया। सहति करेति य एसो परिणामो साहु ॥५॥जो दलसेतकयकालभाचयो जं जहा जिनकखाय। न तह असरहंत अप्परिणामं वियाणाहि ॥६॥ जो दासेतकयकालमाययो जहा जिणकपाय। नतेमुस्मुनमती अतिपरिणामं वियाणाहि ॥ ७॥ परिणमति जहत्येणं मती तु परिणामगरस कजेमु। वितिए ण तु परिणमती अहितमती परिणमे नतिए ॥८॥ दोसत परिणमति १०४५ जीनकापमाप्य - मुनि दीपरतासामा 11 [६७] ~ 43~ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूल [६९] -------------- ------- भाष्यं [२०१९] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत [६ ] दीप अनुक्रम सम्राकाभ मती उस्सग्गऽक्वाययोतु पटमरस। वितियरस तु उसनो असिजक्याए तुवतियस्स ॥९॥ अंबाडीदिद्रुतेहिं परिकखा तेसि होनि काया। जह कोथि गुरुहित मणिनो अंपाणि आणेहि ॥ २०२०॥ परिणामगोऽत्य भणती किं सचिनेऽचिते व आणेमि ?| भावतो केवइए वा? किटाले मिणमिणे वा ॥१॥ वेति गुरू लद बिय पुणो वोच्छिमु जहर पीमंसा। मणिोऽसित्ती एवं अप्परिणामो इमं चेति ॥२॥किने पित्तफ्लायो ? मा चिनियं एरिसाई जंपाहि। मागं परोषि सोच्छिति अहंपि मेच्छामि एयस्त ॥३॥ अतिपरिणामो मणति कालो सि अनिच्छए अहो तान। कि एचिरस्स बुर्त? इच्छाम्हविण तरिमो मणि ॥४॥ घेतृण भारमागतों मणती अण्णेवि किं नु आणेमि? तो दोऽपि गुरु भणती उबालभन्तो इर्म नहितं ॥५॥णाभिपायं गिम्हसि असमले वेष भाससी क्यणे। सुक्कंबिललोणकए तिणि अहवापि दोशंगे ॥६॥ एमेव य सकरखेवी मंजितु आणेह बेनि अपरिणतो। निष्पावादी रुकवे भगामिण दुमे अह हरिए ॥ ७॥ एमेव य बीयाई आणेनी आणिए गुरू भगती। अंबिलि विडत्याणिव भणामि णवि रोहणसमत्ये ॥ ८॥ तह चितिसंघयणोभयसंपणा नदुभएण हीणा उ । आयपरोभयगोमयतरगा तह अण्णयरगा य ।। मू०७०॥९॥ पितिदुप्पल बेहबली चितिवलिओ देहबुबो कोई। कोबी दोहिवि बलिओ दोहिषी दुबलो कोई ॥२०३०॥ दोहिवि पलिए सवं चितिहीणे जत्थ चिति फिती से। आसज व देहबलं देना सहयं उभयहीणे ॥१॥ अहवा पंचविकप्पा आयतरादी इमे उगाया। पढ़मो आयतरो त णो परयो परतरे वितिओ ॥२॥ उभयतरोत ततिओ गोभयह पउत्यो उ गायनो। अण्णयरो परयो त पंचमओ हो जातको ॥३॥ आवतरपस्तरार्ण कोण निसेसो?ति एत्य चोदेति । आततरा पड़थादी जं विजातिवं तु णिस्थरति ॥ ४॥ यावषकरो तू गच्छरस उवग्गहम्मि वहति तु। एसोतु होति परतर चतुभंगो एव गायत्रो ॥५॥ पेयापचनराणं एकक सकेति दोण णित्यरति। पंचमगो तू पुरिसो अण्णतरो एस गातयो॥ ६॥ कप्पद्विवादयोऽविध चतुरो जे सेतरा समकलाता । साचेकोतरमेयादयो यजे ताण पुरिसाण ॥ मू. ७१॥७॥ कप्पडिता परिणता कहजोगी चेष होन्ति तरमागा। पडिवकरणवि चतुरो अकप्पठियमादिणातबा ॥पनिठा ठपणा ठवणी, अपत्या संठिती ठिती। अवस्थाणं अपन्या या, एगठा चिठणातिय ॥९॥ सामापिए य छेदे णिविसमाणे नहेब गिवि। जिणकप्पे धेषु य उनिह कप्पदिलनी होति ॥२०४० ॥ सा पुण दिति मजाया । सासो कप्पो यहोनि कतिहा उमपति सो इसमेदो इणमो पोष्टं समासेणं ॥१॥ आचेलकुदेसियसेजायरायपिंडकितिकम्मे । पनजेठपडिक्कमणे मास पजोसवणकप्पे ॥२॥ कनिहि ठिता अठिता या सामाविककप्पसंठिता णियमा ?। कतिठाणपनिट्ठो का छेदोचढाणकप्पो उ?॥३॥ चतुहि ठिया उहि अठिया सामातियसंजया मुगेयात्रा। बससुवि पियमा नु ठिनाईयोबटूठा मुणेतका ॥४॥ सेनातरपिंडे या किनिकम्मे पेव चाउजामे या पुरिसट्टे यतहा पत्तारि अवडिया कणा ॥५॥ आचलकरसियरायपिंडे नहा पडिकमणे। मासं पजोसपणाकाणचड़ितो कप्पो ॥६॥दसठाणठितो कप्पो पुरिमस य पच्छिमस्त व जिणस। आचेलकादीम तेसित पाजणा इणमो ॥ ॥ इविहा होति अबेला संता- 15 केला असेलचेला या विस्थगरसनचेला संताचला भवे लेसा ॥८॥ संतेहिवि चेलेहि किह पुण समणा अचेलया होन्ति । भण्णति मुणम् चोदा ! जह संतहि अचेला ॥९॥ सीमावेदियपोनि णतिसतरणम्मि णगावं बेन्लि । जुम्णेहि णग्गिय म्हि तुर सालिय ! देहि मे पोती ॥२०५० ॥ जुष्णेहि संटिएहि य असमतणुपाउएहि ग य गि। संतहिनि निर्माचा अचलगा होनि बेलहिं ॥१॥ एवं दुग्गय पहिया वाचेलया हॉनि ते भने बुद्धी ते खलु असंतताए धरति ण त धम्मसदाए ॥२॥ सति सामम्मि साह मेहन्तऽमहवाई ताता नामिवि संटियमादी धरेन्नि तह धम्मयुद्धीए ॥३॥ आचेलको धम्मो परिमस य पच्छिमम्स व जिणस्सा मज्झिमगाण जिणाणं होति सचेलो जमेलो वा ॥४॥ पडिमाए पाउया पागतिकमने मनिामा समणा। पुरिमचरिमाण अमहवणा तु भिण्णाणिमे मोनं ॥५॥ निरुबहपलिंगभेदो णिककारगयो ण कप्पये कान। कि पुणत णियह भणति अहजायलिग नग॥जम्म दुनिह होती मानुकृषिम्मि पदम ज जर्म। भवसंसारचउक्के गिप्पिटिए वितिय पाज॥ ॥ तस्स इमे भेडा खल संघमारे यसमण पाउरणे। गलक(मेकर)दसे पट्टे लिंगदुवे या इमा भयणा ॥८॥ शिकारपओ लहुओ निशु चनुगुरुगा य हॉनि बोबवा। गिहिलिंग अाणलिंगे दोमुचि मूलं तु बोध ॥५॥ कुविना कारणे पुणभेर लिंगस्सिमेहि कजेहि गेलण्णरोगकोएसरीरबेयावडियमादी ॥२०६० ॥ आसज सेनकप्पं बासाठाई अभाविए असह। काले अदाणम्मि य सागरि नेणे य पंगरणं ॥१॥ असिवे. ओमोपरिए रायढे पापिठे बा। आगा। अपणलिंग कालकरखेयो व गमणं वा ॥२॥ संपस्सोहविभागे समणा समणीय कुलगनरसेना कडमिह ठिए ग कप्पनि अद्वियकप्पे जामुदिस्त ॥३॥ आयरिए अभिलेगे भिन्तुम्मि गिलाणगम्मि भयणा उ। तिवसुनाविपकेसे लिपपरियट्टे नओ गहणं ॥४॥ नियंगरपडिस्कुटो आणा जण्णाय उग्गमो सुमे। अविमुनि अलावण्या दरामसेजा ठितुच्छेदो ॥ ५॥ पुरपच्छिमबजेहिं अवि कम्मं जिणावरहिं लेसणं। भुत्तं विवेड्गेहि यण य सागरियस्स पिहो तु ॥६॥ दुविहे गेलण्णम्मी णिर्म-19 २०५७ जीनकन्यमाय - मुनि दीपरतसागर करकाम्पसलकर [६९] ~44~ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [७१] दीप अनुक्रम [b] "जीतकल्प” छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ........... - • मूलं [br] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .... ....आगमसूत्र- [ ३८/१], छेदसूत्र • [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं आयं (२०६७) 1 तणा दशमे असिये ओमोयरिय पयोले भए व ग्रहणं अनुष्णातं ॥ ७॥ तिक्खुतो सक्सेसे चउदिसिं ममाऊण कडजोगी दस्त यदुभया सागारियसेवा देवे ॥ ८ ॥ केस्सियो तू राया? भैया पिंटस के व? सि दोसा ? फेरियम्मि व कजे कप्पति? काए व जयगाए ॥९॥ मुदिए मुदऽभिसित्ते मुदिओ जो होति जोणिमुदो तु। अभिसितो व परेहिं सर्व व भरहो जहा राया ॥ २०७ ॥ पदमभंगे वो होतुपमा पावि जे भणिय दोसा सेसेस होयो जहि दोसा तं विना ॥ १॥ असणादीया चउरो वर पाय कंबले व पाउंछण व तहा अविहोरायपिंडो तु ॥ २ ॥ अवि रायपिंडं अणयरायं तु जो पडिग्गाहे सो आणा अगवत्थं मिष्ठत विरानं पावे ॥ ३ ॥ दोसा इमे ईसरलवरमाविएहिं सत्यवाहिं । जितेहिं अइन्तेहि य वाघातो होति साहुस्स ॥ ४ ॥ ईसर भोइयमादी तलवरपट्टेण तलव होति वैगुणपट्टोसेट्टी पचतणियो उ माडंगी ॥ ५ ॥ जान्तिन्ता अच्छ तु सुत्तादिभिखपरिहाणी हरिया अमंगलतिय शहा (व्हा) हमणा इहरहा तु ॥ ६॥ लोमे एसालो का लेगे पुंस इत्थी व इच्छतमणिच्छते चातुम्मासा भवे गुरुगा ॥ ७॥ अत्य एरिस इति मेणेणिपि। अण्णेवि अवहरिए संजित एस गोति ॥ ८॥ संकर चारियबारे मूलं निस्संकिए व अणवो परदारि अहिरे वा नवमं णीसंकित इसमें ॥ ९ ॥ लता व विया इरिणा गिजा आयस्यि कुलगणे या संचे वा कुज पत्धारं ॥ २०८० ॥ अमेवि अस्थि दोसा गोम्मिय आहष्णस्यणमादी प णीसाए पि से तिरिक्खमणुया मये दुट्टा ॥ १॥ गोम्मियग्रहणा हणणा मो व निवेइयम्मिजं पाये। आदिष्णरतणमादी सत गेव्हेयरी व तणीसा ॥ २॥ चारिचोरामिमरा कामी व विति तत्थ तणीसा। वारणरच्छवरपा मेच्छा व पराव पाएजा ॥ ३ ॥ दुबिहे गेलष्णम्मी निमंत्रणा दवदुमे असिये ओमोरिय पदोसे भए व गहणं अनुष्णायं ॥ ४॥ तिक्त सक्सेने चदिसि मग्गितूण कडजोगी [दवस्त व दुभता जनाए कप्पती ताहे ॥५॥ कितिकम्मंपिय दुर्धि अच्मुट्ठाणं सहेब बंदचयं समणेहि य समणीहि व जहारिहं होति काय ॥ ६ ॥ सा जहि किनिकम्मं संजताण काल पुरिसुत्तरित्र धम्मो सजणामपि नित्यम्मि ॥ ७ ॥ तुच्छत्तणेण गहो जाय ग य संकते परिभवेणं अष्णोऽचि होज दोसो चियामाहा ॥ ८॥ अविष हु पुरिसपणीतो धम्मो पुरिसो य रक्खितुं सत्तो लोगविरुद्ध चेयं तन्हा समणाण काल ॥ ९॥ पंचजामो पम्मो पुरिमस्सय पच्छिमस्स य जिणस्स मझियाण जिगाणं चातुजायो भने धम्मो ॥। २०९० ॥ पुरिमाण दुद्विसोझो परिमाणं दुरगुपाल कप्पो मज्झिमाण जिणा चिसो सुरपान् य ॥ १ ॥ जनणेण हंदी आइक्खविभागउचणया दुक्खं सुहसम्म (सं) पर्वताय तितिक्ख अणुसासना दुक्तं ॥ २ ॥ मिच्छत्तगोवियाणं विषमतीण ठाणसीला आइक्खितु अनुक्स व वापि दुक्खं तु ॥ ३ ॥ दुफ्लेहिं मच्छियाणं तमुधितिअवलत्तयो य दुतितिक्स एमेव दुरणसासं माणुकडयाय परिमाणं ॥ ४ ॥ एते चैव य ठाणा सपण माणं भगवान व विमिरभाषा भये सुदुमा ॥५॥ पुश्तरं सामइयं जस्स कथं जो बलेव (बाट) पितो एस किनिकम्मजेो ण जातिगुययो दुपकखेऽयि ॥ ६॥ सा जेसि तुला जेहि ठाणेहिं पुरिमपरिमाणं पंचायामे पम्मे आएसलिगं चिमं गुण ॥७॥ दस व उच्च चतुरो एते तिष्ण हन्ति आदेसा कतरे वन्ति इस तू? भणति गुण इमे ते तु ॥ ८ ॥ ततो पारंचिया वृत्ता, अणवण्या यतिणि तु। दंसणम्मिय वन्तम्मि, चरितम्मिय केवले ॥९॥ अदुवा चियत्तकिये, जीवकार्य समारमे सेहे व इसमे मुझे, जस्सो बहावणा भये ॥ २१०० ॥ एते दस तू बुता अण्णादेसेण होति छत्तु इमे तिष्णिरि पारंचे अगवट्टप्पावि तिष्येकं ॥ १ ॥ दंसणवन्ते तइए चरितते भवेत्थे तु चचियनकिबी उडो सो होउवप्पी ॥ २॥ एसो बतियाएसो बतियाएसो इमो मुणेयो। चत्तारि व उपठप्पा कबरे तु? इमे मुणेतवा ॥ ३॥ पारंची अगुवा दंसणपरणे ते पहिला न सणचरिता तो दोष्णेते भवन्ती तु ॥ ४ ॥ चियत्तकियो सेहो य पत्तारते हतुवटुप्पा एते तिष्णादेसा उपठाए मुणेा ॥ ५॥ केवलगणं कसिणं जति मनी दंसणं चरितं था तो तरस उबवणा देसे यंतम्मि भयणा तु ॥ ६॥ एमेव व किंचि परं सूर्य च असूयं च अप्पदोसे अधिकोविए कहेन्तो चोइ आरट्ट सुद्धा तु ॥ ७॥ सो पुन सर्वनो अणमीतु अव आमोगा। अनभोगेण तहिये कोबी सड्दो तु संवेगा ॥ ८ ॥ दतून चिन्ह तू एते साहू जत्तकारिति क्विंतो अणभीगा दिठो अहिं साहहिं ॥ ९ ॥ भणिओ य हिगाणं कीस समासे तुमं सिमितो ? तो बेति ण वाणामि एयविसेसं अहं भंते ॥ २११० ॥ एवमणाभोगेण मिच्छत्तमतो पुणोषि सम्म जो पविणो सो तू आलोय निन्दितो सुद्धो ॥ १ ॥ सो चैव य परियायो गत्थि उवद्वावणा पुगो तस्स तं चिय पच्छिल से चिय सम्मं तु पडिवजे ॥ २ ॥ जो पुण जाणतो थिय गतो तु होजाहि हिए। पुणरागतो व सम्बं तस्स उबद्वावणा भणिया ॥३॥ उन्हें जीवनिकायाणं, अणप्पज्यो तु विराहओ आलोपिडितो दो हवति संजती ॥ ४ ॥ उन्हं जीवनिकाया अप्पम तू विराधयो । आलोतियपडितो, मूलच्छेजं तु कारए ॥५॥ खित्तादिजणप्पो अनभोगेन व जो गतो मिछे सो तु अपायच्छितोऽविराहती तस्स दिन्तो तु ॥ ६॥ जं जो तु १०५१] जीतकल्पमा - मुनि दीपसागर ~ 45~ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सुत्राक [७१] “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [७१...] ----- ---------- भाष्यं [२११७] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य समावणो जं पायोग व जस्स पत्थस्सा तं तस्स तु दायचं असरिसदाणा इर्म होति ॥ ७॥ अपच्छिते य पचित, पमिते अतिमत्तया। धम्मस्सासायण तिवा, ममास्स य निराडणा ॥८॥ उमाल वयहरेती, कम्म बंधति चिकणं । संसारं च पपइदेति, मोहणिजय कुाती ॥९॥ उम्मग्गदेसए मग्गसए मम्गविपढीचाए। परं मोहेण रंजेस्तो. महामोहं पाती । ॥२१२०॥ एवं तु उबवितो जो पढमयरं तु अब सामतिए । ठवितो सो जेद्यरो कम्पपकप्पद्विताणं च ॥१॥ सपदिकमणो धम्मो पुरिमा ब पच्छिमस्स प जिणस्स। मजिसम. गाण जिणार्ण कारणजाए पतिकमर्ण ॥२॥ गमणागमणविहारे सायं पायो य पुरिमचरिमाणं । णियमेण पटिकमणं अतियारो होउवा मा पा ॥३॥ अतियारस तु असती गण होति गिरत्ययं परिकमणे । भणति एवं चोदग! नत्य इमं होनि जातं तु ॥४॥जह कोथि इंडिओ तु रसायणं कारचेति पुत्तसा। तत्वेगो नेमिचडी घेती मकां तु एरिसयं ॥५॥ जति दोसे होजगतो अह दोसो पस्थि तो गयो होति। वितियस्स हरति दोसण गुणं दोस व तहमाषा ॥६॥ दोस हतूण गुणे कोति गुणमेव दोसरहिएति। तयसमाहिकरस्स तु रसायणं इंडियसयस ॥ ७॥ इय सह दोस विवति असती बोसम्मिणिज कुगति। फुसलातिगिच्छरसायण उवणीयमिण पडिकमणं ॥ ८॥ जिणधेरबहालंदे परिहारिग अज मासकप्पो ता खेले कारमुपस्सयपिंडग्गहणे य गाणनं ॥९॥ एतेसि पंचमहावि अण्णोण्णस्सा चतुष्पएहिं तु । खेत्तादीहि बिसेसो जह तह बोचा समासेण ॥ २१३०॥ णस्थित खेसं जिणकप्पियाग उडुबड़े मासकालो तु। वासामु चउमासा वसही अममत्तपरिकम्मा॥१॥पिंडो तु अलेवकडो गहणं तू एसणासुपरिमाहि। तत्वनि कानुमभिमाह पंचाई अण्णवरियाए॥२॥राण अस्थि लेनं तु उन्माहो जाण जोयण सकोस । णगरे पुण बसहीए कालो उउबढ़े मासोतु ॥३॥ उस्सग्गेण च भगिती अपवाए त होज अहिओऽपि। एमेच य वासासुऽपि चतु. मासो होज अहिलो वा ॥४॥ अममत्रानपरिकम्मो उपस्सओ एग्य भंगया चतुरो। उस्सम्मेणं पदमी तिणि तु अपवायओ भंगा ॥५॥ मत्तं लवकर्ड या अन्लेषकर पावि ने तु गेष्हति। सनहिबि एसपाहि साचेक्सो गमवासोति ॥ ६॥ अहलंदियाण गच्छे अपडिबदाम जह जिमार्ण तु । गवरं काले विसेसो उदुमासो पणम चतुमासो॥ ७॥ गच्छे पडिबहाणं अहसंदीणं तु अह पुण विसेसो। जो तेसि उग्गहो खलु सो साऽऽयरियाण आइयति ॥८॥ एगपसहीऍ पण उनीहीजो यमाम कुर्वति। दिवसे दिवसे अणं अति पीहिं तु णियमे ॥९॥ परिहारविमुदीन जहेच जिणकप्पियाण पचरं तु। आयंबिलं तु भन्नं बोदयो बेरकप्पो तु ॥२१४०॥ अजाण परिगहियाण उम्गहो जो तु सो र आयरिए। कालतों दो दो मासा । उपदे तासि कप्पो तु॥१॥ सेसं जह थेराण पिंडो य उपस्सयो य तह तासि । सो सोऽपिय दुपिहो जिणकप्पो बेरकप्पो य॥२॥ जिणकप्पियाहालंदीपरिहारविमुदियाण जिककप्पो। थेराणं अजियाण य बोदवो घेरकम्पो तु ॥३॥ दुनिहो उ मासकप्पो जिणकप्पो चेव बेरकप्पो या णिरणुग्नहो जिणाणं येराण अगुग्गहरवत्तो ॥४॥ उवासकालानीए जिगकप्पीगं तु गुरुग गुरुगा या होति दिणम्मि दिणम्मी थेराणं वे चिप लहू उ॥५॥तीस पदाऽवराहे पुद्दो अणुवासिये अणुवसंतो। जे तत्व पदे दोसा ने तत्व नतो समावाणी ॥६॥ पाणरमुगमदोसा दस एसपदोस एव पणुचीसं । संजोयणाइ पंच य एते तीस तु जबराहा ॥ ७॥ एतेहिं दोसेहि संपत्तीएपि लगाती नियमा। दिवसे दिवसे सो कालातीत पसंतो तु॥दावासापासपमाणं आचार उदुषमाणिवं कर्ण। एवं अणुम्युयंतो जाण अणुवासकप्पो तु॥१॥ आयारपकप्पम्मी जह भणितं तीय संवसंतोऽवि। होति अणुवासकप्पी नहर संबसमाण दोसो तु ॥२१५० ॥ दुबिहे विहारकाले बासाचासे नहेब उजुबदे। मासानीतेऽणुबही वासाईले भने उचही ॥१॥ उठबडिएस अट्ट तीतेमु वास नाथ णविकप घेणं उहि । खल वासामु न नीत कापनि तु॥२॥ वासउहालंद इत्तरिसाहारणोग्गहपुरते। संकमणहा दवे गण्डे पुष्पावकिण्णोतु ॥३॥ वासामु चउम्मासो उउपदे मासों लंद पंच दिणा। इत्तरिओ कासमूले वीसमणहा ठिया तुसाहारणा उ एने समगठियाणं बरण गच्छा। एकेण परिणहिता सो बोहत्ति(न्तिया होन्ति | संकमणपणोपणस्स उ संगासे जति व उने अहीयते । सुतायतदुभयाई सो अवावि पटिपूच्छे ॥६॥ ते पुण मंडलियाए आवलियाए व तंतु गिण्हेजा। मंडलियम हिजते सचिनादी तु जो लाभो ॥ ७॥ सोनु परपरएणं संकमती ताव जाच सहामा जहियं पण आपलिया ताहियं पुण ताति अंतम्मि ॥८॥ने पुण जहा तु एकाये बसहीए जहर पुष्ककिष्णा तु। अहनापितु संक्रमणे दास्सिणमो विही अण्णो ॥॥ सुत्तत्थतदुभयविसारयाण थोडे असंभतीभेदे। संक्रमणट्टा दो जोगे कपेय आचलिया ॥२१६०॥ पुवद्विताण खेत्ते जति आगळेगा आपण आयरिओ। बहसुप बहुभागमिओ तस सगासम्मि जति खेती ॥१॥ किंचि अहिजेजाही यो खेतं चने जा हवेजासाहे असंचरंता दोणिवि साह विव(स)लेन्ति । अणोणस सगासे मेसिपिया। नस्थाहिजमाणाम् । आमवणा तह च य जह मणियमणतरे सुते ॥३॥एवं णिवाघाए मास चनुम्मासिओ तु राण। कप्पो कारणथो पुण अणुवासो कारणं जावा एसोन मासकप्पो धेरकप्पो य वणिोपण। अहुणा ठियमठियं न येराणं इणमु कोष्ठामि ॥ ५॥ सो बेरकप्पो दुषिहो अटिनकप्पो य होनि ठितकायो। एमेष जिणाणपी ठितमठिलो होनिकपोतु ॥६॥ पोसवणाकापो होनि ठिलो अडिजओ य घेराण। एमेव जिणाणपी दुह ठियमठिो य णानको ॥ ७॥ चानुम्मासुकोसो समरि राईदिया जहरण । हितमद्विय (२६३) १०५२ जीतकल्यभाष्य - अनि दीपरनसागर 44RSATIONARY दीप अनुक्रम अपतो जाणामाललेणुमही याच गाणे पुकावासले बोलि [७१] ~ 46~ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) --------- मूलं [७१...] ---- --------- भाष्यं [२१६८] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सूत्राक [७१] दीप अनुक्रम एगतरे कारणवचासितऽणयरे ॥८॥राण सत्तरी खल वासासु ठितो उणि मासो पिचासिओ तु कजे जिगाण णियम चतुरो वा ॥९॥दोसासति मजिमया अच्छंती जान पुवकोडी नु। विहरति य वासासुनि अकरमे पाणरहिए उ॥२१७०॥ निष्णपि वासकार्य करेति तगुर्वपि कारणं पप्प। जिणकप्पियानि एवं एमेच महापिदेहेपि।१॥एवं ठियम्मि मेरे अद्रियकणे य जो पमाएति। सो वहति पासत्ये ठाणम्मि नगम्मि पजेजा ॥२ पासत्वसंकिलिई ठाणे जिणगुल बेरेहियावारिस तु गवसतो, सो बिहारेण सुजाति । ३॥पास त्य विकर्जतो, सो बिहारे तुमुज्जाति ॥४॥जो कप्पठिवीमेय सहइमाणी फरेनि सहाणे । सो तारिख तु गजेसेजतु गुणाणं अपरिहाणी॥५॥ ठितमठियम्मी वसविहं ठवणाकणे य Hदुनिहमणवरे। उत्तरगुणकपम्मि बजो सरिकप्पो स संभोगो ॥ ६॥ठवनाकप्पो एपिहो अपठपणा य सेहठवणा या पढमो अप्पिएणं आहारादीगि(ण)गिहावे।ा अट्ठारसेन पुरिसे वीस इत्थीण इस गपुसे या दिपखेति जोग एवं महावणाए सो कणों ॥८॥आहाराबहिसेना उम्ामउष्मायणेसणासुदं। जो परिमिष्हति णिय उत्तरगुणकपिजो स खलु ॥९॥सरिकप्पे सरिठदे तालचरिते विसिद्वतरए वा । साहहिं संथर्व कुजाणानीदि परिसगुनहि ॥२१८०॥ सरिकप्पे। आएज भत्तपाणं सएण लाभेण वा तुस्से ॥१॥य सामा पठेदे जिणधेरा ठिती समक्खाता। एनो णिविसमागे णिजिडे बावि घोच्छामि ॥२॥ परिहारकणं योच्छामि, परिहरित जहा वितू । आदी मजाक्साणे य, आणजिहकर्म G॥३॥ नरहेपयवासेस, जया नित्यगरा भये। पुरिमा पश्चिमा पेच, परिहारी तेस होति तु ॥ामग्निमाण ण संती तु, तिरसु परिहारिया।गयायिय विदेहमु, विजंती परिहारिया ॥५॥ केवलियकासंजोगी, गच्छी तू अणुसजनी तिथंकरे पुरिमेसु, सहा पणिमएसय॥६॥ पुरसयसहस्साति, पुरिमस्सऽगुसजती। जम्हा ण परिषजति, दोन्ह गच्छा परेण | तु॥७॥ देशमपुरकोटीओ, दो सा दोहं भपनि तु। दो सा एगणतीसा त. लेण ऊणा ततो भो ॥८॥ पीसग्गसो य वासाई, चरिमस्सऽसजए। जाव देसूणगा दोपिण, सया पासाण होति तु ॥९॥ पाना अहवासस्स, उपहा गयमम्मि उाएगणवीसपरियाए, दिहिनाओ य तस्स तु ॥२१९०॥ उदिस्सति परिसेण य, तस्सयसो त समप्पती। णवीसा य मेलीणा, ऊगतीसा मतित॥॥ इति एगणतीसाए, सयमूर्ण तु पश्चिमे । एसो दोसु त एतेण, ऊगाई दो सयाणि उ ॥ २॥ पालतिता सर्व करा. तार्य तेल पथिामे। काले देसन्ति - गणेसि, इनि उणा उबेसता ॥३॥ पदिषजति जिगिदस्त, पायमूलम्मि जे विऊ । ठावयति उ ते अण्णे, नो तु ठावितठावगा ॥४॥ सने चरित्तमता य, देसले परिणिहिया। गवणुकी जहाण, कोस रमपुरियामापनि सहारे, कप्पे ने दुनिहम्मि या दसविहे व पच्छिते, सोते परिणिद्विता ॥६॥जत्तमो आठ सेस.जापिता ने महामनी परकम पल विरिया पचपाए नहेब य॥ ॥ जति जीतपचवाया ग, होति तेति तु अग्णवरा । तो संपडियनंती,माधाएणं तुते गवी ॥॥ आपूच्छिऊण अरिहंते, मर्ग देसितितेइमापमाणागि य सव्याणि, म(3)आहे व बहुविहे ॥९॥ उवहींगमणापमाणागि, पुरिसानं च जाणिउं। दर्ष खेतं च कालंच, भावं अणे य पनवे ॥२२०७॥ संसदमाइयाण, सत्तई एसणाण तु। आदिडाहिं दोहि तु, अम्गही नह पंचहि ॥१॥तत्वपि अण्णपरीए एगीए अभिन्गहं तु कानुर्ण । उपाहिणो अहो दोसं इयरी एमतरीय त।२॥आसायश्मि सरश्मि कप सेन्तिम आलोइयपरिकतो, ठापयति तयो गणे ॥३॥ सत्ताचीस जहणं, उकोसेणं सहस्ससो। गिगंधमरा भगवंतो. सध्यमोण विचाहिया सयासी व कोसा, जहण ततो गणा। गणों व गपगो पुलो, एमेया परिवनिओ ॥५॥ एग कम्पट्टियं कुजा, पत्तारि पारिहारिया। अगुपारिहारिवा चेच, चतुरो एवेसि लावए ॥६॥ण सेसि जायते विश्व, जा मासा बस 1 अट्टयाग वेयणा ण बायको, ण वायणे उबदना॥७॥ अहारसम पुण्णेस, होजा एते उपचा। उणिए ऊणिए यायि, गणे मेरा इमा भवे ॥८॥जनिएण गणो ऊलो, तत्तिए नस्थ पक्खिये। एग दुवे अणेगा चा, एस कप्पे तुगिए॥९॥ एते अणिए कणे, उपसंपजति जो नहिं । एमे दुचे अणेगे वा, तेसि कप्पो इमो भवे ॥ २२१ ॥ अच्छंति ना उदिकलता, जान पुष्णा तु तेगव । पच्छा पहिवनति, जं कथं तेसि अंतिए.१ पमाण कम्पद्वितो तत्य, सहारे वपहरितए । अपरिहारियाणपि, पमा होनि सेवतु॥२॥ आलोयण कप्पठिए पवाखाणे नहेब बंदणय। तंव पहते ते तू उजागी एवमम्मति ॥ ३॥ अगुपरिहारी गोवालगा गावीण पिचमुजुना । परिहारिवाण मागतो हिंडती णिचमुजुत्ता ॥४॥ परिपुच्छ पाय घेव, मोचूर्ण गस्थि संकहा। आलाको अत्तणिदेसो, परिहारियस कारणे ॥५॥ परिहारियाण उ तवो वासासुकोस मज्झिम जहणो। बारसमदसममा दसमाजमछह सिसिस ॥६॥ अहमदचाव गिन्ने कोसममिजहष्णो। आयंबिलपारण अभिगहिता एसणाए.७॥ अपरिहारीया पूण मिर्च पारिति आयामे।IEl कपहिएऽपिने मिय आणिति अभिमाहीताहि ॥८॥ परिहारिय पत्तेयं अपरिहारीण सहय कापतिए । पंचाहनि तेसि तू संभोगेको मुणेतको ॥रा परिहारिएप देसाणुपरिहारी तो वहंती तु। कप्पद्वियो व पच्छा बहती बुढेसु ते तु ॥२२२०॥ परिहारियावि छम्मास अणुपरिहारिवानि उम्मासे। कप्पद्वितोऽनि उम्मास एते अहारस तु मासा ॥१॥ अगुष१०५३जीतकम्पमार्य मुनिटीपरमार TRENA [७१] ~47~ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [७१...] ----- --------- भाष्यं [२२२३] ---- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य 4 का महंगपरमगुण्ण प्रत पि पस्थपायाई ॥४॥ व अनहाति परमरथो । सारसंभ(ATYARहार ॥१॥ भवधि जहणेन सूत्राक [७१] . दीप अनुक्रम रिहारिया बाजपने परिहारिया । अगामाणे ठाणेस, अविरुवा भनि ते॥२॥ गतेहिं हिं मासेहि. णिविहाउ भवति । अपरिहारिया पठा. परिहार परिहरविता॥ गएहिं हि माहि, णिविद्वाउ भवति ते। यहती कापट्टितो पच्छा, परिहार अहारिहि ॥४॥ एतेसि जे यहन्ती णिविसयाणा हवंति णियमा । जेहि युदं पुगतेसिंहति णिबिहकाईया ॥५॥ अद्वारसहि मासेहि. कपो होति समाणितो । मूलढवणा एसा, समासेण पियाहिता ॥६॥ एवं समानिए कप्पे, जे व सि जिणकषिया। तमेव कप्पं कणावि, पालए जापजीवियं ॥ ७॥ अवारसहिं पुण्णेहि, मासेहि धेरकप्पिया। पुण गणियउंति, एसा देसि जहाविहीं॥८॥तनियनउत्था कप्पा समोअरते न बिलियफप्पम्मि। पंचमहाठि. नीम हेहिडाणं समोयारो ॥५॥सामाडेदोणिपिसगिविहएते जिणधेरे ओवरति । अणा जिनकप्पठिती सा पुर्व मासकापसुन्नम्मिा भगिया स परहणपरममुण्णस्थ भणति प्रम ॥२२३०॥ गच्छमि पणिम्माया धीरा जाहे य मुणितपरमत्था। अगह अभिन्महे या उति जिणकपिगविहारं ॥१॥ गववि जहणे उकोसेगं तु दस असंपुग्णा। चोदसपुत्री नित्य नेण जिणकपण पापहरोसमसंपवणा मुत्तस्सऽत्यो त होति परमस्थो । संसारसंभ(सभा)को वा जातो तो मुणियपरमत्यो ॥३॥ अमाही सतियातीया पडिमाहि गहण भन्नपाणस्त । दोहिंगु उपरिमाहि गेण्हती वस्थपायाई ॥४॥ दबे अभिम्गहा पुष समाचलिमाइगाइबोदवा। एतेसु विदितभावो उनि जिगकप्पियविहारं ॥५॥ दुपिहा अतिसेसाविय सिमे परिणया समासेन बाहिर अग्नितरगा तेसि विसेस पचपलामि ॥ ६॥ बाहिरओं सरीरस्सा अतिसेलो तेसिमो त बोदो। अहिलपाणिपाया पारोसनसंपतग धीरा ॥ ७॥ वानियतवसस्सिय पाणित नसि धीरपुरिसाणं । होति सनोबसमेणं लदी तेसि इमाऽऽहंसु ॥८॥माएज पडसहसंधारेजबसोनु सागरा सो। जो एरिस नदीए सो पाणिपडिग्गही होति ॥९॥ अम्भिनर अतिसेसो इमो उनेसि समासयो भणितो । उदहीवित अपसोभा सूरोड्य नेयसा जुना ॥ २२४०॥ अबावणसरीरा वेगंधा ण होनि से सरीरस्म । खणमविण र कच्छ वेसि परिकम्म पविय कुरति॥१॥पाणिपदिग्गदिया तृ एरिसया पियमसो मुतत्रा। अतिसेसे वोच्छामि अण्णेवि बिसेसतो तेसि ॥२॥ दुनिहो तेसऽनिसेसो गाणातिसयो नहेब सारीरो। णाणाविसयो ओही मगपजव तदुभयं चेष ॥३॥ अहवाऽऽभिणियोही सुतणाणं व गाणअतिसेसा। तिवली अभिषणायचो एसो सारीरमनिसेसो ॥४॥ रतहरणं मुहपोनी जहणमुक्मरण पाणिपत्तरस । उकोर्स कम्पतियं सोविय एस पंचविहो ॥५॥ पडिगहचारि जहष्णो गचहा उकोस बारसरिकप्पो । तेसि एवाणि पिय अतिरंगे पायणिजागो ॥६॥ रुदणह गयणमुंडो दुविही उवही जहण्याओ तेति। एसो लिंगो तेसि पित्राचारण गेतको।७॥ रतहरणं मुहपोती संखेवेगं तु विह उपही तुपापात विगतलिंगे अरिसासुबहोति कहिपहो ॥ ८॥ सत्य पडिग्गहम्मी रतहरणं चेच होति मुहपोली। एसो तुणपत्रिकापो उवही पत्तेयबुदाणं ॥९॥ एगो नित्यपराणं गिफ्लममाणाण होति उबही तु। तेण पर णिस्वही न जावलीचाए विश्वगरा ॥ २२५० ।। एसा जिगप्पठिती ठाणासुग्णस्थया समक्खाता । वित्थरयो पुण या जह भणितं मासयपम्मि ॥१॥ अहुणा धेरथितीत साविय भणितात पुषमेच नावारमसुषणत्यमियं जप संपतो बोचा ॥२॥ संजमकरणुजोया निष्कायम माणसणचरिले । बीहो याबदवासी बसही सेहि य विमका ॥2॥ दोहोनि वि) बुहावासो घेरा णतरति जाहे कातुं जे। अम्भुजयमरणं वा अहबा अम्भुजयविहारं ॥४॥ दीहं यजाउग(जर) तू, बुढापास नयो बसे। उमामाचीहि दोसेहि. विष्पमुकाए वसहीए ॥५॥मो जिणकापठितिजा मेरा एस पग्णिता देवा। एसातु दुपदसा होति ठिती बेरकप्पम्मि ॥६पदंती उत्सगो अपवाओ चेन होनि दोपणेते। एनेहि होति जुनो णियमा खलु धेरकप्पोन ॥ बाओ जाय ठिती उस्सग्गऽववाइयं करेमागो। अबचाए उस्स आसायण दाहसंसारो ॥८॥ अह-उस्समा अपवायं प्रायरमाणो विराहओ होति। जापाए पण पने उससम्माणियो नहो॥ कह होनी भनियको ? संपवणचितिजुनो समम्मोन एरिसतो अपवाए उस्सग्गाणिसेवजो सदा ॥२२६०॥ इरो विहे असम स्थो जेण परिसहे सहित वितिसंवतरित एमनरेण यसो.हीणो॥१॥ इति सामाइयमादी छवित कापदिती समक्खाया। पिरियं दार अहणा णमो वोच्छ समासेणं ॥२॥ परिणनगीनाथान पिपासच्या अपरिगया होनिा कदजोगी कवजोगी बनुत्थमादीहि माया ॥2॥ अफहजोगा जोगाविय चतस्थादरीहि होति णाया। चितिसंपणारीरिमाणा होति माया चिनिसंपवर्णन एमयरजुया उहानि अतरा 3 अहबा दोहि विना अतरगरिसा मुणवत्रा ॥५॥ जो जह सनो बहतराणीच नस्साहियपि देजाहि। हीणतरे हीणय मोसेजर सत्रहीपस्स ।। मू: ७२ ॥६॥ कप्पद्वियमातीणं पुरिसाणं जाच उभयहा जनरा। जो जह सना उभये तस्स नहा होति दाय ॥ ७॥ बहुतागुणसमगीन चितिसंपतगादि जो तु संपण्णी। परिणय कहजोगीचा अहवाविवेज उभयतरो॥८॥ एषगुणसमम्मम्मतु जीयममा अहियापि देजाहि। हीणस्स तु हीणतरं मुंचेजसबहीणम्स ॥९॥ एस्थ पुण बहुतरा मिक्खुमोसि अकयकरमाणभिगया या जतेण जीतमममनतमचिगतिमादीयं । म०७३ ॥२२७० ॥ एवं इयम्मि जीए बहुतस्या मिपणो अपनी ता अक. १०५४ जीनकल्पमाप्य - मुनि दीपरमसागर [७१] ~48~ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [७३] --- --------- भाष्यं [२२७१] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [७३] दीप अनुक्रम यकरणा उजे तु अणभिगया चेच णायवा ॥१॥ चस्सदेण थिराधिर गहिया तू एल्थ न समासेणं। जंतयचिहीकमेणं जीयाभिमएण देजाहि ॥२॥ कतकरण अकयकरणा कयकरणा गच्छवासि इयरे या जकरकरणात णियमा णाया गच्छवासी तु ॥३॥ ते अमिगत अणमिगता अणभिगवा चिरथिराव होजाहि । कतअभिगत जे सेवे अणभिगते अस्थिरे इच्छा ॥४॥ अहया मिरपेक्खियरा दुबिहा पुरिसा समासतो हॉनि। णिवेक्यो जिणमादी ते णियमा होति कतकरणा ॥५॥ सायेक्ला हॉनि निहा आयरिय उबम भिक्खुणो येष। कत. | करणमकतकरणा मायरिया जमाया ॥६॥ भिक्खू गीयाऽगीया गीयत्य विराऽथिरा य बोदशा। कतकरण अकतकरणा एकका होन्ति ते दुविड़ा ॥ ७॥ अग्गीयापि विराऽथिर कयाऽकया र होति एकेकाकतकरण अकतकरणा कैरिसया होति गुणसु इमे ॥८॥छवाहमाइएहिं कतकरणा ते तु उभयपरियाए। अभिगत कतकरणसं जजोगनवारिहा कवी ॥९॥ मिरवक्ता एमपिहा सापेक्साणं तु किं णिमिण । निरिहो भेदो तु कतो आयरियादी ? इमं सुणसु ॥२२८० ॥ भण्णा जुवरायादी पत्युविससेण दंडों जह सोए। तह बत्यु- 1 विसेसेणं आयरियादीण आरुवणा ॥१॥ आयरिषउपज्झाया दोरिणवि नियमेण होति गीयत्या। गीयत्थमगीयस्था भिक्खू पुण हॉनि णातथा ॥२॥ कारणमकारणं वा जयणाईजयणा व नवजीयत्थे। एनेण कारणेणं आवरियादी तिविह भेदो ॥३॥कजाऽकज जयाजय अविजाणतोऽगीयो य ज सेवे। मो होति तस्स इप्पो गीते दप्पाजते दोसा ॥४॥ पिसिद्धा आवनी परिमं सवेसि तेण सावेवे । चरिमं चिय कयकरणे आयरिए अकए अणवहो ॥५॥कतकरणउबजमाए अणवहो होति मूलमकयमि। मिक्यू गीयचिरम्मी कनकरणे मूलमेव भवे ॥६॥अकयाथिरम्मी छेदो अस्थिरकवकरणे होनि सो चेन । अस्थिरकते उ उमारू अगीतपिरफरणे वे या अग्गीनअधिरे अकते छलहुगा होति तू मुणेतवा। अगीय अधिरकयकरण पछाबह चउगुरु जकने ॥८॥ एसादेसो एको जयमण्णो वितियजो तु आदेसो। चरिमं चिय आवण कतकरणगुरुम्मि अणवठ्ठो ॥९॥ अकतकरणश्मि मूल मुनमुक्झाए होति कतकरणे। अकतकरणम्मि छेदो इव णेयं अनुकतीए ॥२२९० ॥ एमेच य अणचट्ट आवरणे हॉति दोणि आदेखा। णिरवेक्यो ण मणिएन्य जं दोषिण ग होति । नसेने ॥१॥ अहणा मूलावष्णो सम्जे मूलत होति णिरवेक्से । मूलं चेच गुरुम्सवि कतकरणे अकतें छेदो तु॥२॥ कतकरणउपमाए दे सकतम्मि होन्ति कमाया। इय अढो सीए णयं अयमणों आएसो॥३॥ सापेक्वानि व काउं गुरुस्त कदजोगियो भवे छेदो। अक्तकरणम्मि उम्मुगुक कतकरण उचज उमगुरुगा ॥ ४॥ जकने उहाहुगा तू इय अहदोबनीए त मानन। अहुणा उम्गुको तू आदर ठाइ गुरुभिणे ॥५॥ गाड्याढत्नम्मी ठायति लहुए तु भिष्णमासम्मि। चतुगुरुादसम्मी अमम्मी ठार गुरुबीसे ॥६॥ चतुलए चाबीसाए गुरुमास ठानि पण्णरसहि नलिनुए लहुपण्णरसे गुरुभिण्णे तानि गुरुदसहिं ।। आ लहुभिण्ने दसलए गुरुवीसा अंने ठाति गुरुषणए। लीसा आउन अनम्मी ठाति बहुपणएR ॥८॥ पग्णरसहि मुस्एहि अंतम्मी अहमम्मि ठायतित। पण्गरसहिं लहएहिं अंतम्मी ठाति उहम्मि ॥९॥ वसगुगए आदनं अंतम्मी ठायती पतुत्यम्मि। दसलहुए आढन ठावति नु अंने आयामे ॥ २३०० ॥ गुरुपणए आदनं एकासणयम्मि अंते ठायता लहुपणए जादत्त अंतम्मी ठाति पुरिमड्डे ॥१॥ अहमभनाऽऽद्धनं अंतम्मी ठायई अणिव्यिगनी।। जतविहीपथारो समासतो एसमक्खातो ॥२॥ एवं तु अजयणाए साविक्खाणं तु होति पच्छितं । अह गीयत्यो सबै कारण जनणाएं नो मुद्दो ॥३॥ एवं तु कारणम्मी जनणासेपिस्स पणिय दाग। अहवापि इस अणं आयरियादी जहाकमसो ॥४॥ आवरिषउवमाए कतकरणे अकतकरण दुनिहाता निफ्युग्मि अभिगते या अणभिगते घेष दुविहो तु ५॥ अभिगने का अकते या अभिगते विरतन अचिर या चिरे कतकरणे अकते अविर काकरणमकए य॥६॥ एले सम्बेऽवेगं आपत्ती पंचराइगाऽऽवण्या। न पण अविसिटुं पउत्थमादीहिं विष्णेयं ॥ ७॥ आतरिए कसकरणे त चिय पणगं तु होति दात। अकनकरणे पडत्यकयकरने” उनको न च ॥८॥ अयम्मी आया भिक्सम्मी अभिगतमि कनकरणे। आयाम दायां अकयकरणे उ भनेक ॥९॥ भिक्खुम्मी अभिगते विरकयकरणे य एमभनं तु। अयम्मी पुरिम अणभिगए अन्थिरे कतम्मि ॥२३१०॥ पुरि मइढो थिय णियमा अस्थिरजकपम्मि होति णिप्रिगति। अहवाऽभिगय अधिरे इच्छाएतं च अण्णं वा ॥१॥ एमेव य दसरायं सो आवणमेगमावलिा कलकरणे आपरिए दसराय चेव दाय॥२॥ अकयकरणम्मि पनगं कतकरणे पणगमेवमाए। अस्तकरणे चउत्थं एवं तु अहदकनीए ॥३॥नामेया कमेच जाय अंतरिम होति पुरिमड़ई। इय पण्णरसावरदं ठायद एकासणगमते ॥४॥ पीसारवं डायति आयामे मिग्णमासमनहे। मासारखं पणगे दुमाल दसराएं ठायद तु ॥५॥ मासे पण्णरसे अनुमासे डानि बीसरातम्मि। पणमाले पणुवीसे सम्मासे मासिए ठाति ॥६॥ छेदो दौमासीए मूले नेमासिबम्मि ठायति तु। अणनद्वे चतुमासे पारंचिहए तु पणमासे ॥ ७॥ एए मणिना नहुगा साधेऽपि तवारिहा समासेणं । एमेव य गुम्नाची गेया अहदकनीए ॥८. एमेच य मीसा वा अडकतीएं होन्ति तथा । एमेव पंचपंचहि मासादी सातिरंगादी ॥९॥जा उम्मासा या तत्ववि उम्पाय वह १०५५जीनकन्यभाष्य - सुनिटीपरमासागर [७३] ~ 49~ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [७३...] ------ --------- भाष्यं [२३२०] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [७३] दीप अगुम्पाया। मीसाविजणेतमा अलोकतीएं सत्रस्थ ॥२३२०॥ अहवा वा गिविगती पुरिमेकासण तहेब आया। सत्तो पाउत्थ पणर्ग दस पाकर पीस पणुधीसा ॥१॥ मासोलह गुरु चतु उचलह गुरु पर मल अणमहो। पारचिए घनत्तो पणवादीहासण नहेच ॥२॥ लहगा मीसगाविय तहेष एस्थपिहोलिणायाएवं एवं बीए होति विष्णेयं ॥३॥ एमेच य समणीर्ण गवरं दुगवजित तुकाता । अणबही पारंची एयदुर्ग त्यि समणीणं ॥४॥ अहवा पुरिसा बुनिहा समासतो होन्तिमे उणालया। एमबिहारी व तहा गणपदवि-8 हारिणी चेष ॥५॥ गच्छा हिणिग्गया जे परिमापटितणया य जिगकप्पी। यावि सयंदा इत एमविहारिणो निविहा ॥ ६॥ ते नियमप्पमत्ता जनि आपने कहंचि कम्मुदया। नालणमेव तुने पवेति णियमायसक्सी वा॥७॥ संघयणधितिसममा सत्ताहिद्वियमहन्तजोगधरा । सुबटुंपिआवष्णा वहन्ति मिरगुग्गहं सर्च ॥८॥ आलोयणोषयुत्ता ते आलोयनाए सुनमंति। तेसि जानु मूलं करेन्ति सतमेव सुजाति॥९॥ अणिगृहियवतविरिया जहवादीकारया य ते धीरा। उत्तमसदसमग्णागया य सुनिने पियमा ॥ २३३०॥ गणपडिबदा दुबिहा जिणपडिकवी या हॉति राय। जिणपहिरूनी दुषिहा विमुदपरिहारहालंदी ॥१॥ ते णिचमप्यमत्ता जति आवजे कहंचि कम्मुदया। तक्खनमेवरतं पट्टवेन्ति कप्पद्वियसगासे ॥२॥ संपवणचिनिसममा सत्ताहिड्डियमहंतजोगधरा । सुचपि आपणा वहति णिरणुग्गहं धीरा ॥३॥ अङ्गविहा पहचणा तसि आलोषणावि मूलना। पडत धीरा सुज्झनि विसुज्मचारिला ॥४॥रावि विसद्धरा तेमुचि जनि कोइ किंचि आवजे। नक्सणमेच हुने पवेति णियमा गुरुमगासे ॥५॥ एत्य य पडवर्ण पति आयरिओ पिहिमिगं अजाणतो। लंह य अपाणं पिच सीसं ण सोहेति ॥६॥ पुरिसेति गतं दार इमं तु पडिसेषणं पपक्वामि। सा पुण चतुहा सेवण आउहियमादिमासु ॥७॥ आउहियाय पादपप्पमायकप्पेहि वा गिसेविजा। द खेल कालं भावं या सेवओ पुरिसो।मू-७४॥८॥ आउहिया उपेचा दप्पो पुण होति वग्गणादीओ। केवपादि पमाओ अहव कसायाविओ| ओ९॥ कसाय चिकहा चियडे इदिय गिर पमाप पंचविहो। एस पमायो भणितो कप्पं तु इम पवाखामि ॥२३४०॥ गीयत्यो कहजोगी उपउत्तो जयणजुत्तों सेबेजा। गाहाप्रापच्छदसत दणमो उ समासतो वोच्छं ॥ १॥ बच्चं आहारादी खेतं अदाणमादि णातच्च । कालो ओमादीओ हागिताणादि भावो त ॥२॥ जंजीयवागमन एवं पातं पमापसहि-18 यस्सा एनो बिय ठानतरमेग बढेज परयो । मू. ७५॥३॥ जं जीतदाण भणियं गिबीतियमादि अहम अंते। ततियपडिसेषगाए पमायसहियरस एवं न॥४॥प्पपडिसेपणाए पुरिमइदादी न होनि दायाला असे दस दिजा आउहीए उबोच्छामि ॥५॥ आउट्टियाए टागंतरं व सद्वाणमेव वा दिजाकियेण परिकम तमयमा रिणि िम. ७६॥६॥ आउहियाचराहे एकासनमादि अंत पारसमं । पाणनिपायवराहे सहाण होति मूलं तु ॥७॥ कप्पेग उ सेवाए तह मुदो अब मिष्ठकारं तु । अहया नदुभयमुनं आलोयपरिकमाहिनि॥८॥ आलोयणकालम्मिपि संकसविसोहि भावनो णात होणवा अहिय वा नम्म वापि देशाहिम.७७॥९॥ आलोयणकामय गृहति आमा विजती। किति। सो सकिलिङ्कचित्ती तस्सऽहित दिज ऊर्ण वा ॥२३५०॥ जो पुण आलोएन्तो काले संगमुरगतो जो उ। जिंदणगरहादीहि विमुदचिलो तु नस्सऽपं ॥१॥ जो पुण आयोएन्नो णवि गृहनि गवि य दिए जोतु। सो मज्झिमपरिणामो तस्स उ देजाहि तम्मनं ॥२॥ इति दवादिषहणे गुरुसेवाए य बहुवर देजा। हीमनरे होणारे होणना जाप झोसोनि ७ ८॥३॥ इति एस दस सेने काले मावेस बहूगुणेमू तु । गुरुसेवा तु पहाणा एतेसु बहुन दिजा ॥४॥हीगतरे होणतरंतिदेज शादिमादिहीणेहिं । नह नह हीण देजा मोEसेशप सबहीणस्स ॥५॥शोसिजति सुपपिहुजीएणष्ण तयारिह रहयो । वेयापचकारा प दिजति साणुग्गहतरं का ॥ मू०७९४६ ॥ सोसण खवणा मुंग एगहा ने मुगए। कम्स जणव तुबहते जह पद्दपिए उ उमासे ॥ ७॥ पंचदिणेहि गएहिं पुगरवि जा सो उ अण्णमावजे । तो से तं नहिं उम्भति एवं प्रपणात तरस भो॥८॥ यावच कोतो जति आरजति किषि अण्णा जापतिल से दिजतिजगित्थरली तु सो बोई॥९॥ काल ठावित विक्से पिस्थिपणे त काहिती सीता एयवारिह अमित अरणा दारिह पोछ । २३६ नगरिजीनवास प असमत्यो तवमसरहन्तो पावसान जो ण दम्मति अतिपरिणामप्यसंगी यम. सुबहतरगुणसी रानिय पसजमालो । या पासत्यादी जोऽविध जतीण पहिलपिओ बहुसो ॥ ८१॥२॥ उकोर्स नवभूमी समतीजो साबसमचरणी या पणमादीले पापतिजा पनि परिवाओ।म.८२॥३॥ नवनिओ देह न अहं समयोति गपिओ एस। नपत्रसमत्व गिलागो बालादी अब असमत्यो ॥४॥ जो 3 ण सदहति तयं अहवावी जो नरेश गरि दम्मे। अतिपरिणामो जो हा पुणो पुणो सेपति पसंगी ॥५॥ उत्तरगुण बहुगा न पिक्सिोहादिगा उगविहा । भंसति विणासेती पुणो पुणो जो तु ताई तु ॥६॥ छेदावलीनी वा परेनि पसजनी य जो तेस। jा अहणा पासस्थादी आदीसहेणिमासु ॥ ७॥ पासत्योसम्णो वा कुसील संसन अहर गीजो बा । याचबकराइण जतीण पडितप्पिओ बहसो ॥८॥ उकोसा नवभूमी आदिजिणियस होति परिस तु। ममिमगाण जिणाण अङ्ग उमासा भवे भूमी।९॥ चरिमस्स जिणिदस्सा उकोसा भूमि होति उम्पासा। एवं तू उकास समतीनो चरणसेसोय ॥२३७०॥ (२६४) -०५६ जीनकन्यभायं - भनिदीवरसागर अनुक्रम [७३] F अत्र प्रतिसेवना एवं छेद-प्रायश्चित् वर्णयेते ~50~ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [८२] दीप अनुक्रम [८२] "जीतकल्प” छेदसूत्र-५/१ (मूलं) अत्र मूलं एवं पाराञ्चित प्रायश्चित् वर्णयेते - मूलं [८२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३८/१], छेदसूत्र - • एवं जदिद्वाणं तवगनियमादियाण सकेसि छेदं पणगादीयं देखा जा धरति परियाओं ॥ १॥ आउट्टियाय पंचिदिवपाते मेहुणे य दप्पेणं सेसेसुकोसामिक्वसेवणादीसुतीपि ॥ मू०] ८३ ॥ २ ॥ आउट्टि उवेचा तू पंचिदिवति मिडुण दप्पेणं सेस वय मुसाऽदिवं परिमाहो चेव णादवो ॥ ३ ॥ एतेयुकोसाणि परिसेवइऽभिक्लणं तु मिच्छा तु । एतेसिससि मूलं तू होति दातयं ॥ ४ ॥ तवगवियादिए व महत्तरदोसचतियरगएवं दंसणचरितवन्ते चियत्तकिचे व सेहे य ॥ मृ० ८४ ॥ ५ ॥ नवगद्दियमादीया जावइपरिणाम अतिपसंगिन्ति । एन जाणं मूलं तू होतात ॥ ६ ॥ मूलगुण उत्तरगुणे बहुविह बहुसो यस भजति या पतिकरमेयं होती एरिसजुलस्त मूलं तु ॥ ७ ॥ णिच्छयनयस्स चरणायविषाये णाणदंसणोषि यवहारस्स तु चरणे यम्मि भयणा तु सेसाणं ॥ ८ ॥ चतं जेण दरिसणं चारितं वादि सो तु पातको चलकियो देसी चियन्नकियो मुणेतो ॥९॥ अवा-संजम सफल कि जेण चत्तं स चलकियो तु सेहो अणुवट्टविओो मूलं एसि सोसि ॥ २३८० ॥ अचतोसणे व परलिंगदुवे व मूलकम्मे व मिक्लुम्मि व विहिततवेऽचद्वपारंचियं पत्ते ॥ मू ८५ ॥ १ ॥ पाय सविग्गेहि जप्पभिति तु बाएं बिहरियो सो मणिनाऽतयोसण्णो ॥ २ ॥ गिहिलिंग अण्णउत्थिय परलिंगदुबे कुणति दप्पेणं सम्भादाणे साडण दुहहिं मूलकम्मं तु ॥ ३ ॥ क्विणसीला भिक्खु विहिततवं उपणयं तु पातकं तवजण उवणय पारंचितवं च गातां ॥४॥ अतियारसेवणाए पत्ते एवं तु होति दुविहं च (ह तर्व)। एसिसि दानवं होति मूलं तु ॥ ५ ॥ देणापरियाणवपारंचियावसाय मूलं मूलात्तिसु बहुसोय पसलणे भणिच ॥ मू० ८६ ॥ ६ ॥ जिते परिपाए जम्स तु जिष्णो विस्वसेस तु तच पूढे पारंचितवाचसा ॥ॐ मूलावत्ति एवं पुणो पुणो सजए तु जो सगणे (मणो)। सर्व्वसुवि एतेसुं मूलं तू होति दाशं ॥ ८॥ अवटुप्पो दुषि आसायण तय होति पडिलेवी आसायणअणव समासयोऽहं इमं वोच्छं ॥ ९ ॥ तित्थकर संघ युवं आयरियं गणहरं महिद्दीयं एते आसाएन्ते पच्छिते मग्गणा इणमो ॥२३९०॥ पदम बिनि देश सच्चे णवमं सेसेसु चउगुरु देसे पटिसेवणण अणा उ इमं पक्क्वामि ॥१॥ उको बहुसो वा पउचितो तु तेणियं कुणति पहरति जो य सपकरखे गिरवेक्खो पोरपरिणामो ॥ ०८७॥२॥ उको तु विसिद्धं पुणो पुणो एवं होति बहुगं तु कोहादी व अतीव तु पट्टचित्तो मुणेतव्या ॥ ३ ॥ पडिलेवणणवट्टो होती तिविहो इमो समासेणं साहम्मिय धम्मियते तह इत्यताले य ॥ ४॥ साहम्मितेण दुहिं सचितं तह व होति अवित्तं अवित्तोहि भत्ते सचिन सेहावहारो तु ॥ ५ ॥ साहम्मिउवहिहरणं वाचारण [झावणाय पत्यवणा । तं पुण हमसेहो हरेज अदिङ दि वा ॥ ६ ॥ सेहोति जगीयत्यो जो या गीतो अणिदिसंपण्णो। उवही पुण पत्यादी अपरिह पत्थरो तिविहो ॥ ७ ॥ अपरिग्गहितो तहियं साहम्मी मोनू पवसितो जस्स ओहरमाणे सोही होति इमो खेतनिष्कण्णी ॥ ८ ॥ अण्णोवस्त्रयवाहि णिवेस वाटे व गाममुजाणे सीमाए जा ने सत्यि अन्नो हिया वा ॥ ९ ॥ एते तेति मासल आइ काउ जा छेदो अड्डोती यं अदिसा भवे सोही ॥ २४०० ॥ मासगुरुगादि दिडे मूलं सहस्स एयणिद्वाई अभिसेयाऽऽयरियाणं एकेक ठाण पडे ॥ १॥ एवं तुवस्सयाओ साम्मीणुवमवहस्तस्स बावारिए इदाणि बोच्छे सयमेव हन्ते ॥ २॥ वावारिया गुरूहिंपच आह तिविह तत्तचितुमय अन्तट्ठी ॥ ३ ॥ लहुओ अनहते जति पुर्ण आणेत्तु गुरुण न विवेदे तो होती तुलगा अवटुप्पो व आदेसा ॥४॥ यावारियणीयं अण्णो पुण साव णिमन्तेन्ते । पडिसिदाऽऽयरियेणं दणं तस्य तृणं ॥ ५॥ बेती शामिय उपही अह गुरूहि पेसिओ देह तो दिष्णो वही किह पुण सड़देहिं सो पातो ? ॥ ६ ॥ सो तं धेनू मतो गवरं ते आगता गुरुसगासं पुच्छति व ते सड्ढा उचहि पत्तो वा पहुचती ॥ ७ ॥ केवइयं वा दहढं? तो बिन्ति ण उज्झए उपहित्ति केण व गीतो उवही ? इति सोचा पत्तिमम्पत्ति ॥ ८ ॥ लहुगा अणुग्गहम्मी गुरुगा अप्पत्तिए मुणेच्या मूलं च नेणस बोच्छेव पसजणा सेसे ॥ ९ ॥ एवं नाऽडते अह सब सामितो भने उनी पेसविजय गुरूहिं लई नहि अंतरा जो तु ॥ २४१० लडे अन्नती चलगा अह गुरुण ण गिविंदे तो चतुगुरुया वहियं अणवटुप्पो व आदेसा ॥ १ ॥ एवं सामणहेतुं अवहारो अह इयाणि पत्थ लिए आयरियादिण केणति आयरियाणं तु असि ॥ २॥ उकोसो सणजोगो पहिमाहो अन्तरा नहीं लड़ो। अनईने लगा गुरुगाऽदनेऽणवट्टो वा ॥ ३ ॥ एवं ता उबहिम्मी जणा भत्तमिच्छामि जति पविसेऽविडो पण तो भवे लगा ॥ ४॥ अज अहं संदिट्टो पुट्ठोऽपुडो व साहए एवं पाहुणानं च पलोहति तो विनयं ॥ ५ ॥ मायाफिरणं तू एवं भणतस् होति मासगुरु वा गं बालो नदि मास ६ कह पुण हवेज गायं साहूहि तह य तेहि सहहिं जह खलु पवि जणवणा असंदिट्टो ? ॥ ७ ॥ गुरुसंपाड़म्मि गए भगति गुरुजोगा नीयमेत्ताहे णत्थि सगुग्गहम्मी लगा अप्पलिए गुरुगा ॥ ८ ॥ वच्छेद गुरु गुरुगाला लगाए। गुरुगा बालबुड्ढे से महोदरे गो ॥ ९ ॥ भत्तम्मि भणियमेतं तेण भणियं च मेयमचित्ते अरुणा सचिनम्मी से सेहीय बोच्छामि ॥ २४२० ॥ तं पुणनि वा अभिहारेनो १०५७ जीतकल्पाप्यं मुनि दीपनसागर आष्यं [२३७१] [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ~ 51~ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [८७] दीप अनुक्रम [ch] "जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ - • (मूलं) मूलं [२७] आष्यं [२३७१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं आसियाना भिक्खादिपरिट्टे या गाम बहि ठमेतु जितो ॥ १ ॥ तं पुण सन्नादिमतो अदाणीजो व कोति पासेज्जा दिय पुढो कोनी भणे अहं पतिकाम ॥ २ ॥ ससहातो असहानोति पुच्छितो भणति ताहे ससहायो। सो कल्प? मज्झ को छाय पिवासरस वा अडति ॥ ३ ॥ तो बेति अणपाणं इम मुंजकंप दाए दो तु धम्मं पुति मुद्धो 'असदभावो ॥ ४ ॥ सदयाए पुन दोसो म तस्स जहन कहते। आसीआहे सोहि इमेहिं तु ठाणेहिं ॥ ५ ॥ मते पणवण णिग्रहणाय बाबार अपणा चैव पत्थवण स हरणे सेहे अङ्गन्त वत्ते य ॥ ६ ॥ गुरु तुल चतुगुरु म्रुदत्ते बसे मिक्सुण मुलं दुर्ग तु अभिसे आयरिए ॥ ७॥ एवं ता जो जिति अहिरेन्तो गुणोवि जो जाति सोऽयि सब बुझे मगाइ वचाममुगमूलं ॥ ८॥ पापणवणा भेद होति एत्यपि सेसा विगुणानी सनि पथा न संति इहं ॥ ९॥ एमेच इवीए णितऽभिघारयति एमेव वनाएँ गमो दोस्रो य इमे हसा ||२४३०॥ जाणा सारियत मोहीयामत्तं च साहम्मियतेष्णम्मी पमत्तउलणाऽहिकरणं च ॥ १ ॥ चि तियपर्योच्छेदे गए कालियाओगे य एतेहिं कारणेहिं कप्पति सेवा तु ॥ २ ॥ एवं तु सो अवहितो जा जातो सयं तु पावयणी कारणजाए व जया होनाही अवहितो तेष ॥ ३ ॥ सोनं चि धरति गणं कालम गुरुम् विहारन्ते जायेको फिल्मो ताहे से अप्पणी इच्छा ॥४॥ जह हरिए निकाले ताई पुरिमाण र सो जाति अह अम् जयमरणं पण गुरुविहारं वा ॥ ५॥ अम्मि अविशते आयरियपदान्तमेव गणं धारेति जान अण्णो निम्मातो तम् गम ॥ ६ ॥ सचितणमेयं साम्मीगं तु एवं मखानं भवणं दोसा या परधमियते वोच्छामि ॥ ७ ॥ परधान बालिंगा तात्या य तेति तिषिद्धं लेणं आहारे उपछि सचिते ॥ ८॥ ममादीसंख डिसेलिंग का ए दो आभोग लगा गुरुगा उसमे होति ॥ ९॥ रणिमित्तं चेत्र अजिवंता एते एत्य पहया अनिदिष्णदाणमा सपनयमहीला दुरयत्ति ।। २४४० ।। गियासेवि परागा पूर्व सु एते अदिकलाणा गलओ पर बलिजो एवेसिं सत्युषा चैव ॥ १ ॥ एवं ता जाहारे उपहवेण पुणो दई होजा जह कोदि मिष्ठुगा उस मोनू उरण ॥ २ ॥ भिक्खादितोतंतू जति गिति चतुभये तत्थ कि हार पच्छक तह व मिसिए ॥ ३ ॥ गिव्ह गुरुमा उम्मास कट्टण छेदो होनि वाम मूलं मिसिदा चरिमं ॥ ४॥ जन्हा एते दोसा तम्हा अनिदित्त उवहीनेष्णं एवं एसो बच्छामि ते ॥५॥ सु यानि छिन् गुरुगा। वत्तम्मि गरि पुच्छा तं यामं च मातृगं ॥ ६ ॥ लिंगपचिद्वामेवं एमेव निद्दा अदिष्ण निहियाणं गहमादीया दोसा सनिलेसतरा भने तेसु ॥ ७ ॥ आहारे पिडादी विक्षिय या गती दिहाविय ता कुलपरंपरा मणा ॥ ८॥ तहियं होंति पलहू अणमप्पी व होति आदेसा एमेव य उपद्विम्मिवि सुनी कथमादीया ॥ ९ ॥ [पीएहि तु अविदिष्णं पत्त दिक्लेति अपरिगम (सु) तो कम्पति तु जदो सदोहि ॥ २४५० ॥ अपरिग्गद् भारी पुण ण भवति तो सास कम्पि साथिया कपमा सुट्टमाया वा ॥ १॥ चितियपदंपाऽऽहारे दाणोमाइएको उहीवित्तिमादिसु बगाडे गणमविदिष्ये ॥ २ ॥ सीता पूर्व कला व गेष्हति तन्थ अइलेन्ते बल पुर्ण उरणची ताहे गिति ॥ ३ ॥ नादे परलिंगीणचि जाति व पुत्रं अदते उम्मम्म गारत्वीय एवं आगाडे होति गहणं तु ॥ ४ ॥ आहारे उप वितियपदे महणमेतमालायं एत्तो सचित्तग्रहणं बोच्छामि अदिष्ण वितिय ॥५॥ पाऊण योच्छेयं पुचगए कालिजाओगे । उक्युजिक पुर्व होहित जुगप्पाणन्ति ॥ ६ ॥ नाहे खुद्द खुड्डी हरेज मिहिअण्णतित्थियाणं या साम्मिणधम्मिय एवं तेष्णं समस्वातं ॥ ७॥ गाहापुश्दस् तु इति एसा अभिहिता दई नेपा गासुतं इमाऽऽहं ॥ ८॥ अह एसो नोच्छामो हत्यामा कमेणं तु किं पुन इत्यायालं ? ति इणमा निसामेहि ॥ ९॥ इत्या अस्थायाणे व होनि बोडवे। एते गाण बच्छामि नापुत्रीए ॥ २४६० ॥ इत्येतालण हत्यायालं तगं मुणेतारं तहिये बति अ दण्डो लोइय लोउत्तरो इणमी ॥ १ ॥ उमिम्मिय गुरुओ डंडो पडियम होति मता । एवं तु लोइयाणं लोउत्तरियं अतो वोच्छं ॥ २ ॥ इत्येव पाणवटुप्पो तुहोति उलिये पटियम होनि भया उवणे होति पारंची ॥३॥ वितियपय सुड्ड विषयं गान्ते अव बोहिगादी सावयमयेव चो(चोरे देनाही हत्यताले तु ॥ ४॥ विजयगान खुडे कण्णमोहाचादी सावेतो त्यताल दलाइ सम्माणि रक्तो ॥ ५॥ परपरियापणकरणं चोदेह असायचंधउत्ति तं कह तस्साणुष्णा तुम्मेहिं क्या? इमं गुणसु ॥ ६ ॥ कामं परपरितानो असानहेतु जिहिं पण्णत्तो जायपरहियकरोतु इज इस्सि (दोस) ले सखनु ॥७॥ सिर्फ मेडनिया वाघाने सति लोइया गुरुनो। ते इहलोगफलाणं महुरवियागेस उपमा तु ॥ ८॥ अहवावि रोगितस्सा ओसह चादृहि दिनए । पच्छा साडेतुपी देहहिताएं दिजति से ॥ ९ ॥ इय भवरोगतस्त्राव अणुकूलेगं तु सारणा पुढं पच्छा पतिकूलेपिरोयहि काया १०५८ जार्य - मुनि दीपरजसागर ~ 52~ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [८७] ----- -------- भाष्यं [२४७१] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [4/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [८७] दीप अनुक्रम ॥२५७० ॥ इहपरलोगे य फार्म विणीतविषयो अणुत्तरं लभति। संचिम्गाइगुणेहि इमेहि जुत्तो महाभागी ॥१॥ संचिगो महवित्री अमुदी अणुयत्तओ विसेसरण। उनमपरिसंतो इण्डियमय लभइ साह॥२॥चोहिमयसावयादिसु गणस्स गणिणो व अचए पते। इच्छंति हत्यपाल कालाधरं प सज वा ॥३॥ एरिसए जागाढे बोहियमावीय जीयसदहे। जं. जस्स तु सामत्वं सौ तु ण हाति एवं तु ॥४॥ कुणमाणोषि करणं कवकरणों णेव दोसमम्मेति। अप्पेण पहुँइच्छति विसुद्धमालवणो समणी ॥५॥ आयरियस विणास गच्छे अवावि कुल गणे संघे। पंचिंदियबारमणपि कातुं णित्यारण कुजा ॥६॥ एनं तु करेन्लेणं अपोख्छिनी कया उ नित्यम्मि । जनिवि सरीराचायो तहषिय आराहओ सो उ॥ ॥जोन पुण सइ सामथे विजातिसती अहव सारीरे। एरिसए आगाद हावन्नों विराहयो भणितो ॥८॥ एवं हत्वाचालं हत्वालंब इम मुगेला। दुक्लेणऽभिदुवाणं जे सत्ताणं परितार्ण ॥९॥ असिरे पुरोगरोहे एमादीचइससेसु अभिभूता । संजायपचया खलु अण्णेमु य एवमादीसु ॥२४८०॥ मरणभएणऽभिभूए ते णातुं नहिं बानि भणिया तु। पडिम कार्ड मझे चिह(चिंध)नि मंते परिजयन्तो ॥१॥ एतं हत्वालंब हत्यायाणं अयो परं चोच्छे । जो अत्यं उपाए णिमित्तमादीहिमणा ॥२॥ उल्लेणी उस्स(ओस)गणं दो वणिया पुच्छिऊण आयरि। ववहार वबहती संताहेतसि सा साहे ॥३॥ नस्स य अगिणीपुत्तो भोगहिलासी तु मुंपए लिंग। तो अगुकंपा मणती कि काहिसिन विणऽत्ये?॥४०तो बच से वीए भणाहि अत्वं पपच्छहा ममं । नेणाऽऽर्गतुं भणितो तो सेसि वेति अहएको ॥५॥कतो अस्थो अम्हं! कि सउणी रूपए इहं हगती है। बीजो चमेरि भरेतु निमातो गतुलयाणं तु॥६॥ गिण्ड्स जापइएहि कजन्ति गहित नेण जाबाडो । बिनियम्मि हायणम्मी कि गिण्डामोति ने बेनित ॥ ७॥ भणितो सउणियन्तो वण कहूं वस्य रूत कप्यासे । णहगुलवण्णमादी अंतो जगरस्स ठाहि ॥८॥वितिजओ पतहि भणिओ सबादाणेण गिह तणकहूँ। णगरवाहिता तापप गहिए पर चबासासु ॥९॥ उदए गेहेसु पलिते दहई ततो उतै मगरे। तपकडाण पुजो आच महन्यो त सो जातो ॥२४९०॥ इदमियरस्त सा नाहे सो गंतु भगति आयस्थिं । उच्छाइओ अहो हं किह पणणात समं तुम्भे ॥१॥ कि सउणिया निमित्त हयंति अम्हाति भणनि मिली। होति कबाज नह पुग्णह कई णातुं नयो खामे ॥२॥ एमाविणिभित्तेहि उपाएन्तम्मि अत्थयाण भये। सो एस्सियो पुरिसो अभडेजा जा कयाइ ॥३॥ तस्स सूण बढवणा तम्मिपतम्मि जाच संचिक्रव। एस गिय अगवडो जमणुवठवणा नहि खेत्ते जाणेतूण अण्णाखेनं तस्स उबट्ठापणा तु कायद्यातहि गोगवा सेने कि कारण? भण्णनी गुणम् ॥ ५॥ पुत्रभासा भेसेज किंचि गोरस सिणेह भययो वा । म सहनि परिस्सहपिय गाणे कंटुंबकच्छतो ॥६॥ तेण तु सहितं थाणे गहु देन्ती तस्स भापलिंग तु। देजा व कारणम्मी असियोमादीसु तपिहिति । आयमुपति असहानो सहितं पुट्ठो तु भणति वीसरिय। जहवावि उत्तिमडे देलाही लिंग तत्रदा एवं ता ओसाणे मिहत्य पुण दखभावलिमाई । दोपियानि पनि दिजंती दिजेज व उत्तिमम्मि ॥९॥ एवं अत्यामागे जे पुण सेसा हवंति अणवठ्ठासाहम्मिायम्मियनेणादीने उभयणिजा ॥२५०० ॥ का पुण भयना एवं? आहारे उपहिनेण अभिने। तहगो लहगा गुरुगा अणवठ्ठप्पो व आवेसा ॥१॥ कह पुण बाएसेणं जणबहो होइम णिसामेह। अणुचरमंतो कीरति अहवा उस्सपणदोसो तु ॥२॥ अहवा भिखू पाचति एतेस पदेसु लिविह पच्छिन। णवमं पुण बोद्धव अभिसेगे सूरिणो इसमं ॥३॥ तुम्मिपि अवराहे कुत्रमा बदिजए दोह। पारंचिएपि नवमं अभिसगे गुणस्त पारंची ॥४॥ अहया अभिक्खसेवी अणुवरम पावती गणी णवमं । पाति मूलमेव तु अभिक्लपडिसेविणो सेसा ॥५॥ अत्यादाणे ततितो अणडो खेननओ समक्खातो। मन्डे चेच वसंता णिहिनति अपसेप्ता ॥ ६॥ अहवा-अनिसेओ सकेसु य बहुसो पारंचियावराहेम्। अनवटुप्पावत्तिमु पसलमाणो अणेगासु ॥ मू०८८॥७॥ अभि. सेगो उज्झाओ पुणो पुणो होति बहुससदो ऊ। पारचियापराहे आवजाति सबसदो तु८॥ अगवट्टप्पावती उसेवए गसोनि बहुसोतु। गंतरगाधाए सो अणनहप्पोनि कीरहन ॥९॥ जुन सागरणवई विजति अगबहमेव अभिसेंगे। पारंचियाबराहे पत्ते किह पाचती पवर्म १ ॥२५१० ॥ भण्णति जह गवदसमे आवष्णस्सापि मिममुणी मूर्स। दिशानि नहाs. निसेगे परं पदं होति णवमं तु॥१॥ कीरति अणवहप्पो सो लिंगखेतकालयो नवओ। लिंगेण दश भावे भणियो पशायणाणरिहो ।म०८९॥२॥ अपडिविरयोसम्णो ण भागलिंगा रिहोणबढायो। जो जेण जत्य दूसति पडिसिद्धो तत्थ सो खेले ।मु०९॥३॥ जत्तियमेनं कालं तवसा उजहष्णएण छम्मासा। संवच्छरमुकोस आसानी जो जिणादी मू० ९१.४ास बारस कासा पडिसेवी कारणे तु सनोवि। चोब थोपतरं वा वजा मुधेज वा सर्व ॥ मू०९२॥५॥ पंदतिगाय बंदिजति परिहारतवं सुदूबरं घरति। संवासो से कप्पनि णालपणादीणि सेमाणि ॥ मू०९३॥ ६॥ परपक्स सपकले चाणवि विरयो तेजगादिवोसेहि। अप्पडिविस्यो अहवा हत्थाचालादिसु पएम् ॥७0 ओसामाइ या तू अगुवरया बो सलि. गसहिया का अनबटुप्पा ते काया भावलियोण ॥८॥ कालतों अगवटुप्पो अचउचस्पदोसो जत्तियं कालं । सो अगवट्ठो फीरती जत्तियमेत तयं कालं ॥९॥ तवाणबडो दुविडो १०५५ जीतकम्यभार्थ मुनि दीपरजसागर [८७) PRIMARYtER ~53~ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [९३] दीप अनुक्रम [१३] "जीतकल्प” छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ........... - • आष्यं [२५२०] मूलं [१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं आसायणयाय होति पडिसेबी एक्केकोविय दुविहो जाओ चे उकोसो ॥ २५२०॥ तब जणवडाऽऽसायण जण धम्मास वरिसमुकोर्स के पुण आसाएंगी ? जिणमादी जा महिइडीयं ॥ १ ॥ पटिसेवी अवड़ी जण बरिसं तु बारकोसा कि पुर्ण पडिसेबति तू? तेण्णादीया पदा सच्चे ||२|| कारणमादिपदा तू उवरि बोछि अरुण परिहारं बंदणमादी व पदा समासयों है इमं बोच्च ॥ ३ ॥ परिहरणं परिहारो आपणमादि सहि तु पदेहि सेहादिएव वंदति सो पुणविदतु ॥ ४ ॥ रसगुणतो वो कीरती इम संघणविश्विगमत्तत्यधितीय उपदेया ॥५॥ उवरिमतिगसंचयणो सगुणी केवलं अजय देना से सतयं अगवावि पारंची ॥ ६ ॥ वदपुत्र कती सड्डो ब उग्गमधिनिकपकरणों । परिणामसमम्मीत्तिय अणचसि दायां ॥ ७॥ एवं तु गुणसमयी परिनसेडिं तु गमिष्यं या पोराणियगुणसेटिं फिरवयवं सो तु पूरेति ॥ ८ ॥ सो वंदनि सेहादिवि पराहिततवो जहा जिणो च विहरति बारस परिसेप्पो गणेयेव ॥ ९ ॥ तस्स य परिहास्तवं पवित्र करिगो संघावणभीए आसल असमत्वकरण च ।। २५३० ।। किं कारणमुस्सग्गो ? भणति हाण जाणणाए भयजणगाव तहाचैव ॥ १ ॥ पहिलो अहं ने अणुपरिहारी य एस गीओ ते पुढं परिहारो दिदेो ॥ २एस वर्ष परिवकिंचित मा हा अत्तचिन्तगता वाचतो मे ग कायो ॥ ३ ॥ ताई व परिहरिजति गच्णं सो य परिहरति गच्छं । अपरिहरन्याऽऽरोवण दसहि पएहिं इमेहिं तु ॥ ४ ॥ आलावण पडिपुच्ण परियाबंद मते हण संघाडग मतदान संभुजणे चैव ॥ ५ ॥ जा संघाड़ी नाव तुला तुहोति गच्छस्स लगाय मनदाणे संजण होतऽणुग्याता ॥ ६ ॥ संचाडी तु जागुरुओ मास दस तु पयार्ण भत्तस्स दाम संमुंजणे य परिहारिए गुरुगा ॥ ७॥ फिनिकम्मं च षच्छित परिणा परिपुच्छ देति य गुरु से सोऽबिय गुरुवचिह्नति उदन्तमविच्छिती कहते ॥ ८ ॥ एवं तु वा विधाएँ भयं तु कस्वजे । किह न मए एकेणं णित्थरियो निजी कालो ॥ ९॥ नाहे आसासनी आयरिओ माह एवं सेबीने अणुपरिहारी एस व जया कपडिती एसा ॥ २५४० ॥ किंचिपाड समए समरेाहि हिडिहसी भिपिय अणुपरिहारी तब सदि ॥ १ ॥ एवं भणिओ तु तो आसासति चाहे हि पुण होआसासो ? भगति इणमो णितामेहि ॥ २ ॥ ज कोलि अपटि जति भगति एस हा मतो परता तो मुंचति अंगाई पच्छा मरती व सो ताहे ॥ ३ ॥ जह पुण भणति एवं मा बी एस जाणिया रज् उतारिजसि एवं आवासों से हवति नाई ॥ ४॥ एवं दिवुज्ने राया हो व कासती होना। सोबि जति विषट्टोसिन भए तो ि५॥ अहमतिमा बीराया असमिक्सिए अकले या त्रि किंथि करेली मोहसिन आससति ॥ ६ ॥ एवासासो वसवि होती आता सियरस संतस्स इस पविणो सो ऊ बहर हूँ उस तवोकम्मं ॥ ७ ॥ तो उम्मेण सो जा लामदुसरीरोग नरेद्राणादी काउं] नाहे इमं भणति ॥ ८॥ उद्वेज पिसीजा मिक्स हिंडिज मंडपे कुक्तिवतुमिणी संपा तो कारे ॥ ९ ॥ विषय अणगच्छा पेसेज बंद यात उभयस्कुला करणिज जपणा ॥ २५५ ॥ मच्छिलया गुरुस्स गुरुअणुपरिहारिए समपति अणुपरिहारी परिहारियरस देतेस जपणा तु ॥ १ ॥ सोया करेज सि जगाद परंपरेण एमेव गुरुयो एगानिस्ल व अन्य सीए रेजाहि ॥ २॥ ताह णिन्नियो कुलादिक वनवितो उठावण तस्स नये केवी गिहिंस कानू ॥ ३ ॥ गिमिकाऊ उपवेन्होंतिगुरु आणादिणों व दोसा पाव अहवा इमे दोसे ॥ ४ ॥ एवम जुन परिसाम चम् गुणेन कणा पुणी दिखा ॥५॥ किं न तु मिहिये कि रथ किंतु किंवा परिसा यम्मी से कहिए तम्स ? ॥ ६ ॥ ओभामिओ ण कुञ्छति पुणोषि सो नारिस अनीयार होति भयं लहाण व मिहिए धम्मया चैव ॥ ७॥ नित्यमर पण सुतं जायरिये गणहरं महिड्डीय (दृढाई)। आसन्नी बहुसो आणि पारंबी ॥ ९४ ॥ ८ ॥ हि पुण आसानी वा वयसि केरिस तु अवन्यो ? म पिसामेहि ॥ ९॥ पाटिय उपजीवति किं तिलोहियाणं जनि भगति कीस कीरति मान सिंघमहिला संघपडिए भोग अजून इथनिमिन) अक्सिड देसिया चरिया ।। २५६॥ एवमादीपिडिमा कारमादीयं ॥ १॥ जो परुिणियों में अति कुतो दमादीयं नित्यगरासाणा एसा ॥२॥ संघा सियालतिकादी ॥३॥ यायाने बिय ने व पमाय अप्पमाया य मोक्लाहिगारिया जोतिविज्ञाहिं किंव पुगी ॥४॥ इरिससानगख्या परोवदेसुजया जहा मेखा अनपोसणरया आयरिया जह दिया ॥५॥ पारे देसेन्ति परेसि सतमुदासीमा उपजीवति इदि गीगा मोनिय भणति ॥ ६॥ गणहर एक महिदी महावस्सी व वारिमादी या तित्यगस्पदमसीसा आदिग्गहुणेण गहिता वा ॥ ७ ॥ सा दह देसे सजे सम्मी एगदेसमानीया पनि सबसे सोसि वाचि सो ॥ ८॥ नित्यक संघ या देवाव असणं आसाए परिमं सेसेसुं चतुगुरू देसे ॥ १९ ॥ स वासान्तो पावन पारंचित तु सो ठाणं एवं पुण सचरिती से स य (२६५) १०६ जीनकन्या - ~ 54~ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [९४] दीप अनुक्रम [१४] 4 "जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ - • (मूलं) आष्यं [२५७०] मूलं [१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... ...आगमसूत्र [ ३८ / १ ], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं - -----RAA अचरिती ॥ २५७० ॥ तित्थगरपदमसीसं एकंची सादयंतो पारंची अत्पस्सेय जिनिंदो भयो सुत्तस्स सो जेणं ॥ १॥ आसायणपारंची एमेसो वणितो समासेणं पडिसेवणारंची एत्तो बोच्छं समासेणं ॥२॥ जो व सलिंगे दुडो कसायविसाएहिं रायवहओ य रायग्गमहिसिपडिसेचओ व बहुसो पासो प ॥ ० ९५ ॥ ३ ॥ पडिवणारंची तिथिसो बणिओ तु सुप्तम्मि दुट्टादीहिं पदेहिं समासओ हूँ पक्क्वामि ॥ ४ ॥ दुट्टो य पमन्तो या अन्योन्यसे वापसत्तो उ। एतेसि विभागं तू बोच्छामि जहकमेणेव ॥ ५ ॥ दुषो य होति दु कसायो य विसयो यदुविहो कसायदुडो सपक्लपरपक्वचतुभंगो ॥ ६ ॥ सासवणाले मुहगतए यउनुगच्छसिहरिणी चे एते सपा एसि परूवणा इणमो ॥ ७ ॥ साणा गुरुदय लक्ष्य सहितर कोहो। सामण अनुमसमन्ते गणि उत्तणाहि परिणा ॥८॥ पुच्छंतपणखाए सोचो गंतु कल्प से सरीरं । गुरु पुत्रकहित दाइय पडियरणं दन्तमंजणया ॥ ९ ॥ मुहणंतयमालवण आभियमुको गति गुरुमा कुणि निसी गंगलए लड़ओ व पात्तो ॥ २५८० ॥ सम्मूनियम तो मता दोऽवि अग्णी पुण सितो अत्यमिए गुरूहि अह भणितो ॥ १ ॥ अत्यमियम्मिपि सिकसि गरि तो बड़े रुसितो तुह उक्खणामि अच्छी खामिजतोऽविनवि पसिए ॥ २ ॥ तोषिय गणि गच्छे मतपरिण्णं करेति ने जह पदमो वरि इदं उअच्छीउनि दोकेति ॥ ३ ॥ अबरोधि सिहिरिणीए दिय साइयतो उगिरणा तत्येव तू परिणाण गच्छती गवर अण्णत्य ॥ ४ ॥ जन्हा एते दोसा तम्हा नवि व्हिवयं गुरुणा एगस्सेव तु सवं अन्यायापारसीलस ॥ ५॥ महणम्मि विही इणमो जति गहिया मतगा तु सहि सिमितेन्ताणं अलाहि जन्तमो वेति ॥ ६॥ निबन्धे यो ससि गेव्हएन एगस्स सोलिंपण गेहति बितियाएसँग गहियपि ॥ ७॥ गुरुमत्तिमं जो व मणाणुकुलो, सो गिष्हति णिरसमणिस्सयो या तस्सेव सो येष्वृति रेसिंग घोचो ॥ ८ ॥ सति लामम्मि मेहति इतरेस जाणिवून नियंतिय सावसेस जाणति उवधारभणियं च ॥ ९ ॥ गुरुरियं बालादती मण्डलि जाति जो अण्णायारमत्त गिलाणवतेऽवि ।। २५९० ॥ साणं संस न भई मंडली पहिए। पत्ते गतिं सुम्भ उन्नास तंभ मोनू ॥ १ ॥ पाहुणगडा व तयं परेतु अपि पिचेति विजय विहि अनि इति ग्रहण दोसते ॥२॥ एते सपखा परपक् उदायिमारगादीया परपनसम्म पालकादी मुतथा ॥ ३ ॥ पालको तु पुरोहितो दगपमुहाण जेण पंचसया पुद्धिं विराहिये जंतपीयाविता जतिणो ॥ ४॥ मुनिमुश्यनित्यम्मी बाएण परातिओ स पुर्वि तु खंगरणी ता पावोस जमाव ॥ ५॥ परपखो परपकले रायादी अभिमरा जहां केति परिणया बहुगा भणिता पत्तारि ते ॥ ६ ॥ एतेसि चतुष्पी पच्चित्तमहाविह पत्रक्खामि जे सासवणालादी लिंगविवेगो भये तेसिं ॥ ७॥ जोऽवि सपक्खी रामादियाण परिवहन या सोलिंग पारंची जोऽविय परिषद् तं तु ॥ ८ ॥ सम्मी व असग्गी वा जो परपनले सपनले डुडो तु तस्स सिलिंग असेसी बाचि से देना ॥ ९॥ परपक्त्रो परपक रायमादीपट्टी जोऽवि मये। तस्स सदेसे ण कप्पति कप्प अणम्मि उक्ते ॥ २६०० ॥ एसो फसाया विसयप इदाणि वच्छामि तस्सविय चतुभंगत ॥ संज कपति पदमी तर अण्णतिरिधणी बीओ परपक्से संजती उभयपरो होति चतुत्यो ॥ २ ॥ लिंगेण लिगिणीए संपत्ति जति निगच्छती पायो। गिरयाउ निषेध आसायणओ अबरोही य ॥३॥ लिंग लिंगिनीए संपत्ति जो विगच्छती पायो। समाजात संघो आसादितो तेगं ॥४॥ पावागं पावयरो दट्ट् ण बहाए हु(सु)साहूणं जो जिम णमिऊण तमेव परिसेति ॥ ५ ॥ संसारमण जातिजरामरणवणारं पापमपडलमा भमंति मुद्दाधारिणं ॥ ६॥ एसो पदमगभंगी पारंचियमेत्थ होति पछि वित्तिय गर्भगम्मि तहा अणुवरयम्मी भने परिमं ॥ ७ ॥ जत्थुष्पजति दोसो कीरति पारंचिओ स तम्हा उ सो पुर्ण सेवि असेनी गोमीयो मे ॥ ८ ॥ वहिणि वासाही तह गाम देख रन् थ। कुल गण संधे हिमाएं पारंचिओ होति ॥ ९ ॥ उवसंतोऽवि समाणो वारिजति तेसु ते ठाणे इंदि] हु पुणोषि दो साणा सेवणा कृष्णाति ॥ २६१० ॥ जेसु विहति ताओ वारिति णवर ते ठाणे पढमगर्भगे ताई सेसेसुचि ताई ठाणाई ॥ १ ॥ इत्यं पुण अधिगारी पदमण उभयदुद्वेण उच्चारियसरिसाई सेसाई विकोणा ॥ २ ॥ इति एस अभिहिओ तू उभय व रायगो रायग्गमहिसिपटिसेवओ उ अरुणा इमो होति ॥ ३॥ रायस्स महादेवी अहवा जा जस्स होति इट्टा तु सा तस्स होति अग्गा अग्ग पहाणति एमद्वा ॥ ४॥ से पडिसेबति जो तू पुगो पुणो होति बहुससदो उ लोगपगास अहवा सो पावति परिमाणं तु ॥ ५ ॥ चसदा अण्णापनि जा इडा सा दुलेसि हो अग्गा परायादी आणं सिपि जब राइस ॥ ६॥ इयरमहिला चरिमं बिजली कीस एवं पोएति भण्णइ बहुआयाया इतर अपणो देव ॥ ७ ॥ रायस्स अम्गमहिसी अप्पणी कुलगणे वा पत्थराई दोसा पागतमहिला तस्सेव ॥ ८ ॥ वलोवो सरीरे वा दोसा ण हुकुलगणादिपत्यारो एतेन कारणं इतरासु होति परिमपदं ॥ ९ ॥ सो पारची १०६१] जीवकल्पभायं १ - ~ 55 ~ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [९५] ----- --------- भाष्यं [२६२०] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [९५] दीप अनुक्रम [९५] अभगितो अहणा पमत वोच्छामि। सो कलसचिकहाचिकटे इंदिय णिहा या पंचबिहे ।२६२०॥ कोहाति चाह कलसा विकहा पुण इस्थिमादिया परहा। पुम्भासा पियर्ड इंविय सो. यादिए पण ॥१॥ पोग्गाल मोदग करुसग दंते वडसालभंजणे चेव । वीणदीमाहरणा वोच्छामि विभागमेतेसि ॥२॥ वीणद्धिमहादोसा अपमोग्णासेवणापसत्तीय । चरिमट्ठाणायतिम बहुसो य पसजए जो उ । मू०९६॥३॥जह उदअम्मि थए वा वीणम्भी णोचलम्भए किंचि। इर्द चिन भणति तं धीर्ण तेण धीणची ॥४॥ पिसितासि पुवमहियं विनिचिय दिस्त तस्थ मिसि गर्नु । अण्णं हंतु खायति उवस्सत सेसर्य गेति ॥५॥ मोदगमत्तमलद्धं भंतु कवाडे परस्स णिति खाइ। भाणं च भरेतृणं आगजों आवासए वियडे ॥६॥ अवरोऽपि फासमुंडो मनियपिटे व छिदिउंसीसे । एमन्ते पचिन्चति पासुत्ताणं विपणा य॥७॥ अवरोवि पाडिओ मत्तहरियणा पुरकवाड भंतूर्ण । तम्सुक्खणिनु दन्ते वसही पाहि वियणा त॥८॥ उम्भामग पहसालेण पहिओ कोड पुत्र पत्थी । पहसालभंजणाऽऽणय उस्सम्याउडलोयण पभाए ॥९॥ तस्सोदयकालम्मी हवती केसवस्स अवलं । गघि देति अणसिसी लिंग अधि केवली होजा ॥२६३० ॥ गातम्मि पानिजति मुब लिंग पत्थि तुजर चारितं । देसवय ईसणं वा गिम्हसु इच्छते रमणिज॥१॥ अह गेच्छति तो संपो लिंग हरण हरति सि एगो । मा गच्छेज पदोस छहडेन्तऽसत्तीएं पासुतं ॥२॥णिदपमत्तो एसो पारंची किंगतो समक्खातो । कुणमाण अण्णमण पारंचीचे अतो बोच्च ॥३॥ करणं तु अण्णमणं समणाण ण कप्पती मुनिहिवार्ग। किह करण जष्णमष्ण भण्णनि इणमो णिसामहि ॥४॥ आसयपोसयसेवी केई पुरिसा दुवेइगा होन्तिासि लिंगविवेगो कानको होति णियमेण ॥५॥ चरिमं अंतं भणति तं पुण पारंचियंति जानकं । पारंथियावराहे पुणो पुणो सजए जो तु॥६॥ चीणदिमावियागं सोहि बोच्छ पुगोवि सडेसि। लिंगाढीणं कमसो एल्थ दमा होति गाहामो ॥७॥सो कीरति पारंची लिंगाओ खेत कालो तपतो। संपागलपडिसेपी लिंगाओ वीणगिही य॥ म०९७॥८॥ पसहिणिवेसणवाडगसाहिणीओ य पुरदेसरजानो। खेत्ताओ पारंची कुलगणसंपालबाजो बा ॥ मू०९८॥९॥ जत्युप्पणो दोसो उप्पनिस्सति व जत्थ गाकणे। ततो सत्तो कीरति खेलाओ सेनपाची ॥५०९९॥18 २६४० ॥ जत्तियमेनं काल तक्सा पारंचियरस उ स एव । कालो बुनिगम्यस्सवि अणवद्वपस्स जोऽभिहितो ॥ मू-१000१0 आसानण पडिसेपण वह अणयहम्मि जो भवे कालो। पारंचिएनि सो चेन होति उकोसग जहण्णो ॥२॥ पारंथिया उ एते तिप्णिवि सामण्णयो विणिदिहा। एलो जो जारिसतो निससमेतसि चोच्छामि ॥३॥ बुढे य पमने या अण्णीग्णासेवणापसते या एतेसि निष्हंपी विसेसमेतो परपसामि ॥४॥ तहिय त विसयनहो लपक्सपरपक्वतो जो होगा। सो कीरनि पारंची सेनेणं नुण ठिगेणं ॥ ५॥ अणुवरमतो । कीरति सेसो गियमेण लिंगपारंची। खेतेणय लिंगेण य पारंची अभिहिता एते ॥६॥ कि एते चिय भेया पारंचीए उयाहु अण्णेऽपि । भणनि नवपारंची अण्णोहि केरिसो स खल ALईदियषमापदोसा जो तू अपराहमुत्तमं पत्तो । सम्मानसमाउदो जह य गुणा से इमे होति ॥८॥ पहरोसहसंपतगो चितीय जो वजासामाणों । णवसम्म ननियवाएं सुन त्यहि च जोऽहीओ ॥ ५॥ राडगसीहतवादीहिंभावितो जो य ईदियफसाए। णिग्धेतृण समत्थो परयणसारे अभिगतत्थो ॥२६५० ।। जिनहितस्स असुभो निस्तुसमेनोवि जस्सण य भायो। णिजहणाए अरिहो सेसे गिजहणा गस्थि॥१॥ एयगुणसंपत्ता पावति पारचियं तु सो ठाण। एवगुणविष्पमुके लारिसपम्मी भवे मूळ ॥२॥ पारंचियं न पावति आसाएन्नो तर पडिसपी । एकेको होति दहा जहण उकोसओ चेच ॥ ३॥ आसायगो जहष्णो उम्यासुकोस वारस तु मासा। पास बारस पासा पहिसेवी कारणे अतिओ ॥४॥ अति । होना आचरितो तो गणणिपसेपमित कात् । पूर्ण अण्णगणं दादि सुभे विगतमा तु ॥५॥एगामी खेतवहिं कृतिता सविपुल महासलो । असोयणमायरियो पतिरिणयो कुणति तस्स मू०१.१॥६॥ओलोवर्ण गनेसनमायरिओ कुणनि पिणकालंपि। खेतबाहिचिहियस्ता इमेण विहिणा पवस्वामि ॥७॥ उभयम्मि रातूण स पाटिपुच्छ, वोटु सरीरस्स य बनमामि। आसासनित्ताण तयोकिल, नमेष गई पुणरेन्ति घेरा ॥८॥ असह मुर्त दाउं दोषि अदाउँबागच्छति पदेषि । संपाडो से भल पाणं पा जातिमगेण ॥९॥ पारन चियस्त नाहियं तेनहमाणस होज गेलणं । ताहे से पडिकम्मं वाहें पयत्तेण काय ॥२६६०॥ आहरति भत्तपाणं उबलगमाइयपि से कुणति। सतमेच गणाहिबई बेचारचं जहत्याम ॥१॥ जो उ उबेहं कुजा आयरिओ केगती पमाए। आरोषण तस्स भये गिलाणमुत्तम्मि जा भणिया ॥२॥ अहपुण पतरेज गुरू गंतू गेलामारिहिं सहियं । कालन्हें दुबलो वा कुलारिकोण बाणेण ॥३॥ अभिसेयं नो पसे अण्ण गीर्य व जो तहि जोग्गो । पुट्ठों न अयुडो वा सोवि य दीयेति तं कनं ॥ ४॥ सो य समस्थो होजा संपाडेतुमिहं तस्स कास्स। सीरादिलविजनो विलादिगअतिसएहि ॥५॥ जाता माहर्ष सतमेव गुरू वदति तं जोग। अस्थि मम एत्व विसतो अजाणए ते व सो बेति ॥ ६॥ अच्छउ महानुभावो जहासह गुणसयागरो संधी । गुरुयपि हम कर्ज में पप भविस्सए उहुयं ॥ ७॥ अभिहामहेतुकुसलो मासु अणिराइओ विजुसमासु । गंतृण रायमपणे मणाइसंशयवारि ॥८॥ पटिहाररुती! १०६२ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपसागर पOPAN are ~56~ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [१०१-१०३] --------------------------------- भाष्यं [२६६९-२७११] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं । प्रत सूत्रांक [१०१ -१०३] भण रायकवी, तमिच्छर संजतरूचि बढ़। णिवेचतित्ताण स पस्थिबस्स, जाहिं गियो तत्य तयं पवेसे ॥९॥ तं पृयतिताण सुहालणत्यं, पुछिसुराया गतकोउहाड़ो। पण्हे उराले असुए कयाई, स याचि जाइक्सति पत्विवस्स ॥२६७० ॥ जारिसमा सकादीण आयरक्खा मुनारिसो एसो। तुहराय! दारपालो संपिय चक्कीण पडिरूवी ॥१॥ अहारससीलसहस्सधारया होन्ति साहूणो अइयं । तं पति पडिरूवित्तं अतियारगिसेषणा पत्तो ॥२॥णिजूदो मि परीसर ! खेतेचि जतीम अपितुंग लभे। अतियारस्म विसोहिं पकरेमि पमाषमूलक्स ॥३॥ धम्मकहा आतुहण पुच्छण दीवणा यकजस्सा कि पुण हवेज कर्ज इमेहिं होजाहि एगतरं ॥४॥ बायपरायणकविओ चेतियता संजतीगहणे। णित्रिसयादि चव्हषि कजाण हपेज एगनरं ॥५॥ संघोगलमति कर्ज लवं कर्ज महानुभावेणं । तुम्भंति विसजेमी सेविय संघोत्ति एवि ॥६॥ भणति य राया संघ तुम्भ क करेमि अहमेयं । नुम्मेऽवि कुणद मज्जा एयरसेयं विसजेह ॥ ७॥ अमस्थितो सर्व वारण्या संपो विसजए तुहो। आदीमाऽत्रमाणे सो याविहवेज सोहीए ॥ ८॥ देख व देसदेस सा च पहेज हर मुचेना। 8-10 म्भागो से देसो दसभागो देसदेसो तु॥९॥ उम्मासबारबारसमासागं बारसह य समाणं। एके दो दा माला चाउरीसा होति उम्भागो। २६८०॥ अट्ठारस उत्तीसा दिवसा उत्तीस. मेव परिसं च। बापत्तरिच दिवसा दसभागेणं हवेजा वा ॥१॥आसायणपारंची जहण्य उम्मास मासों उम्भागो। उम्भागेणं बरिसे दो मासा हुंति णातमा ॥२॥ पडिसेवनपारंची बरिसे दो मास होन्ति छभागे। परिमाण बारसहं मासा चतुबीस छम्भागे ॥३॥ दसभागेणऽद्वारस दिवसा उहं हरति मासाणं । बरिसमस तु वसभागे दिवसा छत्तीसई हॉति ॥ ४॥ बरिसाण पारसण्डं परिर्स वापत्तरि चोरत्ता । इसभागेण हवंतिदु एसो खलु देसदेसो तु॥५॥ एवं तस्स तु संपो हो देसं व देसदेसं वा। मुंचेव बहेवा वा अड्वा स व मोसेजा ॥६॥ अहव अगीयणिमितं अप्परिणामे य तस्स वचहार। गवविह पत्थारेत्ता गेहसु एवं लहुसभत्तं ॥ ७॥ त्वं तु भमाडेतुं वरिसेतुं जबचिहपि वाहा। वाहे भष्णति एवं सो गेष्ठ लहुसयं एयं ॥८॥ अगवट्ठप्पो तवसा तक्पारंची य दोऽवि बोच्छिणा। चोइसवधरम्मी परेंति सेसा तुजा वित्यं ॥ मू०१०२॥९॥ पारचिय अणवडा तवसा आरेण महबाहुओ। पोखिण्णा दो तेसि सेसा तु परेंनि जा तित्य । २६९०॥ लिंगेण खेत काले घरेन्ति पारंचियाऽणबडा जे। लिंगेणं अणुसजति दोभावे बजा नित्यं ॥१॥ इति एस जीतकप्पो समासतो सुविहिताणुकंपाए। कहिनो देवोऽचं पुण पत्ते परिचियगुणेसु ॥मू०१०३॥२॥ इति एस अगंतस्तो उदिडो होति जीतकप्पो तु। जी आपरणिज कप्पो पुण उपिहो इसमो॥३॥ आजीवियधरणाओ व अहव जीत इमं मुगेयत्र । जीतस्स तस्स कप्पो एवं जो जीतकप्पो सो॥४॥ सामत्ये वष्णणाए य, उदणे करणे नहा। जोषम्मे आहिचासे य, कप्पसहो न परिणतो ॥५॥ उदणे वनणे चेब, कप्पसदो नई कतो । जीयरस वाणा जीतकप्पो वह छेदणं वेव ॥६॥ एवस्स जीपकप्पस्स समासो इति ई मुतबो। संखयो य समासो ओहोनि व होन्ति एगट्टा ॥ ७॥ सोभनविही तु जेसि सोभणपिहिता व सुविहिता ने तु। तेसि अणुकंपाए कहितो देयो य पत्तेसु ॥ ८॥ सुनेणवि जत्थेणवि जो पत्तो स खल जीयकप्पसा जोग्गो भणितो इयरो होति अजोगोति णातको ॥९॥ पुगसहो तु विसोसणे किन्नु विसेसेति ? तिम्तिगादी। एते तु पिसेसेती विवरीया होन्ति पत्ता तु ॥२७०० ॥ संविमाऽत्रजभीर परिणामो जो यहोति गीयत्यो। आयरियरष्णवादी संगहसीलो अपरितन्तो॥१॥ मेहावी य बहुसुतो गुरुसमुपी णिचमप्यमत्तो या एमादिगुणसमग्गो जीतस्स स होति पत्नोति ॥२॥ जह तावडेजणिहसे अविकोपि सुवणयं मुतां। तह अविकारी जो खल आदी मझे व अवसाणे ॥३॥ एवं देना सुपरिक्तियस गानस्सा जीतवहार। अणरिह देन्ताऽऽरोवण आणादी जंच पाविहिती॥४॥ पंचमहायमेदो उकायवहो य तेणऽणुण्णाओ। सुहसीलणीयगाणं कहयति जो पक्यणरहस्सं ॥५॥ आमे घडे णिहितं जहा जलने पड विणासेति। इय सिद्धतरहस्स अप्पाहार विणासेति ॥ ६॥ मरेज सह विवाए, काले आगए विदु । अपत्तं तुण बाएना, पत्नं च ण विमाणए॥७॥ विनियपए बाएजा अदाणादीहिं कारणजाए। बहुसो तपिस्मति वा वेयाषचादिणा अम् ॥८॥ अप्पगंध महत्यो इति एसो बरिणो समासेगं । पंचमतो बबहारो नाम जीयरपोनि ॥ ९॥कपः महाराणं उदहिसरिच्छाण नह मिसीहस्स । मतरतणबिन्तुगवणीतभूतसारस णातको॥२७१०॥ कप्पादीए विणिविजो सुलत्यहिं गाहिती गितुर्गाणिगदिस्मति सो एवं सीसपसीसाण ण अण्णा ॥२७११० जीतकापच्छेदसूर्यसभाष्य.वीरविभोः२४६८ उपसिद्धादि शिलोत्कीर्णसकलागमोपेतश्रीवर्धमानजैनागममन्दिरे शिलायामुरकीर्ण शोषितं चाचार्यानन्दसागरण मुनि दीपरनसागर दीप अनुक्रम [१०१-१०३] १०६३ जीतकल्पमाप्य - मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र ३८/१) “जीतकल्प" परिसमाप्त: ~57~ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः | 38/1 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च। “जीतकल्प-छेदसूत्र” |मूलं एवं जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण रचितं भाष्य] (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: “जीतकल्प” मूलं एवं भाष्यं नामेण परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of jain_e_library's' ~584